मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ लॉकडाउन से रुकी फ़सल की कटाई
भोपाल/रायपुर: किसानों को खेती-बाड़ी के काम में लॉकडाउन की वजह से कोई बाधा न हो इसके लिए सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं, लेकिन इसके बावजूद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसान पुलिस की सख़्ती की वजह से खेतों में खड़ी फ़सल नहीं काट पा रहे हैं। खेती के काम पर यह अघोषित लॉकडाउन कृषि क्षेत्र को काफ़ी नुक़सान पहुंचाने के साथ-साथ इससे जुड़े लोगों की आजीविका पर भी असर डाल रहा है।
यह रबी की फ़सल की कटाई का समय है, और कई किसान जल्दी से खेतों में खड़ी फ़सल काटकर उसे बेचना चाहते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कृषि संबंधी गतिविधियों को न छेड़ने के निर्देशों के बावजूद पुलिस की सख़्ती की वजह से कई जगहों पर किसान और खेत मज़दूर अपना काम छोड़कर बैठे हुए हैं। कृषि उपज मंडियां लॉकडाउन की वजह से बंद हैं और किसान अब सरकारों की तरफ से होने वाली ख़रीद का इंतज़ार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने ख़रीद की तारीख़ एक अप्रैल तय की थी, लेकिन फिर इसे स्थगित कर दिया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ऐलान के बाद 15 अप्रैल से फ़सल की ख़रीद का का काम शुरु हुआ है।
मध्य प्रदेश सरकार ने बयान जारी कर कहा है कि प्रदेश में बुधवार 15 अप्रैल से समर्थन मूल्य पर रबी फ़सलों की ख़रीद का काम ख़रीद केंद्रों पर शुरु हो गया है। यहां 21 अप्रैल तक 110,699 किसानों से 308,394 मीट्रिक टन गेहूं की ख़रीद की जा चुकी है। आज 100,000 किसानों को एसएमएस भेजे गये हैं, प्रमुख सचिव खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण शिव शेखर शुक्ला ने 21 अप्रैल को कहा।
“इस बार गेहूं, चना, अलसी और कुछ अन्य दालों की खेती की है, मगर लॉकडाउन की वजह से कई दिन से घर से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं,” मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले के हटवा गांव के 51 वर्षीय किसान प्रेम शंकर द्विवेदी ने कहा। उन्होंने आगे बताया कि कुछ दिन पहले गांव के कुछ खेत मज़दूरों को पुलिस ने खेत जाते वक्त पीट दिया और किसानों को भी घमकी दी कि उनपर धारा 144 के उल्लंघन का मामला भी दर्ज किया जाएगा। “जिन किसानों की खेती मुख्य सड़क के किनारे हैं वहां वह पुलिस के डर से नहीं जाना चाहते,” उन्होने कहा।
द्विवेदी खेती की लागत के बारे में कहते हैं कि उन्होंने 50 एकड़ की ज़मीन पर खेती के लिए दो लाख रुपए बुआई के समय खर्च किए थे और पानी-खाद का खर्च जोड़ दें तो यह चार लाख के क़रीब हो जाता है। “तकनीकी रूप से देखा जाए तो मेरे चार लाख रुपए खेत में फंसे हुए हैं और इस समय जो हालात बने हैं ऐसा लगता है कि सारा पैसा डूब जाएगा। कटाई का काम तुरंत शुरू हो जाना चाहिए, नहीं तो नुक़सान बढ़ता ही जाएगा। एक हल्की सी बौछार हमारी पूरी मेहनत चौपट कर सकती है, " उन्होने कहा।
रीवा ज़िले के ही 60 वर्षीय किसान सुरसरि प्रसाद मिश्र भी लॉकडाउन में आ रही दिक़्क़तों को लेकर कुछ इसी तरह की बात कहते हैं। “राज्य सरकार के खेती को ज़रूरी सेवाओं में शामिल करने के बावजूद, ज़मीनी हकीक़त कुछ और है,” उन्होंने कहा।
सुरसरि प्रसाद भोपाल में रहते हैं और खेती के काम के लिए गांव आते-जाते रहते हैं। इस बार वह विशेष तौर पर कटाई करवाने गांव आए हुए थे। उन्होंने सात एकड़ में गेहूं और चने की फ़सल लगाई है। "मज़दूर तो काम के लिए तरस रहे हैं और खेत में जाना भी चाहते हैं, लेकिन हाल में हुई पिटाई की घटना के बाद उनकी हिम्मत नहीं हो रही। हम भी पुलिस की एफ़आईआर (प्राथमिक रिपोर्ट) की धमकी से डर जाते हैं।" मिश्र बताते हैं।
मज़दूरों की कमी
मध्य प्रदेश के नीमच ज़िले के पालसोड़ा गांव के 35 वर्षीय किसान भरत राठौड़ ने 13 एकड़ ज़मीन पर गेहूं और एक छोटे से हिस्से में अफ़ीम की खेती की है। अफ़ीम की खेती के लिए उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ और सरकार से अनुमति है। मंदसौर और नीमच में अफ़ीम की खेती क़ानूनन होती है। अफ़ीम के मौसम में खेतों में मज़दूरों के लिए ख़ूब काम होता है जिसकी वजह से रबी के समय आसपास के ज़िलों से मज़दूर पलायन कर यहां आते हैं।
"मेरे साथ इस बार मज़दूरों की दिक्कत है। बारिश अच्छी होने की वजह से मैं इस बार काफ़ी अच्छी फ़सल की उम्मीद कर रहा था, लेकिन ऐन कटाई के वक़्त लॉकडाउन ने सब तबाह कर दिया। प्रवासी मज़दूर पहले दिन अफ़ीम के खेत पर आए, लेकिन जैसे ही बंदी के बारे में उन्हें पता चला वो पैदल ही अपने घरों की तरफ निकल गए," भरत ने कहा।
"नीमच में हर साल झाबुआ के आदिवासी इलाक़ों से मज़दूर आते हैं और एक-दो महीने खेतों में काम कर वापस चले जाते हैं। कुछ किसान कटाई के लिए मशीन का उपयोग करते हैं लेकिन मेरे खेत में यह संभव नहीं है। मेरे खेत छोटे हैं और दूर-दूर हैं। हार्वेस्टर से कटाई संभव नहीं है। मुझे मज़दूरों की ज़रूरत होगी," भरत ने कहा।
वह आगे कहते हैं, "अगर मैंने खेत से किसी तरह फ़सल काट भी ली तो इस समय मेरे पास उसे रखने की व्यवस्था नहीं है। लॉकडाउन की वजह से उपज ढोने का भी इंतज़ाम नहीं हो पाएगा। मैं सरकार को मंडी में अनाज न बेचकर इसे खुले बाज़ार में बेचता हूं ताकि अच्छी क़ीमत मिल सके, लेकिन इस वक़्त तो बाज़ार ही बंद है।" भरत का अनुमान है कि उन्हें लगभग 2.5 लाख रुपए का नुक़सान सिर्फ गेहूं की फ़सल में होना तय है।
हरदा, मध्य प्रदेश के 54 वर्षीय किसान सेठी पटेल बताते हैं कि उनके इलाक़े में भी मज़दूर मिलना मुश्किल हो गया है। "मैंने अपनी चने की फ़सल तो कटवा ली और गेहूं की फ़सल के लिए हार्वेस्टर मिल गया। हालांकि, कुछ किसानों की फ़सल तैयार नहीं हुई थी और लॉकडाउन के बाद उनका काम अटक गया। वह लोग प्रवासी मज़दूरों के आने का इंतजार कर रहे हैं," सेठी ने कहा।
हरदा में पानी की उपलब्धता की वजह से कुछ किसानों को जल्दी खेत तैयार कर तीसरी फ़सल लेनी है। "हमारे इलाक़े के बांध अच्छी बारिश की वजह से भरे हुए हैं और यहां तीसरी फ़सल लेने की तैयारी करनी है। बाहर के मज़दूरों के न होने की वजह से समय पर खेत तैयार नहीं हो पा रहे हैं," सेठी ने कहा।
"हमारे गांवों में 70% मज़दूर प्रवासी होते हैं जो लॉकडाउन की वजह से यहां से जा चुके हैं," देवास ज़िले के 27 वर्षीय युवा किसान शुभम पटेल ने कहा।
खाद्य आपूर्ति की कड़ी टूटने का ख़तरा
किसानों की संस्था राष्ट्रीय किसान मज़दूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार कक्काजी ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री को 24 मार्च 2020 को एक पत्र लिख कर लॉकडाउन के दौरान किसानों को हो रही समस्याओं के बारे में बताया था। उन्होंने पत्र में लिखा था कि किसान अपनी रबी की फ़सल नहीं काट पा रहे हैं और उन्हें इसका भारी नुकसान होगा। उन्होंने लॉकडाउन की वजह से पशुओं के लिए चारे और फ़सल के भंडारण की समस्याओं के बारे में भी पत्र में लिखा।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से उनकी 25 मार्च को फोन पर हुई बातचीत के आधार पर उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि किसान, मज़दूर और कृषि कार्य में लगी मशीनों को आवश्यक सेवाओं में शामिल किया गया है और किसानों को खेती के काम में लॉकडाउन के दौरान असुविधा नहीं होगी।
"हमने सरकार से मांग की है कि वह हमारी फ़सल ख़रीदने का इंतज़ाम गांव में ही करे और भारतीय खाद्य निगम (एफ़सीआई) के अधिकारियों को गांवों में भेजे," कक्काजी ने कहा।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने अप्रैल से खाद्य आपूर्ति की कड़ी के टूटने के संबंध में सवाल-जवाब के ज़रिए कुछ महत्वपूर्ण चीज़ों की तरफ़ ध्यान दिलाया है। इसमें लॉकडाउन की वजह से आवाजाही में हो रही दिक़्क़तों और मज़दूरों के व्यवहार में आए बुनियादी बदलाव की वजह से कृषि और कृषि कार्य पर होने वाले असर का ज़िक्र किया गया है। खाद, पशुओं की दवाओं और दूसरी चीज़ों की कमियों की वजह से उपज पर पड़ रहे प्रभाव पर भी इसमें चर्चा की गई है।
इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि रेस्टोरेंट और किराना दुकानों के बंद होने या कम संख्या में खुलने की वजह से ताज़ी फ़सल, मछली, चिकन आदि की मांग पर काफी गहरा असर हुआ है, जिससे छोटे किसानों पर ख़तरा अधिक है। लॉकडाउन और अफ़वाहों की वजह से देश की पॉल्ट्री इंडस्ट्री को अब तक लगभग 22,000 से 25,000 करोड़ रुपए का नुक़सान हो चुका है, जैसा कि हमने अपनी 15 अप्रैल की इस रिपोर्ट में बताया था।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस बार पानी के मामले में काफी समृद्ध हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय जल आयोग के अंतर्गत 19 बांधों में 24.85 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी भरा हुआ है जो इनकी कुल क्षमता का 56% है। पिछले साल यह बांध 36% ही भरे थे और इनका पिछले 10 वर्षों का औसत 37% है। इसका मतलब यह हुआ कि इस बार खेती के लिए पानी की कमी नहीं है।
केंद्र सरकार के आंकड़े कहते हैं कि मध्य प्रदेश में अच्छी बारिश होने की वजह से गेहूं की बुआई में भी 8.5% का इज़ाफा हुआ है। बुआई का रक़बा वर्ष 2018-19 में 2.7 मिलियन हेक्टेयर (एमएचए) था जो इस वर्ष बढ़कर 3.72 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। हालांकि, वर्ष 2017-18 में यह रक़बा 3 एमएचए और 2016-17 में 3.4 एमएचए था।
पिछले साल मॉनसून अच्छा होने की वजह से किसान अच्छी पैदावार की उम्मीद भी कर रहे हैं। केंद्र सरकार के आंकड़ों में कहा गया है कि पिछले वर्ष के लॉन्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) की तुलना में इस मॉनसून (जून से सितंबर 2019) में 10% अधिक बारिश हुई है।
गेहूं की पैदावार का अनुमान इस बार 106.21 मिलियन टन का लगाया गया है। यह पिछली पैदावार से 2.61 मिलियन टन अधिक होगी और गेहूं की औसत पैदावार 94.61 मिलियन टन से यह 11.60 मिलियन टन अधिक रहेगा।
लॉकडाउन की वजह से यह स्थिति बदल भी सकती है। इंडियास्पेंड ने रीवा और नीमच ज़िले के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से लॉकडाउन में किसानों को हो रही परेशानी के बारे में फ़ोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन वह जवाब देने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार गेहूं की ख़रीद को लेकर कुछ अलग दावे कर रही है। राज्य सरकार ने गेहूं की ख़रीद और उसके भंडार के लिए योजना बनाई है। एक बैठक में गेहूं की ख़रीद से संबंधित परिवहन और भंडारण की व्यवस्था के संदर्भ में विचार-विमर्श भी हुआ है, राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बयान में कहा।
सरकार फ़सल कटाई के समय किसानों और मज़दूरों के स्वास्थ्य का भी ख़्याल रख रही है, मुख्यमंत्री ने आगे कहा। बयान में कहा गया है कि किसान लॉकडाउन में भी कृषि कार्य जारी रख सकते हैं।
दूसरे क्षेत्रों पर भी असर
कोविद-19 महामारी की मार छत्तीसगढ़ के असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर भी पड़ी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। स्थानीय बाज़ार बंद होने की वजह से रोज़ाना कमाने-खाने वाले लोगों के साथ कृषि कार्य में लगे लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गई है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले के बेलटुकरी गांव के किसान और दुग्ध उत्पादक कृष्णा कौशिक ने इंडियास्पेंड से अपनी दिक्कत साझा की। वह कहते हैं कि लॉकडाउन की वजह से कृषि कार्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कृष्णा बिलासपुर शहर के निकट 16 एकड़ की खेती करते हैं। उनकी आधी ज़मीन पर सब्ज़ियां लगी हुई हैं। लॉकडाउन के बाद से ही सब्ज़ियों की मांग कम होने लगी। वह मज़दूरों की कमी से भी परेशान है।
लॉकडाउन की वजह से पशुओं का चारा मिलना भी बंद हो गया है। कृष्णा को इस बात की चिंता है कि जल्दी ही चारे की दुकानें नहीं खोली गईं तो उसके मवेशियों का क्या होगा? फ़ोटोः मनीष चंद्र मिश्र
सब्जियों के अलावा उनका डेयरी उद्योग भी लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया है। वह इस दौरान आपूर्ति की कड़ी बनाए रखने में अक्षम हैं। "सरकार के बार-बार यह भरोसा दिलाने पर कि कृषि कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, पुलिस वाले मानने को तैयार ही नहीं है। वह जिसे देखते हैं डंडा चला देते हैं। हमारे मज़दूर पुलिस के डर से घरों में दूध पहुंचाने नहीं जा रहे हैं। मैं चारे की दुकान बंद होने की वजह से अपनी 40 गायों को भोजन देने में असमर्थ हूं और कुछ ही दिनों का चारा बचा हुआ है," कृष्णा ने कहा।
एक तरफ़ किसान हैं जिन्हें मज़दूर नहीं मिल रहे हैं और दूसरी तरफ़ मज़दूर हैं जिन्हें काम नहीं मिल रहा है। इसकी वजह उनका शहरों और कस्बों से अपने गांवों को लौट जाना है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अपने गांव वापस जाने के लिए वाहन का इंतज़ार करते हुए मज़दूर। फ़ोटोः मनीष चंद्र मिश्र
"ग्रामीण इलाक़ों में लोग इतने डर गए हैं कि उन्होंने खेतों में हमें काम देना बंद कर दिया है। मैं लॉकडाउन के बाद से काम खोजने की कोशिश कर रहा हूं। मैं बिलासपुर नहीं जा सकता और गांव में काम मिल नहीं रहा। मुझे अपने बच्चों की चिंता हो रही है," बिलासपुर के गनियारी गांव में रहने वाले एक दिहाड़ी मज़दूर रघुनंदन रजक ने कहा।
इन परेशानियों को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने 27 मार्च को एक आदेश जारी कर ज़िला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया कि खेतों में काम करने वाले मज़दूरों को न रोका जाए। इस आदेश के अलावा कृषि विभाग ने भी प्रशासन को निर्देशित किया कि कोल्ड स्टोरेज और वेयर हाउस को बंद न किया जाए ताकि शीत चक्र प्रभावित न हो और सब्ज़ियों और फलों की आपूर्ति बनी रहे। "हमने यह देखा है कि पुलिस ने लोगों के सब्ज़ियों के वाहन नष्ट कर दिए जिससे आपूर्ति ठप हो रही है। हमें कोल्ड स्टोरेज और वेयर हाउस के मालिकों से भी ऐसी शिकायत आ रही हैं। अगर इसे रोका नहीं गया तो आपूर्ति की कड़ी टूट जाएगी और दामों में बेतहाशा वृद्धि होगी," इस आदेश में कहा गया।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी एक बयान जारी कर ज़िला कलेक्टरों को निर्देशित किया कि हर जगह ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति बिना किसी रुकावट के चलती रहनी चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि पॉल्ट्री, मछली का चारा, मछली, जानवरों का चारा और पशु चिकित्सा की ज़रूरी व्यवस्था भी आवश्यक सेवाओं में शामिल है और यह लॉकडाउन के दौरान भी जारी रहनी चाहिए। कृषि विभाग ने 26 मार्च को एक दिशा-निर्देश जारी कर कहा कि कोविद-19 के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए किसानों को हाथ से चलने वाले उपकरणों का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। अगर इसकी ज़रूरत हो तो साबुन से हाथ धोकर उपकरणों की सफाई भी होनी चाहिए।
(मनीष, भोपाल से स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)
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