मानसून के बदलते पैटर्न से भारत का जल संकट बढ़ा
नई दिल्ली: गर्मी छुट्टी के इस मौसम में पर्यटकों को शिमला से दूर रहने के लिए कहा जा रहा है। इस हफ्ते स्कूल बंद कर दिया गया है। 18 मई, 2018 के बाद से शहर को लगभग 60 फीसदी कम पानी मिला है। यह संकट राज्य की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है क्योंकि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 7.2 फीसदी पर्यटन पर निर्भर है।
हिमाचल प्रदेश में जलाशयों में जल स्तर साल के इस समय के लिए सामान्य से 56 फीसदी कम है, जैसा कि 5 जून, 2018 को बेंगलुरु स्थित गैर-लाभकारी संस्था, ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा जारी एक तथ्य पत्र में बताया गया है।
तथ्य-पत्र में कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश में नहीं, जलवायु परिवर्तन के कारण देश में मानसून का पैटर्न बदल गया है और कई भारतीय राज्यों में तीव्र पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
‘क्लाइमेट ट्रेंडस’ के एक बयान में कहा गया है कि, "देश भर में, लोग सूखे कुएं और नदियों का सामना कर रहे हैं। हाल के वर्षों में कुछ स्थानों को बार-बार सूखे का सामना करना पड़ा है।" स्थिति और बिगड़ने से भारत में कई अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय जल संघर्षों को बढ़ावा मिलेगा।
आंकड़ों से पता चलता है कि,आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तराखंड जैसे राज्यों में, जलाशयों का स्तर उनके सामान्य से 50 फीसदी से कम था, जबकि पंजाब, कर्नाटक और गुजरात के जलाशयों का स्तर सामान्य से लगभग 40 फीसदी कम था।
चयनित राज्यों के जलाशयों में जल स्तर
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 17 मई, 2018 तक, 2017 में सामान्य रुप से मानसून के बावजूद प्रमुख भारतीय जलाशयों में जल स्तर सामान्य से 10 फीसदी कम था।
तेजी से शहरी विकास, बढ़ती आबादी, और एक बदलते माहौल ने कई भारतीय शहरों के लिए सामान्य नागरिक की जल मांगों को पूरा करना मुश्किल बना दिया है, जैसा कि दिल्ली स्थित विचार मंच सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईई) के एक शोधकर्ता कंगकानिका नियोग ने बताया है।
जल संकट का कराण और बारिश के पैटर्न में बदलाव
‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ ने भारत में बारिश के पैटर्न में बदलाव को समझने के लिए जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, बार-बार सूखे और पानी की कमी का विश्लेषण करने के लिए माध्यमिक डेटा का उपयोग किया है। देश में मानसून की वर्षा, 2016 तक पिछले छह वर्षों में से पांच में औसत से कम रहा है और पूर्व मानसून ( मार्च से मई ) के मौसम में 2018 में लगातार तीसरे वर्ष औसत से 11 फीसदी कम बारिश देखी गई है, जैसा कि अध्ययन में पाया गया है ।
तथ्य-पत्र में कहा गया है कि, ये बदलाव लंबी अवधि के परिवर्तन से जुड़ा है। कुछ राज्यों ने वार्षिक वर्षा में बड़ा बदलाव देखा है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में सालाना बारिश लगभग 10 फीसदी कम हो गई है, जबकि यह तटीय कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा में बढ़ी है।
1870 के बाद से मानसून की वर्षा में कमी आई है, लेकिन मानसून से अलग बारिश बढ़ रही है, जो वार्षिक औसत को संतुलित करती है।
केरल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने 2017 मानसून के दौरान कम वर्षा प्राप्त की है। तथ्य पत्र ने कहा गया है कि 2014 और 2015 के खराब मानसून के परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना के कुछ हिस्सों सहित देश के कई हिस्से में गंभीर सूखे की स्थिति और पानी की कमी बनी हुई है। नतीजतन, मॉनसून के अंत ( अक्टूबर-2017 की शुरुआत में ) में प्रमुख जलाशयों में जल स्तर औसत से 11 फीसदी नीचे था।
कई राज्य कर रहे हैं कमी का सामना
देश भर में प्रमुख जलाशयों में स्तर, जैसा कि हमने कहा था, वर्ष के इस समय सामान्य से 10 फीसदी कम है।
आंध्र प्रदेश में, जलाशय का स्तर लगभग सामान्य था, और राज्य के कुछ हिस्सों जैसे प्रकाशम, पीने के पानी के संकट का सामना कर रहे हैं। आपातकालीन पेयजल प्रदान करने के लिए सरकार 103 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा जारी तथ्य पत्र में कहा गया है कि यह संकट पड़ोसी राज्य तेलंगाना में पानी की कमी से जुड़ा हुआ है।
छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में, कुएं सूख गए हैं और लोगों को पानी लाने के लिए कई किलोमीटर चलना पड़ रहा है।
तमिलनाडु में, प्रमुख जलाशयों का जल स्तर सामान्य से 67 फीसदी नीचे है। प्रत्येक प्रमुख जलाशय वर्ष के इस समय के लिए औसत स्तर से नीचे है। संकट से निपटने के लिए राज्य ने आपदा राहत निधि से 200 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 2016-17 में, राज्य को सदी का सबसे बद्तर सूखे से सामना करना पड़ा है।
आमतौर पर अच्छे मानसून के साथ संपन्न देश के लिए, यह एक शर्म की बात है कि हम पानी प्राप्त कराने में असमर्थ हैं। ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ की निदेशक आरती खोसला ने कहती है, “भारी बारिश और पानी की दुर्लभ स्थितियों के प्रबंधन के मामले में हम कमजोर हैं।”
जलवायु परिवर्तन का गुणक प्रभाव पड़ता है और आने वाले सालों में स्थिति और खराब होने की संभावना है। खोसला कहती हैं, “पानी की कमी के कारण संयुक्त रुप से कृषि और उद्योग क्षेत्रों में आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा हो सकता है अगर हम जल संसाधनों का प्रबंधन नहीं करते हैं और ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तेजी से कम करने पर काम नहीं करते हैं।
मानसून पैटर्न में परिवर्तन से सूखे और बाढ़ भारत के कई हिस्सों में अधिक आम हो जाएगा।” 2013 विश्व बैंक के एक अध्ययन के विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में बार-बार सूखे की संभावना है।
‘एनवायरनमेंटल साइंस जर्नल’ में प्रकाशित 2015 के एक अध्ययन के मुताबिक गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी बेसिन, जो 650 मिलियन से अधिक लोगों की जिंदगी से जुड़ा है, उन नदियों में भी तापमान बढ़ने पर अक्सर सूखे और बाढ़ की स्थिति आएगी।
जल संकट अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को बढ़ा सकता है
तथ्य पत्र के अनुसार, देश के कई हिस्सों में पानी की कमी भारत में अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को बढ़ावा दे सकती है। इनमें ये संघर्ष शामिल हैं:
- कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी विवाद
- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना के बीच कृष्णा नदी विवाद
- गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बीच नर्मदा नदी विवाद
- हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बीच रवि और ब्यास नदी विवाद
- हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बीच रवि और ब्यास नदी विवाद
सीईईई की शोधकर्ता नियोग कहती हैं, “जल प्रबंधन और संरक्षण उपायों को दृढ़ता से बढ़ावा देना वक्त की जरुरत है, जैसे उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग करना, वर्षा जल संचयन, रीयल-टाइम गेजिंग के माध्यम से पानी में प्रवाह की निगरानी, और ईमानदारी से पानी के मूल्य को समझना। यदि हमें इस गर्मी में देखे गए शिमला पानी संकट को रोकना है तो हमें अपने जल संसाधन प्रबंधन पर बेहतर ढंग से ध्यान देना चाहिए।"
(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 6 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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