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खड़गपुर (आईआईटी) के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने बाढ़ और वन के संबंध में एक नया अध्ययन किया है। इस नए अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि वनों का अधिक विस्तार करके भारत में बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

अध्ययन में वर्ष 1998-2011 की अवधि के दौरान सभी राज्यों में सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन का उदेश्य बाढ़ से संबंधित विनाश पर वनों के प्रभाव का पता लगाना था।

इससे यह पता चला कि जिन राज्यों ने बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान दर्ज किया है वे गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और आंध्र प्रदेश हैं। जिन राज्यों में कम नुकसान हुआ है, वहां नुकसान वाले राज्यों की तुलना में ज्यादा जंगल बचे हुए हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भारत को बाढ़ के खतरे का लगातार सामना करना पड़ रहा है, जिससे कई राज्यों में लाखों लोगों प्रभावित होते हैं।अध्ययन में कहा गया है, "वन क्षेत्र की हानि से पारिस्थितिकी तंत्र, मानव आवास और विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को बाढ़ और अन्य संबंधित प्राकृतिक आपदाओं जैसे चरम मौसम की घटनाओं का सामना करना पड़ता है।"

बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्य

Source: Forest cover change and land hazards in India

Note: These figures are average over the period 1998-2011.

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि अधिक साक्षरता बाढ़ से संबंधित क्षति को कम कर सकती है, क्योंकि साक्षर लोगों को बाढ़ के लिए बेहतर ढंग से तैयार होने लिए अधिक जानकारी मिलती है।

इसके अलावा, राज्य की बेहतर अर्थव्यवस्था (जैसा कि प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में मापा जाता है), बाढ़ की स्थिति के अनुकूल होने का बड़ा मौका देती है।

ये निष्कर्ष वैश्विक स्तर पर कई अध्ययनों के परिणामों के अनुरूप हैं, जिसमें पाया गया है कि वनों की कटाई से बाढ़ के रूप में गंभीर नुकसान हो सकते हैं, खासकर विकासशील देशों में। उदाहरण के लिए, सिंगापुर के ‘नेशनल यूनिवर्सिटी’ और ऑस्ट्रेलिया के ‘चार्ल्स डार्विन यूनिवर्सिटी’ के शोधकर्ताओं ने 2007 के इस अध्ययन से 56 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें यह पाया गया कि विकासशील देशों में बाढ़ के खतरे और गंभीरता से जंगलों का सकारात्मक संबंध है।

अध्ययन मानव कल्याण के लिए वन संरक्षण के महत्व को पुष्ट करता है, और यह सुझाव देता है कि फिर से वनों की कटाई बाढ़ से संबंधित आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता को कम करने में मदद कर सकती है।

इस वर्ष की बाढ़ के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार, गुजरात और उत्तर-पूर्वी राज्यों में बाढ़ राहत के लिए धन की घोषणा की है। हालांकि, भारत को बाढ़ से राहत और अनुकूलन के लिए अपना ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जैसा कि अध्ययन के प्रमुख लेखक और आईआईटी खड़गपुर में पीएचडी स्कॉलर, कस्तूरी भट्टाचार्जी ने इंडियास्पेंड को बताया है।

वह कहती हैं, " संरचनात्मक उपायों में से ज्यादातर अतीत में असफल रहे हैं। गैर-संरचनात्मक उपायों जैसे वनीकरण ड्राइव का उपयोग करके बाढ़ का लचीलापन / अनुकूली क्षमता बढ़ाना एक रास्ता है। पेड़ों की रोपाई न केवल बाढ़ के नुकसान को रोकेगी, बल्कि बदले में पास के जंगल क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका का समर्थन भी करेंगे। "

अध्ययन में जलवायु चरम सीमाओं की बढ़ती आवृत्ति के चेहरे में जंगलों के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। चूंकि वन कवर बाढ़ के नुकसान की सीमा का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है, यह जरूरी है कि जंगल के पुनर्जनन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए रणनीति तैयार की जाए, खासकर बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में।

निष्कर्षों में भारत, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई दक्षिण एशियाई देशों के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थ हैं, जिनके एक समान कृषि-जलवायु, पारिस्थितिकी, स्थलाकृतिक, सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय विशेषताएं हैं।

जुलाई 2016 में, भारत ने मुआवजे के वनीकरण निधि अधिनियम को अधिनियमित किया, जिसमें भारत के वन विस्तार को 21.34 फीसदी से 33 फीसदी तक बढ़ाने के लिए 41,000 करोड़ रुपए (6.2 बिलियन डॉलर) खर्च करने की योजना थी। इस अधिनियम में यह कहा गया है कि ज्यादातर वन्य गतिविधियां आदिवासी-दलित और पिछड़े क्षेत्रों में होंगे ताकि रोजगार पैदा हो सके। वनीकरण निश्चित रूप से लकड़ी और अन्य वन उत्पादों की उपलब्धता में सुधार करेगा, इस प्रकार वन-आश्रित समुदायों के समग्र जीवन स्तर को सुधारने में मदद करेगा। पर्यावरण मंत्रालय, वन और जलवायु परिवर्तन ने जनवरी 2018 तक अधिनियम लागू करने के लिए राज्यसभा की समिति से नियमों को फ़्रेम करने के लिए समय मांगा है, जैसा कि 20 सितंबर 2017 की रिपोर्ट में ‘डाउन टू अर्थ’ मैगजीन ने बताया है।

‘प्रतिपूरक वनीकरण’ कृषि प्रयोजनों के लिए जंगलों को काटने के लिए वृक्षारोपण को दर्शाता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह एक अवैज्ञानिक और दोषपूर्ण अवधारणा है, क्योंकि पेड़ों के कटाव से पारिस्थितिक तंत्र का पतन भी होता है। पुणे विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान में पीएचडी स्कॉलर समरपिता रॉय ने 3 जून, 2016 को इंडियास्पेंड में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था कि फिर से पेड़ लगाना वनस्पतियों और जीवों की मूल संरचना को बहाल करने में विफल रहता है।

आईआईटी खड़गपुर की भट्टाचार्जी इससे सहमत हैं। वे कहते हैं, “प्रतिपूर्ति वनीकरण आवश्यक है, लेकिन बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।” उन्होंने कहा वनीकरण के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र का रखरखाव भी होना चाहिए। वह कहती हैं कि जंगल मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता बढ़ाने में मदद करता है और रन-ऑफ को कम करते हैं, जिससे बाढ़ की घटनाओं और परिणामी क्षति को कम करने में मदद मिलती है।

इसके अतिरिक्त, ऐसे पेड़ लगाने से जो फल और अन्य उपज देते हैं,लोगों को आर्थिक लाभ भी देते हैं। भट्टाचार्जी ने कहा, "हमें जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है कि वन पारिस्थितिकी तंत्र बाढ़ से पीड़ित कमजोर परिवारों के लिए एक जीवन रेखा है।"

ईशा फाउंडेशन के आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा ' रैली फॉर रिवर' शुरू करने के बाद से हाल ही में पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए पेड़ों को लगाने और बचाने पर बहस की शुरुआत हुई है। उनकी योजना है कि सभी नदियों के किनारे बांध के साथ एक किलोमीटर तक वृक्षों के बफर बनाए जाएं। यह नदियों को बचाने का सबसे आसान तरीका है, क्योंकि वृक्ष अधिक वर्षा में योगदान देते हैं, मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं । भूजल की भरपाई करते हैं।इससे नदियों को जीवन मिलता है। ये लाभ अतिरंजित हो सकते हैं, जैसा कि ‘द वायर’ ने 8 सितंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। जिसमें कहा गया है कि इस परियोजना में नदी के क्षरण के कई अन्य कारणों जैसे कि एक के बाद एक बांध, रेत खनन, प्रदूषण, नदी के बीच में जोड़ने और जलमार्ग निर्माण योजनाएं शामिल नहीं हैं।

हालांकि, आईआईटी खड़गपुर अध्ययन ने वनों के बाढ़-शमन लाभ को निर्णायक रूप से सिद्ध किया है। अच्छी खबर यह है कि वर्ष 2005 में भारत के वनों का भौगोलिक क्षेत्र 20.6 फीसदी से बढ़कर 2015 में 21.34 फीसदी हो गया। पिछले दो साल से वर्ष 2015 तक, भारत के कुल वनक्षेत्र में 3,775 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई ( मुबंई के आकार से छह गुना ज्यादा ), जैसा कि इंडियास्पेंड ने 27 जुलाई, 2017 की अपनी रिपोर्ट में बताया है।

(साहा, यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के इंस्टीट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज में एमए जेंडर एंड डिवेलपमेंट के छात्र हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 22 सितंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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