वास्तविक आय में सुधार होने से, किसानों के बच्चों के द्वारा खेती करने की संभावना कम
बेंगलुरू: हालांकि, पिछले सात वर्षों से 2012 तक, देश भर में आय की गतिशीलता में सुधार हुआ है, लेकिन यह प्रगति राज्यों के बीच असमान रही,जबकि कम उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों के बच्चों के द्वारा अपने पिता की ही तरह वही पेशा चुनने की संभावना में गिरावट हुई है, जैसा कि आर्थिक गतिशीलता पर जनवरी 2019 के एक अध्ययन में उल्लेख किया गया है।
2005 की तुलना में 2012 में किसानों के बच्चों की खेती विकल्प चुनने की संभावना 21.1 प्रतिशत अंक कम थी। उनके वही काम करने की संभावना 32.4 फीसदी थी।अध्ययन के अनुसार, कृषि और अन्य मजदूरों के बच्चों में उनके पिता ही तरह पेशा चुनने की संभावना 4.1 प्रतिशत अंक कम थी, उनके बच्चों की वही काम करने की संभावना 58.6 फीसदी थी।
अध्ययन के सह-लेखक और जस्टजॉब्स नेटवर्क के रिसर्च एसोसिएट, दिव्य प्रकाश ने इंडियास्पेंड को बताया कि आजादी के बाद पहली बार, भारत ने कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में अधिशेष श्रम की एक तब्दीली देखी है, जैसा कि कृषि में रोजगार पूर्ण संख्या में गिर गया है। (https://www.indiaspend.com/category/indias-job-crisis/ पर भारत की बेरोजगारी संकट के बारे में और पढ़ें।)
कृषि में कम हुए रोजगार को काफी हद तक इस तथ्य से समझा जा सकता है कि अधिक युवा लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, और इसके साथ ही वह एक बेहतर नौकरी की उम्मीद करते हैं, जैसा कि अध्ययन की सह-लेखक और जस्टजॉब्स नेटवर्क की अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक सबीना दीवान ने इंडियास्पेंड से बातचीत में बताया। वह कहती हैं, "नौकरियों की गुणवत्ता उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी नौकरियों की संख्या।"
अध्ययन ने नौकरी की गुणवत्ता और आर्थिक गतिशीलता पर अंतर्राष्ट्रीय संवाद के विकास और नौकरी की गुणवत्ता पर संवाद में "लापता घटक" की जांच की है। इसने भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस-I) का उपयोग किया है, जिसमें 2004-2005 में आयोजित 41,554 परिवारों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि सर्वेक्षण किया गया है और आईएचडीएस-II (2011-12) का उपयोग किया है, जिसमें 83 फीसदी समान घरों का फिर से साक्षात्कार हुआ है।
अध्ययन में कहा गया है, "यह डेटासेट अध्ययन को एक अनूठा अवसर प्रदान करता है कि क्या 2005-2012 के दौरान आर्थिक गतिशीलता में सुधार हुआ है?"
किसानों के बच्चे कम अपना रहे हैं खेती का पेशा
बच्चों को उनके पिता के समान व्यवसाय अपनाने की संभावना को मापने वाले सूचकांक, इंटरजेनरेश्नल मोबिलिटी इंडेक्स ने दिखाया कि कृषि और अन्य मजदूरों के लिए संभावना में 62.7 फीसदी से 58.6 फीसदी तक गिरावट आई है और किसानों के लिए इन आंकड़ों में 53.5 फीसदी से 32.4 फीसदी तक की गिरावट हुई है।
प्रकाश कहते हैं, "2005-2012 के दौरान,आजादी के बाद के युग में, पहली बार भारत ने एक लुईसियन संरचनात्मक परिवर्तन देखा है। कृषि से गैर-कृषि क्षेत्र में अधिशेष श्रम की तब्दीली, जैसा कि कृषि क्षेत्र में रोजगार निरपेक्ष संख्या में गिर गया है। अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने वाले बच्चों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। ढेर सारे लोग कृषि या अन्य ग्रामीण श्रम और खेती से संबंधित व्यवसाय छोड़ गैर-कृषि क्षेत्र में जा रहे हैं।"
इसका मतलब यह है कि बच्चे कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में चले गए हैं,विशेष रूप से निर्माण श्रम में और इसकी वजह है उच्च मजदूरी ।उन्होंने कहा कि हालांकि, इंटरजेनरेश्नल आय गतिशीलता थी, दोनों व्यावसायिक समूहों के बच्चों - पिता के लिए, ऊपरी इंटरजेनरेश्ल व्यावसायिक गतिशीलता के लिए कोई सबूत नहीं था।
76 फीसदी किसान खेती के अलावा कुछ काम करना पसंद करेंगे और बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की सुविधा के कारण 61 फीसदी शहरों में नियोजित होना पसंद करेंगे, जैसा कि ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर ‘डाउन टू अर्थ’ ने 12 मार्च, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
भारत की तेजी से बढ़ती गिग इकॉनमी, जिसमें ऐप आधारित कैब सेवा और फूड डिलीवरी सेवाएं शामिल हैं, ढेर सारे ग्रामीण या अर्ध-शहरी घरों से आने वाले श्रमिकों को रोजगार देता है, उनमें से कई किसानों के बच्चे हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 4 जून, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
प्रकाश कहते हैं, “राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, 2004-05 और 2011-12 के बीच, ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की संख्या 1.9 करोड़ गिरकर 14.1 करोड़ हुई है।”
फिर भी, पेशेवरों (वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, शिक्षकों, न्यायविदों, आदि) के रूप में काम करने वाले लोगों की संख्या, जिनके माता-पिता कम-कुशल श्रमिक हैं (, बढ़ई, खनिक, पेंटर, आदि), उनमें 8 फीसदी की कमी हुई है, जबकि कम-कुशल व्यवसायों में उनकी हिस्सेदारी समान मात्रा में बढ़ी है।
इसका मतलब यह है कि "ऊपरी गतिशीलता के लिए अवसर कम हैं और (उन) पिछड़ी गतिशीलता के लिए बहुत अधिक हैं,” जैसा कि प्रकाश कहते हैं।उच्च जातियों और शहरी क्षेत्रों के व्यक्तियों में व्यवसाय और इसके विपरीत बढ़ने की संभावना अधिक होती है।
इस बीच, व्यवसायों और निम्न-कुशल व्यवसायों में अपने पिता का अनुसरण करने वालों की संख्या में क्रमशः 3.1 प्रतिशत अंक और 8.1 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।
2005 और 2012 के बीच वास्तविक आय में सुधार
2004-05 से 2011-12 की अवधि गैर-दिशात्मक आय गतिशीलता सूचकांक, जो आय परिवर्तन की मात्रा को मापता है, भारत के लिए समग्र रूप से 1.165 है, जबकि दिशात्मक गतिशीलता सूचकांक 0.949 है। दिशात्मक गतिशीलता के लिए सकारात्मक सूचकांक मूल्य का अर्थ है कि वास्तविक आय में वृद्धि हुई है, जो बेहतर आर्थिक कल्याण का संकेत देती है।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत में हर राज्य में सकारात्मक आय की गतिशीलता देखी गई है, हालांकि यह परिवर्तन ‘असमान’ रहा है। तमिलनाडु और मेघालय में उस क्रम में सबसे अधिक आय की गतिशीलता देखी गई है।
तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों -मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा- के लिए आय की गतिशीलता सकारात्मक थी, लेकिन परिमाण में कम था। प्रकाश ने कहा, “यहां परिवारों का समग्र अनुपात जिनकी घरेलू आय में गिरावट देखी गई, वृद्धि का अनुभव करने वाले परिवारों के अनुपात से अधिक था। यही कारण है कि समग्र आय गतिशीलता असमान थी। इन तीन राज्यों की कुल घरेलू आय 2005 की तुलना में 2012 में मामूली रूप से अधिक था।”
सूचकांकों के बीच का अंतर (0.216) दिखाता है कि ऐसे कई घर हैं, जिन्होंने अपनी वास्तविक आय में कमी देखी है ( मुद्रास्फीति के प्रभावों पर विचार करने के बाद आय )।सामाजिक समूहों के बीच, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के परिवारों में आय में सबसे अधिक वृद्धि होती है,इसके बाद अगड़ी जातियां, ब्राह्मण, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) परिवार के आय में वृद्धि देखी गई है।
एससी, एसटी और ओबीसी जैसे सीमांत जाति समूह राष्ट्रीय घरेलू आय से बहुत कम कमाते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 14 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
दीवान कहते हैं, फिर भी, वास्तविक रूप में, इन सामाजिक समूहों ने सात वर्षों में 2012 तक अपने आय स्तर में सुधार देखा, इससे पता चलता है कि असमानता व्यापक है, लेकिन अंतर कम हो रहा है।
(पालियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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