भारत में लाइब्रेरी क्यो खो रही है अपनी प्रासंगिकता
कोलकाता की राष्ट्रीय लाइब्रेरी
एक ऐसी चीज जिसका पता आपको जरूर जानना चाहिए, वह है लाइब्रेरी- अल्बर्ट आइनस्टीन
लाइब्रेरी को कठोर रुप से अपनी मुक्त बात कहने का मंच जाना जाता है। यहीं नही उसे नए आइडिया के सामने आने का जरिया भी कहते हैं। समाज को यह समझना चाहिए, कि उसके बिना उसका कोई भूत और भविष्य नहीं होता है। यहीं नहीं अत्याचार से रक्षा, अनजान भय से निपटने का भी एक अहम जरिया लाइब्रेरी होती है। दुनियाभर में जिस तरह से बुद्धजीवी वर्ग लाइब्रेरी को समर्थन देता है, उससे यह तो साफ है कि पब्लिक लाइब्रेरी के फायदे से भारत के लोग भी अनजान नहीं है।
बड़ौदा के महाराज सियाजी राव गायकवाड़ तृतीय ने भारत में पब्लिक लाइब्रेरी की शुरूआत साल 1910 में की थी। वह चाहते थे, कि उनके राज्य के लोग भद्रजनों के विश्वविद्यालय में अपनी जगह बनाए। इसी तरह कोल्हापुर के राजघराने में जिसे अब महाराष्ट्र कहा जाता है, उसने भारत का पहला पब्लिक लाइब्रेरी कानून 1945 में बनाया। उस समय से अब तक 19 राज्यों में पब्लिक लाइब्रेरी बनाने का कानून बनाया गया है। इस कड़ी में सबसे ताजा उदाहरण साल 2009 में अरूणाचल प्रदेश का है। हालांकि अभी भी भारत की 120 करोड़ आबादी और आजादी के सात दशक के बाद हमें नहीं पता है कि देश में किनती पब्लिक लाइब्रेरी हैं।
राजा राममोहन रॉय लाइब्रेरी फाउंडेशन ट्रस्ट ने 35 हजार लाइब्रेरी की देशभर में गणना की है। रॉय ट्रस्ट संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से पब्लिक लाइब्रेरी को फंड मुहैया कराता है। उसके अनुसार देश में प्रति 36 हजार व्यक्ति पर एक लाइब्रेरी का औसत है। वहीं अगर चीन से तुलना की जाय, तो वहां 2013 के आधार पर 136 करोड़ आबादी पर 51311 पब्लिक लाइब्रेरी हैं। यानी प्रति 26 हजार व्यक्ति पर एक लाइब्रेरी है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति 19000 व्यक्ति पर एक लाइब्रेरी के साथ 16500 पब्लिक लाइब्रेरी हैं।
इस असामनता को कम करने के लिए फरवरी 2014 में नेशनल मिशन ऑन लाइब्रेरी को लांच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया। लाइब्रेरी की अहम भूमिका को स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति ने बड़ौदा के महाराज का उल्लेख करते हुए कहा कि पब्लिक लाइब्रेरी को ज्यादातर आम लोगों का विश्वविद्यालय कहा जाता है। ऐसा इसलिए है कि यह समाज के सभी लोगों के लिए खुली होती है। जिसमें उम्र, लिंग और कुशलता का कोई स्तर नहीं आंका जाता है। मिशन के तहत सरकार अगले तीन साल के लिए 400 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इसके तहत वर्चुअल लाइब्रेरी, मॉडल लाइब्रेरी और कर्मचारियों के प्रशिक्षण का काम किया जाएगा। (इसके लिए आप हमारी पिछली रिपोर्ट पढ़ सकते हैं, जिसमें पब्लिक लाइब्रेरी सिस्टम को फिर से मजबूत करने का उल्लेख किया गया है)
लेकिन भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य हकीकत में इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं।
नीचे दिए गए ग्राफ में दिखाया गया है, ज्यादा आबादी वाले राज्य बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और झारखंड इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि वह आवंटित पूंजी का भी उपयोग नहीं कर रहे हैं। भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश ने केवल 2 फीसदी आवंटित राशि का इस्तेमाल अपनी 12 हजार से ज्यादा लाइब्रेरी पर किया है।
चार्ट-1 लाइब्रेरी के विकास के लिए मिले फंड का जनसंख्या के आधार पर राज्यों में वितरण
फाउंडेशन राज्यों को लाइब्रेरी को बेहतर करने में सहयोग देता है। लेकिन 12 हजार के करीब ही लाइब्रेरी हैं, जो कि पंजीकृत हैं। साल 2012-13 की रिपोर्ट के अनुसार लाइब्रेरी के लिए फंड का औसत इस्तेमाल 27 फीसदी है। इसमें से दिल्ली ने 100 फीसदी , चंडीगढ़ ने 81 फीसदी फंड का इस्तेमाल किया है। जबकि ज्यादातर राज्यों ने 40 फीसदी से भी कम फंड खर्च किया है। जबकि बिहार, पंजाब, मध्यप्रदेश और हरियाणा ने फंड का इस्तेमाल ही नहीं किया है।
Source: RRRLF
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जिन राज्यों ने पब्लिक लाइब्रेरी का इस्तेमाल नहीं किया है, वहां साक्षरता दर भी कम है। जहां साक्षरता दर ज्यादा है, उन राज्यों में फंड का ज्यदा इस्तेमाल किया गया है।
यह सिस्टम कब काम करता है।
जिन राज्यों में अच्छा काम हो रहा है, उनमे कुछ समानताएं हैं, जैसे केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात में एक वाइब्रेंट पब्लिक लाइब्रेरी सिस्टम है। एक तो यह है कि सभी की वेबसाइट हैं, जिसमें सदस्यता फार्म के साथ-साथ सभी तरह के विवरण हैं। इसके अलावा ऑनलाइन कैटलाग, जर्नल्स सहित दूसरी जरूरी सूचनाएं हैं।
दूसरी बात यह है कि ज्यादातर राज्यों में लाइब्रेरी कानून बनाए है। जिससे कि उन राज्यों में लाइब्रेरी के काम-काज की निगरानी होती है।
तीसरी अहम बात यह है कि आरआरआरएलएफ संसाधन का वह लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं।इसके तहत वह ज्यादा किताबें खरीद रहे हैं, किताबों का डिजीटलीकरण कर रहे हैं। साथ ही अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। नीचे दिया गया टेबल आपको पब्लिक लाइब्रेरी पर राज्यों द्वारा किए गए कामों की एक झलक देगा।
टेबल-विभिन्न राज्यों में सेंट्रल लाइब्रेरी
नेशनल मिशन ऑन लाइब्रेरी एक उम्मीद जगाता है, लेकिन मूल समस्या यह है कि यदि आरआरआरएलएफ जो कि मिशन को लागू करने वाली एजेंसी उसका राज्य सहयोग नहीं लेंगे। साथ ही जो लाइब्रेरी पंजीकृत नहीं उनके बारे में तो एजेंसी को जानकारी ही नहीं है, ऐसे में वह उनकी मदद कैसे करेगी।
इसके लिए पूरे देश के लिए एक केंद्रीकृत रिपॉजिटरी शायद पब्लिक लाइब्रेरी के सिस्टम को मजबूत कर सके। भारत में अगर एक आधुनिक लाइब्रेरी सिस्टम मिलता है, जिमसें साक्षरता कार्यक्रम और सामुदायिक सेवाओं के सुझावों को शामिल किया जाता है, तो यह एक बेहतर सिस्टम बनाएगा। जैसा कि यह पेपरकह रहा है कि भारत अपने पब्लिक लाइब्रेरी सिस्टम को बेहतर कर सामुदायिक सूचना सेवाओं के वितरण से लेकर स्थानीय लोक संस्कृति और परंपराओं की धरोहर को संभाल सकता है। यह एक बेहतरीन समय है, इसके लिए देश भर के नागरिक अपना योगदान दे सकते हैं। हमे लगातार नए विजन को बनाए रखने की जरूरत है, साथ ही सृजनात्मकता को बढ़ावा देने है। जिसका लाखों लोग इंतजार कर रहे हैं।
(सुंदर रामकृष्णनन एक स्वतंत्र लेखक है, साथ ही वह लाइसेंस्ड पॉयलट है। वह दिल्ली में रहते हैं, उनसे आप इस ई-मेल आईडी पर संपर्क कर सकते हैं। bsubadra@gmail.com)
इमेज क्रेडिट-Wikimedia
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