लॉकडाउन का असरः यूपी की किशोरियों को चार महीने तक नहीं मिलीं आयरन की गोलियां
लखनऊः उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले की रहने वाली दो बहनें सुनयना (13 साल) और राशि (11 साल) शहर के गुल्लाबीर स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में पांचवीं और तीसरी क्लास में पढ़ती हैं। स्कूल बंद होने से पहले सुनयना और राशि को दोपहर का खाना सरकार की मिड-डे मील योजना के तहत स्कूल में ही मिलता था। इस खाने में उन्हें मौसमी सब्ज़ियों के अलावा पोषक तत्वों की ख़ुराक भी मिलती थी। इसके अलावा हर हफ़्ते सुनयना और राशि को अनीमिया से बचाव के लिए आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां भी दी जाती थीं। कोरोनावायरस महामारी की वजह से 17 मार्च से राज्य के सभी स्कूल बंद कर दिए गए। इसके साथ ही बंद हो गए इन्हें खाने में मिलने वाले पोषक तत्व और आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां भी।
स्कूल बंद होने के बाद सुनयना और राशि का खान-पान भी पूरी तरह से बदल गया। दोनों बहनें एक ग़रीब परिवार से आती हैं। अब यह परिवार खाने के लिए सरकार की प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर महीने मिल रहे 5 किलो अनाज पर निर्भर है। अब इन्हें हर रोज़ खिचड़ी, ताहरी, दाल-चावल या दाल-रोटी ही खाने को मिल पाते हैं। स्कूल बंद होने के बाद से इन्होंने एक बार भी हरी सब्ज़ी का स्वाद नहीं लिया है।
पौष्टिक भोजन के साथ ही उन्हें स्कूल में हर सोमवार को मिलने वाली आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां भी मिलनी बंद हो गईं। यह गोलियां अनीमिया से बचाव के लिए बेहद ज़रूरी हैं। लॉकडाउन से ठीक पहले बहराइच में ही एक सात वर्षीय लड़की की अनीमिया से मौत हो गई थी, दैनिक हिंदुस्तान की इस रिपोर्ट के मुताबिक़। चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश की 15 से 19 साल की उम्र की 53.7% किशोरियां अनीमिक पाई गई थीं।
सुनयना और राशि उत्तर प्रदेश की उन 1.2 करोड़ किशोरियों में से हैं जिन्हें पिछले चार महीने से आयरन की गोलियां नहीं मिली है। परिवार की माली हालत को देखते हुए यह हरे पत्ते वाली सब्ज़ियां खाने की सोच भी नहीं सकती हैं। हरे पत्ते वाली सब्ज़ियां शरीर में आयरन की कमी को पूरा करती हैं।
"पेट भरने की ज़रूरतें तो पूरी हो रही हैं, मगर पैसे की कमी के चलते मैं इनको खाने में मौसमी सब्ज़़ियां नहीं दे पा रहा हूँ। लॉकडाउन के बाद से पैसे की समस्या काफी बढ़ गई है। जब इनका स्कूल खुला था तो इनके खान-पान को लेकर काफ़ी मदद मिल जाती थी पर अभी इस वक़्त सब बंद है, " सुनयना और राशि के पिता राजेश ने बताया।
राजेश अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए आइसक्रीम का ठेला लगाते हैं और उनकी पत्नी आशा देवी गोलगप्पे बनाकर बेचती हैं। दोनों के ही काम लॉकडाउन के बाद से बंद हैं।
अनेमिया एक खतरनाक बिमारी है और समय पर ध्यान ना देने पर इससे जान का खतरा भी हो सकता है। आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां किशोरों/किशोरियों को अनीमिया से लड़ने में मदद करती हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साप्ताहिक आयरन एंड फ़ोलिक एसिड सप्लीमेंट (डब्लयूआईएफ़एस) कार्यक्रम के तहत किशोरों/किशोरियों को यह गोलियां दी जाती हैं।
अब सरकार किशोरों/किशोरियों तक इन गोलियों को पहुंचाने की योजना पर काम कर रही है। "आयरन की गोलियां पहुंचाने के दो तरीके अपनाए जा रहे हैं। ग़ैर स्कूली किशोरियों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर और स्कूली किशोरियों को आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से हर बुधवार और शुक्रवार एक जगह इकट्ठा कर यह गोलियां देने की व्यवस्था की जा रही है,” राज्य में राष्ट्रीय किशोर स्वस्थ्य कार्यक्रम के जनरल मैनेजर मनोज शुक्ला ने बताया।
क्या है अनीमिया
हीमोग्लोबिन यानी ख़ून में मौजूद लाल कण फेफड़ों समेत शरीर के दूसरे हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करते हैं। शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा ठीक रखने के लिए शरीर में आयरन, फ़ोलिक एसिड, विटामिन-सी, विटामिन-बी12 और प्रोटीन की मात्रा का संतुलन ठीक रहना ज़रूरी है। अगर शरीर को मिलने वाले आहार में इनमें से किसी की भी कमी हो जाती है तो शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा भी कम हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को अनीमिक कहा जाता है। अनीमिया का सबसे बड़ा कारण आयरन की कमी है। किशोरावस्था में लड़कियों को पीरियड्स शुरु होते हैं इसलिए अनीमिया का ख़तरा उनमें और बढ़ जाता है। अनीमिक लड़कियों के गर्भवती होने पर उनके बच्चों में भी इसका असर नज़र आता है। इसीलिए अनीमिया को किशोरावस्था में ही दूर करना ज़रूरी है।
उत्तर प्रदेश में 15 से 19 साल की उम्र की 53.7% किशोरियां अनीमिक पाई गई। इनमें 40.8% में हल्के, 12% में मध्यम और 0.9% में गंभीर अनीमिया के मामले हैं, चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक़।
क्यों ज़रूरी हैं आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां
"किशोरियों को आयरन का सप्लीमेंट देना बेहद ज़रूरी है और इसके अभाव में उन्हें काफ़ी दिक्कतें उठानी पड़ सकती हैं ख़ासतौर पर माहवारी के दौरान। लड़कियों को बचपन से ही अगर आयरन की गोलियां समय पर मिलती रहती हैं तो आगे चलकर गर्भावस्था के दौरान आने वाली कई जटिलताओं से उन्हें छुटकारा मिल जाता है,” लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल की डॉ. स्मृति अग्रवाल ने कहा।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, किशोरों/किशोरियों में अनीमिया की चुनौती से निपटने के लिए साप्ताहिक आयरन एंड फ़ोलिक एसिड सप्लीमेंट (डब्लयूआईएफ़एस) कार्यक्रम पहले से चला रहा है, जिसमें स्कूल जाने वाले किशोरों/किशोरियों को आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां हर सप्ताह दी जाती हैं। अब नई किशोर स्वास्थ्य (एएच) रणनीति के तहत स्कूल ना जाने वाले किशोर/किशोरियां भी इसके दायरे में आ गए हैं। 10 से 14 साल और 15 से 19 साल की उम्र तक के सभी किशोरों/किशोरियों को इस सुविधा का लाभ मिलता है। इसमें शहरी, ग्रामीण, स्कूली और ग़ैर स्कूली, विवाहित, अविवाहित सभी शामिल हैं। इस कार्यक्रम के तहत शिक्षकों की देखरेख में स्कूलों में आयरन फ़ोलिक एसिड टेबलेट की साप्ताहिक खुराक दी जाती है।
"यह योजना अनीमिया से लड़ने में काफ़ी सफ़ल साबित रही है। बच्चों के बेहतर स्वस्थ्य के लिए हर सोमवार को उन्हें आयरन की गोलियां साथ के साथ डीवॉर्मिंग की भी गोली दी जाती है। इनके न मिलने का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ना लाज़िमी है," बस्ती सदर के मूढ़ा घाट स्थित प्राथमिक स्कूल के प्रिंसिपल सर्वेष्ट मिश्रा ने बताया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2011 में उत्तर प्रदेश में एक सर्वे किया जिसमे एक स्कूल जाने वाली किशोरियों को शिक्षकों की देखरेख में और स्कूल न जाने वाली किशोरियों को बिना मॉनीटरिंग के एक किट दी गई जिसमें वीकली आयरन फ़ोलिक सप्लीमेंट और छह महीने की डीवर्मिंग शामिल थे। इस कार्यक्रम का जब मूल्यांकन किया गया तो पाया गया कि जिन किशोरियों की मॉनीटरिंग हुई उनमें अनीमिया 73.3% से घटकर 25.4% रह गया था और जिन किशोरियों की मॉनीटरिंग नहीं हुई उनमें कोई ख़ास अंतर नहीं आया।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश के पहले कम्प्रिहेन्सिव नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे 2016-18 में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 10 से 19 साल के 31.6% किशोरों/किशोरियों में अनीमिया पाया गया। इनमें से 21.8% में हल्का, 9.4% में मध्यम और 0.5% में गंभीर अनीमिया के मामले थे। रिपोर्ट में 17.2% किशोरों/किशोरियों में आयरन की कमी बताई गई।
डब्लयूआईएफ़एस पर लॉकडाउन का असर
स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित बाकी योजनाओं की तरह डब्लयूआईएफ़एस कार्यक्रम भी कोरोनावायरस और लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
“उत्तर प्रदेश में लगभग 1.2 करोड़ बच्चियों को यह गोलियां दी जाती हैं। कुछ समय तक गोलियां उपलब्ध नहीं हो पाई लेकिन चूंकि यह केवल एक पूरक आहार है इसलिए किशोरियों के स्वास्थ्य पर गोलियों के अभाव से दुष्प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए", राष्ट्रीय किशोर स्वस्थ्य कार्यक्रम के उत्तर प्रदेश के जनरल मैनेजर मनोज शुक्ला ने दलील दी।
"मौजूदा स्थिति को देखते हुए आयरन की गोलियां पहुंचाने के दो तरीके अपनाए जा रहे हैं। ग़ैर स्कूली किशोरियों को आंगनबाड़ी केन्द्रों पर और स्कूली किशोरियों को आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से हर बुधवार और शुक्रवार एक जगह इकट्ठा कर यह गोलियां देने की व्यवस्था की जा रही है,” मनोज शुक्ला ने बताया। इंडियास्पेंड ने पता चला कि अब स्कूली एवं गैर स्कूली किशोरियों को आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सहायता से आयरन की गोली मिलना शुरू हो गई हैं।
“मौजूदा वक़्त में अगर आयरन फ़ोलिक एसिड की गोलियां नहीं मिल पा रही हैं तो किशोरियों को आयरन युक्त भोजन करना चाहिए जैसे हरे पत्तों वाली सब्ज़ियां। ख़ासतौर पर ग्रामीण किशोरियों को अपने खान-पान में बदलाव लाना चाहिए", डॉ. स्मृति ने वैकल्पिक सुझाव देते हुए कहा।
(आदित्य और सौरभ, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)
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