विषाक्त हवा फेफड़ों के कैंसर का बड़ा कारण
मुंबई: भारत में फेफड़ों के कैंसर रोगियों में धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वालों की समान संख्या है। यह जानकारी भारत में फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी संगठन, ‘लंग केयर फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।
नई दिल्ली के ‘सर गंगा राम अस्पताल’ (एसजीआरएच), में 150 रोगियों के विश्लेषण में पाया गया कि फेफड़ों के कैंसर वाले 50 फीसदी रोगियों ( देश भर में कैंसर की मौत की सबसे ज्यादा संख्या के लिए जिम्मेदार कैंसर का प्रकार ) ने कभी धूम्रपान नहीं किया है और फिर भी उनमें फुफ्फुसीय बीमारी विकसित हुई थी।
भारत में स्वास्थ्य पेशेवरों का मानना है कि ठोस सबूत हैं, जिसमें युवाओं और महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती घटनाओं के पीछे वायु प्रदूषण को जिम्मेदार पाया गया है।
नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में ‘ सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी’ के चेयरमैन अरविंद कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया, "यह पहली बार है जब मैंने फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त रोगियों में धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वालों का 1:1 का बराबर अनुपात देखा है। इस डेटा को देखते हुए, दिमाग में आने वाला स्पष्ट कारण वायु प्रदूषण है, जिसमें धुआं और पीएम 2.5 है। "
पीएम 2.5 का आकार 2.5 माइक्रोन से कम है, जो मानव बाल से 30 गुना अधिक बारीक है जो गहराई से श्वास लेते समय फेफड़ों में आसानी से जाता है और कैंसर, कार्डियोवैस्कुलर और श्वसन रोगों का कारण बनता है।
विश्व स्वास्थ संगठन के अंग ‘ इंटरनेश्नल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (आईएआरसी) द्वारा 2013 में बाहरी प्रदूषण को कैंसर पैदा करने वाले एजेंट के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
नवंबर 2017 में, दिल्ली में ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की गई थी, जैसा कि वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 का उल्लंघन हुआ था, जो एक दिन में 50 सिगरेट धूम्रपान करने के बराबर है।
वर्तमान में, भारत में, प्रति 1,000 मौतों में से पांच मौत फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है ( दिल्ली में प्रति 1,000 पर सात, एक ऐसा महानगर जो नियमित रूप से वायु प्रदूषण के उच्च स्तर का अनुभव करता है) और पांच साल से अधिक जीवित रहने की दर के साथ है।
श्वसन और फेफड़ों के स्वास्थ्य को पारंपरिक रूप से तंबाकू और तम्बाकू से संबंधित उत्पादों के सेवन से जोड़कर हम सब देखने के आधि थे, अब चिकित्सा शोधकर्ताओं और स्वास्थ्य श्रमिकों के लिए ‘वायु प्रदूषण का प्रभाव’ ध्यान के केंद्र बन गए हैं। जनता के बीच स्वास्थ्य खतरों के बारे में जागरूकता भी बढ़ी है।
2013 में, चीन में रहने वाली एक आठ साल की लड़की के फेंफड़ों के कैंसर का निदान किया गया था। प्रदूषित हवा के संपर्क के परिणामस्वरूप, फेंफड़ों के कैंसर से पीड़ित होने वाली यह बच्ची संभावित रूप से विश्व की सबसे कम उम्र की लड़की थी, जिसके लंग्स कैंसर का निदान किया गया था।
रोगियों की उम्र कम, अधिक महिलाएं और गैर धूम्रपान करने वाले
‘ लंग केयर फाउंडेशन’ के अध्ययन के मुताबिक, “फेंफड़ों का कैंसर अब एक धूम्रपान से जुड़ी बीमारी नहीं रही है और न ही इसमें पुरुषों की संख्या ज्यादा है।"
2018 के अध्ययन में पाया गया कि लगभग 21 फीसदी रोगियों की उम्र 50 साल से कम थी। इस समूह में, 31 में से 5 रोगी 21 से 30 वर्ष के बीच थे, जो कुल रोगी समूह का 3.3 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते थे।
70 साल पहले से इसकी तुलना करें तो, 1955-59 के बीच 15 शिक्षण अस्पतालों में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 30 वर्ष से कम उम्र के कैंसर रोगियों का अनुपात 2.5 फीसदी था।
भारत में 15 शिक्षण अस्पतालों में फेफड़ों के कैंसर की घटनाएं (1955-59)
Source: Incidence of Primary Lung Cancer in India and Lung Care Foundation Study
सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़ों के कैंसर की घटनाएं (2012-18)
Source: Incidence of Primary Lung Cancer in India and Lung Care Foundation Study
फेफड़ों का कैंसर आमतौर पर पुराने रोगियों से जुड़ा होता है, जैसा कि सिगरेट में पाए जाने वाले हानिकारक रसायनों में समय के साथ सेलुलर डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे शरीर की कैंसर कोशिकाओं के गठन को रोकने की क्षमता कम हो जाती है। अमेरिका में, सभी फेफड़ों के कैंसर रोगियों में से 82 फीसदी 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं और अधिकांश रोग के चरण III या IV में निदान किए जाते हैं।
बीमारी से ग्रसित महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है। फेफड़ों के कैंसर रोगियों में पुरुष से महिला अनुपात 1958-85 के बीच 6.7:1 से बढ़कर 2012-18 के बीच 3.8:1 हो गया है।
2012 में, वाशिंगटन विश्वविद्यालय में ‘इन्स्टिटूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड एवोल्युशन’ (आईएचएमई) के अध्ययन के मुताबिक 2012 में 3.2 फीसदी महिलाएं धूम्रपान करती थी, जबकि पुरुषों की संख्या 23 फीसदी थी। महिलाओं की काम के माहौल के संपर्क में आने की भी संभावना कम है, जो खानों और निर्माण स्थलों जैसे कैंसर के विकास की संभावनाओं को बढ़ा सकता है।
तीन अध्ययनों के अनुसार लिंग अनुसार फेफड़ों के कैंसर की घटनाएं
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Incidence of Lung Cancer By Gender According To Three Studies | |
---|---|
Year | Ratio (Male : Female) |
1950 - 1959 | 6.7 : 1 |
1986 - 2001 | 5.8 : 1 |
2012 - 2018 | 3.8 : 1 |
Source: Incidence of Primary Lung Cancer in India, Lung Cancer in India and Lung Care Foundation Study
फेफड़ों के कैंसर से पीड़ितों में गैर धूम्रपान करने वालों की बढ़ती संख्या , एक और 'परेशान करने वाली' बात है, जो तंबाकू धूम्रपान के प्राथमिक कारण होने से परे कारकों को इंगित करता है।
सर्वेक्षण किए गए कुल 150 मरीजों में से 50 फीसदी या 74 गैर- धूम्रपान करने वाले थे (जिसका अर्थ है कि उन्होंने कभी भी अपने जीवन में धूम्रपान नहीं किया था)। गैर-धूम्रपान करने वालों का अनुपात युवा आयु वर्ग (यानी 50 वर्ष से कम ) के बीच 70 फीसदी तक बढ़ गया है।
गैर धूम्रपान करने वालों के बीच फेफड़ों के कैंसर से विस्तार पर किए गए अध्ययन में जो कारण सामने आए, उनमें भारी वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारकों के अलावा, खनन से जुड़े विकिरण और एस्बेस्टोस और व्यावसायिक खतरों के संपर्क होना शामिल है।
स्वस्थ और रोगग्रस्त फेफड़ों की छवियों की तुलना। सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली में सर्वेक्षण किए गए 150 फेफड़ों के कैंसर रोगियों में से 74 गैर धूम्रपान करने वाले थे।
वायु प्रदूषण भी बड़ा कारण
एडेनो कार्सिनोमा (80) की तुलना में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (59) से ग्रस्त मरीजों की निचली संख्या फेफड़ों के कैंसर और प्रदूषित हवा के बीच के लिंक का एक और संकेत है।
कुमार कहते हैं, "आम तौर पर धूम्रपान स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा बनने का कारण होता है, लेकिन अब हम ज्यादातर एडेनो कार्सिनोमा वाली महिलाओं और युवाओं में वृद्धि देखते हैं और इससे पता चलता है कि उनके मामले धूम्रपान से संबंधित नहीं हैं, बल्कि प्रदूषण से संबंधित हैं।”
एसजीआरएच रोगियों में पाए गए कैंसर के प्रकार
एडेनो कार्सिनोमा (एसी) गैर धूम्रपान करने वालों के बीच कैंसर का सबसे आम रूप है और परिवेश में पीएम 2.5 के बढ़ते स्तर से जुड़े हुए साबित हुए हैं, जैसा कि यूरोपीयन रेसपिरेट्री जर्नल के 2016 के इस पेपर से पता चलता है।
पीएम 2.5 के उच्च 24 घंटे के औसत स्तर अब राष्ट्रीय राजधानी के लिए साल भर की समस्या है, जिसमें निवासियों ने मार्च-मई 2018 के बीच अच्छी एक भी दिन गुणवत्ता वाली हवा का अनुभव किया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जून 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
रोकथाम और समाधान
अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि 20-30 आयु वर्ग के बीच फेफड़ों के कैंसर के बढ़े स्तर और आर्डेनो कार्सिनोजेनिक पैथोलॉजी का उच्च प्रसार, एक उभरते महामारी की ओर इशारा करते हैं।
ट्यूबरकुलोसिस के रूप में देर से पता लगने और गलत निदान इस स्थिति को और आगे बढ़ा रहे हैं।
हालांकि, रोकथाम और प्रारंभिक पहचान संभव है। वर्तमान में चरण III और IV में 70-80 फीसदी रोगियों का निदान किया जाता है, और स्वास्थ्य पेशेवर इसके बजाय चरण 1 में होने वाली अधिक स्क्रीनिंग और निदान की मांग कर रहे हैं।
कैंसर का 'स्टेज' इसका आकार और उस सीमा तक संदर्भित करता है जिस पर यह फैल गया है, और यह उपचार के स्तर को निर्धारित करने में मदद करता है।चरण 1 में, कैंसर 3-4 सेमी के बीच होता है, जो चरण 2 पर 5 सेमी तक बढ़ता है। चरण 3 से, कैंसर लिम्फ नोड्स (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया समारोह के लिए महत्वपूर्ण) में फैलना शुरू होता है और चरण 4 पर, कैंसर हो सकता है दोनों फेफड़ों में मौजूद हो या शरीर के अन्य अंगों में फैल गया हो।
वायु प्रदूषण के स्तर में कमी स्वास्थ्य प्रचारकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण बात है, जो उम्मीद करते हैं कि स्वास्थ्य जोखिमों पर अतिरिक्त डेटा नीति निर्माताओं को इस मुद्दे को और अधिक बारीकी से देखने में मदद करेगा।
कुमार कहते हैं, "हमें आशा है कि इस तरह के अध्ययन हमें सरकार में जाने में मदद करेंगे और उन्हें विश्वास दिलाएंगे कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति है। हम लोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे लोगों में जागरूकता आ रही है। अगर लोग अपने स्वास्थ्य के बारे में जागरूक हो जाते हैं और सही हवा के रूप में स्वच्छ हवा की मांग करते हैं, तो यह सरकार के लिए प्राथमिकता क्षेत्र बन जाएगा।"
दिवाली के दौरान, पटाखों पर ( जो पीएम 2.5 उत्सर्जित करता है और हवा में प्रदूषण के भारी स्तरों में योगदान देता है ) प्रतिबंध लगाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 1 अगस्त, 2018 को ‘वर्ल्ड लंग कैंसर डे’ पर हुई थी।
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल, में गैर धूम्रपान करने वाले फेफड़ों के कैंसर रोगी में काले फेफड़ों की छवियों को कुमार द्वारा दिखाया गया है कि कैसे युवा फेफड़ों में धूम्रपान करने वालों जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है।
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल, में गैर धूम्रपान करने वाले और फेफड़ों के कैंसर रोगी में काले फेफड़ों की छवियों को कुमार द्वारा दिखाया गया है कि कैसे युवा फेफड़ों में धूम्रपान करने वालों जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है।
प्रतिबंध का विरोध पटाखा निर्माताओं की तरफ से आया था, जो मानते हैं कि वायु गुणवत्ता और फेफड़ों के स्वास्थ्य पर असर उतना गंभीर नहीं है, जितना बताया जा रहा है। कार और निर्माण उद्योगों को भी उनके उत्सर्जन के लिए जिम्मेदारी लेनी चाहिए। मामला अब 8 अगस्त, 2018 को दलीलें समाप्त करने के लिए सूचीबद्ध है।
2016 के दिवाली सप्ताहांत में, भारत की वायु गुणवत्ता दुनिया भर में सबसे खराब थी और पिछले साल, इसी समय की तुलना में, पांच उत्तर भारतीय शहरों में 40 फीसदी से 100 फीसदी बद्तर रही, जैसा कि राष्ट्रीय डेटा पर इंडियास्पेंड विश्लेषण और नवंबर 2016 में सेंसर के हमारे #Breathe नेटवर्क से पता चलता है।
(संघेरा, किंग्स कॉलेज लंदन के स्नातक हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 3 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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