व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता के संबंध में भारतीय ज्यादा सावधान: नया अध्ययन
उत्तराखंड में हमने सुलेखा ( बदला हुआ नाम ) से मुलाकात की। वह उन जानकारियों के संबंध में बात कर रही थी, जो उनके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) नौकरी कार्ड और उनका फोन नंबर। जब उनसे पूछा गया कि वे ये जानकारियां कितने में बेचेंगी, तो उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा कि उन्हें किसी पैसे की जरुरत नहीं है। उन्हें इस जानकारी को साझा करने के लिए किसी चीज की आवश्यकता होगी? सिर्फ एक गारंटी की कि इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा।
सुलेखा सर्वेक्षण किए गए 50 लोगों ( 30 पुरुष और 20 महिलाएं ) में से एक हैं। महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु और दिल्ली में एक गुणात्मक अध्ययन के भाग के रुप में यह सर्वेक्षण भारतीय नागरिकों की गोपनीयता और डेटा संरक्षण पर समझ और इस संबंध में वे कैसे काम करते हैं, यह समझने के लिए किया गया था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से उत्तरदाताओं की समान संख्या चुनी गई थी।
क्षेत्र में हमारी बातचीत से पता चला कि आम धारणा के विपरीत, भारत में लोग अपने व्यक्तिगत डेटा और गोपनीयता के बारे में ज्यादा ध्यान रखते हैं । लोगों ने अपनी व्यक्तिगत जानकारी को जिम्मेदारी से संभालने का दावा किया और एक ऐसी प्रणाली के लिए स्पष्ट और मजबूत वरीयताओं का संकेत दिया, जो उन्हें एजेंसी प्रदान करता है और अपने डेटा पर नियंत्रण करता है।
अध्ययन में मानव-केन्द्रित डिजाइन (एचसीडी) का इस्तेमाल किया गया। यह एक ऐसी विधि है जो न केवल यह अनुमान लगाती है लोग क्या कहते हैं, बल्कि यह भी पता लगाती है कि लोग क्या सोचते हैं, कार्य करते हैं और क्या महसूस करते हैं। यह अध्ययन दल्बर्ग डिजाइन और वित्तीय समावेशन के लिए एक वैश्विक भागीदारी ‘द कंस्लटेटिव ग्रूप टू एसिसट द पुअर’ की साझेदारी के साथ चेन्नई के दवारा रिसर्च में ‘फ्यूचर ऑफ फाइनेंस इनिशिएटिव ’ द्वारा आयोजित की गई थी।
एचसीसीआर अनुसंधान विभिन्न दृष्टिकोणों को इकट्ठा करने के लिए संदर्भ अवलोकन और गहराई से साक्षात्कार का उपयोग करता है, अक्सर ' अंतिम उपयोगकर्ताओं' की तलाश करते हैं जो कुछ ज़रूरतों का विस्तार करते हैं। हमने पाया कि, ये आवश्यकताएं अक्सर ऐसी जरुरतें हैं जिसका सामना व्यापक जनसंख्या करती है। उदाहरण के लिए, एक अनपढ़ व्यक्ति का साक्षात्कार करके, हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि सहमति को अधिक मौखिक, ग्राफिक या वीडियो-आधारित होना चाहिए और हमने पाया कि साक्षर भी ऐसे समाधानों का समर्थन करते हैं।
विचारों को समेकित करने के लिए, हमने विशिष्ट विषयों के तहत समान विचार / उद्धरण एकत्रित किए हैं। ये अंतर्दृष्टि का आधार बनाते हैं – ‘लोगों ने क्या कहा, उन्होंने विभिन्न गतिविधियों को कैसे जवाब दिया, आदि’। ये अंतर्दृष्टि अलग-अलग उद्धरणों, टिप्पणियों, विशेषज्ञ के विचारों और साहित्य आदि के संकलन हैं।
हमने बारीकियों को उजागर करने का भी ध्यान रखा है। उदाहरण के लिए, सभी ने इसे समान रूप से महत्व दिया है, और कुछ इसे सामान्य भले के लिए इस्तेमाल करने के लिए तैयार थे (जैसे डी-डुप्लेक्शन), दूसरों को लगा कि यह निगरानी का एक रूप हो सकता है।
परिणाम:
उत्तरदाता आश्चर्यचकित थे कि सेवा प्रदाता तृतीय पक्षों के साथ उनकी व्यक्तिगत जानकारी साझा कर सकते हैं। लोग अपने व्यक्तिगत डेटा जैसे फ़ोटो, संदेश और ब्राउज़िंग इतिहास साझा करने के बारे में भी संवेदनशील थे। ( अपने परिवार के साथ भी ) और कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा जैसे कि उनके टेलीफोन नंबर को बेचने के लिए तैयार नहीं थे।
यहां तक कि सेवा प्राप्त करने के लिए जिन डेटा को साझा करने के लिए तैयार थे, उनके लिए भी कुछ शर्तें थीं। लोग जानना चाहते थे कि उनके डेटा का संचालन किस तरह किया जा रहा है। सुलेखा की तरह वे भी प्रदाताओं से आश्वासन चाहते थे कि उनके डेटा के उपयोग के माध्यम से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।
कई साक्षात्कारकर्ताओं ने सेवा प्रदाताओं द्वारा डेटा साझा करने की शर्तों को समझने में उनकी अक्षमता को स्वीकार किया। वे सहमति के लिए अधिक विजुअल फार्म चाहते थे, ताकि वे दूसरों पर भरोसा किए बिना आसानी से समझ सकें।
अधिकांश साक्षात्कारकर्ताओं ने धोखाधड़ी का अनुभव किया था ( विशेषकर फोन प्रतिरूपणकर्ताओं के माध्यम से ) और यह नहीं पता था कि खुद को कैसे बचाया जाए या उनसे कैसे निपटा जाए। विशेष रुप से महिलाएं गंभीर नुकसान के लिए अत्यधिक संवेदनशील थीं और उन्होंने खुद को बचाने के लिए स्वंय का प्रयास शुरु ( उदाहरण के लिए, फोन नंबर या फोटो साझा न करके ) कर दिया है।
हालांकि अधिकांश साक्षात्कारों ने सरकार और उसके संस्थानों पर भरोसा किया, लेकिन निजी डेटा के साथ सरकारी संस्थानों में काम करने वाले लोग भरोसेमंद नहीं थे-जब तक कि कर्मचारी समान समुदाय समूह या भौगोलिक क्षेत्र से नहीं आए हों। बैंकों और मोबाइल नेटवर्क प्रदाताओं के एजेंटों ने भी व्यक्तिगत डेटा के अवैध खुलासे के आम अपराधियों के रूप में मान्यता प्राप्त किया है।
ऐसे मामलों में जहां डेटा उल्लंघनों के परिणामस्वरूप उन्हें नुकसान हो रहा था, उत्तरदाताओं को इसके निपटारे के लिए आसान पहुंच चाहिए और साथ ही वे पूरा मुआवजा भी चाहते हैं।
इस कहानी का एक संस्करण पहले यहां प्रकाशित हुआ था।
डाल्बर्ग,इंडिया से प्रीती राव के इनपुट के साथ
(चुघ, अग्रवाल और राघवन द्वार रिसर्च में फ्यूचर ऑफ फाइनेंस टीम का हिस्सा हैं।)
यह लेख अंग्रेजी में 15 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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