भारतीय बाज़ारों में दुल्हन की मांग बढ़ी - अभियुक्तों पर कार्यवाही का आभाव
एक नई रिपोर्ट के अनुसार , ऐसा प्रतीत होता है कि, बच्चियों के गर्भपात और हत्या की ओर भारतीय प्रवृत्ति ने दुल्हनों के लिए तस्करी का एक नया बाजार बना दिया है
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ओन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बाजार आपूर्ति राज्यों और खरीददार राज्यों में बँटा हुआ है ।
पूर्वी राज्य, असम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सदा की तरह आपूर्ति राज्यों में से हैं और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान खरीददार राज्यों में शामिल हैं।
अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन कहते हैं दुल्हन बाज़ार का एक प्रमुख कारण, भारत में लड़कियों से अधिक लड़कों को प्राथमिकता देना है ,वे इन्हें कहते हैं "लापता महिलाएँ "। उनके अनुसार लगभग 10 करोड़ से अधिक महिलाएँ 'लापता' हैं ।
कुछ प्रमुख भारतीय राज्यों में विषम लिंग अनुपात ने संगठित तस्करी एजेंसियों से दुल्हनों के लिए तीव्र मांग को जन्म दिया है। इन राज्यों में लोग कहते हैं की उनके पास अपनी जाति / समुदाय में पर्याप्त महिलाएं नहीं हैं, और इसलिए वे गरीब राज्यों से दुल्हन खरीदते हैं।
अब हम सबसे कम लिंग अनुपात (1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) के साथ राज्य पर दृष्टि डालते हैं :
Source: Census 2011; Sex ratio is number of females per 1,000 males
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ' आर्गनाइज्ड ब्राइड ट्रैफिकिंग रिंग्स "के अनुसार हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बेहद सक्रिय हैं ।पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में विवाह की आयु "" की अवधारणा महत्वपूर्णमानी जाती है वहीं दशकों से अनियंत्रित लिंग-चयनात्मक गर्भपात महिलाओं की संख्या में गंभीर कमी उत्प्न्न की है।
इस कमी ने मानव तस्करी को एक आकर्षक व्यापार के रूप में जन्म दिया है जो केवल संयोजित तस्करी रैकेट तक ही सीमित नही रहा अपितु स्थानीय ग्रामीणों द्वारा दलाली के कार्य में भी विस्तृत हो गया है।
हरियाणा में विवाह पर लिंग अनुपात में गिरावट का असर देखने के लिए किए गए एक अध्ययन से (जिसमे 10,000 से अधिक परिवार शामिल थे ) पता चलता है कि 9,000 से अधिक विवाहित महिलाओं को दूसरे राज्यों से खरीदा गया था। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि ज्यादातर लोगों ने अब एक दुल्हन की खरीदी जाती है ऐसी धारणा को स्वीकार तो कर लिया है , लेकिन दुल्हन खुद उन्होंने भी खरीदी है इस बात से इनकार किया है।
नई दिल्ली स्थित संगठन , एमपॉवर पीपल, जो महिला तस्करी ले लिए कार्यबद्ध है, के अनुसार , लिंग अनुपात में कमी , युवा, अविवाहित महिलाओं के अपहरण को बढ़ावा दे रही है ।
इस तालिका में , राज्य अनुसार , अपहृत महिलाओं की संख्या को उजागर किया गया है :
Source: National Crime Record Bureau
यूएनओडीसी की रिपोर्ट में भी इन राज्यों की ओर "आपूर्ति राज्यों", के रूप में इशारा किया गया है जहां से महिलाओं की शादी के लिए तस्करी की जाती है ।
अधिकांश महिलाओं और लड़कियों की तस्करी गरीब परिवारों से की जा रही है । महिलाओं को तस्करी के लिए या तो विवाह के झूठे सपने या तेजी से विकसित हो रहे भारतीय शहरों में आकर्षक नौकरी दिलाने का लालच दे कर तैयार किया जाता है ।
"ये 'वैवाहिक लेनदेन' अक्सर स्वैच्छिक रूप में पेश किए जाते हैं ।यूएनओडीसी रिपोर्ट में कहागया है कि " हालांकि, "खरीदी दुल्हन" को अक्सर शोषित किया जाता है ,बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाता है ,नौकरानी सा बर्ताव किया जाता है,अक्सर पुनः बेच दिया जाता है या फिर विवाह के कुछ वर्षों के बाद छोड़ दिया जाता है।"
सरकार द्वारा प्रतिक्रियाएँ
अनैतिक आवागमन निवारण अधिनियम, 1956 में संशोधन करने के प्रस्तावों की पर विचार और अनुशंसा करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयीय समूह का गठन किया गया है ।
गृह मंत्रालय द्वारा एक एंटी ट्रैफिकिंग सेल भी मज़बूती से इस को अम्ल में लाने के लिए बनाया गया है। मंत्रालय ने भर में 225 एंटी ह्यूमन तस्करी इकाइयों (अगस्त 2012 से ) शुरू कर दिए हैं ; इससे इस तरह के मामलों को दर्ज करने और मजबूत और उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने की संख्या में वृद्धि आई है। भारत सरकार ने उत्प्रवास अधिनियम(इमिग्रेशन एक्ट) , 1983 के आवेदन और प्रवर्तन की प्रक्रिया को और मज़बूत किया है ताकि भर्ती एजेंसियों (विदेशों में काम दिलाने वाली फ़र्ज़ी एजेंसियाँ , गैर-मौजूदा नियोक्ताओं के लिए श्रमिक प्रतिपादन करने वाली , या फर्जी भर्ती एजेंट जो विदेशी कम्पनियों द्वारा अधिकृत नही किए गए) को विनयमित किया जा सके ।
इन कार्यों के बावजूद, वास्तविकता में कोई बदलाव दिखाई नहीं दिया है।
इस तालिका में आपूर्ति राज्यों में पंजीकृत तस्करी मामलों और दंड प्राप्त मामले दिखाए गए हैं :
Source: Lok Sabha
तस्करी के मामलों के लिए भारत में सजा की दर वर्ष 2009 में 44% थी। तब से यह गिर कर 2013 में 17% हो गई है।यह चिंता का विषय है । पश्चिम बंगाल की जैसे बड़े राज्य में सजा की दर 2009 में 5.6% थी जो की गिर कर 2013 में 2.5% रह गई। ये गिरावट सरकार की नीतियों और कार्यान्वयन के बीच के अंतराल पर प्रकाश डालती है।
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