महिलाएं चलाती हैं 14% भारतीय कारोबार: अधिकांश स्वयं वित्त पोषित
ऋचा दुबे का पेशा - एक ऑनलाइन खुदरा व्यापार चलाती हैं जो कारीगरों को उपभोक्ताओंको जोड़ता है - आधुनिक भारतीय महिलाओं के लिए गैरमामूली प्रतीत नहीं हो सकता है लेकिन हाल ही में जारी आंकड़ो से संकेत मिलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कितनी पीछे हैं।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा छठी आर्थिक जनगणना के अनुसार भारत में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का केवल 14 फीसदी महिला उद्यमियों द्वारा चलाए जा रहे हैं। भारत में 58.5 मिलियन (585 लाख) व्यवसाय हैं, जिसमें से 8.05 मिलियन (80.5 लाख) महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं एवं जिससे 13.48 मिलियलन (134.8 लाख) लागों को रोज़गार मिला है। इन उद्यम में दुकानों से लेकर उद्यम वित्त पोषित स्टार्ट-अप शामिल हैं।
एसीजी इंक, एक संस्था, द्वारा 2015 ग्लोबल वूमन आन्ट्रप्रनुर लीडर रिपोर्ट में 31 देशों में भारत को 29वां स्थान दिया गया है। भारत का स्थान केवल पाकिस्तान एवं बंग्लादेश से उपर रहा है। संभव 100 में से 17 अंक के साथ, भारत का प्रदर्शन नाइजीरिया, युगांडा और घाना जैसे देशों से भी बदतर रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत और अन्य कम रैंकिंग वाले देशों में महिलाओं के लिए असमान अधिकार एवं काम पर प्रतिबंध से उनकी स्टार्टअप पूंजी सीमित होती है।
वैश्विक रैंक
दरअसल, दूबे का कारोबार स्वयं वित्त पोषित है। अब पूरे पांच वर्ष हो चुके हैं जब दूबे ने 22.2 एक्सेसरीज़ प्रक्षेपित किया है। दूबे करीब 30 ग्रामीण कारीगरों और उनके परिवारों से साथ काम करती हैं जो महिलाओं के लिए एक्सेसरीज़ बना कर बेचते हैं।
दूबे कहती हैं, “पिछले काम के दौरान कई फैशन ब्रैंड के साथ काम करते हुए एवं भारत में यात्रा करते हुए मैंने महसूस किया कि भारत में कारीगरों एवं शिल्पकारों उतना नहीं कमाते हैं जितना कि विकसित देशों में उनके समकक्ष कमाते हैं। काम के बदले उन्हें मामूली रकम मिलती है और इसी ने मुझे अपना काम शुरु करने की प्रेरणा दी है।”
36 वर्षीय, उत्तर प्रदेश की रहने वाली दूबे, बैंगलुरु से अपना कारोबार चलाती हैं, एक ऐसा शहर जहां स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया गया है एवं महिलाओं को अपने विचारों को पंख देने के लिए पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करता है। आंकड़ों से पता चलता है कि दक्षिण में महिला उद्यमियों की संख्या विशेष रुप से अधिक है।
दक्षिण राज्य आगे, सामाजिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण
महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कम से कम 13.5 फीसदी (1.08 मिलियन या 10.8 लाख) प्रतिष्ठान तमिलनाडु में स्थित हैं। यह आंकड़ा किसी भी अन्य राज्य से अधिक है। तमिलनाडु के बाद केरल (0.91 मिलियन या 9.1 लाख) और आंध्र प्रदेश (0.56 मिलियन या 5.6 लाख) का स्थान है।
राज्य अनुसार महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे प्रतिष्ठान
अपने गृह राज्य का उल्लेख करते हुए दूबे कहती हैं कि, “मैं खुद को उद्यमी के रुप में उत्तर प्रदेश में होने की कल्पना नहीं कर सकती हूं। हिंदी राज्यों की तुलना में दक्षिण राज्यों में कारोबार करना अधिक आसान है।”
अपने तर्क को मजबूत बनाने के लिए दूबे इन राज्यों में अनुकूल लिंग अनुपात का सहारा लेती हैं जो उच्च महिला उद्यमिता के साथ एक संबंध का संकेत है।
टॉप पांच राज्यों में लिंग अनुपात
Source: Census 2011
महिलाओं द्वारा चलाई जा रही अधितर कंपनियां छोटे पैमाने की; 79 फीसदी कंपनियां स्वयं वित्त पोषित
देविका पाराशर, निदेशक (महिला पहल), स्टार्टअप नेतृत्व कार्यक्रम, बनाने और उद्यमियों का पोषण करने के लिए एक फैलोशिप प्रोग्राम, कहती हैं कि, महिला उद्यमियों को तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- एक उद्यमी के रूप में गंभीरता से लिए जाने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है;
- महिला परामर्शदाताओं एवं रोल मॉडल का अभाव;
- प्रतिबंधित लिंग भूमिकाएं, निवेशकों की फंडिंग पैटर्न एवं 14 फीसदी आंकड़ों से खुलासा;
छह लोगों की टीम के साथ दूबे की कंपनी - प्रबंध प्रशासन और रसद - 83.19 फीसदी प्रतिष्ठानों के भीतर आती है, जिसमें कम से कम एक कार्यकर्ता को काम पर रखा गया है और जो यह दर्शाता है कि महिलाओं द्वारा संचालित अधिकतर व्यवसाय छोटे पैमाने के हैं।
कार्यकर्ताओं के आकार अनुसार महिलाओं द्वारा संचालित कारोबार
महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कम से कम 79 फीसदी उद्यम स्वयं वित्त पोषित हैं; केवल 4.4 फीसदी ने वित्तीय संस्था से पैसा उधार लिया है या सरकार से सहायता प्राप्त की है।
हाल ही में, यस बैंक ने विशेष रूप से 100,000 महिला के स्वामित्व वाले व्यवसायों के वित्तपोषण के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम से एक 50 मिलियन डॉलर (325 करोड़ रुपए) का ऋण लिया है।
महिलाओं द्वारा चलाए कारोबार: धन के श्रोत
60 फीसदी महिला उद्यमी वंचित समुदायों से हैं
कम से कम 4.81 मिलियन (या 48.1 लाख) संस्थानों का नेतृत्व अनुसूचित जाति (एससी), जनजाति (एसटी) या अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की महिलाओं (60 फीसदी) द्वारा किया जा रहा है जो यह दर्शाता है कि वो काम करती हैं क्योंकि उनके लिए महत्वपूर्ण है।
इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टैंड अप इंडिया योजना की शुरुआत की है जिसके तहत बैंक अनुसूचित जातियों, जनजातियों और महिला उद्यमियों को 1 करोड़ रुपए तक का ऋण देगी, जिन्हें रुपे डेबिट कार्ड एवं अन्य सहायता दी जाएगी जैसे कि पूर्व ऋण और विपणन प्रशिक्षण।
मालिक के सामाजिक समूह के अनुसार महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे संस्थान
यदि हम फिर से बैंगलुरु की बात करें तो दूबे अपने कारोबार का विस्तार दूसरे राज्यों तक करना चाहती हैं और अधिक शिल्पकारों और कारीगरों के साथ काम करना चाहती हैं।
36 वर्षीय ऋचा दूबे, भारत के 8 मिलियन महिला उद्यमियों में से एक है, जो एक ऑनलाइन खुदरा उद्यम चलाती हैं जो कारीगरों एवं उपभोक्ता को जोड़ता है।
पिछले 10 वर्षों में कम से कम 25 मिलियन (या 250 लाख) महिलाएं भारतीय श्रम शक्ति से बाहर हुई हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है। 27 फीसदी से अधिक महिलाएं श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं हैं। श्रम शक्ति भागीदारी के संबंध में यह आंकड़े दक्षिण एशिया में, पाकिस्तान के बाद सबसे कम हैं। पाकिस्तान में महिला श्रम शक्ति दर बढ़ रहा है जबकि भारत में यह घट रहा है।
(साहा दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 7 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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