मोदी कार्यकाल में भारतीय निर्यात में भारी गिरावट
मुंबई: अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिका और जापान तक औद्योगिक सामानों से लेकर कृषि वस्तुओं के निर्यात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के चार वर्षों के कार्यकाल में गिरावट हुई है और अन्य कुछ क्षेत्रों में एकल अंकों में वृद्धि हुई है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।
इसके विपरीत, दो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए -1 और यूपीए -2) प्रशासन के 10 वर्षों के दौरान भारत के व्यापार निर्यात में ( सेवाओं के निर्यात को इस विश्लेषण से बाहर रखा गया है क्योंकि वे व्यापार समझौतों के कारण कुछ भौगोलिक क्षेत्रों तक ही सीमित हैं ) 1 फीसदी से 33 फीसदी के बीच वृद्धि हुई है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है।
इंटरनेशनल मानिटेरी फंड के अनुसार, भारत के निर्यात में गिरावट वैश्विक पैटर्न का पालन नहीं करती है दुनिया भर से सामानों कारोबार में 2009 से 2013 तक 3.3 फीसदी और चार वर्षों से 2018 तक 3 फीसदी वृद्धि हुई है । विभिन्न विशेषज्ञों ने भारतीय निर्यात में गिरावट के लिए घरेलू कारकों, जैसे नोटबंदी, जीएसटी और दिवालियापन को जिम्मेदार ठहराया है।
वर्ष 2014 और 2018 के बीच चीन को व्यापार निर्यात बढ़ा है, लेकिन 1 फीसदी से भी कम, वहीं आयात में 11 फीसदी की वृद्धि हुई है। यूपीए शासन के 10 वर्षों के दौरान, चीन को निर्यात में13 फीसदी की बढ़ोतरी और 30 फीसदी आयात हुआ था।
वर्ष 2014 और 2018 के बीच अफ्रीका को भारत से निर्यात में 4.22 फीसदी की गिरावट आई है और आयात में 1 फीसदी की वृद्धि हुई है। यूपीए शासन के 10 वर्षों के दौरान, अफ्रीका को निर्यात 22 फीसदी और वहां से आयात 59 फीसदी बढ़ा था।
इस अवधि में कुल मिलाकर भारतीय आयात 1.6 फीसदी बढ़कर 465 अरब डॉलर का हुआ ।
निर्यात की औसत वार्षिक वृद्धि दर, 2004 से 2018 तक
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) आउटलुक रिपोर्ट 2018 के अनुसार, 2017 में भारत का निर्यात-और सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) अनुपात 11.44 फीसदी था, जो 2005 के बाद से सबसे कम था।
कम निर्यात और आयात में वृद्धि (2014-15 से 2017-18 तक 1.6% की औसत वार्षिक वृद्धि) ने 2014-15 में व्यापार घाटे को 137 बिलियन डॉलर से 2017-18 में 162 बिलियन डॉलर कर दिया है, जो 2012-13 के बाद से सबसे ज्यादा है।
वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु को 18 जून, 2018 के इंडियन एक्सप्रेस में उद्धृत करते हुए कहा गया था कि, "हम उस समय से ही गंभीर विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जब वैश्विक अर्थव्यवस्था 2008 के बाद बेहद नाजुक हो गई थी।"
आईएमएफ डेटाबेस के अनुसार, 2012 में 43 फीसदी की उच्चतम ऊंचाई की तुलना में भारत का व्यापार खुलापन ( जीडीपी के निर्यात और आयात की राशि ) 2016 में 27 फीसदी था। व्यापार खुलेपन वैश्विक व्यापार में अर्थव्यवस्था की भागीदारी का संकेतक है।
मॉर्गन स्टेनली के मुख्य वैश्विक रणनीतिकार रुचिर शर्मा ने 4 अक्टूबर, 2017 को द टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा, " नीतियों में पहला अद्वितीय प्रोयोग नोटबंदी था।"
"दूसरा सामान और सेवा कर था, जिसे भारत को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने के लिए माना जाता था, लेकिन इसके बजाय आम तौर पर जटिलता की भारतीय परतें जोड़ी गईं।इन नीतियों ने निर्यातकों समेत स्थानीय व्यवसायों को बाधित कर दिया।उपभोक्ता मांग को पूरा करने, व्यापार घाटे को बढ़ाने और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कटौती के लिए आयात तेजी से चढ़ा है। "
विचार अर्थशास्त्रियों धर्मकर्ती जोशी, अधिश वर्मा और पंकुरी टंडन ने इसपर विरोध जताया ता। उन्होंने एक रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के लिए एक रिपोर्ट में लिखा, "माल और सेवाओं कर के कार्यान्वयन और संबंधित खामियों का प्रभाव छोटे और मध्यम उद्यमों पर विशेष रूप से पड़ा है। रत्न,आभूषण, कपड़ा, और चमड़े के क्षेत्रों में कम निर्यात से यह स्पष्ट है।”
(सिंह ‘सिम्बियोसिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’से एमएससी के छात्र रहे हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
__________________________________________________________________
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :