लॉकडाउन का फ़ायदा उठाकर खनन माफ़िया ने बांदा के किसानों की फ़सल बर्बाद की, पेड़ काट डाले
बांदा (उत्तर प्रदेश): जब देश में लॉकडाउन में रियायतों का ऐलान किया जा रहा था तो उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े में बांदा ज़िले के कुछ ग्रामीण बड़ी संख्या में अपने घरों से निकल कर सदानीरा केन नदी की धारा में उतर पड़े। नदी की धारा में पहुंच कर इन्होंने जल सत्याग्रह शुरु कर दिया। कमर तक गहरे नदी के पानी में खड़े लोगों की मांग उनके गांव को बालू माफ़िया के चंगुल से बचाया जाए। बांदा के खप्टिहा कलां गांव के लोगों का आरोप है कि बालू खनन करने वाली कंपनी और माफ़िया मिलकर उनके गांव की ज़मीन पर अवैध खनन कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने किसानों को अपनी फसलें समय से पहले काटने को मजबूर किया और फिर उनकी ज़मीन में खड़े पेड़ों की कटाई भी शुरु कर दी।
ग्रामीणों के मुताबिक़, यहां लॉकडाउन से पहले ऐसे तमाम पेड़ थे जिन्हें खनन माफ़िया ने लॉकडाउन का फ़ायदा उठाकर काट दिया। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
केन नदी 71 साल के किसान राम आधार प्रजापति भी उन किसानों में से हैं, जिनकी फ़सलों को वक़्त से पहले कटवा दिया गया था, फिर बालू निकालने के लिए किये गए अवैध खनन के वक़्त उनकी ज़मीन पर लगे पेड़ भी काट दिए गए।
कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में हुए दो महीने से ज़्यादा समय के लॉकडाउन में जब देश भर के लोग अपने घरों में क़ैद थे तब बांदा ज़िले में खनन माफ़िया ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया। जब प्रशासन का ध्यान संक्रमण फैलने से रोकने और लॉकडाउन का पालन करवाने पर था तो यहां के खनन माफ़िया ने ना केवल किसानों को समय से पहले फ़सलें काटने को मजबूर किया बल्कि उनकी ज़मीन में लगे तमाम पेड़ भी काट डाले।
बांदा के इन ग्रामीणों का गुस्सा यकायक यूं ही नही्ं फूटा है। खनन के लिए मिले पट्टों की आड़ में खनन माफ़िया उन जगहों पर भी खनन करता है जिसकी उनके पास शासन से मंज़ूरी नहीं है। बांदा में अवैध खनन की यह समस्या बहुत पुरानी है। ज़िले की सदानीरा केन नदी में बेतहाशा खनन ने एक तरह से इन नदी को सुखा दिया है। नदी को लगभग हर 500 ग़ज़ की दूरी पर बांधकर उससे मौरंग निकाली जा रही है। लगभग पूरे साल बहने वाली केन नदी अभी से सूखने लगी है। किसानों का आरोप है कि खनन माफ़िया खेतों के बीच से रास्ता बनाकर ट्रक निकाल रहे हैं जिससे उनकी फ़सल भी तबाह हो चुकी है।
अपनी ज़मीनों को निहारती हुई महिला किसान फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
"दो दशक पहले यहां जब बाढ़ आई थी तभी से बालू-मौरंग है और यहां खनन का काम चल रहा है। खुदाई से पहले पेड़ों को काटना इनके लिए आम बात रही है। लेकिन इसे भुगतना तो ग़रीब किसान को ही पड़ता है। इसीलिए अब इन सब ने अपनी आवाज़ उठाने की ठानी है। अपनी नदी, ज़मीन और पेड़ों को बचाने के लिए," बांदा के समाजिक कार्यकर्ता, आशीष सागर ने इंडियास्पेंड को बताया।
इस बारे में जब खुदाई करवा रहे इंजीनियर से इस संवाददाता ने बात करने कोशिश की गई तो उन्होने साफ़ मना कर दिया और अपने दफ़्तर के दरवाज़े भी बंद करवा दिए। कैमरा देखते ही खुदाई के काम में लगी जेसीबी मशीनें भी एकाएक बंद करा दी गईं।
खनन के काम में लगे एक पट्टा धारक का दफ़्तर। पट्टाधारक ने पत्रकार जानकर हमसे बात करने से मना कर दिया। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
"सुबह दस बजे हम नदी में उतर गए थे। 12 बजे वह लोग आए और तहसील पैलानी के एसडीएम राम कुमार, ने आश्वासन दिया कि हमें मुआवज़़ा दिया जाएगा," इस सत्याग्रह का नेतृत्व कर रही उषा निषाद ने बताया। प्रशासन के इस आश्वासन के बाद ही किसान और उनके परिवार केन नदी की धारा से बाहर निकले।
"इसमें कोई दोराय नहीं है कि बांदा में अवैध खनन होता रहा है। पिछले महीने ही ग्राम सभा की ज़मीन पर अवैध खनन के मामले में रिपोर्ट आने पर पट्टा धारक कंपनी को एक करोड़ रुपए की पेनल्टी का नोटिस भेजा गया है। लेकिन इस मामले में अभी हम जांच कर रहे हैं कि ज़मीन किसानों की है भी या उन्होंने इसे बेच दिया है। अगर इनकी हुई तो खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत इन्हें सरकार से मुआवज़ा मिलेगा," पैलानी (बांदा) के एसडीएम राम कुमार ने कहा।
"खनन कंपनी को जिस जगह का पट्टा मिला है अब वहां बालू नहीं बचा। यही वजह है कि अब यह कंपनियां हमारी ज़मीनें खोदकर बालू निकाल रही हैं जिसके लिए हमसे कभी, किसी तरह की सहमति भी नहीं ली गई है,'' ऊषा ने बताया।
मार्च में ख़राब हुई अपनी सरसों की फ़सल के बारे में बताती हुईं एक महिला किसान । फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
गांव वासियों ने खनन के काम में लगी दो कंपनियों के ख़िलाफ़ प्रशासन के पास शिकायत दर्ज़ कराई है जिसमें लिखा गया है कि यह कम्पनियां ग्राम सभा की ज़मीन पर अवैध खनन कर रही हैं और उन्होंने ग्रामसभा की भूमि गाटा संख्याा- 100/3, 273, 269, 299, 297, 296 में अवैध खनन किया है।
खान से मौरंग ले जाने के लिए खड़े ट्रक। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
खप्टिहा कलां से, जहां इस वक़्त केन नदी के किनारे अवैध खनन हो रहा है वहां से केवल 300 मीटर दूर सिमराडेरा माजरा गांव है। इस गांव के लोगों को डर सता रहा है कि इस मॉनसून में अगर बाढ़ आई तो उनका गांव डूब जाएगा। "हमारा गांव पूरी तरह डूब जाएगा इस बार। हमने बाढ़ से बचने के लिए तमाम पेड़ लगाए थे लेकिन खनन कंपनी वालों ने वो भी सब काट दिए हैं," सिमराडेरा में रहने वाले सुरेन्द्र कुमार ने कहा।
मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले से निकल कर 427 किलोमीटर का सफ़र करने वाली केन नदी बांदा ज़िले के चिल्ला घाट में यमुना में मिल जाती है। केन नदी, मध्य प्रदेश के पन्ना, छतरपुर और अजयगढ़ के साथ उत्तर प्रदेश के बांदा में सिंचाई और पीने के पानी का मुख्य स्रोत रही है और इस नदी किनारे बसे गांवों में आज भी लोग इसका पानी पीते हैं।
अपनी खुदी हुई ज़मीनों का मुआयना करने जाती हुई महिला किसान। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
"3-20 सितम्बर 1992 में आई प्राकृतिक आपदाओं में बांदा, बलिया और गाजीपुर सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। सिर्फ़ बांदा ज़िले में ही लगभग 20,700 घर बाढ़ में बह गए थे, 40 हज़ार घरों को नुकसान हुआ था और सड़कों पर कई दिनों तक आवाजाही बंद रही थी," 'लैंड एंंड पीपल ऑफ़ इंडियन स्टेट्स एंड यूनियन टेरिटरीज़' किताब के 28वें वॉल्यूम के मुताबिक़।
"अधिकांश रेत खनन परियोजनाएं ज़िला खनन योजना के आधार पर दी जाती हैं। लेकिन विडंबना यह है कि ये योजनाएं व्यापक रूप से जलग्रहों के बारे में नहीं सोचती हैं। खनन एजेंसी चैनल खनन का सहारा लेती है जो नदी के प्राकृतिक डिज़ाइन के लिए विनाशकारी है। वे जलीय निवास को भी नष्ट कर देते हैं। मुझे कई खनन परियोजनाओं के बारे में पता है, जिनकी वजह से नदी के रास्ते बदल गए हैं। यमुना के साथ भी ऐसा हुआ है," पर्यावरण और नदियों के विशेषज्ञ, प्रोफ़ेसर वेंकटेश दत्त ने कहा।
पर्यावरण और नदियों के जानकार, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ के प्रोफ़ेसर वेंकटेश दत्त। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
बांदा में सन 1992 की बाढ़ के बाद जब मौरंग इकठ्ठा हुआ था तो इससे ज़मीन में बारिश का पानी रोकने की क्षमता बढ़ी थी। लेकिन अब उसी मौरंग को निकाला जा रहा है और इसके लिए पेड़ों को भी काटा जा रहा है। जिससे यहां भविष्य में बाढ़ की तबाही से इंकार नहीं किया जा सकता।
केन नदी का बहाव रोकने के लिए रेत और मौरंग से बनाए गए पुल। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
"वर्षा का पैटर्न पिछले वर्षों में काफ़ी बदला है। वर्षा की मात्रा में बहुत बढ़ोत्तरी नहीं हुई है लेकिन अब वही वर्षा कम अवधि में हो रही है। ऐसे में अगर वर्षा जल को रोकने के लिए पर्याप्त मात्रा में पेड़, मेढ़़ ही नहीं होंगे तो बाढ़ का आना लाज़िमी है," पानी से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे वाटर एड संस्था के प्रोग्राम कोर्डिनेटर शिशिर चंद्र ने बताया।
पहले की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं
ऐसा नहीं है कि पुलिस-प्रशासन या सरकार को बुंदेलखंड में बालू का खनन कर रहे माफ़िया के कारनामों की कोई जानकारी नहीं है। यह मामला कई बार अदालतों में जा चुका है, लेकिन किसी ना किसी तरह से इस मामले को दबा दिया जाता है।
जनवरी 2020 में किसानों ने बांदा के ज़िलाधिकारी और खनन विभाग को लिखे शिकायती पत्रों में आरोप लगाया था कि केन नदी की बरसड़ा मानपुर खदान से हर रोज़ लगभग 500 ट्रक मौरंग निकाली जा रही है। इतनी बड़ी संख्या में ट्रकों की आवाजाही से उड़ने वाली धूल से आसपास के खेतों की फ़सलें तबाह हो रही हैं। इसके अलावा ट्रकों के आने-जाने के लिए बनाए गए रास्ते की वजह से लगभग 40 किसानों की फ़सल उजाड़ दी गई है। उधर, खनिज विभाग के अधिकारियों के मुताबिक़ इस खदान का पट्टा किसी के भी नाम नहीं है, नवभारत टाइम्स की 26 जनवरी 2020 की इस रिपोर्ट के अनुसार।
पिछले साल जनवरी में उत्तर प्रदेश की खनिज निदेशक रोशन जैकब ने अचानक कार्रवाई करते हुए बांदा की दो खनन कंपनियों को सील कर दिया था और बालू से भरे हुए कई ट्रक ज़ब्त कर लिए थे। रोशन जैकब ने 14 पट्टाधारियों को अनियमितताओं की वजह से कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था।
एनजीटी की पाबंदी के बावजूद खनन के लिए भारी मशीनों का इस्तेमाल होता है। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
इससे पहले साल 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांदा में हो रहे अवैध खनन के मामले में सीबीआई को जांच के आदेश दिए थे।
बांदा में अवैध खनन पर जुलाई 2018 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पिछले पांच सालों से लंबित कई याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों को दो महीने के अंदर अवैध खनन बंद कराने का आदेश दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने एनजीटी को इसका भरोसा भी दिलाया था। लेकिन इन सब कवायदों के बावजूद अवैध खनन यहां बिना किसी रोकटोक के बदस्तूर जारी है।
ग्रामीणों को धमकी, पुलिस उदासीन
"सौ-सौ मीटर की दूरी पर गड्ढा खोद देते हैं हमारी ज़मीन में। मना करने पर धमकियां देते हैं। हमारी फ़सल भी बर्बाद कर दी है खनन के चक्कर में। समय से पहले ही ज़बर्दस्ती कटवा दी थी। बोलते थे नहीं काटी तो इस पर बुल्डोज़र चलवा देंगे। बताओ, हम लड़कन-बच्चन को का खिलाएं?" रजनी देवी का सवाल था।
फ़सल बर्बाद होने के बाद अब चंदा देवी को अपने बच्चों की चिंता सता रही है। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
चंदा देवी (45) के पास एक बीघा से भी कम ज़मीन है। चंदा बताती हैं कि उनको क़रीब एक हफ़्ते पहले धमकी मिली थी। इस सत्याग्रह के बाद धमकी सिर्फ़ ज़ुबानी नहीं रही। "जैसे ही हम नदी से जल सत्याग्रह के बाद अपने-अपने घर गए, मेरे दरवाज़े पर बंदूक चलने की तेज़ आवाज़ आयी," सुमन सिंह ने बताया। सुमन भी खप्टिहा कलां गांव की निवासी हैं। पति के देहांत के बाद अब बच्चों के साथ रहती हैं।
इस सत्याग्रह का नेतृत्व महिलाएं कर रहीं थीं तो अब खनन माफ़िया महिलाओं के चरित्रहनन पर उतर आया है।
सुमन के घर के बहार हुई हवाई फ़ायरिंग के बारे में उन्होंने पुलिस में शिकायत भी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी। "हम छत पर ही थे जब हमारे दरवाज़े पर फ़ायरिंग करते हुए हमने एक व्यक्ति को देखा। इसके बाद हमने थाने में और यहां की पुलिस चौकी में शिकायत भी की। लेकिन कोई सुनवाई नहीं। कोई जांच के लिए, पूछने समझने भी नहीं आया आज तक,” सुमन ने बताया।
(जिज्ञासा, उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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