भारतीय पुलिस बल को संचार- परिवहन साधन और हथियार की कमी, लेकिन पैसे की नहीं
मुंबई: पिछले वर्ष की तुलना में, 2019-20 के केंद्रीय बजट में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए 8 फीसदी की वृद्धि हुई है,लेकिन पांच साल से 2017 तक के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्यों में आधुनिकीकरण के लिए बजट का उपयोग बहुत कम हुआ है, यहां तक कि उनमें से कई में बुनियादी सुविधाओं जैसे टेलीफोन, वायरलेस डिवाइस और परिवहन वाहनों की कमी है।
‘आधुनिकीकरण’ में हथियारों का उन्नयन, वायरलेस उपकरणों और उपग्रह नेटवर्क सहित संचार प्रणाली, और अन्य मामलों के साथ प्रयोगशालाओं और मानव शक्ति के प्रशिक्षण सहित फोरेंसिक बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। कुल मिलाकर, पुलिस बलों के आधुनिकीकरण बजट का उपयोग,उपलब्ध धन के आधे (48 फीसदी) से कम था, जैसा कि सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है।
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एम.एन.सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया,“केंद्र सरकार आधुनिकीकरण के लिए अनुदान जारी करती है, जिसका राज्य को मिलान करना होता है। राज्य हमेशा आधुनिकीकरण फंड जारी नहीं करते हैं। इसे परंपरा को बदलने की जरूरत है। ”
इस बीच, इस वर्ष के बजट में, ‘पुलिस बुनियादी ढांचे के लिए आवंटन’ ( आधुनिकीकरण आवंटन से अलग है, और मौजूदा वाहनों, बुनियादी हथियारों और टेलीफोन के रखरखाव प्रमुख शामिल हैं) में वास्तव में 2 फीसदी की गिरावट हुई है।
परिणामस्वरूप, भारत भर में पुलिस बलों के पास हथियारों और मूलभूत संचार और परिवहन बुनियादी सुविधाओं का अभाव है- 67 पुलिस स्टेशनों के पास कोई टेलीफोन नहीं था और 129 के पास जनवरी 2017 तक कोई वायरलेस संचार उपकरण नहीं था, जैसा कि ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ( बीपीआरडी ) के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है। संकट कॉल का जवाब देने के लिए, उनके अधिकार क्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए, प्रत्येक 100 पुलिस कर्मियों पर आठ वाहन थे।
भारत भर में वायरलेस संचार उपकरणों के बिना काम करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या में 231 फीसदी वृद्दि हुई है - 2012 में 39 से 2016 के अंत तक 129। 2017 की शुरुआत में, देश भर के 273 पुलिस स्टेशनों के पास एक भी परिवहन वाहन नहीं था।
संचार इंफ्रास्ट्रक्चर
वायरलेस संचार उपकरणों के बिना, आधे से अधिक पुलिस स्टेशन मणिपुर (30), झारखंड (22) और मेघालय (18) में थे। अपराध दर के मामले में मणिपुर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 28 वें स्थान (प्रति 100,000 लोग पर 121.9 ) रहा, जब सबसे खराब रैंक 36 वीं थी; मेघालय 29 वें (अपराध दर 120.4), और झारखंड 30 वें (120.9) स्थान पर रहा। इस बीच, बिना काम कर रहे टेलीफोन वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या 2012 में 296 से 10 फीसदी घटकर 2017 में 269 हो गई।
बिना टेलीफोन वाले 45 फीसदी से अधिक स्टेशन उत्तर प्रदेश (51), बिहार (41) और पंजाब (30) में थे। अपराध दर 128.7 के साथ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच उत्तर प्रदेश 26वें स्थान पर रहा। 157.4 की अपराध दर के साथ बिहार 22 वें स्थान पर और 137 के अपराध दर के साथ पंजाब 24 वें स्थान पर रहा।
2017 की शुरुआत में, देश भर के 51 पुलिस स्टेशनों में न तो टेलीफोन थे और न ही वायरलेस संचार उपकरण थे- 2012 में 100 स्टेशनों से नीचे। इनमें से आधे से अधिक पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर (15) और मेघालय (12) में स्थित थे।
सिंह ने कहा, "अधिक परिवहन और संचार उपकरण के साथ, पुलिस अधिक कुशलता से अधिक क्षेत्र में गश्त कर सकती है। वायरलेस संचार उपकरण, मोबाइल और वाहन आज आवश्यक हैं। यदि कुछ भी होता है, तो पुलिस को मुद्दे को संबोधित करने के लिए अच्छी तरह से संवाद करने में सक्षम होना चाहिए। बेहतर संचार और परिवहन के साथ, एक पुलिसकर्मी दस पुलिसकर्मियों के जितना काम कर सकता है।"
यातायात इंफ्रास्ट्रक्चर
2016 के अंत में, भारतीय पुलिस बलों के पास औसतन, 12.38 पुलिस कर्मियों के लिए एक परिवहन वाहन था - 2011 के अंत में 15 प्रति वाहन से सुधार है।
प्रति 100 पुलिस कर्मियों की परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता 2011 के अंत तक 6.78 से 19 फीसदी बढ़कर 2016 के अंत तक 8.08 हो गई,बड़े पैमाने पर वाहनों की संख्या में 500 फीसदी की वृद्धि के कारण जैसे खदान प्रूफ वाहन, फोरेंसिक वैन, जेल ट्रक और पानी के टैंकर 2011 में 1,255 से 2016 में 7,536 हुए हैं।
कारों और जीप जैसे मध्यम और हल्के वाहनों की संख्या में केवल 21 फीसदी वृद्धि हुई है, 2012 में 76,088 से बढ़कर 2016 में 92,043 हो गई है।
फिर भी, देश के 273 पुलिस स्टेशनों में 2016 के अंत तक कोई परिवहन सुविधा नहीं थी। इनमें से लगभग 90 फीसदी उग्रवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ (126), पड़ोसी तेलंगाना (91) और मणिपुर (25) में स्थित थे, जो आंतरिक रूप से संघर्ष का अनुभव भी करते हैं।
प्रति वाहन 30 पुलिस कर्मियों के साथ उत्तर प्रदेश, 22 के साथ मिजोरम और 18 के साथ हिमाचल प्रदेश में 2017 में प्रति 100 पुलिस कर्मियों के लिए सबसे कम परिवहन सुविधाएं थीं।
हथियार की कमी
इस बीच, कई राज्य पुलिस बल कम हथियारों और संचार बुनियादी ढांचे के साथ काम करते हैं, जैसा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2014 से 2018 तक पांच राज्यों की जांच के बाद पाया।
कैग के 2017 के राज्य ऑडिट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में, विशेष रूप से, राज्य पुलिस बलों (एमपीएफ) योजना के आधुनिकीकरण के तहत 69.91 करोड़ रुपये की प्रारंभिक मांग में से केवल 55 फीसदी या 38.31 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था और केवल 32.99 करोड़ रुपये (प्रारंभिक मांग का 47 फीसदी) का उपयोग किया गया था।
लगभग आधा (48 फीसदी) पुलिस बल हथियार का उपयोग कर रहा था जिसे गृह मंत्रालय ने 20 साल पहले पुराना घोषित किया था।
राजस्थान में, सीएजी ने 2009 और 2014 के बीच अनुशंसित क्वांटम की तुलना में 2015 में 75 फीसदी हथियारों की कमी की सूचना दी। राज्य पुलिस को 15,884 हथियारों की आवश्यकता थी, जिनमें से ऑडिट के समय उन्हें 3,962 (25 फीसदी) प्राप्त हुए थे। इनमें से, 2,350 या 59 फीसदी हथियार भंडारण में थे और थानों को वितरित नहीं किए गए थे।
इसलिए, राजस्थान के पुलिस स्टेशनों को अपेक्षित हथियारों का केवल 14.7 फीसदी प्राप्त हुआ और 85 फीसदी से अधिक की कमी का सामना करना पड़ा।
पश्चिम बंगाल में ऑडिट में 71 फीसदी हथियारों की कमी पाई गई; कर्नाटक और गुजरात में क्रमशः 37 फीसदी और 36 फीसदी की कमी थी।
आधुनिकीकरण बजट का अनियमित उपयोग
बीपीआरडी के अनुसार आधुनिकीकरण बजट, पुलिस बुनियादी ढांचे को उन्नत करने में मदद करता है - लोगों के अनुकूल पुलिस स्टेशनों और चौकियों का निर्माण, और गतिशीलता, हथियार और संचार उपकरणों में सुधार।
हालांकि, इन फंडों का राज्यों का उपयोग अनियमित है। भारत भर में, पांच वर्षों से 2017 तक, 28,703 करोड़ ($ 4 बिलियन) के कुल आधुनिकीकरण बजट के आधे (48 फीसदी) या 13,720 करोड़ रुपये ($ 1.9 बिलियन) से कम का उपयोग किया गया था।
2014 में 87 फीसदी उपयोग से, आधुनिकीकरण के धन का अखिल भारतीय उपयोग 2016 में 14 फीसदी तक गिर गया, केवल 2017 में फिर से 75 फीसदी तक बढ़ गया।
राज्यों के बीच, अकेले नागालैंड ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में 1,172 करोड़ रुपये के आधुनिकीकरण के लिए अपने सभी आवंटन का उपयोग किया, जैसा कि बीपीआरडी के आंकड़ों से पता चलता है। जम्मू और कश्मीर ने अपने आधुनिकीकरण बजट का लगभग 45 फीसदी खर्च किया, 89.59 करोड़ रुपये में से 40 करोड़ रुपये। उत्तर प्रदेश ने अपने 116.66 करोड़ रुपये में से 23 फीसदी (26.31 करोड़ रुपये) का इस्तेमाल किया।
संचार इंफ्रास्ट्रक्चर का आधुनिकीकरण भी कई राज्यों में अधूरा है।
कैग के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने 2011-12 से 2015-16 के दौरान अपने बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए 137 करोड़ रुपये के बजट आवंटन में से 28 फीसदी या 56 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
कर्नाटक में, 2013-14 से 2016-17 तक,अद्यतन संचार उपकरणों की खरीद के लिए 15.93 करोड़ रुपये की प्रारंभिक मांग के मुकाबले केवल 6.93 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिनमें से कोई भी 2018 के रूप में उपयोग नहीं किया गया था, जैसा कि एक अन्य कैग रिपोर्ट में पाया गया है। 2018 में, राज्य पुलिस के साथ सभी 43,636 संचार सेट (वायरलेस डिवाइस, वॉकी-टॉकी, आदि) पुराने हो चुके थे।
सिंह ने कहा, “पुलिसिंग अब प्रौद्योगिकी केंद्रित हो गई है। पुलिस को साइबर अपराध, मुद्रा उड़ान, अंतर्राष्ट्रीय तस्करी, और इस तरह के बड़े अपराधों के अन्य अपराधों के संबंध में अपनी क्षमताओं का आधुनिकीकरण और विस्तार करना चाहिए। हमें साइबर फोरेंसिक के संबंध में भी अपनी क्षमताओं में सुधार करना चाहिए, जो आज महत्वपूर्ण है।''
2002 में, भारत ने पुलिस और अर्धसैनिक बलों के बीच तेजी से संचार को सक्षम करने के लिए पुलिस दूरसंचार संचार नेटवर्क (पोलनेट) नामक एक उपग्रह-आधारित संचार नेटवर्क स्थापित किया।
कैग ने पाया कि, 2016 तक, उत्तर प्रदेश में 75 (51 फीसदी) जिलों में से केवल 38 में कार्यात्मक पोलनेट बुनियादी ढांचा था।
गुजरात में, संपूर्ण पोलनेट प्रणाली अक्टूबर 2015 में या तो आउट ऑफ़ ऑर्डर या अनुपस्थित थी, जैसा कि कैग ने पाया।
साथ ही 2015 तक संबंधित उपकरणों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति में 32 फीसदी की कमी पाई गई।
गुजरात ने अपने शहरी पुलिसिंग बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए 2013 और 2014 में प्राप्त 31.81 करोड़ रुपये में से कोई भी खर्च नहीं किया। 2009-10 से 2014-15 तक, इस उद्देश्य के लिए गुजरात को प्राप्त धन का 73 फीसदी खर्च नहीं किया गया।
(मेहता, शिकागो विश्वविद्यालय में ग्रैजुएशन के द्वितीय वर्ष के छात्र हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं। )
यह आलेख मूलत: 24 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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