विश्व में गुरुग्राम सबसे प्रदूषित शहर, दक्षिण एशिया सबसे प्रदूषित क्षेत्र: नई रिपोर्ट
मुंबई: एनजीओ ‘ग्रीनपीस’ और वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता की जानकारी का एक ऑनलाइनएग्रीगेटर ‘आईक्यू एयर विज्युअल ’ द्वारा आज जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में सबसे उपर के 20 में से 15 प्रदूषित शहर भारत के हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में छह शहर ( गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, भिवाड़ी, दिल्ली और नोएडा ) शीर्ष 20 में लगभग आधे भारतीय शहरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 2018 में गुरुग्राम दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर रहा और 135.8 μg / m3 औसत दैनिक पीएम 2.5 का स्तर दर्ज करते हुए गाजियाबाद का स्थान इससे थोड़ा ही नीचे रहा और यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित 13 μg / m3 की सीमा से 13 गुना अधिक है।
पीएम 2.5 माइक्रोन तक के छोटे आकार के कण को संदर्भित करता है, और यह कण इतने छोटे हैं कि यह "मानव श्वसन प्रणाली द्वारा शरीर में प्रवेश करता है।" इससे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। पीएम 2.5 को मनुष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है, जो संभावित रूप से हृदय और श्वसन संबंधी बीमारी और कैंसर का कारण बनता है।
दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारतीय राज्यों का स्थान ऊपर
Source: 2018 World Air Quality Report
हालांकि दिल्ली "आमतौर पर दुनिया के सबसे प्रदूषित स्थानों एक के रूप में सबसे अधिक मीडिया में चर्चा में रहती है।" उत्तर भारत और पाकिस्तान के अन्य शहरों में उच्च वार्षिक औसत पीएम 2.5 का स्तर दर्ज किया गया है, जैसा कि रिपोर्ट कहती है। पटना (7 वें) और लखनऊ (9 वें) दोनों, एनसीआर के बाहर है और राजधानी से उच्च रैंकिंग रखते हैं, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में स्पष्ट रूप से कम ध्यान प्राप्त करते हैं। इससे साफ है कि अन्य वायु प्रदूषण वाले जगहों पर हमारा ध्यान नहीं जाता है।
दरअसल, महाराष्ट्र में मुंबई के पास ठाणे में 5 मार्च, 2019 को देश में सबसे खराब हवा की गुणवत्ता दर्ज की गई है, जैसा कि वास्तविक समय में वैश्विक और अति-स्थानीय वायु गुणवत्ता की जानकारी के लिए एक केंद्रीकृत मंच ‘आईक्यू एयर विज़ुअल वेबसाइट’ ( जिसका उपयोग रिपोर्ट को संकलित करने के लिए किया गया था ) कहती है। शहर ने अमेरिकी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पैमाने पर "खतरनाक" 354 का आंकड़ा दर्ज किया, जो स्वास्थ्य जोखिमों को संप्रेषित करने के लिए 0-500 के बीच रंग-कोडित पैमाने का उपयोग करता है।
Source: airvisual.com/india
250 μ g / m3 से ऊपर पीएम 2.5 का स्तर या डब्लूएचओ स्तर से 25 गुना अधिक, 300+, बैंगनी और 'खतरनाक' श्रेणी में रखा गया है। इस स्तर पर सूचकांक चेतावनी देता है कि "आम जनता के लिए उच्च चिड़चिड़ापन और प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों का अनुभव करने के लिए उच्च जोखिम है। हर किसी को बाहरी गतिविधियों से बचना चाहिए। ”
यूएस एक्यूआई की ’अच्छी’ श्रेणी, डब्लूएचओ मानक के 10 μg / m3 की तुलना में पीएम 2.5 के थोड़े उच्च स्तर का उपयोग करती है ( 12 μg / m3 पर )।
भारत को अधिक वायु गुणवत्ता निगरानी की आवश्यकता
ग्रीनपीस ईस्ट एशिया के प्रोग्राम मैनेजर नंदिकेश शिवलिंगम ने इंडियास्पेंड को बताया, "दिल्ली पर सभी का ध्यान आकर्षित हो रहा है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है और जो कहानी हम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 2015 में, देश भर में मुश्किल से 38 निगरानी स्टेशन थे, लेकिन यह आंकड़ा अब बढ़कर 120 से 130 के बीच हो गया है, इसलिए अब अधिक डेटा सामने आ रहे हैं। "
जनवरी में सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम)शुरू किया, जो देश की निगरानी क्षमता को और बढ़ाने का इरादा रखता है, शिवलिंगम ने कहा, "इस तरह की पहल के साथ, स्थिति की राष्ट्रीय जागरूकता बढ़ रही है।"
10 में से आठ भारतीय शहरों में रहने वाले लोग वर्तमान में जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं, जबकि आधे अरब लोग उन जिलों में रहते हैं जहां वायु गुणवत्ता के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने फरवरी 2018 में रिपोर्ट किया है। वर्तमान अनुमानों से पता चलता है कि 2017 में भारत में होने वाली कुल 12.4 लाख मौतों में से हर आठ मौतों में से एक में वायु प्रदूषण की वजह से हुई है। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया के कार्यकारी निदेशक, यैब सानो ने कहा, "वायु प्रदूषण हमारी आजीविका और हमारे भविष्य को चुराता है, लेकिन हम इसे बदल सकते हैं। मानव जीवन के अलावा, खोए हुए श्रम में 22500 करोड़ डॉलर और चिकित्सा लागतों में खरबों अनुमानित वैश्विक लागत है।"
उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि यह रिपोर्ट लोगों के हवा में सांस लेने के बारे में सोचें। क्योंकि जब हम अपने जीवन पर वायु की गुणवत्ता के प्रभाव को समझते हैं, तो हम सबसे महत्वपूर्ण बात की रक्षा के लिए कार्य करेंगे।"
उच्चतम औसत पीएम 2.5 का स्तर दक्षिण एशिया में अत्यधिक पाया गया
20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 18 भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, में पाए जाने के साथ, रिपोर्ट में निर्धारित आंकड़ों से एक दक्षिण एशियाई वायु गुणवत्ता संकट के प्रमाण सामने आए हैं। दिल्ली दक्षिण एशिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है, जहां औसत वार्षिक पीएम 2.5 की मात्रा 114 μg / m3 है, इसके बाद ढाका 97 μg / m3 है, दोनों मानमा, बहरीन में 50 फीसदी से अधिक के स्तर पर हैं, जो इस क्षेत्र के बाहर सबसे प्रदूषित राजधानी है। रिपोर्ट में कहा गया है, "वाहनों से उत्सर्जन, खुली फसल और बायोमास जलना, औद्योगिक उत्सर्जन और कोयला दहन" इस क्षेत्र के उच्च पीएम 2.5 स्तरों के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
औसत वार्षिक पीएम 2.5 एकाग्रता अनुसार विश्व क्षेत्रीय राजधानी सिटी रैंकिंग
Source: 2018 World Air Quality Report
Figures in (μg/m3)
जबकि एशिया और मध्य पूर्व के देश रैंकिंग में सबसे ऊपर हैं, "62 क्षेत्रीय राजधानियों में से केवल 9 में वार्षिक औसत पीएम 2.5 स्तर है, जो कि 10 μg / m3 के डब्लूएचओ वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश के भीतर है।" यह दर्शाता है कि वैश्विक आबादी का अधिकांश हिस्सा असुरक्षित हवा में सांस ले रहा है।
हालांकि, आंकड़ों की एक कमी, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीकी देशों से होने का मतलब है कि कई आबादी वाले क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता की जानकारी की अभी भी कमी है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। हालांकि यह जानकारी न केवल वायु प्रदूषण पर एक वैश्विक तस्वीर बनाने के लिए जरूरी है, मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए आबादी को सशक्त बनाने" के लिए भी आवश्यक है।
अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में वायु-निगरानी स्टेशनों की महत्वपूर्ण आवश्यकता
Source: 2018 World Air Quality Report
Note: Blue dots indicate government stations and red dots indicate data from independently operated air monitors used in the report.
चीन की सफलताएं भारत को आगे का रास्ता दिखा सकती हैं
दुनिया में "सबसे व्यापक वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रमों " के साथ, जो वास्तविक समय की वायु गुणवत्ता की जानकारी प्रदान करता है, चीन अपने प्रमुख शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए " अग्रणी" माना जाता है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
2017 से 2018 के बीच चीन के शहरों में औसत पीएम 2.5 की सघनता 12 फीसदी तक गिर गई। यह एक ऐसे देश द्वारा की गई प्रगति है, जो घने स्मॉग के लिए लगातार वैश्विक सुर्खियां बटोर रहा था और एक्यूआई रीडिंग को आगे बढ़ा रहा था।
भारत का ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ (एनसीएपी), जो पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस वर्ष के आरंभ में शुरु किया गया था, में ‘देश भर में वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाने और जागरूकता और क्षमता निर्माण गतिविधियों को मजबूत करने’ के लिए एक समान पहल शामिल है। यह योजना केंद्र सरकार द्वारा देश की अत्यधिक दिखाई देने वाली और बिगड़ती वायु गुणवत्ता के लिए एक बहुप्रतीक्षित प्रतिक्रिया थी, और इसका लक्ष्य 2024 तक पीएम 2.5 और पीएम 10 एकाग्रता को 20-30 फीसदी तक कम करना था।
शिवलिंगम कहते हैं, "एक स्पष्ट बात यह है कि चीन लगभग पांच वर्षों में यह करने में सक्षम था, और जिसमें सबसे पहले बिजली क्षेत्र से उत्सर्जन को कम करना था। भारत के पास एक ही मुद्दे हैं और अब इन क्षेत्रों को देखने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे एनसीएपी में निर्धारित नियमों का पालन करें।"
“हालांकि, भारत में कार्यान्वयन हमेशा समस्या है”, शिवलिंगम कहते हैं, “इसलिए जब एनसीएपी में निहित पहल का मतलब है कि हम प्रगति के लिए आशावादी हैं, तो उन्हें जमीन पर कार्रवाई के साथ वापस आना होगा। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि योजना कितनी अच्छी तरह लागू हो रही है, इसलिए हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा।”
हालांकि, एनसीएपी शुरुआती लाइन से ठीक नीचे ठोकर खा रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 6 फरवरी, 2019 को रिपोर्ट किया था, क्योंकि इसमें कानूनी जनादेश का अभाव है, इसकी कार्य योजना के लिए स्पष्ट समय सीमा नहीं है, और यह विफलता के लिए जवाबदेही तय नहीं करता है।
ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक सुनील दहिया ने कहा, '' चीनी योजना के कुछ महत्वपूर्ण पहलू थे, जबकि अभी भी हमारे ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ में कार्यान्वयन और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक कठोर कानूनी ढांचा गायब है।
दहिया ने कहा कि इन कदमों को एनसीएपी में शामिल किया जाना है, यदि भारत को सांस लेने योग्य वायु की गुणवत्ता की ओर बढ़ना है।
( संघेरा लेखक और शोधकर्ता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 5 मार्च 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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