माताओं की शिक्षा और घर की आर्थिक स्थिति करते हैं भारत में शिशुओं के अस्तित्व का फैसला
गरीब परिवारों में शिशु मृत्यु दर अधिक है। साथ ही जिन परिवारों में माताओं की स्कूली शिक्षा कम है, उन परिवारों में भी शिशु मृत्यु दर अधिक पाए गए हैं। यह जानकारी नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से सामने आई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में गिरावट आई है। ये आंकड़े वर्ष1992-93 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 79 मौतों से गिर कर वर्ष 2015-16 में 41 तक हुआ है।
पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (यू5एमआर - संभावना कि एक विशिष्ट वर्ष में पैदा हुए बच्चों की मृत्यु पांच वर्ष की आयु या जन्म के एक महीने के भीतर होगी ) और नवजात मृत्यु दर में भी गिरावट हुई है।
बच्चों में मृत्यु दर की प्रवृति
Source: National Family Health Survey, 2015-16 (Page 184); (In deaths per 1,000 live births)
शिक्षा से शिशु स्वास्थ्य में मदद
नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक जिन बच्चों के माता के पास स्कूली शिक्षा कम थी, उन बच्चों के जीवित रहने की संभावना कम थी।
जिन बच्चों की माता के पास स्कूली शिक्षा नहीं थी, उनके लिए यू5एमआर, प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 67.5 मौतों का था, जबकि जिन बच्चों की माताओं की शिक्षा 12वीं कक्षा से ज्यादा थी, उनके लिए आंकड़े आधे से भी कम (26.5) थे।
आईएमआर और नवजात मृत्यु दर में भी समान गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है।
माताओं की शिक्षा अनुसार बच्चों मे मृत्यु दर प्रवृति
Source: National Family Health Survey, 2015-16 (Page 189)
Note: In deaths per 1000 live births
पढ़ सकने वाली माता से जन्म लिए बच्चों की पांच वर्ष तक जीवित रहने की संभावना 50 फीसदी ज्यादा होती है। माता के स्कूली शिक्षा का प्रत्येक वर्ष शिशु मृत्यु दर की संभावना 5 से 10 फीसदी कम करता है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की 2011 की रिपोर्ट, ‘एजुकेशन काउंट्स’ में बताया गया है।
भारत में, अधिक शिक्षित महिलाओं वाले राज्य बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम दिखाते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 20 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
वर्ष 2015-16 में हालांकि, 12वीं या अधिक शिक्षा वाली 93.9 फीसदी माताओं ने जन्म से पूर्व देखभाल प्राप्त की है, जबकि बिना स्कूली शिक्षा वाली 67.9 फीसदी माताओं को ऐसी सुविधा प्राप्त हुई है, जैसा कि ‘एनएफएचएस -4’ के आंकड़ों से पता चलता है। हालांकि, 12वीं या अधिक शिक्षा वाली 94.7 फीसदी महिलाओं ने स्वास्थ्य सुविधा वाले माहौल में अपने बच्चे को जन्म दिया है, लेकिन बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं के लिए यह आंकड़े 61.6 फीसदी रहे हैं।
इसी तरह, 12वीं या अधिक शिक्षा वाली 69.7 फीसदी माताओं ने अपने बच्चों को सभी मूल टीका दिलाया है, जबकि बिना स्कूली शिक्षा वाली माताओं के लिए ये आंकड़े 51.5 फीसदी रहे हैं।
गरीब परिवारों में बच्चों के बचने की कम संभावना
संपत्ति सूचकांक के सबसे कम स्तर में पैदा हुए बच्चे की तुलना में उच्चतम स्तर वाले परिवार में पैदा हुए बच्चों के बचपन में तीन गुना अधिक जीवित रहने की संभावना होती है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।
सूचकांक की गणना उपभोक्ता वस्तुओं जैसे कि टीवी से लेकर साइकिल या कार तक के सामान के स्वामित्व और आवास विशेषताओं जैसे पीने के पानी, शौचालय की सुविधा और फर्श सामग्री के स्रोत के आधार पर की गई थी। परिवारों को पांच बराबर समूहों में वर्गीकृत किया जाता है- जिन्हें ‘क्विंटिल्स’ कहा जाता है।
परिवार की संपत्ति के आधार पर बच्चों में मृत्यु दर प्रवृति
Source: National Family Health Survey, 2015-16 (Page 189)
Note: In deaths per 1,000 live births
उदाहरण के लिए, संपत्ति सूचकांक पर सबसे कम 20 फीसदी में यू5एमआर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 71.7 मृत्यु की थी,उच्चतम 20 फीसदी (22.6) के लिए दर से तीन गुना अधिक।आईएमआर और नवजात मृत्यु दर में भी इसी तरह के रुझान दिखाई देते हैं।
सर्वोच्च धन ‘क्विंटिल्स’ में, दस में से आठ महिलाओं (81.6 फीसदी) ने 2015-16 में चिकित्सक से प्रसवपूर्व देखभाल प्राप्त किया है, जबकि न्यूनतम क्विनटाइल में यह आंकड़ा 10 में से 3 (30.2 फीसदी) महिलाओं का रहा है। हालांकि, उच्चतम ‘क्विंटिल्स’ में 34.1 फीसदी महिलाओं ने अपने बच्चों के जन्म देने के लिए एक सार्वजनिक अस्पताल का इस्तेमाल किया था, जबकि सबसे कम ‘क्विंटिल्स’ में यह आंकड़ा 51.7 फीसदी महिलाओं का आंकड़ा रहा है।
संपत्ति ‘क्विंटिल्स’ अक्सर निवास स्थान ( ग्रामीण या शहरी ) पर निर्देशन करते हैं और इस तरह स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बनाते हैं। उदाहरण के लिए, 76.1 फीसदी महिलाओं ने शहरी इलाकों में डॉक्टरों से जन्मपूर्व जांच कराई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़े 51.6 फीसदी रहे हैं, जैसा कि ‘एनएफएचएस-4’ के आंकड़ों से पता चलता है।
(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 16 जनवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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