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मोटे तौर पर 'मोबाइल मित्र' के रूप में परिचित ‘एममित्र,’ को गैर-लाभकारी संस्था ‘अरमान’ द्वारा 2014 में लॉन्च किया गया था। यह भारत में नौ राज्यों में 1.6 मिलियन महिलाओं को स्वास्थ्य और मातृत्व के संबंध में व्यापक निवारक जानकारी प्रदान करता है।

नई दिल्ली: "क्या आप गर्भवती हैं?" सामाजिक कार्यकर्ता और स्वास्थ्य पर्यवेक्षक दया पांडे ने पूछा। दरवाजे पर खड़ी 24 वर्षीय सुषमा पासवान ने "हां" में जवाब दिया। फिर वह पश्चिम दिल्ली के सागरपुर क्षेत्र के अपने घर के अंदर पांडे को लेकर गईं।

पांडे ने पासवान को ‘एममित्र’ के बारे में बताया। ‘एममित्र’ एक निःशुल्क प्री-रिकॉर्ड वॉयस-संदेश सेवा है, जो गर्भवती महिलाओं को उनकी खुद की और उनके नवजात बच्चों की देखभाल करने के बारे में जानकारी देती है। यह सुषमा की दूसरी गर्भावस्था थी और इस बार उसने उत्तर प्रदेश में अपने गांव न जाकर पास के सरकारी अस्पताल में जाना तय किया था। चूंकि इस बार प्रसव के समय उसकी मां या सास मार्गदर्शन के लिए साथ नहीं होगी, इसलिए ‘एममित्र’ की दो बार की साप्ताहिक कॉल उसे पर्याप्त रूप से जानकारी देगी। यह सारी बातें पांडे ने उसे बताई।

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स्वास्थ्य पर्यवेक्षक दया पांडे ने पश्चिम दिल्ली के सागरपुर क्षेत्र में रहने वाली 24 वर्षीय सुषमा पासवान को ‘एममित्र’ सेवा के बारे में बताया। ‘एममित्र’ एक निःशुल्क प्री-रिकॉर्ड की गई वॉयस-संदेश सेवा है, जो गर्भवती महिलाओं को उनकी खुद की और उनके नवजात बच्चों की देखभाल के बारे में जानकारी देती है।

बाहर बच्चे ने हाथ वाले पंप पर स्नान कर रहे थे, जबकि वृद्ध पुरुष चारपाई पर बातें कर रहे थे। सागरपुर एक आम तौर पर कम आय वाले लोगों के रहने का ठिकाना है, जिसमें एकल कमरे वाले घर शामिल हैं, जिन पर एस्बेस्टोस के छत हैं, और कुछ नागरिक सुविधाएं जैसे जल निकासी और जल आपूर्ति शामिल हैं।

इसके अधिकांश निवासी अन्य राज्यों के प्रवासी हैं। पुरुष आसपास के कारखानों में मजदूर के रूप में काम करते हैं, जबकि महिलाएं घरों की देखभाल करती हैं और गारमेंट्स यूनिट में नौकरी करके अपनी आय में कुछ ज्यादा जोड़ती हैं।

कुछ समय पहले तक, यहां की ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अपने गांव जाती थीं या घर पर ही बच्चों को जन्म देती थीं। आज, अधिक से अधिक महिलाएं बच्चों के जन्म के लिए अस्पताल का विकल्प चुन रही हैं, और इसका श्रेय आंशिक रुप से ‘एममित्र’ को जाता है, जिसने संस्थागत प्रसव के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया है।

भारत में मां को क्यों चाहिए बेहतर देखभाल

‘एममित्र’ मोटे तौर पर 'मोबाइल मित्र' के नाम से जाना जाने वाला कार्यक्रम, गैर-लाभकारी संस्था ‘अरमान’ द्वारा 2014 में शुरु किया गया था। यह मातृ और शिशु विकृति और मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से भारत में नौ राज्यों में 1.6 मिलियन महिलाओं को व्यापक निवारक जानकारी प्रदान करता है।

यह बात महत्वपूर्ण है, क्योंकि हर साल भारत में प्रसव के दौरान 45,000 माताओं की मृत्यु होती है ( हरेक 10 मिनट में एक मौत ) और इन आंकड़ों से साथ भारत की दुनिया में मातृ मृत्यु में 17 फीसदी की हिस्सेदारी है। इसके अलावा, भारत में 300,000 बच्चे जन्म के पहले 24 घंटों तक जीवित नहीं रहते हैं।

अगर गर्भवती माताओं को बेहतर देखभाल दी जाती है तो इनमें से अधिकांश मौतों को रोका जा सकता है, जैसा कि वे नियमित जांच कराएं, समय पर सही टीकाकरण कराएं, और जटिलता के मामले में प्रारंभिक चिकित्सा पर ध्यान दें।

हालांकि, संस्थागत प्रसव 2005-06 में 38.7 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 78.9 फीसदी हुआ है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित, प्रसवपूर्व कम से कम चार बार देखभाल के लिए उपस्थित होने वाली महिलाओं की संख्या में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 के अनुसार, 2005-06 में यह आंकड़ा 37 फीसदी था और 2015-16 में 51.2 फीसदी तक पहुंच गया है।

देखभाल और सूचना के इसी अंतर को ‘एममित्र’ भरना चाहता है। यह जरूरतमंद माताओं को दो तरह से नांमांकित नामांकन करता है - नगर निगम अस्पतालों के पूर्वकाल क्लीनिक में या झुग्गी समुदायों में काम कर रहे साथी एनजीओ के माध्यम से स्वास्थ्य कर्मियों के माध्यम से। गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में महिलाओं को नामांकित करने के लिए नौ राज्यों में 3,000 से अधिक ‘सखियों’(महिला मित्र) को प्रशिक्षित किया गया है। सखियों को अपना फॉर्म भरकर और उनके ब्योरे को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नामांकित करने के लिए एक छोटा सी प्रोत्साहन राशि मिलती है। पंजीकरण करने के लिए, एक महिला को अपना खुद का या उसके पति का मोबाइल नंबर देना पड़ता है।

मोबाइल फोन भारत में लगभग सर्वव्यापी हैं - मई 2018 में भारत के दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के प्रेस वक्तव्य के अनुसार मार्च, 2018 में 998 मिलियन सक्रिय मोबाइल फोन उपभोक्ता थे, जिसका अर्थ है कि भारतीयों में विशाल बहुमत में मोबाइल फोन है।

‘एममित्र’ संदेशों की सामग्री सरल और सहज है, जैसे कि एक गर्भवती मां को बताया जाता है कि उसका बच्चा उसके गर्भावस्था के उस सप्ताह कैसे बढ़ रहा है, उसे लोहे और फोलिक एसिड की खुराक के महत्व के बारे में सूचित करते हुए बताया जाता कि उसे खाने के लिए क्या खाद्य पदार्थ और टीकाकरण उसे प्राप्त करना चाहिए ।

जन्म के बाद और जब तक बच्चा एक साल का नहीं हो जाता है, उसे इस बारे में जानकारी दिया जाएगा कि बच्चे का विकास कैसा होना चाहिए और इसकी देखभाल कैसे करें। जानकारी कैसे माताओं को जोड़ती है तो वह यह है कि माताओं तक उनकी सुविधा के अनुसार, अपनी मातृभाषा में और गर्भावस्था में प्रासंगिक चरण में ​​पहुंच जाती है।

प्रत्येक हफ्ते प्रत्येक पंजीकृत मां तक ​​पहुंचने के लिए तीन प्रयास किए जाते हैं, लेकिन यदि कोई महिला अपनी कॉल से वंचित रह जाती है, तो वह अपनी जानकारी प्राप्त करने के लिए 'मिस्ड कॉल' दे सकती है।

प्रसव के बाद ( या गर्भपात या गर्भ गिरने की स्थिति में ), वह सेवा वापस लेने और विकास पर ध्यान देने के लिए एक मिस्ड कॉल दे सकती है। इस तरह, ‘एममित्र’के केंद्र में मां और उबच्चे की देखभाल है।

जीवन-रक्षक जानकारी

यही मूलभूत विचार है, जिसके लिए 2014 में यूरोगिनेकोलॉजिस्ट अपर्णा हेगड़े अरमान को शुरु किया।

मुंबई के लोकमान्य तिलक नगरपालिका जनरल अस्पताल या साइयन अस्पताल में, रेजिडेंट डाक्टर के रुप में कार्य करते हुए हेगड़े इस बात से परेशान थीं कि काफी हद तक रोकने योग्य कारणों से भी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं की बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती है।

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काफी हद तक रोकने योग्य कारणों से अस्पताल में होने वाली माताओं की मृत्यु को देखते हुए एक यूरोगिनेकोलॉजिस्ट अपर्णा हेगड़े ने 2014 में अरमान शुरु किया।

हेगड़े अक्सर अरुणा मामले का वर्णन करती हैं, जिसे उन्होंने अपनी रेसिडेंसी के तीसरे महीने में देखा था। अरुणा को गर्भावस्था मधुमेह था, लेकिन शायद वह इससे अनजान थी। उसने केवल एक प्रसवपूर्व जांच के लिए अपने स्थानीय सरकारी अस्पताल का दौरा किया था। प्रसव के दौरान, डॉक्टरों ने पाया कि बच्चे का सिर फंस गया है, लेकिन उस समय तक अरुणा को सायन अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था, तब तक बच्चा मर चुका था और अरुणा को गैंग्रीन हो गया था। तीन दिन बाद, अरुणा की मृत्यु हो गई।

हेगड़े ने महसूस किया कि अरुणा और उसके बच्चे की मौत को परामर्श से रोका जा सकता था। उन्होंने अपनी सोच तय की, और गर्भवती और नई मां को सीधे जानकारी प्रदान करने के लिए एक चैनल के रूप में मोबाइल फोन का उपयोग करना तय किया।

इंडियास्पेंड से बातचीत करती हुई हेगड़े कहती हैं, "देखभाल के मौजूदा मॉडल मनुष्यों पर पूरी तरह से निर्भर हैं। मां क जानकारी क लिए या तो अस्पताल जाना पड़ता है या आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) उनके घर आती हैं। गर्भावस्था एक बहुत गतिशील प्रक्रिया है और एक व्यक्ति के लिए व्यापक जानकारी प्राप्त करने के लिए जाना और प्राप्त करना कठिन है। "

माताओं को सशक्त बनाना

30 वर्षीय बबिता जयसवाल, पश्चिम दिल्ली के शिव विहार में नियमित रूप से "जेजे कॉलोनी"(झुग्गी) में रहती हैं। तीन बच्चों की इस मां ने ‘एममित्र’ से बहुत कुछ नया सीखा है। वह बताती हैं, "मैं अब सफाई के बारे में बहुत सावधान हूं। मैं उसे खिलाने से पहले हमेशा अपने हाथ धोती हूं।" उसने कई आदतों को बदल दिया और अब बच्चे के अस्वस्थ होने पर उसे डॉक्टर के पास ले जाती है, जो उसने पहले नहीं करती थी।

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30 वर्ष बाबिता जयसवाल अपनी पिछली गर्भावस्था के दौरान ही एममित्र के साथ पंजीकृत हुई थीं। इंडियास्पेंड के साथ अपने छोटे बेटे का जिक्र करते हुए बताया कि, "मैं अब सफाई के बारे में बहुत सावधान हूं। मैं हमेशा उसे खिलाने से पहले अपने हाथ धोती हूं।"

जब मां को उचित रूप से सूचित नहीं किया जाता है तो बहुत कुछ गलत हो सकता है। और जानकारी चमत्कार का काम कर सकती है।

केवल 9 फीसदी ‘एममित्र’ लाभार्थियों ने गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं का अनुभव किया है, जैसा कि सायन अस्पताल में आयोजित एक मिडलाइन सर्वेक्षण दिखाया गया जहां ‘एममित्र’ ने अपने पायलट प्रोजेक्ट का आयोजन किया था।

इससे पहले, 38 फीसदी महिलाओं ने जटिलताओं का अनुभव किया था। बेसलाइन सर्वेक्षण में 68 फीसदी की तुलना में 83 फीसदी गर्भवती माताओं ने विशेष स्तनपान के लाभों को समझा है।

‘एममित्र’, परिवार की गतिशीलता भी बदलता है - पुरुष और अन्य परिवार के सदस्य जो कॉल को सुनते हैं, वे भी मां की जरूरतों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनकी बेहतर देखभाल होती है। महिलाएं कहती हैं कि वे सशक्त महसूस करती हैं, क्योंकि कोई है जो उनकी देखभाल कर रहा है।

चूंकि यह परियोजना प्रौद्योगिकी के साथ काम करती है और आसान है, इसलिए ‘अरमान’ ने 98 अस्पतालों और 41 साझेदार गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी के जरिए नौ राज्यों में सेवा शुरु किया है।

अस्पतालों और समुदायों के माध्यम से

दिल्ली में ‘एममित्र’ 10 अस्पतालों और 10 एनजीओ भागीदारों के माध्यम से काम करता है।

भारती, एक सखी जो जेजे कॉलोनी में काम करती है और जिसने जयसवाल को नामांकित किया था, जिनके बारे में हमने पहले बात की, उन्हें ‘सोसाइटी फॉर पार्टिसेटरी इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट’ (एसपीआईडी) द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, जो एममित्र के साथ साझेदार है। वह कहती हैं, "मुझे यह काम अच्छा लगता है ... पहले कई महिलाएं घर पर प्रसव करा रही थीं, अब हम उन्हें बताते हैं कि अस्पताल में बच्चों का प्रसव कराना क्यों महत्वपूर्ण है?"

भारती जैसी साखियां जागरूकता फैलाने और महिलाओं को पंजीकृत करने के लिए हर दरवाजे पर जाती हैं। वे 35 रुपये प्रति नामांकन कमाती हैं।

दया पांडे, और विनीता सिंह, दोनों सामाजिक कार्यकर्ता और अब एममित्र के लिए एसपीआईडी के साथ के साथ स्वास्थ्य पर्यवेक्षकों के रूप में काम कर रहे हैं। अधिकांश सप्ताहांत दोनों दादरी, पश्चिम दिल्ली में दादादेव मात्री एवम शिशु चिकित्सालय में काम करती हैं। उनका प्राथमिक काम गर्भवती महिलाओं को ‘एममित्र’ के बारे में सूचित करना और उन्हें नामांकित करना है। वे अस्पताल के लिए 'शिशु और युवा बच्चों को भोजन' कार्यक्रम भी चला रहे हैं और अस्पतालों के अनुरोध पर परिवार नियोजन परामर्श दे रहे हैं। विनीता सिंह कहती हैं, "हम अपने काम का आनंद लेते हैं। परामर्श के बाद महिलाओं के व्यवहार में निश्चित रूप से बदलाव देखने को मिलता है”।

उत्तर दिल्ली नगर निगम में काम कर रहे एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "ऐसी कई स्वास्थ्य योजनाएं हैं जो गर्भवती महिलाओं और बच्चों की मदद कर सकती हैं, लेकिन अस्पताल के कर्मचारी ऐसा नहीं करते हैं और न ही उन्हें स्वास्थ्य सलाह देते हैं। ‘एममित्र’ इसे सुधार सकता है। "

मोबाइल स्वास्थ्य हस्तक्षेप भरोसेमंद

एमहेल्थ, या स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए मोबाइल फोन का उपयोग सुलभ है और इसमें कम लागत लगती है। एमहेल्थ हस्तक्षेप के 19 अध्ययनों की एक व्यवस्थित समीक्षा ने मातृ स्वास्थ्य में सुधार का भरोसा जगाया है लेकिन स्केलिंग से पहले उच्च गुणवत्ता वाले अध्ययन की भी जरूरत है।

‘अरमान’ की ओर से हाल ही में किए गए अध्ययन को प्रकाशित भी किया जाएगा।

एक अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था और शिशु देखभाल के बारे में जानकारी, डॉक्टर के दौरे की आवृत्ति, गर्भावस्था के दौरान मिलने वाली खुराक, स्तनपान कराने की शुरुआत और प्रीलेक्टियल फीडिंग के नुकसान (स्तनपान शुरू करने से पहले नवजात शिशु को मां के दूध के अलावा कोई भी भोजन - विशेष स्तनपान कराने के लिए एक प्रमुख बाधा, जिसे शिशु पोषण में स्वर्ण मानक माना जाता है), के बारे में किसी अन्य समूह की महिलाएं जो ‘एममित्र’ से जुड़ी नहीं थीं उनकी तुलना में एममित्र के साथ जुड़ी माताएं ज्यादा जानती थीं।

एक और अध्ययन में, ‘एममित्र’ द्वारा परामर्श की गई 97 फीसदी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूक थीं, जबकि पहले यह आंकड़ा 61 फीसदी था। ‘एममित्र’ के साथ नामांकित लगभग 93 फीसदी महिलाएं टीकाकरण कार्यक्रम के संबंध में जागरुक थी, जबकि पहले यह आंकड़ा 71 फीसदी था।

‘अरमान’ के काम ने इसे विभिन्न स्रोतों से पुरस्कार, नकद पुरस्कार और शोध अनुदान के अलावा 2017 के लिए डब्ल्यूएचओ का सार्वजनिक स्वास्थ्य चैंपियन पुरस्कार दिलाया है।

‘अरमान’ अब मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग कर उच्च जोखिम वाले गर्भधारण और शिशुओं की पहचान और संदर्भ में सहायक नर्स मिडवाइव (गांव स्तरीय महिला स्वास्थ्य कर्मियों) का समर्थन करने के लिए ‘एमखुशहाली’ जैसे अन्य कार्यक्रमों में विस्तार कर रहा है। साथ ही साथ घर आधारित प्रसवपूर्व और शिशु देखभाल कार्यक्रम, जो महिलाओं को सस्ती देखभाल प्रदान करने और इससे कमाई करने के लिए प्रशिक्षित करता है। ‘एममित्र’ का एक और उद्देश्य माताओं को पोषण परामर्श प्रदान करके कुपोषण को रोकना है, जब तक कि उनके बच्चे तीन साल के न हो जाएं।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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