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14 दिनों की मनसीरत गिल – अमृतसर, पंजाब – कन्या भ्रूण हत्या के लिये कुख्यात राज्य मे – अपने घर में निद्रा में लीन |

अमृतसर: दो कमरों के छोटे से घर में मक्खियों के भिन – भिनाते रहने के बावजूद 14 दिन की शिशु बच्ची - मनसीरत गिल निद्रा में लीन |

मोदी की कन्या – लिंग भेदी परम्पराओं के खिलाफ लागू की गई योजनाओ से उत्साह पाकर अमृतसर के परिवार नियोजन अधिकारी बट्टर से यह उम्मीद जगी है कि मनसीरत का अगले छ: वर्षो तक एक जुझारू, तीक्ष्ण दृष्टिवाले सरकारी अधिकारी के संरक्षण में जीवन सुरक्षित रहेगा |

पवित्र सिख शहर अमृतसर के रंजीत सिंह बट्टर एक बहुत अनुभवी स्त्रीरोग विशेषज्ञ और जिला स्वास्थ अधिकारी हैं, जिनके पास ग्रामीण स्वास्थ केन्द्रो को चलाने, गर्भ निरोधक दवाओं के वितरण और नये जन्मे बच्चों के पोलियो टीका करण करने की ज़िम्मेदारियाँ है |

अमृतसर भारत के 100 लिंग– भेदी शहरों में से एक, जिसमें से 10 में पंजाब (जो कि भारत के 5 एसे राज्यों में से एक है जिसकी प्रति व्यक्ति आये सबसे ज्यादा है ) एक है | यही से मोदी ने बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ का भारत व्यापी कार्यक्रम, भारत की सदियो पुरानी लिंग भेद की परम्पराओ को समाप्त करने के लिए – पिछली जनवरी से शुरू किया |

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अमृतसर के जिला कमिश्नर अधिकारी के कार्यालय के बाहर, बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम के पोस्टर |

मोदी ने उक्त योजना के उद्दघाटन के अवसर पर कहा कि लड़कियों और लड़कों के पालने में विभेद करना एक तरह से हमारे दिल की बीमारी सा है – जो कि हमारे इस चिंतन का परिणाम है कि लड़के, लड़कियों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं | यहाँ तक कि हमारी माँएं लड़कों की खिचड़ी में ज्यादा घी डाल देती है वनस्पति लड़कियों के |

मोदी ही पहले प्रधानमंत्री नहीं है जिन्होंने इस बात का ऐहसास किया कि भारत में लड़कों की तुलना में लड़कियों का जन्म कम हो रहा है | 1990 से वर्ष 2005 तक लगभग 11 कन्या शुभ योजनायेँ चलाई गई – जिसके अंतर्गत लड़कियों के जन्म से ले कर उनके पालन पोषण और शिक्षा ढंग से हो सके और बालिका विवाहों पर भी रोक लगे |

फिर भी लड़कियों के जन्म का प्रतिशत गिरता जा रहा है | भारत की महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने हाल में बताया कि भारत में 2000 लड़कियो का प्रतिदिन गर्भपात, जहर से मार देना या भूखा रखने का चलन है या अन्यान्य तरीकों से उनका जीवन बाधित करना है – ये आकड़े उन्होने पिछले अप्रैल में दिये |

इस तरीके से लगभग 2 मिलयन से 25 मिलयन महिलाओ / कन्याओं / कन्या – भ्रूण – हत्याओं की संख्या का उनके मंत्रालय ने आकलन किया है |

मंत्री के दावे संदिग्ध प्रतीत होते- साथ में मोदी के उक्त प्रोग्राम के लिए धन की कोई व्यवस्था नहीं

मेनका गांधी ने कहा कि सरकार का उक्त बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम , जिसका मूल उद्देश लिंगी – भेद को समाप्त करना और कन्या – भ्रूण की हत्याओं पर रोक लगाने के साथ ही – उनके स्वस्थ – अस्तित्व के लिए कानूनी व्यवस्था को लागू करना है | गांधी का कहना है कि सरकार के उक्त कार्यक्रम के अच्छे परिणाम दिखने लगे है |

मेनका गांधी नें एन०डी० टीवी० से साक्षात्कार में आगे कहा कि इन भारत के 100 जिलो में हजारो लड़कियो को अनाथालयों में डाल दिया जाता है | गांधी ने कहा कि अभी कुछ समय पहले वह अमृतसर में थी और वहाँ के डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उसने इसी महीने 89 लड़कियों को बचाया है | लेकिन अधिकारी द्वारा बताया यह आकडा मुझे बड़ा अजीबो – गरीब लगा |

लेकिन इंडियास्पेंड के द्वारा गहरी जाँच – पड़ताल से पता लगा कि 82 लड़कियों को उनके भाग्य भरोसे अज्ञात स्थनों पर छोड़ा तो गया था – पर वह एक महीने में नहीं – बल्कि वर्ष 2008 से पाया गया | लेकिन इस धटना में बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ योजना का कोई प्रभाव नहीं – बल्कि यह भारत देश की लड़कियो के प्रति भेदभाव वरतने की पुरानी परंपरा के कारण है |

अमृतसर में इंटरनेशनल रेडक्रोस बिल्डिंग में वर्ष 2008 से एक पंगुरा ( पंजाबी में पालना ) योजना का आरंभ किया गया जो कि परित्यक्त शिशु – कन्याओ की रक्षा के लिए कार्यरत है | शिशु – कन्याओ के माँ – बाप / परिजन एसी शिशु – कन्याओ/ लड़कों को इन सड़क या खेत – खलिहान में छोड़ने से अच्छा इन पालनों में छोड़ जाते है | तो एक घंटी बजती है – जिससे वहाँ का कोई कर्मचारी उसको पहिले अस्पताल में दिखाता है और फिर गोद देने वाली स्वायतशासी संस्थानो से संपर्क किया जाता है |

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वर्ष 2008 अमृतसर स्थित इंटरनेशनल रेड क्रॉस बिल्डिंग में स्थापित पंगुरा के पालने में 82 परित्यक्त शिशु कन्याएँ उनके परिजन छोड़ कर गए हैं |

वर्ष 2008 से पंगुरा नें कुल 92 नवजात शिशुओं को पाया, जिसमें से 82 कन्याये और शेष लड़के थे | वैसे तो उक्त योजना नें इस समस्या का थोड़ा हल तो किया है , परन्तु 7 वर्षों के दौरान | 82 लड़कियों को बचाने से ही लिंगभेद आधारित यह समस्या पर खास प्रभाव नहीं पड़ेगा |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेटी बचाव – बेटी पढ़ाओ की योजना असल में जनता की लड़कियों के प्रति भेदभाव पूर्ण मानसिकता को बदलने के लिए समाज का आवाहन है | इसका पहला उद्देश्य लोगों के चेतना में परिवर्तन है इस तरह की सकारात्मक मानसिकता में परिवर्तन के लिए मोबाइल वैन और प्रचार साहित्य जिलों में पाहुचाया जा रहा है |

हाँ, जिलों में एक चीज जो नहीं पहुँचती वह है – आवंटित धन |

वित्तमंत्री अरुण जेटली नें वर्ष 2015-16 के वित्तीय वर्ष में बेटी बचाव – बेटी पढ़ाओ के लिए 100 करोड़ रूपये के बजट का आवंटन किया है | प्रत्येक लिंगभेदीय दृष्टि से संवेदनशील जिलों को 2014-15 में 55 लाख रुपये और वर्ष 2015-16 में 31 लाख रुपये मिलेंगे |

जेटली के बजट आवंटन के 2 महीने बाद भी बट्टर के कार्यालय को अभी तक कोई वित्तीय राशि नहीं मिली है | इंडियास्पेंड मेनका गांधी के कार्यालय से संपर्क साधने की कोशिश किया पर संपर्क नहीं हो सका |

अगर मोदी के बेटी बचाव- बेटी पढ़ाओ के हांथ मनसीरत तक पहुँचने हैं तो धन तो आवश्यक है ही पर इससे ज्यादा जरूरत – जैसा की अतीत के कडवे अनुभव बताते हैं की नौकरशाही को संयमित और उत्साहित होकर इस महती कार्य में लगना होगा |

The Beti Bachao, Beti Padhao scheme
Nodal ministryMinistry of Women and Child Development
Target100 districts with lowest CSRs (Child Sex Ratios)
Cost of programmeRs 200 crore
Allocation in Budget 2015-16Rs 100 crore
Amount to be released in 2014-15 (six months)Rs 115 crore
Budgetary provision per district 2014-15 (six months)Rs 0.6 crore
Budgetary provision per district 2015-16Rs 0.3 crore
Amount released so far (based on feedback from districts)None

Source: Ministry of Women & Child Development, Budget documents

नेता- योजनाएँ बहुत लेकिन सफलताओं के साक्ष नहीं

इन योजनाओं के बड़ बोले नामों को देखिये – धनलक्ष्मी, भाग्यलक्ष्मी,राजालक्ष्मी, लाड़लीबलरी रक्षक योजना , इन्दिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना, बालिका संबृद्धि योजना, बेटी है अनमोल, मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना और मुख्यमंत्री कन्यादान स्कीम |

मन सीरत जैसे बच्चों को मदद देने के लिए बहुत सी योजनाएँ भारत की राजनीतिक इतिहास में अंकित हैं पर उनका समुचित क्रियान्वयन नहीं हो सका क्योंकि वे बहुत से नियमों और क़ानूनों से बाधित दिखती हैं - इसी कारण व्यावहारिक नहीं हो सकी बड़े नामों वाली योजनाएँ |

यूनाइटेड नेशन्स पॉप्युलेशन फ़ंड अध्यन के अनुसार इन स्कीमों के अंतर्गत लाभ पाने की योग्यता के मापदण्डों को सरल करना होगा और पंजीकरण के नियमों की प्रक्रिया को भी आसान बनाना होगा |

यद्यपि साल दर साल इन योजनाओं के लिए काफी वित्तीय आवंटन किए जाते रहे हैं लेकिन इन योजनाओं को भौतिक रूप से में बदलनें के लिए जमीनी स्तर पर कम करने की अवश्यकता है जो कि नदारद दिखती है | शिकायतों को दूर करने के लिए कोई विशेष प्राधिकरण की व्यवस्था नहीं की गयी है | इस कारण से समस्याएँ गहरी हो गयी है| बहुत से राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण विभागों में सामंजस्य की कमी है

इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन अधिकारियों ने शिकायती लहजे मे कहा कि दूसरे विभाग उचित ढंग से सहयोग नहीं करते | कुछ राज्यों में विभिन्न वित्तविभागों जैसे बैंक्स और बीमा कंपनियाँ और सरकारी विभागों के बीच में सही तालमेल न होने से सरकारी बॉन्डों और सर्टिफिकेटस और बैंक अकाउंट्स में भी हेरा फेरी और आपसी सूझबूझ का अभाव पाया गया | इन ज्यादातर स्कीमों में ग्राम पंचायतों, स्वायत्त शासी संस्थाओं और महिला संगठनों के बीच सीमित सहयोग पाया गया |

उपरोक्त स्कीमों में समाज कल्याण मंत्रालय एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है | राज्य सरकारें समान धाराओं और उद्देश्यों वाली योजनाएँ ढीले ढाले तौर पर चुनावी समयों पर इस तरह की स्कीमों का सिर्फ प्रचार सा करती प्रतीत होती है | बेटी बचव – बेटी बढ़ाओ कार्यक्रम महिला और बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है जो की जिले डिप्टी कमिसनर और जिले के उच्चाधिकारियों के सहयोग से अपना काम करता है |

बट्टर अपने अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि लिंग भेदी योजनाओं को सही रूप से क्रियान्वयन के लिए एक केंद्रीय विभाग की जरूरत है जो विभिन्न योजनाओं के ऊपर एक सीधा नियंत्रण रख सकने में सक्षम हो | बट्टर ने अमृतसर के 15 उप शहरों और 739 गाँव, जहां पंजाब की पूरी जनसंख्या का 8.9%, लगभग 2.5 मिलियन आबादी निवास करती है – के लिए उक्त योजनाओं के सही क्रियान्वयन हेतु एक प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है |

पंजाब में 1000 लड़कियों में से 6 वर्ष की उम्र तक केवल 850 ही बचती हैं , जबकी 1000 लड़कों के पीछे भारत का लड़कियों के जीवन का औसत 918 है | हरयाणा के 12 जिले भी इस प्रोग्राम के अंतर्गत आते हैं | महाराष्ट्र भी लगभग पंजाब के रास्ते पर चल रहा है , जहां पर भारत के सामान्य औसत से कम लड़कियों को जीवन सुलभ हो पाता है |

States With The Worst Child Sex-Ratios
StatesTotalRuralUrban
India912914906
Haryana837838834
Punjab857840888
Uttar Pradesh873873877
Jammu and Kashmir877877876
Rajasthan882883878

Source: SRS bulletin 2012; Data is for the age group 0-6 years.

मोदी भारत की रूढवादी पुरुष सत्तात्मक विरासत की मानसिकताओं को कन्याओं के प्रति लिंग भेदी दुर्व्यवहार का परिणाम मानते हैं |

हरियाणा के पानीपत शहर में उक्त स्कीम का उदघाटन करते हुए मोदी ने कहा कि “आप अपने घरों में बहुओं (daughter-in-laws) को कहाँ से लायंगे- जब समाज में बेटियाँ ही नहीं होंगी |”

विभिन्न कारणों से कन्याओं की संख्या में कमी होने के कारण समाज को शादी योग्य लड़कियां नहीं मिलेंगी | एक अन्य कारण कन्याओं को लेकर ट्रेफिकिंग की भी समस्या है – साथ ही में स्त्री बल की संख्या में निरंतर कमी दृष्टिगोचर हो रही है | एक बात जो भारत के अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रही है वह महिला बलों की विभिन्न क्षेत्रों में कमी जबकि विश्व में इसका औसत तेजी से बढ़ते औद्योगीकरण और समृद्धि के कारण बढ़ रहा है |

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कृष्ण कुमार का कहना है कि सरकारी योजनाएँ अपने मूल में प्रोपोगेन्दिस्ट- प्रचारवादी होती हैं न कि व्यवहारवादी इसी कारण कोई सार्थक पहल करने में असमर्थ हैं |

अमृतसर शहर के नांगली गाँव कि केवल 23 वर्ष की पिंकी अपनी 2 शिशु कन्याओं के साथ – देखने से लगता है कि उसके ऊपर भारी बोझ आ गया है |

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पिंकी जो की 2 शिशु कन्याओं के साथ है पर मानसिक रूप से इस बात से ग्रस्त दिखती है कि उसको समाज- परिवार की तथाकथित मान्यताओं के कारण भरे पूरे परिवार के मानक- लड़के/लड़कियां के विचार के अनुसार उसको तिबारा गर्भ धारण करना पड़ेगा इस आशा के साथ कि अगली बार लड़का होगा |

बट्टर के नियंत्रण में चल रहे ग्रामीण स्वास्थ केंद्र में ट्रेंड नर्स के निर्देशन में मनसीरत के जन्म होने से पिंकी को राहत तो मिली क्योंकि घर पर वह सुविधाएं न होने के कारण प्रसव में जच्चा - बच्चा दोनों को खतरा होता है |

पिंकी जिसका केवल एक ही नाम है, बाहर से फीकी हंसी हसती है | लेकिन मनसीरत के लड़की होने के कारण खुश नहीं दिखती |

पिंकी नें दुख भरे लहजे में कहा “, इसके पिता का कहना है कि अगर लड़का होता तो मेरा परिवार पूरा हो जाता | उसकी सास को आज भी उम्मीद है कि पिंकी को एक बार और गर्भ धारण करना चाहिए जिससे शायद अगली बार लड़के का जन्म हो |

बट्टर जी समाज और परिवारों कि इस मान्यता के खिलाफ हैं कि विरासत केवल पुत्र के कारण ही चलती है |

बट्टर, जिनके अमृतसर कार्यालय में लिंगभेद आधार पर रेकॉर्ड्स मौजूद हैं कहतें हैं कि “ मैं एक आशावादी और सकारात्मक सोंच का इंसान हूँ | कोई भी अच्छा कार्य अपने अच्छे परिणाम अवश्य देता है |

लेकिन केवल आशावादी दृष्टिकोण रखने से कार्य होते नहीं दिखते : भारत के 31 राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या के अभियोजित वादों में आज तक किसी को सजा नहीं मिली |

लगता है बट्टर साहब का आशावाद प्रधानमंत्री मोदी की इस संदर्भ में भावनाओं का प्रक्षेपण सा ही है |

उक्त कन्या – लाभ योजनाओं में वर्षों काम कर चुके अधिकारियों का मानना है की सही क्रियान्वयन के लिए एक स्वतंत्र प्रभार वाला केंद्रीय मंत्रालय का प्रभाग होना चाहिए जिसके पास धन और उचित संख्या में योग्य कर्मचारी और साथ में कानूनी दंड के अधिकार होने चाहिए और कन्या जन्म देने वालो को प्रोत्साहन राशि, अंध विश्वासों को दूर करनें के लिए कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिए – जिससे समाज का लड़कियों के प्रति नकारात्मक भाव बदले और लिंगी परीक्षण पर सख्ती से दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए |

अगर मोदी के बेटी बचाव – बेटी पढ़ाओ के कार्यक्रमों को सुचारु रूप से चलाना है तो जिला स्वास्थ परिवार नियोजन के कार्यलयों को सिर्फ एक उक्त कार्यक्रम की ही ज़िम्मेदारी देनी चाहिए और केवल गर्भ निरोधक दावाओं को बांटने, ग्रामीण स्वास्थ केन्द्रों को चलाने और परिवार नियोजन की योजनाओं की जिम्मेदारियों से मुक्त करना चाहिए तभी बट्टर जैसे व्यक्ति/ कार्यालय कन्या संबंधी कार्य को पूरी लगन से कर सकेगे |

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अमृतसर का परिवार नियोजन कार्यालय, जिसके रणजीत सिंह बट्टर अधिकारी हैं और अमृतसर की 2.5 मिल्यन जनता और उसके 15 उपशहरों और 739 गाँव की जनता की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करते हैं |

पिछले 2 वर्षों 2011-13 में मात्र 32 लोगों को कन्या भ्रूण परीक्षणों के अपराध में अभियोजित किया गया | प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया नें लिंगभेद परीक्षण के 563 वादों की थानों में रिपोर्ट पायी, वहीं भारत के सर्वोच्च नयायालय नें कहा कि किसी भी राज्य से कन्या भ्रूण हत्या के एक भी केस में अभियोजन / दंड की व्यवस्था नहीं पायी गयी |

बट्टर के ही कार्यालय में तैनात त्रिपता शर्मा नें बाताया कि उन्होने नकली गर्भावस्था का नाटक रचकर शहर की एक बदनाम अल्ट्रासाउंड क्लीनिक को कन्या परीक्षण के केस में पकड़ा और पुलिस नें गिरफ्तारी भी किया – सालों नयायालय में 8 बार पेशी भी हुई- आखिर त्रिपता शर्मा थक गयी क्योंकी न्यायालय नें केस खारिज कर दिया |

बट्टर नें कहा की वो एक डॉक्टर हैं, न कि एक वकील लेकिन वो इस केस को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे | उन्होने आगे कहा कि वो प्रत्येक अल्ट्रासाउंड क्लीनिक पर रेगुलर रेड डालते हैं और प्रत्येक जन्म पूर्व परीक्षण का कारण पूछते हैं और इन क्लीनिक को एक फार्म (F) को भरना पड़ता है जिसमें टेस्ट के कारण और डॉक्टर का नाम भी भरना पड़ता है लेकिन गवाहियों के अभाव में केस छूट जाते हैं |

आशीष बोस नें अपनी किताब सेक्स- सेलेक्टिव अबॉरशन इन इंडिया – जिसको इन्होंने पंजाब, हरयाणा और हिमाचल के समाजों का अध्यन कर लिखा है कि कन्या भ्रूण हत्याओं के ताजे अध्यन उपलब्ध नहीं हैं पर बोस कहते हैं कि कन्या भ्रूण हत्याओं में कई प्रमुख कारण मदद कर रहें हैं जैसे नवीनतम मेडिकल सुविधाएं, डॉक्टरों को सुविधा शुल्क मिलना लेकिन एक आश्चर्य जनक तथ्य बोस नें खोजा कि गाँव से शहरों तक जाने के लिए अच्छी सड़कों के होने से भी कन्या भ्रूण हत्यारों को त्वरित समय लाभ मिलता है जिससे उनका आपराधिक कार्य जल्दी संपन्न हो जाता है |

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विज्ञान और मेडिकल साइन्स में उच्च टेकनिकों और बेहतर सड़क और अन्य विकास के मानक – कम से कम – कन्याओं कि संख्या तो कम करनें में नकारात्मक योगदान करते प्रतीत हो रहे हैं | मनसीरत का भविष्य मोदी जी सुधार सकते हैं परंतु स्कीमों में मूलभूत सुधार करने के बाद |

कालरा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक हैं और रियूटर्स,मिंट और बीजनेस स्टेंडर्ड में लिखती हैं |

उपरोक्त आलेख में इंडियास्पेंड कि प्राची साल्वे ने अतिरिक्त सहयोग दिया |फोटोग्राफ द्वारा अपर्णा कालरा |


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