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मुंबई: पिछले 2 वर्षों में, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर द हेल्थकेयर ऑफ द एल्डरली’ ( एनपीएचसीई ) लिए जारी धन में से 7 फीसदी से अधिक का उपयोग नहीं किया है, जैसा कि सरकार ने एक प्रश्न के इस उत्तर में 29 दिसंबर, 2017 को संसद को बताया है।

औसतन 2015-16 और 2017-18 के दौरान ‘नॉन कम्युनिकेबल डिजीज’ (एनसीडी) फ्लेक्सिबल पूल’ के तहत एनपीएचसीई के लिए जारी 1,414 करोड़ रुपये का केवल 5 फीसदी का उपयोग किया गया है। एनसीडी फ्लेक्सिबल पूल देश के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के छह प्रमुख वित्तपोषण घटकों में से एक है। फ्लेक्सिबल पूल अलग-अलग उद्देश्यों के लिए धन का उपयोग करने के लिए राज्य सरकारों को स्वतंत्रता प्रदान करता है और उन्हें विशिष्ट उपयोगों तक सीमित नहीं करता है।

2011 को समाप्त हुए दशक में, भारत की बुजुर्ग आबादी 26.8 मिलियन हो गई है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 7 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। वर्तमान में, 10 भारतीयों में से एक की उम्र 60 वर्ष से ऊपर है, लेकिन 2050 तक, सभी भारतीयों में से पांचवा (19 फीसदी, लगभग पांच में से एक की आयु) 60 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र का होगा।

राज्य सभा संसदीय स्थायी समिति की इस 2015 एक्शन टेकन रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकार ने कहा, "स्वास्थ्य एक राज्य का विषय है और यह राज्य सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है कि जिले में इस योजना को लागू करने के दौरान धन का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करे। यह भी कहा गया है कि एनपीएचसीई अब अपने एनसीडी फ्लेक्सिबल पूल के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा है। एनपीएचसीई , मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन प्रभाग की निगरानी में भी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति को पता चला है कि विभाग धन का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने में बहुत धीमा रहा है,जो कि गतिविधियों के वास्तविक कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।”

अगले वर्ष में, समिति ने निधियों के कम उपयोग पर समान अवलोकन किया और विभाग को कार्यवाही करने के लिए कहा। 2016 की रिपोर्ट कहती है कि, “समिति का मानना ​​है कि आवंटित धन के सही उपयोग को परिणाम के रूप में सामने आना चाहिए। समिति, विभाग को आवंटित निधियों के अधिकतम उपयोग के लिए सख्त निगरानी सुनिश्चित करने की अनुशंसा भी करता है। धन के सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ 'सख्त निर्देश' जारी किए जाएं।”

18 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में प्रस्तुत एक ऐसी रिपोर्ट में, समिति ने योजना की कमी और अनुचित तरीके से निर्धारित लक्ष्यों पर ध्यान दिया था।

नई दिल्ली में ‘ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैडिकल साईंस (एम्स) में जेरियाट्रिक मेडिसिन के प्रमुख डॉ ए.बी डे. ने इंडियास्पेंड को बताया कि, "अधिकांश राज्य सरकारें, मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल जिम्मेदारियों में उलझे हुए हैं। नए कार्यक्रमों के लिए जगह नहीं हैं। मंत्रालय के अधिकारियों का नौकरशाही दृष्टिकोण, केंद्रों का खराब चयन, विशेषज्ञों की तकनीकी सलाह स्वीकार करने की अनिच्छा, कार्यक्रम की विफलता के कुछ कारण हैं। ”

एक राष्ट्रीय कार्यक्रम

राज्य स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक आयु) को अलग, विशेष और व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए 2010-11 में एनपीएचसीई शुरू किया गया था।

कार्यक्रम का उद्देश्य पहचान किए गए क्षेत्रीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जेरियाट्रिक सेंटर (आरजीसी), जिला अस्पतालों में 10-बिस्तर वाले जेरियाट्रिक इकाइयों, सभी समुदाय स्वास्थ्य केंद्रों में पुनर्वास इकाइयों, और प्रशिक्षित मेडिकल अधिकारियों द्वारा साप्ताहिक जेरियाट्रिक चिकित्सा क्लीनिक स्थापित करने का लक्ष्य है।

2015-16 में, एनपीएचसीई को एनसीडी फ्लेक्सिबल पूल के तहत स्थानांतरित किया गया था।

12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान, एनपीएचसीई के लिए 1,710.13 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे। इसका दो-तिहाई (67 फीसदी), 1,147.56 करोड़ रुपए जिला स्तर तक की गतिविधियों के लिए रखा गया था और 562.57 करोड़ रुपए तृतीयक स्तर की गतिविधियों जैसे उन्नत सलाहकार, देखभाल और निदान के लिए रखा गया था।

राज्य धन खर्च करने में विफल

भारत में, उत्तर प्रदेश में बुजुर्गों (15 मिलियन) की सबसे बड़ी आबादी है। लेकिन 2015-16 से 2017-18 तक राज्य सरकार ने सबसे ज्यादा जारी राशि का मात्र 13 फीसदी का उपयोग किया है। 2015 से, जारी की गई 220 करोड़ रुपये में से 18 करोड़ रुपये (8 फीसदी) खर्च किए गए हैं।

राज्य सरकार ने 2012-13 और 2014-15 के बीच केवल एक बार आवंटित राशि का उपयोग किया गया है ( 2013-14 में 1.8 करोड़ रुपये ), जैसा कि लोकसभा में 4 दिसंबर, 2015 को सरकारी प्रतिक्रिया में बताया गया है।

इसी तरह, तमिलनाडु ने 2012-13 के बाद से किसी भी व्यय का केवल एक बार रिकॉर्ड किया है ( उसने 2016-17 में जारी किए गए 21.45 करोड़ रुपये में से केवल 1.26 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। )

तमिलनाडु स्वास्थ्य सिस्टम प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने जैराटीक स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम को लागू करने के लिए राज्य सरकार से अनुरोध किया था और अनुमोदन के लिए 2013 तक इंतजार किया। सरकार के लेखापरीक्षक, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह की मंजूरी अनावश्यक थी, जैसा कि Scroll.in ने 5 सितंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

केरल अगले वर्ष से बुजुर्गों के लिए बजट विश्लेषण शुरू करने की योजना बना रहा है। केरल ने 2015 और 2017 के बीच 24.16 करोड़ रुपये की कुल जारी राशि का 14 फीसदी खर्च किया है (दिसंबर 2017 तक)। 13 फीसदी पर, केरल में सभी भारतीय राज्यों के बीच वरिष्ठ नागरिकों का सबसे अधिक अनुपात है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 7 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

2010 के बाद से एनपीएचसीई के लिए जारी किए गए फंड से राज्यों का खर्च

गैर लाभकारी संस्था, ‘हेल्पएज इंडिया’ में पॉलिसी रिसर्च और डेवलपमेंट के निदेशक अनुपमा दत्ता ने इंडियास्पेंड को बताया कि, परिणामी सुविधाएं उप-मानक या गैर-विद्यमान हैं। उन्होंने आगे बताया कि, " ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां भारत में अधिकतर बुजुर्ग आबादी रहते हैं, वहां कोई सुविधाएं नहीं हैं। राज्य सरकारें अक्सर एनपीएचसीई जैसे कार्यक्रमों पर खर्च करने के लिए उत्सुक नहीं है, क्योंकि उनके पास योग्य कर्मचारियों, प्रशिक्षण, वेतन, आदि के लिए अतिरिक्त राशि अनुपलब्ध हैं। कार्यक्रम शुरू करने के बाद, उन्हें जरूरतों को पूरा करने के लिए धन का स्रोत होना चाहिए। "

हालांकि, एनपीएचसीई अब फ्लेक्सिबल पूल के तहत है, और राज्य अभी भी धन खर्च नहीं कर रहे हैं। इंडियास्पेंड ने स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव और दो निदेशकों और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव के साथ-साथ तमिलनाडु में एनएचएम के निदेशक से यह समझने की कोशिश की कि धन का उपयोग अप्रयुक्त क्यों होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय में केवल एक अधिकारी बात करने पर सहमत हुआ, लेकिन नाम न बताने की इच्छ रखी। हमारे कई प्रयासों के बावजूद अन्य अधिकारियों ने जवाब नहीं दिया।

हालांकि, वेतन और प्रशासनिक खर्चों के लिए केंद्रीय वित्त पोषण एक सीमित अवधि के लिए है। केंद्र सरकार राज्य सरकारों के लिए इन खर्चों का भार उठाती है, जैसा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव सुजैया कृष्णन कहते हैं। हालांकि, राज्यों की अब भी अरुचि रहती है या वे एहतियात बरतते हैं।

पहचान जाहिर न होने की शर्त पर एक स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि राज्य स्तर पर वृद्धावस्था देखभाल के लिए प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की कमी, और राज्य के खजाने से जिला प्रशासन तक धनराशि जारी करने में देरी के कारण धन का उपयोग कम होता है।

‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ (पीएचएफआई) में स्वास्थ्य (अर्थशास्त्र और वित्तपोषण) निदेशक शक्तिवल सेल्वराज ने कहा, “एनएचएम द्वारा राज्य सरकार को छूट देने के बावजूद यह अक्सर देखा जाता है कि नौकरशाही का निचला स्तर निधि उपयोग के लिए एक दिशानिर्देश निर्धारित करने की उम्मीद करता है। इससे और देरी होती है।”

“इसके अलावा, कुछ वर्षों में, केंद्रीय और सरकारी खजाने ने निर्देश दिया कि व्यय कम किया जाए, खासकर जब वे राजकोषीय घाटे में कटौती करना चाहते हैं,” सेलेवराज बताते हैं।

प्रशिक्षण की कमी

चूंकि एनपीएचसीई एक नैदानिक ​​देखभाल कार्यक्रम है, इसलिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है। एम्स के डॉ. डे ने यह समझाते हुए बताया, “ मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया ने नए स्नातकोत्तर कार्यक्रम शुरू करने की अनुमति नहीं दी है, जिससे कि जेरियाट्रिक केयर में डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जा सके। कुछ मुट्ठी भर मेडिकल कॉलेजों ने ऐसा किया है। केवल एम्स ने जैरियाट्रिक मेडिसिन में एक नया एमडी (मेडिसिना डॉक्टर) कार्यक्रम शुरू किया है और चेन्नई में एक मेडिकल कॉलेज पहले से ही है।”

डॉ. डे मानते हैं कि इस कार्यक्रम की कोई दिशा नहीं है- “ ज्यादातर स्वास्थ्यसेवा पेशेवरों ने जेरियाट्रिक केयर में कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है, कोई विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं बनाया गया है, और जागरूकता पैदा करने के लिए आईईसी (सूचना, शिक्षा और संचार) की बहुत कम सामग्री है। कार्यक्रम को तकनीकी सहायता और नौकरशाहों के नेतृत्व की जरूरत है।"

सरकार ने एम्स और चेन्नई के मद्रास मेडिकल कॉलेज में वृद्धावस्था (एनसीए) के लिए दो विशेष राष्ट्रीय केंद्रों के विकास का समर्थन कर रही है। एनसीए बुजुर्गों पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वास्थ्य सेवा, ट्रेन के लिए पेशेवर सेवा प्रदाता, और अनुसंधान पर जोर देगी।

इसके अतिरिक्त, पूरे भारत में 18 क्षेत्रीय जेरियाट्रिक सेंटर (आरजीसी) हैं। ये जराचिकित्सा में वृद्ध और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए आउटपेशेंट विभाग प्रदान करते हैं।

2017 के दिसंबर 29 तक आरजीसी और एनसीए के लिए जारी 175 करोड़ की कुल राशि में से 2015-16 और 2017 के बीच 40 करोड़ का उपयोग किया गया है, यानी कुल जारी राशि का 23 फीसदी।

हेल्पएज के दत्ता कहते हैं," बेहतर परिणाम देखने के लिए बुजुर्गों के प्रति सामाजिक रुख बदलने की जरुरत है।”

देश भर में अधिक आरजीसी और एनसीए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की स्थापना पर सरकार को ध्यान देना चाहिए, जैसा कि 21 दिसंबर, 2017 को लोक सभा में प्रस्तुत देश में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के अनुमानों पर समिति की 23 वीं रिपोर्ट में सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरों के साथ-साथ पेरामेडिकल पाठ्यक्रमों में जेरियाट्रिक दवा पाठ्यक्रमों पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए।

(पलाइथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड से साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 04 अप्रैल, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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