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17 जनवरी, 2016 को त्रिपुरा के धर्मनगर अस्पताल में नवजात शिशुओं को पोलियो ड्रॉप देती एक नर्स।

टीकाकरण के मामले में गुजरात की हालत बद्तर है। भारत के बड़े राज्यों में गुजरात में टीकाकरण होने वाले बच्चों की संख्या सबसे कम है। वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार करीब 50.4 फीसदी बच्चों का ही टीकाकरण हुआ है। भारत के इस चौथे सबसे समृद्ध राज्य (2013-14 के स्थिर मूल्यों) में प्रतिरक्षण दर देश के पिछड़े राज्यों से भी नीचे है। यहां बता दें कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश देश के पिछड़े राज्यों में शामिल हैं, जिन्हें सामुहिक रुप से बीमारु राज्य कहा जाता है।

हालांकि, पिछले एक दशक में गुजरात की टीकाकरण दर में 11.5 फीसदी की वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन यह अब भी 62 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से 11.6 फीसदी नीचे है। यह जानकारी वर्ष1991 से वर्ष 2015-16 तक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

वर्ष 2005-06 में राज्य 45.2 फीसदी टीकाकरण कवरेज के साथ भारत के 43.5 फीसदी के औसत से ऊपर था। हाल ही में, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, असम और मेघालय के साथ बीमारु राज्यों का टीकाकरण रिकॉर्ड देश भर में सबसे बद्तर था।

बीमारी और मृत्यु को रोकने के लिए टीकाकरण सबसे अधिक लागत प्रभावी तरीका माना जाता है। मार्च 2015 प्रेस सूचना ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक जिन बीमारियों को हम टीकाकरण द्वारा रोक सकते हैं, उन बीमारियों के कारण भारत हर साल दो वर्ष से कम आयु के 500,000 बच्चे खो देता है।

प्रतिरक्षण कवरेज में रुझान

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Source:National Family Health Survey

भारत भर में, पिछले 10 सालों में पोलियो, बीसीजी, डीपीटी, और खसरा टीकों के द्वारा पूर्ण प्रतिरक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या में 40 फीसदी वृद्धि हुई है। वर्ष 2005-06 में एनएफएचएस के तीसरे दौर में 43.5 फीसदी से चौथे दौर के दौरान 62 फीसदी हुआ है।

यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड में टीकाकरण कवरेज में महत्वपूर्ण वृद्धि के कारण हुआ है। वर्ष 2005-06 के सर्वेक्षण में, इन राज्यों में टीका लगाए गए बच्चों की संख्या निराशाजनक दर्ज की गई थी। इन राज्यों में क्रमश: 23 फीसदी, 26.5 फीसदी, 32.8 फीसदी और 34.8 फीसदी के आंकड़े दर्ज किए गए थे।

हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 122 फीसदी छलांग के साथ इन राज्यों में टीकाकरण कवरेज में 97.45 फीसदी का औसत सुधार देखा गया है और अब तक जनसंख्या का क्रमश: 51.1 फीसदी, 54.8 फीसदी, 61.7 फीसदी और 61.9 फीसदी तक पहुंचा है।

इसी अवधि के दौरान, मध्य प्रदेश में प्रतिरक्षित बच्चों के प्रतिशत में 33 फीसदी की धीमी गति से बढ़ोतरी देखी गई है।

तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तराखंड जैसे अन्य समृद्ध राज्यों में गिरावट

भारतीय राज्यों में, पंजाब, गोवा और पश्चिम बंगाल में 12 से 23 महीनों के बीच के बच्चों के प्रतिरक्षण की सबसे ज्यादा संख्या दर्ज की गई।

हालांकि वर्ष 2005-06 में पंजाब और गोवा में टीकाकरण में 16.6 फीसदी और 4.8 फीसदी की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि नवीनतम एनएफएचएस आंकड़ों के मुताबिक उनकी दर 48.3 फीसदी है।

बिमारु राज्यों में टीकाकरण में वृद्धि, समृद्ध राज्यों में गिरावट

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NOTE: *-Children between 12-23 months of age

Source:National Family Health Survey

भारत के सबसे समृद्ध राज्य महाराष्ट्र में वर्ष 2005-06 की तुलना में 2015-16 में टीका लगाए गए बच्चों की संख्या में 4.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। राज्य की स्थिति अब बिहार से भी बदतर है, जिसने इसी अवधि में 88.1 फीसदी की वृद्धि देखी है।

एनएफएचएस के तीसरे दौर (2005-06) में, तमिलनाडु का टीकाकरण दर सबसे ज्यादा दर्ज किया गया था। ये आंकड़े 80.9 फीसदी थे। वहीं इसी संबंध में एक दशक बाद राज्य में 13.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

वर्ष 2015-16 तक, दक्षिण के राज्यों में जहां देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, केवल 69.1 फीसदी बच्चों को टीका लगाया गया है।

वर्ष 2000 में नया राज्य बना उत्तराखंड। यहां भी पिछले एक दशक में 3.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। एक दशक पहले राज्य में 60 फीसदी टीकाकरण दर्ज किया गया था। हालांकि, राज्य सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी में कमी, और साक्षरता में उतराखंड अपने मूल राज्य से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने फरवरी 2017 में विस्तार से बताया है।

हिमाचल प्रदेश में भी टीकाकरण कवरेज में 6.3 फीसदी की गिरावट

हाल ही के सर्वेक्षण में भारत के उत्तर-पूर्व में बच्चों का कम प्रतिरक्षण हुआ है। प्रतिरक्षण के मामले में नागालैंड में सबसे कम प्रतिशत दर्ज किया गया है। लेकिन वर्ष 2005-06 के बाद से इस क्षेत्र के सात में से पांच राज्यों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं।

एक दशक पहले, 33 फीसदी के आंकड़ो के साथ मेघालय ने टीकाकरण कवरेज में 87 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। पूर्ण टीकाकरण प्राप्त करने वाले बच्चों का प्रतिशत नागालैंड में 70 फीसदी और असम में 50 फीसदी था।

भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों में टीकाकरण कवरेज

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NOTE: *-Children between 12-23 months of age

Source:National Family Health Survey

गरीब राज्यों पर फोकस से समृद्ध राज्यों में टीकाकरण में गिरावट

दिसंबर 2014 में मिशन इंद्रधनुश का शुभारंभ किया गया है। यह कार्यक्रम वर्तमान में दूसरे चरण में है। यह कार्यक्रम प्रति वर्ष 5 फीसदी तक प्रतिरक्षण बढ़ाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था। लक्ष्य है कि 2020 तक 90 फीसदी बच्चों को प्रतिरक्षित किया जाए।

मिशन के पहले चरण के दौरान सरकार ने, देश में सभी असंबद्ध या आंशिक रूप से टीका लगाए गए बच्चों के लगभग 50 फीसदी पीएच के 201 "हाई फोकस" जिलों की पहचान की है। यह जानकारी वर्ष 2015 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में है।

इनमें से 82 जिले बीमारू राज्यों में स्थित हैं। बिहार में 14, मध्य प्रदेश में 15, राजस्थान में 9 और उत्तर प्रदेश में 44 जिले हैं, जहां 25 फीसदी निर्बाध या आंशिक रूप से टीका लगाए गए बच्चे रहते हैं।

टीकाकरण प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रगति का श्रेय इन राज्यों पर बढ़ते फोकस को दिया जा सकता है। लेकिन गरीब राज्यों पर फोकस से समृद्ध राज्य टीकाकरण में पिछड़ते गए।

कम प्रतिरक्षण के कारण: जागरुकता, विश्वास और समय की कमी

पूरे भारत में आंशिक या कोई प्रतिरक्षण न होने के पीछे कई कारण हैं, लेकिन इनमें से सबसे आम कारण कुछ ऐसे हैं। आवश्यकता के संबंध में आश्वस्त नहीं होना (28 फीसदी) और जागरूकता की कमी (26 फीसदी), जैसा कि मिशन इंद्रधनुष के इस फैक्टशीट से पता चलता है।

यह गुजरात के निष्कर्षों में भी परिलक्षित होता है, जहां टीके की आवश्यकता महसूस न होना (22.3 फीसदी) और टीके के संबंध में कम जागरुकता ( 15.5 फीसदी ) कम प्रतिरक्षण होने के दो महत्वपूर्ण कारण हैं। करीब 10.2 फीसदी इसे किसी की गलत सलाह मानते हैं, जबकि 8.1 फीसदी ने महसूस किया कि "समय सुविधाजनक नहीं था"।

अन्य प्राथमिक कारणों के अलावा महाराष्ट्र में ‘समय सुविधाजनक नहीं’ (15.2 फीसदी) और ‘टीका देने की जगह के संबंध में जागरुकता की कमी’ कम टीकाकरण कवरेज के बड़े कारण हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में जहां टीकाकरण कवरेज विशेष रूप से कम है, औसतन 44.9 फीसदी लोगों ने बच्चों का टीकाकरण न कराने की आवश्यकता महसूस की है।

इसके अलावा, पूर्ण टीकाकरण अधिक जटिल है, क्योंकि इसमें समय-समय पर खुराक प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। अपनी आबादी के प्रतिरक्षण के संबंध में गुजरात के खराब प्रदर्शन के संभावित कारणों में स्वास्थ्य संस्थानों की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार तो हो ही सकता है। इसके अलावा नियमित रूप से जांच-पड़ताल और देखभाल प्रदान करने स्वास्थ्य कर्मियों की कम कुशलता और असक्षमता भी कारण हो सकते हैं। इन वजहों से यह राज्य दूसरे राज्यों से पिछड़ गया। इस बारे में ‘द इकोनोमिस्ट’ ने वर्ष 2015 की इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

रिपोर्ट कहती है, “एकमुश्त टीके लगाने के लिए लघु अभियान अलग बात है, लेकिन स्वास्थ्य में निरंतर निवेश से पूर्ण प्रतिरक्षण में दीर्घकालिक सुधार प्राप्त करना जरूरी है। ”

(सलदनहा सहायक संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28 अप्रैल 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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