भोजन संबंधी आदतों में बदलाव – बढ़ रहा है बच्चों का कद
इस वर्ष प्रकाशित की गई, पांच से 18 वर्ष के आयु के बच्चों की ग्रोथ चार्ट के अनुसार आठ साल पहले की तुलना में अब भारत के मध्यम और उच्च वर्ग के 18 वर्ष के लड़के कद में 3 सेमी एवं लड़की के कद 1 सेमी अधिक होती है।
यह आकंड़े (पिछले दो दशक से पहले एकत्र किए गए आंकड़ों का उपयोग करते हुए अंतिम बार 2007 में अद्यतन किया गया था ) अच्छे एवं नकारात्मक पहलू दोनों पर प्रकाश डालते हैं।
नई चार्ट के अनुसार शहरी बच्चों के कद एवं वज़न में वृद्धि हुई है। पहले लड़कियां अधिक लंबी होती थीं लेकिन यौवन अवस्था में कदम रखने के बाद उनकी लंबाई अधिक नहीं बढ़ती है।
वामन खादिलकर, जहांगिर अस्पताल, पुणे में सलाहकार बाल चिकित्सा एंडोक्राइनोलॉजिस्ट एवं भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी ( आईएपी) विकास - चार्ट समिति के संयोजक के अनुसार, “पहले के मुकाबले आजकल के बच्चों का वज़न अधिक होता है एवं आधुनिक भारत मोटापा एक बड़ी बीमारी के रुप में उभर रहा है।”
2007 एवं 2015 के बीच 50वें सेंटाइल पर वज़न का अंतर
2007 एवं 2015 के बीच 50वें सेंटाइल पर कद का अंतर
Source: Dr Vaman Khadilkar
सेंटाइल की व्याख्या: यदि आपका 5 साल का बच्चा वजन के 30 वें सेंटाइल पर है, तो इसका अर्थ है कि 5 वर्ष का 30 फीसदी वजन आपके बच्चे के बराबर या उससे कम है एवं 70 फीसदी उससे अधिक वज़न है। 50वीं सेंटाइल मध्य बिंदु है जहां बच्चे का 50 फीसदी, 50प सेंटाइल मूल्य के मुकाबले अधिक वज़नदार होता है एवं 50 फीसदी मूल्य के बराबर या कम होता है।
लेखकों ने वज़न और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का ग्रोथ चार्ट संशोधित किया है। लेखक मोटापे से ग्रस्त बच्चों की पहचान करने के लिए बीएमआई चार्ट का उपयोग करने की सलाह देते हैं। नई बीएमआई चार्ट के अनुसार अधिक वज़नदार एवं मोटापा ग्रस्त की निर्दिष्टि सीमा 23 और 27 दर्ज की गई है।
नई निर्दिष्टि सीमा “अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त होने के लिए वयस्क समकक्ष से मेल खाते हैं” एवं “एशियाई बच्चों" के लिए अधिक अनुकूल हैं।
वर्ष 2014 में संचालित, कमेटी ने संशोधन पर कार्य किया जिसके निष्कर्षों एवं चार्ट को इस वर्ष भारतीय बाल रोग पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
नई चार्ट भारत के 14 शहरों में रहने वाले उच्च और मध्यम सामाजिक-आर्थिक समूहों में से 33,991 बच्चों के विकास के समकालीन आंकड़ों पर आधारित हैं।
किस प्रकार ग्रोथ चार्ट नज़र रखता है विकास पर
ग्रोथ चार्ट माता-पिता के परेशानी भरे सवाल का जवाब देता है – बच्चे का विकास ठीक प्रकार हो रहा है या नहीं? बच्चे के कद एवं वज़न में वृद्धि हो रही है या नहीं ? इन सवालों के साथ मुख्य समस्या यह है कि हम कितना भी परेशान हो लें, आस-पास के बच्चों से तुलना कर लें लेकिन हमारे दिमाग में संदेह बना ही रहता है।
इस समस्या से निजाद पाने का सबसे आसान तरीका है कि हम ग्रोथ चार्ट का इस्तेमाल करें – थोड़ा पुराना लेकिन प्रयुक्त सांख्यिकीय उपकरण। ग्रोथ चार्ट एक ग्राफ है जो बच्चों के उम्र के अनुसार उनका आदर्श कद एवं वज़न दर्शाता है।
ग्रोथ चार्ट एक महत्वपूर्ण नैदानिक उपकरण हैं जो न केवल अपने बच्चों के विकास पर नज़र रखने में मदद करता है बल्कि अनियमितताओं पहचान करने में भी सहायक होता है।
संजय वजीर , क्लाउडनाइन अस्पताल , गुड़गांव के नियोनेटोलॉजी निदेशक के अनुसार चार्ट एक मानक की तरह है जिस तक हर बच्चे को पहुंचना चाहिए। यदि मानक तक बच्चा नहीं पहुंच रहा है तो हमें इसका कारण का पता लगाना चाहिए।
संजय एक बच्ची का उद्हारण बताया जिसे पर्याप्त पोषण देने के बाद भी ठीक से विकास नहीं हो रहा था। बाद में पता चला कि बच्चा सीलिएक रोग से ग्रसित है।
मोटापे या कुपोषण की पहचान के लिए सरल उपकरण
पिछले कुछ दशकों में, समाज के एक खास वर्ग के लिए , अच्छा पोषण मिलना समस्या नहीं रह गया है। वित्तीय सुरक्षा से न केवल भर पेट भोजन सुनिश्चित होती है बल्कि हमारे खान-पान एवं आहार पैटर्न में भी काफी बदलाव आया है।
इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि किस प्रकार मोटापा एवं जीवनशैली से जुड़ी बिमारियां तेजी से फैल रही हैं।
मोटे बच्चों के लिए बाद में मोटापा ग्रस्त एवं जीवनशैली से जुड़ी बिमारियां होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। खादिलकर ने कहा कि “नए ग्रोथ चार्ट के ज़रिए मोटे एवं अधिक वज़न वाले बच्चों की जल्दी पहचान करने में अधिक मिलेगी। ”
हालांकि भारत में जहां कुछ बच्चे अधिक वज़नदार एवं मोटापा ग्रस्त हैं वहीं कई ऐसे बच्चे भी हैं जो कुपोषण का शिकार हैं।
सवाल यह उठता है कि यह चार्ट दोनों वर्ग के बच्चों के लिए किस प्रकार सहायक है और क्या यह गरीब बच्चों के लिए भी वैध है क्योंकि यह चार्ट उच्च और मध्यम सामाजिक- आर्थिक वर्गों के आंकड़ों के आधार पर बनाया गया है? बाल रोग विशेषज्ञ सामाजिक-आर्थिक समूह पर ध्यान दिए बिना आईएपी चार्ट इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
अर्चना दयाल आर्य, वरिष्ठ सलाहकार बाल एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली कहती हैं कि “इन चार्ट को सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि चार्ट को ऐसे बच्चों के आधार पर बनाया गया है जिन्हें माना जा है कि इष्टतम पोषण वातावरण में रह रहे हैं।”
यदि बाल रोग विशेषज्ञ अमीर एवं गरीब, शहरी और ग्रामीण बच्चों के बीच पोषण विभाजन का लेखा चाहते हैं तो " वर्तमान में ऐसी कोई विकास चार्ट उपलब्ध नहीं है।"
नीलम क्लेर , अध्यक्ष, नियोनेटोलॉजी विभाग, शिशु स्वास्थ्य संस्थान, सर गंगा राम अस्पताल , नई दिल्ली ने कहा “इन चार्ट को इस्तेमाल करने के अलावा हमारे पास दूसरा विकल्प नहीं है। ” वज़ीर ने भी इस बात से सहमती दिखाई है। वज़ीर कहते हैं, “आदर्श विकास चार्ट की सीमा को देखते हुए, आईएपी चार्ट हमारे लिए सबसे उपयुक्त है।”
भारतीय ग्रोथ चार्ट प्रयोग करने के लिए तर्क
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) ने भी दुनिया भर में इस्तेमाल किए जाने के लिए पांच से 18 आयु वर्ग के बच्चों के लिए ग्रोथ चार्ट प्रदान करता है। लेकिन खादिलकर एवं ग्रोथ कमेटी के साथियों को लगता है कि आईएपी चार्ट भारतीय बच्चों के लिए अधिक उपयुक्त है।
उन्होंने अपने पेपर में उल्लेख किया कि “पोषण , पर्यावरणीय और आनुवंशिक कारक के कारण विभिन्न आबादी, खास कर पांच वर्ष की आयु से उपर के बच्चों का ग्रोथ पैटर्न भिन्न होता है एवं युवावस्था का समय कद सीमा तय करने का साथ समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
इसलिए देश विशिष्ट चार्ट की आवश्यकता है। कई बाल रोग विशेषज्ञ इस मत से सहमत दिखते हैं। एक असंबंधित अध्ययन में, विजयलक्ष्मी भाटिया , मेडिकल साइंसेज के संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान, लखनऊ में बाल चिकित्सा एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, डब्लू एच ओ के पांच से 18 वर्ष की आयु के ग्रोथ चार्ट न इस्तेमाल करने की सलाह देती हैं क्योंकि वह चार्ट वहां के उन बच्चों पर आधारित है जो उच्च सामाजिक-आर्थिक समूह के बच्चों के मुकाबले अधिक कद वाले एवं वज़नदार होते हैं।
कुछ बाल रोग विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं दिखते हैं। क्लेर के मुताबिक आईएपी चार्ट के लिए इस्तेमाल किया पद्धति " बहुत मजबूत नहीं है", हालांकि इसमें ताज़ा आंकड़े ज़रुर हैं।
क्लेर ने कहा कि डब्लू एच ओ के विकास संदर्भ डाटा सेट पर आधारित हैं जो “पुराने हैं लेकिन एकसमान हैं”, मजबूत सांख्यिकीय तरीकों " का उपयोग करता एवं “पांच के नीचे विकास चार्ट के साथ वक्र के विलय की अनुमति देता है। "
पाँच वर्ष की आयु से कम बच्चों के लिए, आईएपी भी डब्लूएचओ की चार्ट इस्तेमाल करने की सलाह देता है जिसे बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा व्यापक रुप से स्वीकार किया गया है।
चार्ट का प्रयोग करें और पूरक आहार से दूर रहें
हालांकि चार्ट के इस्तेमाल करने पर काफी बहस होत रही है लेकिन बच्चों के विकास की निरगारी रखने में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है।
खादिलकर के अनुसार “हालांकि मेरे पास कोई राष्ट्रीय आंकड़े मौजूद नहीं हैं लेकिन मेरे अनुमान के हिसाब से 20 से 30 फीसदी बाल रोग विशेषज्ञ ही विकास प्लॉट करते हैं।”
इस मामले में माता-पिता एवं स्कूलों को भी शामिल होना चाहिए। कई स्कूलों में सालाना कद एवं वज़न रिकॉर्ड की जाती है लेकिन वे डॉक्टर से मिलकर इन आंकड़ों को चार्ट तक पहुंचाने में असफल रहते हैं।
एक्स अक्ष आयु को दिखाता है और वाई अक्ष कद, वज़न या बीएमआई हो सकता है।
Source: Dr Vaman Khadilkar
यह ग्राफ कभी सीधी रेखा नहीं होती है। इसके बजाय, यह आमतौर पर 3 , 10 वीं , 25 वीं , 50 वीं , 75 वीं एवं 97 प्रतिशतक सहित लाइनों की एक श्रृंखला से बनती है। विकास माप जो सबसे कम या उच्चतम प्रतिशतक लाइनों से दूर होता है, उसे असमान्य माना जाता है, जिसका मतलब है जो एक स्वस्थ वजन और कद के कई अलग अलग संस्करण हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि, कई वर्षों कर बच्चों का विकास प्रतिशतक बदलता नहीं है।
छोटे बच्चों के लिए, विशेष कर दो वर्ष से कम आयु के बच्चे, लगातार माप करने की आवश्यकता है। पांच वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के लिए सालना माप लेना पर्याप्त है।
राजेश चंदवानी, बाल रोग विशेषज्ञ एवं आईआईएम में प्रोफेसर, ने दो वर्ष की आयु के कम बच्चों की विकास पर निगरनी रखने के लिए बेबीस्टेपस नाम का एक एप्प विकसित किया है।
चंदवानी ने कहा कि बड़े बच्चों की भी कद एवं वज़न पर निगरानी रखने की आवश्यकता है। इससे कई "विकास संबंधी विकारों और पोषक तत्वों की कमी की पहचान कर प्रबंधित किया जा सकता है।"
इस लेख के लिए हमने जितने भी बाल रोग विशेषज्ञ से बात की सबने यही बताया कि किस प्रकार ग्रोथ चार्ट के आलेखन से उन्हें मदद मिलती है। क्लेर के अनुसार चार्ट से उन्हें काफी मदद मिलती है जैसे कि अपरिपक्व बच्चों के विकास या छोटे कद की पहचान करने में , यहां तक कि माता-पिता को आश्वस्त करने में कि बच्चे का विकास हो रहा है।
आस-पास के बच्चों को अपने बच्चे से अधिक लंबा या वज़नदार देख कर माता-पिता बच्चों को अतिरिक्त खुराक देना शुरु कर देते हैं। वज़िर के मुताबिक अतिरिक्त खुराक देना अच्छा विचार नहीं है क्योंकि इससे आगे चलकर विशेष कर जन्म के समय छोटे पैदा हुए थे बच्चे को मधुमेह, रक्तचाप एवं हृदय के दौरा पड़ने, का खतरा बढ़ जाता है।
( मनुप्रिया बंगलौर स्थित एक स्वतंत्र विज्ञान लेखक है)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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