महाराष्ट्र में 70% विधानसभा सीटों के नतीजों पर असर डाल सकता है वन अधिकार अधिनियम
नई दिल्ली: महाराष्ट्र चुनावों में वन अधिकार अधिनियम यानी एफआरए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हाल ही में कुछ रिसर्चर्स ने वन अधिकार अधिनियम और महाराष्ट्र में होने वाले चुनाव पर एक विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के मुताबिक 2019 के इस चुनाव में महराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में 70% (211) से अधिक के लिए यह अधिनियम निर्णायक साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन 211 विधानसभा क्षेत्रों में से 87% में एफआरए के तहत जमीन अधिकार के लिए योग्य मतदाताओं की संख्या पिछले चुनाव में जीत के अंतर से ज्यादा है।
इन रिसर्चर्स ने 211 निर्वाचन क्षेत्रों में 2014 के विधानसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण किया। इन इलाकों में बड़ी संख्या में अदिवासी रहते हैं। और निष्कर्ष ये निकाला कि कोई भी राजनीतिक दल, जो एफआरए और जनजातियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य कानूनों को असरदार ढंग से लागू करने का वादा करता है, वह इन निर्वाचन क्षेत्रों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हरा सकता है।
एफ़आरए, 2006 में पारित किया गया था जिसमें वन-वासियों के जमीन अधिकारों को औपचारिक रुप से मान्यता दी गई। यह महाराष्ट्र में कम से कम 2.54 करोड़ लोगों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है। यह आंकड़ा ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर है। 2.54 करोड़ में से 21.7% (55 लाख) अनुसूचित जनजाति के अंतर्गतर आते हैं।
इस रिसर्च से जुड़े, ऑल इंडिया फोरम फॉर फॉरेस्ट मूवमेंट्स (एआईएफएम) के एक कार्यकर्ता प्रवीण मोते ने इंडियास्पेंड को बताया कि एफआरए निश्चित रूप से चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है।
महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर, 2019 को वोट डाले जाएंगें और नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।
एक गैर-सरकारी संगठन नेटवर्क कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स-लर्निंग एंड एडवोकेसी (सीएफआर-एलए) के विधानसभा चुनाव विश्लेषण के अनुसार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के 2018 का विधानसभा चुनाव हारने का कारण कुछ हद तक एफआरए ही था।
जमीन संघर्ष का केंद्र
महाराष्ट्र में, शुरुआत से ही एफआरए वन-निवासियों और सरकार के बीच विवाद का विषय रहा है। आंकड़ों पर नजर डाले तो 26,475 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि विवाद में रही है। यह क्षेत्र चंडीगढ़ के कुल क्षेत्रफ़ल का दोगुना है। लैंड कंफ्लिक्ट वॉच के आंकड़ों के अनुसार इन विवाद का असर 50,900 से ज्यादा लोगों के जीवनयापन पर पड़ता है।
2018 में, महाराष्ट्र में हजारों किसानों ने धीमी गति से कानून लागू होने और एफआरए के तहत दावों की गलत निरस्त करने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया। ये उत्तरी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में प्रमुख मुद्दा हैं, जिसमें नासिक, नंदुरबार, यवतमाल, अमरावती, गढ़चिरोली और धुले शामिल हैं। फिर भी, कोई भी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के दौरान वन अधिकारों के बारे में सीधे बात नहीं कर रहा है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में, राज्य ने माना कि उसने एफआरए के तहत 22,000 दावों को गलत तरीके से निरस्त किया था। राज्य ने अब अपने संभावित वन क्षेत्र के लगभग 1.3 मिलियन हेक्टेयर के दावों को मान्यता दी है। इसके साथ ही महाराष्ट्र, अब एफआरए को लागू करने में देश के टॉप राज्यों में से एक बन गया है।
फिर भी, यह 3.6 मिलियन हेक्टेयर की कुल एफआरए क्षमता का लगभग 37% ही बनता है। महाराष्ट्र सरकार ने जनवरी 2019 तक 374,539 एफआरए दावों में से 50% को मंजूरी दे दी थी।
वोटिंग पैटर्न
आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले, तुषार शाह और अर्चना सोरेंग ने पाया कि 211 विधानसभा क्षेत्रों में 20% से अधिक मतदाता एफआरए से प्रभावित हैं, ख़ास तौर पर कानून के कम्युनिटी फॉरेस्ट राइट (सीएफआर) प्रावधान से, जो ग्राम पंचायतों को जंगलों पर अधिकार देता है।
चुनाव के नतीजों में, किन सीटों पर एफआरए का असर पड़ सकता है, जानने के रिसर्चर्स ने इन सीटों को चार श्रेणियों में बांटा: महत्वपूर्ण, उच्च, अच्छा और मध्यम। महत्वपूर्ण सीटों में मतदाताओं की सबसे अधिक संख्या एफआरए से प्रभावित है। यहां जनसंख्या का एक बड़ा अनुपात आदिवासी है, और क्षेत्र वनों के तहत आता है। जिन्हें मध्यम के अंतर्गत रखा गया है, वहां आदिवासियों का अनुपात कम है और कम क्षेत्र वन के तहत आते हैं।
How Important Was FRA In The 2014 Maharashtra Assembly Elections? | |||||||||||
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Value of FRA as a electoral factor | Seats | BJP | INC | NCP | Shivsena | Other | |||||
Won | 2nd | Won | 2nd | Won | 2nd | Won | 2nd | Won | 2nd | ||
Critical Value | 7 | 3 | 0 | 2 | 0 | 1 | 3 | 0 | 3 | 1 | 1 |
High Value | 16 | 6 | 3 | 2 | 5 | 4 | 3 | 2 | 4 | 2 | 1 |
Good Value | 108 | 45 | 22 | 21 | 25 | 12 | 24 | 23 | 23 | 7 | 14 |
Medium Value | 80 | 26 | 21 | 11 | 22 | 20 | 17 | 17 | 13 | 6 | 7 |
Total | 211 | 80 | 46 | 36 | 52 | 37 | 47 | 42 | 43 | 16 | 23 |
Source: Independent analysis
2014 के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी और शिवसेना ने इन 211 सीटों में से लगभग 58% (बीजेपी ने 80 और शिवसेना 42) सीटें जीती थीं। कुल 211 सीटों में से लगभग 18% (37) के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। 2009 के चुनावों में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 17% सीटें (36) जीतीं।
विश्लेषकों ने कहा कि कांग्रेस पार्टी सबसे ज्यादा सीटों (25%) पर दूसरे नम्बर पर रही, और अगर वह एफआरए को चुनाव के मुद्दे के रूप में लागू करने पर जोर देती है तो उसकी सबसे ज्यादा सीटें जीतने की संभावना हो सकती है। और अगर महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज़ बीजेपी, एफआरए पर जोर देने में विफल रहती है, तो वह 2014 की तुलना में कम सीटें जीतेगी।
एफआरए और वोटिंग का रुझान
छत्तीसगढ़ में 2018 विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र में, कांग्रेस ने एफआरए को लागू करने का वादा किया, और 2013 के चुनाव की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल 39 सीटों में से 68% सीटों पर जीत हासिल की। सीएफआर-एलए के विश्लेषण के अनुसार, पिछले चुनाव में बीजेपी ने जो सीटें जीती थीं उसमें से वो 75% सीटें 2018 में हार गईं।
विश्लेषण के अनुसार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में, जहां कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की तुलना में बहुत कम अंतर से जीत हासिल की, वहां पार्टी ने भूमि अधिकारों के मुद्दे को जोरदार तरीके से आगे नहीं बढ़ाया।
महाराष्ट्र चुनाव में वंचित बहुजन आघाड़ी पार्टी के उम्मीदवार लालसू नागोटी कहते हैं, "एफआरए एक ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे चुनाव में दरकिनार किया जा सकता है। यह सीधे आजीविका से संबंधित है और यह सही समय है कि पार्टियां इसकी ताकत को पहचानें।"
लालसू नागोटी, देश के विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) में से एक, मंडिया गोंड समुदाय से आते हैं। लालसू एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में जिला परिषद के एक निर्दलीय सदस्य थे।
नागोटी कहते हैं, “हमारी मांगों में एफआरए और पंचायतों के प्रावधान (अुनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (PESA) को ठीक तरीके से लागू करना है, जो बहुसंख्यक अनुसूचित जनजाति आबादी वाले देश के क्षेत्रों में स्वशासन के लिए ग्राम सभाओं को सशक्त बनाता है, जो अनुसूचित इलाकों में ग्राम सभाओं को सशक्त बनाता है।"
FRA Implementation In Maharashtra, As Of January 2019 | ||||
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Types of Forest Rights | Gram Sabha Claims Received until January 31, 2019 | Approved | Rejected | Approved Forest Area (hectares) |
Individual Rights | 362502 | 179,684 | 43941 | 162244.14 |
Community Forest Rights | 12037 | 7729 | 337 | 1177029.8 |
Total Maharashtra | 374539 | 187413 | 44278 | 1339273.94 |
Source: Tribal Development Department, Maharashtra
(त्रिपाठी इंडियास्पेंड रिपोर्टिंग फेलो हैं।)
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 18 अक्टूबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।