राजस्थान में हो सकता है भारत का पहला राइट-टू-हेल्थकेयर कानून
नई दिल्ली, जयपुर: 2016 में, अपनी मृत पत्नी के शव को 12 किलोमीटर तक ढोने वाले आदिवासी व्यक्ति की तस्वीर ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थी। रिपोर्टों के मुताबिक स्थानीय सरकारी अस्पताल ने आदिवासी व्यक्ति को गाड़ी देने से मना कर दिया था, जिसके बाद वह अपनी मृत पत्नी का शव ढोह कर ले गया था।
25 अगस्त 2016 को, ओडिशा के कालाहांडी जिले के दिहाड़ी मजदूर, दाना मांझी को अपनी पत्नी का शव अस्पताल से घर कर ढो कर लाना पड़ा था, हालांकि राज्य के पास एक योजना है, जो घरों तक मुफ्त परिवहन की अनुमति देता है। क्या मांझी सरकार पर मुकदमा कर सकते थे? वर्तमान प्रणाली में, यह प्रतीत नहीं होता है। लेकिन यह संभव हो सकता है, यदि स्वास्थका अधिकार यानी राइट टू हेल्थकेयर वास्तविकता बन जाए।
दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश और छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत गरीब देशों की तुलना में स्वास्थ्य सेवा पर कम खर्च करता है। यह देश के विकास को धीमा करता है।
2011-12 में, 5.5 करोड़ भारतीयों को “आउट-ऑफ-पॉकेट” खर्च (स्वास्थ्य से संबंधित बिलों का भुगतान, जो उन्हें स्वयं करना होगा) के कारण गरीबी में जाना पड़ा है।
देश से आधी से ज्यादा आबादी (51 फीसदी) सेहत की देखभाल के लिए निजी क्षेत्रों में जाती है, क्योंकि सार्वजनिक-स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर लोगों का भरोसा नहीं है।
फिर भी, 16 लाख भारतीयों की स्वास्थ्य सेवा की खराब गुणवत्ता के कारण होने वाली मृत्यु हुई है। यानी अधिक महंगी देखभाल से स्वास्थ्य की बेहतर गुणवत्ता नहीं होती है। 2018 वैश्विक स्वास्थ्य गुणवत्ता और पहुंच सूचकांक पर 195 में से भारत 145 वें स्थान पर है।
लेकिन कुछ संकेत हैं कि स्वास्थ्य सेवा एक राजनीतिक मुद्दा बन रहा है।
सितंबर 2018 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने, आयुष्मान भारत नाम से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है, जिसे आधिकारिक रूप से ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ कहा जाता है। इसका उद्देश्य 50 करोड़ से अधिक भारतीयों को 5 लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान करना है। सरकार ने 2019-20 में इस योजना के लिए 6,400 करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जो एक साल पहले 2,000 करोड़ रुपये से तीन गुना अधिक था।
Ayushman Bharat scheme will take the lead in providing quality and affordable healthcare: PM @narendramodi in Itanagar
— PMO India (@PMOIndia) February 15, 2018
विपक्षी दल स्वास्थ्य सेवा के बारे में भी बात कर रहे हैं। अप्रैल 2019 में जारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के घोषणापत्र में 2023-24 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 फीसदी तक स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च को दोगुना करने का वादा किया गया था। इसके अलावा, इसने राइट-टू-हेल्थकेयर अधिनियम का वादा किया, जो "प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार प्रदान कर सकता है, जिसमें मुफ्त डायग्नोस्टिक्स, आउट पेशेंट देखभाल, सार्वजनिक अस्पतालों के नेटवर्क और निजी अस्पतालों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती होना शामिल है।"
In our manifesto, we are considering a Right to Healthcare Act, where we guarantee certain minimum healthcare to all Indians, increasing our expenditure to about 3% of GDP and increasing the number of healthcare professionals: Congress President @RahulGandhi #HealthcareForAll pic.twitter.com/v80MpIWUGd
— Congress (@INCIndia) March 15, 2019
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई-एम के घोषणापत्र ने भी इसी तरह के बदलावों का वादा किया था: "अल्पावधि" में सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 फीसदी तक स्वास्थ्य खर्च बढ़ाना और "दीर्घकालिक" में 5 फीसदी तक करना और "केंद्र और राज्यों दोनों स्तरों पर कानून के माध्यम से मुक्त स्वास्थ्य को न्यायसंगत बनाना"।
दोनों घोषणापत्र सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को विनियमित करने के लिए नैदानिक स्थापना अधिनियम को लागू करने की बात करते हैं और जबकि कांग्रेस ने कहा कि एक बीमा मॉडल स्वास्थ्य देखभाल को सार्वभौमिक बनाने का सही तरीका नहीं है, सीपीआई (एम) ने कहा कि यह आयुष्मान भारत को स्क्रैप करेगा क्योंकि यह " एक त्रुटिपूर्ण बीमा मॉडल ” पर आधारित है।
समझ से परे
एक गैर-लाभकारी संस्था, ‘साथी’ के कोर्डिनोटर और स्वास्थ्य पर काम करने वाले संगठनों का एक नेटवर्क, जन स्वास्थ्य अभियान के आयोजकों में से एक, अभय शुक्ला कहते हैं, "मुख्य परिवर्तन स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम लाएगा ।"
विशेषज्ञों ने कहा कि ‘राइट टू हेल्थकेयर’ नि: शुल्क निदान, दवाओं, शिकायत निवारण को सुनिश्चित करेगा, उत्पादन को मापने की अनुमति देगा और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के भीतर बुनियादी सेवाओं का एक सेट प्रदान करेगा।
2004 से एक राइट-टू-हेल्थकेयर कानून पर काम करने वाले शुक्ला ने कहा, "अब जब कोई मरीज सार्वजनिक-स्वास्थ्य प्रणाली में जाता है, तो वह उन सेवाओं के बारे में सुनिश्चित नहीं होता है जो उसे प्राप्त होगी। क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक सीज़ेरियन सेक्शन आयोजित किया जाएगा? क्या दवाएं मुफ्त दी जाएंगी?”
नई दिल्ली स्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य और नीति विशेषज्ञ चंद्रकांत लहारिया ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा का अधिकार सार्वभौमिक प्रगतिशीलता की दिशा में एक कदम है।”
लहारिया ने कहा, “स्वास्थ्य पर भारत का सरकारी खर्च जीडीपी का 1.18 फीसदी है और अतिरिक्त धनराशि विभिन्न मुद्दों पर खर्च की जा सकती है, जिसमें रिक्तियों को भरना और कर्मचारियों को नियुक्त करना शामिल है; गैर-संचारी रोगों के लिए आपूर्ति (दवाएं और निदान) खरीदना।” उन्होंने कहा, "फिर भी, अधिक खर्च करना चुनौतीपूर्ण होगा जब तक कि यह प्रणाली वितरित करना शुरू न करें। बता दें कि थाईलैंड के सरकारी खर्च को जीडीपी के 1.5 फीसदी से बढ़ाकर जीडीपी के 3.0 फीसदी करने में लगभग 13 साल लग गए। "
राजस्थान कर सकता है ट्रेंड सेट
जब कांग्रेस ने दिसंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा, तो उसने नि:शुल्क निदान, उपचार और दवाओं सहित राइट टू हेल्थ केयर के अधिकार का वादा किया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पद संभालने के बाद मार्च 2019 में उस वादे को दोहराया और कहा कि उनका राज्य जल्द ही इस तरह का कानून लाएगा।
2011 में, मुख्यमंत्री के रूप में पिछले कार्यकाल में, गहलोत ने एक कार्यक्रम शुरू किया जो सरकारी अस्पतालों में देखभाल करने वाले रोगियों के लिए मुफ्त दवाइयां ( 606 आवश्यक और जीवन रक्षक दवाएं, 137 सर्जिकल आइटम और 77 प्रकार के टांके ) प्रदान करता था।
2016 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण ‘गैर-अस्पताल उपचार’ के लिए क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की लागत 72 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 68 फीसदी है।
नि: शुल्क दवा कार्यक्रम ने व्यापक मान्यता को आकर्षित किया, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शामिल है।पिछले चार वर्षों से 2016 तक, सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में मरीजों की संख्या में 81 फीसदी वृद्धि हो कर 80 लाख तक पहुंची है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जून 2018 की रिपोर्ट में बताया है। इस अवधि के दौरान आउट-पेशेंट कंसल्टंसी में 2.6 गुना और अस्पताल में भर्ती मरीजों में 1.5 गुना वृद्धि हुई है।
फ्री-मेडिसिन प्रोग्राम ने प्रिस्क्रिप्शन को युक्तिसंगत बनाने में भी मदद की है, यानी अनुचित प्रिस्क्रिप्शन प्रथाओं को हटाना, जैसा कि एक संस्था, ‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’, और एक गैर लाभकारी संस्था ‘प्रयास’ द्वारा 2013 के अध्ययन से पता चलता है।
“ हमें इसे तैयार करने के लिए कुछ समय चाहिए ! ”
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि राजस्थान का राइट-टू-हेल्थकेयर कानून कब तैयार होगा।
राजस्थान के चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के एक विशेष सचिव और मुफ्त दवा योजना को लागू करने वाले अधिकारी समित शर्मा ने कहा, "संविधान में दो साल, 11 महीने और 17 दिन का समय लगा, यह बिल लगभग संविधान के मसौदे की तरह है। हमें इसे तैयार करने के लिए कुछ समय दें।"
शर्मा ने कहा, “राइट-टू-हेल्थकेयर बिल सेवाओं का एक न्यूनतम आश्वासन प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए, उन्होंने समझाया, कानून के तहत सरकारी स्वास्थ्य उप-केंद्र सुबह 8 से 2 बजे के बीच खुले रहेंगे, और इस तरह के प्रत्येक उप-केंद्र में एक सहायक नर्स दाई होगी।”
शर्मा ने आगे बताया, “अकेले स्वास्थ्य ढांचे में सुधार बेहतर स्वास्थ्य सेवा की गारंटी नहीं दे सकता है, लेकिन यह सेवाओं के बेहतर वितरण को सुनिश्चित कर सकता है, जिसे वर्तमान प्रणाली मापता नहीं है।”
इस बीच, गैर-लाभकारी प्रयास, जो राजस्थान में राइट-टू-हेल्थकेयर बिल को आगे बढ़ाने में शामिल थी, ने विभिन्न सिविल सोसाइटी समूहों और सरकार के साथ परामर्श का एक परिणाम जारी किया है।
नई सुविधाएं
प्रयास के मसौदे में कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं: प्रति व्यक्ति व्यय में 3,000 रुपये की वृद्धि (वर्तमान में, राजस्थान प्रति व्यक्ति 1,600 रुपये खर्च करता है); किसी भी आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च का भुगतान किए बिना स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी; 3 किमी के भीतर बुनियादी सेवाओं की गारंटी और 12 किमी के भीतर प्राथमिक देखभाल; और शिकायतों और कानूनी उपायों के लिए स्पष्ट प्रक्रिया।
सरकार के साथ जुड़ाव का नेतृत्व करने वाली, प्रयास की सीनियर कोर्डिनेटर, छाया पचौली ने बताया, “हमें यकीन है कि राइट-टू-हेल्थकेयर अधिनियम राजस्थान में आएगा; हमें यह देखना होगा कि यह किस रूप में होता है।हम समझते हैं कि इसमें समय लगेगा। दवाओं के मामले में आपको बस खरीद और आपूर्ति के लिए एक प्रणाली स्थापित करनी होगी, लेकिन अधिनियम सब कुछ के बारे में है: मानव संसाधन, बुनियादी ढांचा और पहुंच।”
सरकार के साथ काम का नेतृत्व करने वाली, प्रयास की सीनियर कोर्डिनेटर, छाया पंचौली ने बताया, “हमें यकीन है कि राइट-टू-हेल्थकेयर अधिनियम राजस्थान में आएगा। हमें यह देखना होगा कि यह किस रूप में होता है।”
उन्होंने कहा कि, कहा कि ‘राइट-टू-हेल्थकेयर’ कानून में आवास और स्वच्छता जैसे संबंधित मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए, वर्तमान ध्यान स्वास्थ्य देखभाल, उपचारात्मक और निवारक पहलुओं पर है।पंचौली ने कहा, " जब सार्वजनिक-स्वास्थ्य खर्च की बात आती है,पहले से ही राजस्थान कई राज्यों, यहां तक कि महाराष्ट्र (जो अधिक समृद्ध और अधिक उन्नत माना जाता है) की तुलना में बेहतर कर रहा है। हमें सरकार को यह विश्वास दिलाना होगा कि यह कदम उतना बोझ नहीं होगा जितना वे उम्मीद करते हैं।
मसौदा व्यापक स्तर पर अधिकारियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी भी देता है।
पचौली ने कहा, "वर्तमान में, जब कोई घटना होती है, तो फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता को दोषी ठहराया जाता है और निलंबित कर दिया जाता है। लेकिन जब अधिनियम आएगा तो भी सबसे वरिष्ठ अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।"
वैश्विक स्तर पर तुलना
हालांकि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सदस्यों ने अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में एक अधिकार के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वास्थ्य को मान्यता दी है, लेकिन कई ने इसे एक राष्ट्रीय अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी है।
केवल संयुक्त राष्ट्र के 73 सदस्य देशों (38 फीसदी) ने चिकित्सा देखभाल सेवाओं के अधिकार की गारंटी दी, जबकि 27 (14 फीसदी) ने 2011 में इस अधिकार की रक्षा करने की आकांक्षा की; 27 देशों (14 फीसदी) ने स्वास्थ्य सेवा के अधिकार की गारंटी दी, जबकि 21 (11 फीसदी) ने इसकी इच्छा जताई, जैसा कि एक वैश्विक पत्रिका, ग्लोबल पब्लिक हेल्थ, में प्रकाशित 2013 के विश्लेषण में बताया गया है।
अच्छे स्वास्थ्य प्रणालियों के कुछ सबसे अच्छे उदाहरण उन देशों में हैं, जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हैं, जैसे कि थाईलैंड, सिंगापुर और चीन।
अमर्त्य सेन ने हार्वर्ड पब्लिक हेल्थ रिव्यू के 2015 के अंक में लिखा था, यूएचसी (सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा) लोगों के जीवन को आगे बढ़ाने और साथ ही आर्थिक और सामाजिक अवसरों को बढ़ाने में भी में इसका बहुत बड़ा योगदान है, " सेन ने तर्क दिया कि एक यूएचसी ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया, बाद में महंगे उपचार को कम किया या समाप्त किया और ‘अधिक लाभांश’ प्राप्त किया। 1970 के दशक में सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा को अपनाने के बाद केरल में ऐसा ही देखा गया था और जहां अब दुनिया के कुछ सबसे अच्छे स्वास्थ्य संकेतक हैं।
( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और HealthCheck.in और IndiaSpend के साथ जुड़ी हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 24 अप्रैल, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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