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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (दाएं) के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली (बाएं)

भारत के सबसे औद्योगीकृत राज्य , महाराष्ट्र पर करीब 338,730 करोड़ रुपये ( 51 बिलियन डॉलर ) का आर्थिक ऋण है। गौर हो कि यह आंकड़े देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं। लेकिन राज्य बजट पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार पिछले पांच वर्षों में दक्षिणी राज्य, तमिलनाडु ( एक औद्योगिक विकास केंद्र ) में सबसे अधिक ऋण की वृद्धि ( 92 फीसदी ) देखी गई है।

इस ऋणग्रस्तता को दो तरीके से देख सकते हैं: यह राज्य के कमज़ोर अर्थव्यवस्था निधीकरण है या अपने मतलब से परे रहने वाले एक अपव्ययी सरकार का सूचक है।

आमतौर पर आय और व्यय के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए सरकार ऋण का उपयोग करती है। सरकार या तो योजना व्यय को पूरा करने के लिए उधार लेती है, उद्हारण के तौर पर सड़कों एवं बांधों के निर्माण के लिए, या फिर ऋण गैर -योजना व्यय, जैसे कि वेतन का भुगतान या ब्याज भुगतान के लिए के लिए लिया जाता है ।

हालांकि योजना व्यय अधिक उत्पादक है और आगे राजस्व की ओर जाता है वहीं गैर-योजना व्यय के लिए बनाई गई ऋण अनुत्पादक है ।

प्रमुख राज्यों के ऋण, वित्तीय वर्ष 2010 से 2015

पिछले पांच वर्षों में सभी प्रमुख राज्यों के लिए ऋण में 66 फीसदी की वृद्धि पाई गई है। वर्ष 2010 में जहां यह आंकड़े 16,48,650 करोड़ रुपए ( 358 बिलियन डॉलर ) थे वहीं 2015 में यह बढ़ कर 27,33,630 करोड़ रुपए ( 414 बिलियन डॉलर ) दर्ज किया गया है।

उच्चतम बकाया ऋण के संबंध में पहले स्थान पर महाराष्ट्र के होने के बाद 2,93,620 करोड़ रुपए ( 44 बिलियन डॉलर ) के आंकड़े साथ दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है। साथ ही 2,80,440 करोड़ रुपए ( 42 बिलियन डॉलर ) के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है।

तमिलनाडु ने तीव्र वार्षिक गति से राशि ऋण लिया है। यह आंकड़े तमिलनाडु के लिए 92 फीसदी हैं जबकि कर्नाटक के लिए 85 फीसदी एवं आंध्रप्रदेश के लिए 78 फीसदी है।

प्रति व्यक्ति औसत ऋण, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु

यदि आर्थिक विकास हो तो ऋण बुरा नहीं

यदि राज्य का आर्थिक विकास बना रहे और सेवा करते रहे तो ऋण बुरा नहीं है। इसलिए, ऋण का राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) या कुल आर्थिक उत्पादन के प्रतिशत के रूप में जांच करना सबसे महत्वपूर्ण है।

जीएसडीपी अनुपात के लिए उच्चतम ऋण के साथ राज्य

पश्चिम बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक ऋण-जीएसडीपी अनुपात है।

पिछले पांच वर्षों में राहत की खबर यह है कि सभी राज्यों के लिए ऋण-जीएसडीपी अनुपात 25.5 फीसदी से गिर कर 21.2 फीसदी हो गई है।

पश्चिम बंगाल में, बकाया ऋण में वृद्धि होने के बावजूद ऋण-जीएसडीपी अनुपात में गिरावट हुई है यानि राज्य के जीडीपी तेजी से बढ़ रही है।

आंध्रप्रदेश के लिए यह बात लागू नहीं होती है। आंध्रप्रदेश में बकाया ऋण में 78 फीसदी की वृद्धि हुई है लेकिन इसके ऋण-जीएसडीपी अनुपात 25 फीसदी पर स्थिर है। 2012 में, 22.5 फीसदी पर ऋण-जीएसडीपी अनुपात सबसे कम था।

महाराष्ट्र पर उच्चतम बकाया ऋण है लेकिन उच्च ऋण-जीएसडीपी अनुपात वाले टॉप दस राज्यों में इसका नाम नहीं है। महाराष्ट्र का ऋण-जीएसडीपी अनुपात 20.2 फीसदी है जोकि राष्ट्रीय औसत, 21.2 फीसदी, से कम है।

इसी तरह, तमिलनाडु का तेजी से ऋण जोड़ने के बावजूद इसका ऋण-जीएसडीपी अनुपात 20 फीसदी पर है एवं राष्ट्रीय औसत से कम है। इससे स्पष्ट है कि ऋण में वृद्धि के बावजूद राज्य की जीएसडीपी बढ़ रही है।

ऋण के साथ आता है ब्याज

जब ऋण लिया जाता है तब उसे ब्याज के साथ वापस किया जाता है। अधिकर राज्य सेवाएं राजस्व से ऋण लेती हैं। और ऋण सेवा कार्य का बेहतर उपाय राजस्व व्यय के प्रतिशत के रूप में कम अनुपात है।

ज्यादातर राज्यों के ब्याज भुगतान में गिरावट देखी गई है। इस संबंध में तमिलनाडु अपवाद है। तमिलनाडु के लिए यह आंकड़े 2012 में 10.5 फीसदी से बढ़ कर 2014-15 में 11.6 फीसदी पाए गए हैं।

उच्चतम ब्याज भुगतान वाले राज्य

इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है कि किस प्रकार पश्चिम बंगाल, पंजाब एवं गुजरात जैसे राज्य लगातार ब्याज भुगतान पर भारी मात्रा में खर्च कर रहे हैं।

2014-15 में भी तीनों राज्यों के टॉप स्थान पर रहने के साथ प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। हालांकि उत्साहजनक संकेत यह है कि सभी तीन राज्यों के लिए राजस्व व्यय के प्रतिशत के रूप में ब्याज भुगतान में कमी आई है।

( सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 25 नवम्बर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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