महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की सभी प्रमुख मांगों को किया स्वीकार
मुंबई: जनता के साथ संबंधों के संकट का सामना करते हुए, भारत के सबसे समृद्ध राज्य सरकार ने 12 मार्च, 2018 को मुंबई में किसानों की रैली के बाद हजारों किसानों द्वारा की गई चार प्रमुख मांगों को स्वीकार कर लिया है।
भारत के सबसे समृद्ध राज्य में सात दिन, 180 किलोमीटर की यात्रा कर 35,000 ज्यादातर गरीब किसान अपनी समस्याओं को देश की वित्तीय राजधानी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास पहुंचे तो उनके संघर्ष ने आखिरकार राष्ट्रव्यापी ध्यान आकर्षित किया।
किसानों की रैली चार कारणों से हुई: वनाधिकार के तहत किसानों को जमीनी अधिकार; कृषि उत्पादन के लिए सरकार से बेहतर न्यूनतम कीमत, मानसून की अनियमितता के खिलाफ बेहतर सुरक्षा; कृषि श्रम के लिए पेंशन। कृषि अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र का एक हिस्सा माना जाता है। खेत ऋण माफी का समुचित कार्यान्वयन और 2016 के नोटबंदी निर्णय के आर्थिक नुकसान से राहत का वादा सरकार ने किया है।
12 मार्च 2018 की शाम तक सरकार ने घोषणा की कि वह 2017 में घोषित कृषि ऋण माफी की पात्रता, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत जमीन के मालिकाना हक का त्वरित हस्तांतरण, और कृषि श्रमिकों को पेंशन में वृद्धि, प्रति माह 500 रुपए से लेकर 1,000 रुपए की मांग स्वीकार करती है।
किसान सभेचे प्रतिनिधी आणि सर्वपक्षीय नेते यांच्याशी चर्चा केल्यानंतर घेतलेल्या निर्णयाची माहिती माध्यमांना दिली ! pic.twitter.com/hKLfUoqvHD
— Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) March 12, 2018
महाराष्ट्र के 135 से अधिक गांवों से, किसानों ने 5 मार्च, 2018 को उत्तरी शहर नासिक में सीबीएस चौक से अपनी पद यात्रा शुरु की। अखिल भारतीय किसान सभा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी से संबद्ध अखिल भारतीय किसानों द्वारा आयोजित, 11 रविवार मार्च, 2018 को मुंबई के उत्तर-पूर्वी सीमा के ठाणे-मुलुंड टोल नाका पर किसान पहुंचे।
यहां तक पहुंचने हुए उनके जूते टूट गए। कुछ लोगों ने अपने परिवार को पीछे छोड़ दिया, कुछ, विशेष रुप से बुजुर्ग ने मंजिल तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया और जहां हो सकता था वहां खाना पकाया और सोए।
किसानों ने हर रोज 30 किलोमीटर की यात्रा की। सड़कों के किनारे सोए, और रास्ते में साथ लाए लकड़ी की आग पर भोजन पकाया। परीक्षा देने वाल छात्रों और नागरिकों को काम पर जाने में असुविधा से बचने के लिए, किसानों ने अंतिम चरण में रात भर अपनी यात्रा जारी रखी और सोमवार की सुबह 12 मार्च, 2018 को दक्षिण मुम्बई में आजाद मैदान पहुंचे।
इस वर्ष कई सिंचाई परियोजनाओं के बावजूद, वर्षा की कमी के कारण महाराष्ट्र का कृषि क्षेत्र में 8.3 फीसदी की गिरावट होने की संभावना है। वर्तमान में राज्य में केवल 18 फीसदी खेती सिंचाई होती है, जैसा कि महाराष्ट्र आर्थिक सर्वेक्षण 2018 से पता चलता है।
महाराष्ट्र का कृषि संकट राष्ट्रव्यापी किसानों के लिए सामान्य है। इनमें से कई तेजी से अनिश्चित मौसम, कम रिटर्न, और ऋण के चक्र में फंस गए हैं।
एक वर्ष से जून 2013 तक, 70 फीसदी भारतीय किसान परिवार ने कमाई की तुलना में अधिक खर्च किया, 52 फीसदी से अधिक ऋणी थे और स्वास्थ्य लागत उनके कर्ज को और बढ़ा रहे थे, जैसा कि इंडियास्पेंड 27 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। पिछले पांच वर्षों से 2015-16 में, प्रति किसान असली खेत आय में प्रति वर्ष केवल 0.44 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि हमने बताया है।
जलवायु परिवर्तन भारत की कृषि आय को 25 फीसदी तक कम कर सकता है, जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण 2018 में चेतावनी दी गई है। अनिश्चित मौसम किसानों को सही सलाह देने के लिए सरकार के प्रणालियों की क्षमता को प्रभावित करता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 8 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में 2014 और 2015 के सूखे को कम करते हुए 2016 में भरपूर बारिश हुई, और राज्य के कई हिस्सों ने भी उस साल बाढ़ का सामना किया है।
किसानों की लंबी रैली की प्रमुख मांगों में से एक शर्त मुक्त ऋण माफी थी ( सामूहिक रूप से 49.1 बिलियन डॉलर (3.1 लाख करोड़ रुपये) के खेत ऋणों को समाप्त करने के लिए किसानों द्वारा विभिन्न मांगों का हिस्सा ) जो 2017 ग्रामीण सड़कों के लिए बजट का 16 गुना है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। हालांकि इस तरह के अनुदान गहरे खेत संकट को दूर करने में असफल रहे हैं, क्योंकि पिछले अनुभव से वित्त या आत्महत्या दरों पर बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं दिखा है। लगभग 32 फीसदी या 79 लाख छोटे या सीमांत किसान अभी भी ऋण के अनौपचारिक स्रोत पर भरोसा करते हैं। चूंकि महाराष्ट्र के 2008 के पहले कृषि ऋण माफी, कृषि बुरे ऋण में 3 गुना वृद्धि हुई, जो कि 2009 में 7,149 करोड़ (1.2 बिलियन डॉलर) से बढ़कर 2013 में 30,200 करोड़ रुपये (4.7 बिलियन डॉलर) हुआ है।
इसके अलावा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी संकट से उबरने में सफल नहीं हो पाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश के संचालन में 86 फीसदी मुद्रा, जो बड़े पैमाने पर 500 रुपये और 1,000 रुपये में थे, बंद करने की घोषणा के एक वर्ष बाद नासिक के किसानों ने बताया कि चेक से नकद मिलने में अब भी हफ्तों लग जाते हैं और ऐसे में जब उन्हें पैसों की सबसे ज्यादा जरुरत होती है, तब उनके पास पैसे नहीं होते हैं। इंडियास्पेंड ने इस बारे में 4 नवंबर 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
जिला सहकारी बैंक , जिस पर भारत के 70 फीसदी से अधिक प्याज बेल्ट निर्भर करता है, वे अब भी नोटबंदी से बाहर निकलनें की प्रक्रिया में हैं, किसान क्रेडिट के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसा कि हमने 11 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
हमने कुछ किसानों से मुलाकात की है:
महाराष्ट्र के उत्तरी कोंकण क्षेत्र के पालघर के दहनु तालुक से किसान कमली बाबू (85):
Kamli Babu (85) has walked from Dahanu district to Nashik to Mumbai. She has been cultivating a 3 acre patch of land for as long as she can remember but has no ownership to it. She can earn from farming for only 6 mos/yr due to the vagaries of the monsoon (1/n) #KisanLongMarch pic.twitter.com/iU5C7usrZ6
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Rest half of the year she works as an agricultural labourer. She is paid for her work in food, not cash. What she grows on the farm (mostly rice, some nachni) goes to feeding her family i.e. her son, his wife and his 7 children (aged 3-5yrs) #kisanlongmarch #farmersprotest
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Her demands are : 1) assured cash payment of wages to farm workers 2) ownership of forest land (that Kamli Babu has been cultivating for years) and 3) pension for old farmers so more like her can retire
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Kamli Babu has already submitted her forms for pension with the Tehsildar more than 2 yrs ago but is yet to receive word from the government.
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Kamli Babu (85) describes to us how she walked from Dahanu to Nashik to Azad Maidan in South Mumbai. She wants ownership of the forest land she has been cultivating with her son's family since as long as she can remember #KisanLongMarch pic.twitter.com/u2bOeuy9i5
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
नासिक जिले से किसान प्रकाश अंकबाले (32), नाना चहले (34) और प्रभाकर कपाल (35) :
The families of Prakash Dambale (32) and Nana Chahale(34) have been working on a 10 acre land for nearly 50 years since the 70s. They inherited the job from their fathers. #KisanLongMarch #FarmersProtest pic.twitter.com/c06W609egP
— Prachi.Salve (@PrachiSalve11) March 12, 2018
They have now walked from Nashik to Azad Maidan, covering a distance of 180kms, to demand ownership of the forest land under the forest rights act. "We have been protesting for this since 2010. We've even gone to Delhi for this. Walking for so long is not a big deal."
— Prachi.Salve (@PrachiSalve11) March 12, 2018
"We need land ownership to protect our rights. At any point the govt can claim this land is forest and come take it away from us. What happens to the 50 years we have worked here?"
— Prachi.Salve (@PrachiSalve11) March 12, 2018
Nana Chahale (34) tells us farmers are still reeling under demonetization. "The 3 banks we have in our taluka are overcrowded. Our savings, earnings, are stuck in district cooperative banks frm which the govt has refused to accept old notes since demonetisation #KisanLongMarch pic.twitter.com/VgAWIEGT9T
— Prachi.Salve (@PrachiSalve11) March 12, 2018
On the loan waiver, Prakash Dambale (32) an adivasi fighting for forest land rights says: "We filled the online application for loan waiver for the credit society farm loans we took last yr. But the govt told us-- first pay the loan interest on to get waiver" #KisanLongMarch pic.twitter.com/Xtq12JHxn0
— Prachi.Salve (@PrachiSalve11) March 12, 2018
Prabhakar Khadale (35) has walked 180 kms from Nashik to Azad Maidan. He wants ownership of the land his family has been tilling for the last 50 years since the 70s. "If we have ownership, we can dig wells, introduce irrigation for year-round crops" #kisanlongmarch pic.twitter.com/aVMfIOyTb1
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
When he is not tilling crops on the forest land his family has worked on, he works as a labourer on other farms. "I want my family to move out of this sustenance mode" Prabhakar tells me. #KisanLongMarch
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Whatever extra Prabhakar cultivates, he sells it at a loss : "We sell our produce (jowar) to the govt-owned mandis for Rs 15. The market buys our produce for Rs 25 but the commute to these markets in Igatpuri and Ghoti cost more than the profit we could make." #KisanLongMarch
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
नासिक के दिंडोरी तालुका में पुणेगांव से किसान हरि काले (38), और जनार्दन चौगुरे (41):
Hari Kale (38) tells us they are marching for better minimum support price from the govt. for agri-produce: "We invest 3x the amt & earn a third of it every yr. Always scrambling for money--We try to break the cycle of poverty bt we're pulled back constantly" #KisanLongMarch pic.twitter.com/UT7hIGtE2I
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
"The govt announced Rs 2000 MSP (Minimum Support Price) for onions but we did not get that when the time came to sell the produce. We were forced to sell at Rs 500-600. Same was the case for Tur and jowar" -- farmer Hari Kale (38) from Dindori taluka, Punegaon pic.twitter.com/kGNPSqMYEl
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
Janardhan Chougare (41) another adivasi from Dindori demanding land rights under the Forest Rights Act, 2006 : "Without right to the land, we are not eligible for any of the Kisan credit, or insurance schemes, the govt puts out. Our situation remains unchanged." #KisanLongMarch pic.twitter.com/vqf9T6a8j5
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में अमरावती जिले के किसान गुणवंत परशुराम टोन (56):
Farmer Gunvant Parshuram Tone (56) walked from Nashik to Mumbai to protest the govt's declining minimum support price for various farm produce. "Cotton would fetch Rs 5-6k previously now sells for Rs 4100. Tur which was Rs 150-200 now down 80%, bought at Rs 35." #KisanLongMarch pic.twitter.com/o4uLnd29pQ
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
"We barely earn so we go to rich farmers to work as farm labour. Our children only study till 8th Std.--till education is free. We don't have money for college fees, notebooks and textbooks. The children say it's better to work and earn an income than study." #KisanLongMarch pic.twitter.com/2tyHBv2Nld
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
उत्तरी मुंबई के ठाणे जिले में कसारा के किसान दत्तू वाल्ंबा (32):
Farmer Dattu Walamba (32) of Kasara, walked 100+ kms to Azad Maidan, Mumbai for land rights under the Forest Rights Act, 2006. He feeds his joint family of 16 with the Rs 25-30k he earns from a 10-acre plot the family has tilled since before he was born #KisanLongMarch pic.twitter.com/18wnjwmym2
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
"We have Aadhaar cards but we still don't get rations as we are yet to get our Below Poverty Line ration card. Earlier we used to 10 kgs but now we get only 5 kgs of ration," said farmer Walamba. "They refuse to recognize our poverty is seasonal & linked to the monsoons."
— Alison Saldanha (@bexsaldanha) March 12, 2018
(सलदानहा सहायक संपादक हैं और सालवे विश्लेषक हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 मार्च 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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