संदेह में सरकार का 100% स्कूल शौचालय निर्माण का दावा
विदिशा, मध्यप्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में दो नए शौचालय को निर्माण किया गया था लेकिन जल निकास की व्यवस्था नहीं होने के कारण पानी शौचालय के भीतर की जमा हो रहा है
नई दिल्ली: 12 वर्ष की सुनहरा संगम विहार के दक्षिण - पूर्वी इलाके में दिल्ली नगर निगम द्वारा चलाए जा रहे निगम प्रतिभा स्कूल की छात्रा है। चूंकि स्कूल में शौचालय की सुविधा नहीं है इसलिए सुनहरा को स्कूल के पास खुले में शौच जाना पड़ता है।
FactChecker से बात करते हुए सुनहरा ने बताया कि “मैंने स्कूल में दो या तीन बार ही शौचालय का इस्तेमाल किया है। दो या तीन लड़कियों के इस्तेमाल से ही टॉयलेट गंदा हो जाता है एवं दूसरों के इस्तेमाल करने लायक नहीं रहता। मुझे खुले में शौच जाना पसंद नहीं है। हम अब छोटे नहीं है...कई लोग हमें देखते हैं। ”
यह कहानी केवल सुनहरा की ही नहीं बल्कि भारतीय स्कूलों की 45 फीसदी लड़कियों की है। एजुकेशन रिपोर्ट ( एएसइआर ) की 2014 की वार्षिक स्थिति के अनुसार या तो लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है या फिर यदि शौचालय बने भी हैं तो इस्तेमाल करने योग्य नहीं हैं। इसलिए अधिकतर उन्हें खुले में ही शौच जाना पड़ता है। अंग्रेज़ी अखबार, द मिंट में छपे रिपोर्ट के अनुसार मध्य और उच्च विद्यालयों में शौचालय की कमी एवं ड्रॉप आउट दर के बीच गंभीर संबंध है।
15 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ विद्यालय अभियान की घोषणा करते हुए एक वर्ष के भीतर देश भर में 137.7 मिलियन लड़कें एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय निर्माण करने का वादा किया था।
इस वर्ष अपने भाषण में मोदी ने कहा “पिछले वर्ष यह ख्याल मेरे दिल में आया और मैंने इस वर्ष तक लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने की घोषणा कर दी। लेकिन बाद में जब “टीम इंडिया” ( सरकार ) ने इस दिशा में काम करना शुरु किया जो हमें ज़िम्मेदारियां समझ आई। हमने एहसास किया कि ऐसे 262,000 स्कूल हैं जहां 4,25,000 शौचालयों का निर्माण होना है। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि कोई भी सरकार निर्धारित समय सीमा को बढ़ाने पर विचार करेगी। लेकिन यह हमारी “टीम इंडिया” ही थी जिसने समय सीमा बढ़ाने की नहीं सोची। और आज मैं टीम इंडिया को सलाम करता हूं जिसने तिरंगे का मान रखते हुए, सपने को सकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आज “टीम इंडिया” अपने लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गया है। ”
मानव संसाधन विकास, नोडल मंत्रालय है ने अपने लक्ष्य को 100% प्राप्त कर लेने की घोषणा की है: देश भर में अब लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्री , स्मृति ईरानी , ने इस संबंध में ट्वीट किया है।
Today I express my gratitude to Team PMO, Cabinet Secretary, Team MHRD, all State Govts., PSUs n Organisations that helped us achieve (1/3)
— Smriti Z Irani (@smritiirani) August 15, 2015
(2/3) our target for Swachch Vidyalaya across all government schools in the country. 13.77 crore students in 11.2 lac schools now have .....
— Smriti Z Irani (@smritiirani) August 15, 2015
(3/3) 100 percent access to separate toilets for boys and girls. 4,17,796 toilets built in 1 year. Promise kept. Thank you Prime Minister.
— Smriti Z Irani (@smritiirani) August 15, 2015
List of approved toilets state-wise and completed | |||
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Serial No. | States/UTs | Approved | Completed |
1 | Andaman And Nicobar Islands | 71 | 71 |
2 | Andhra Pradesh | 49,293 | 49,293 |
3 | Arunachal Pradesh | 3,492 | 3,492 |
4 | Assam | 35,699 | 35,699 |
5 | Bihar | 56,912 | 56,912 |
6 | Chhattisgarh | 16,629 | 16,629 |
7 | Dadra And Nagar Haveli | 78 | 78 |
8 | Daman And Diu | 16 | 16 |
9 | Goa | 138 | 138 |
10 | Gujarat | 1,521 | 1,521 |
11 | Haryana | 1,843 | 1,843 |
12 | Himachal Pradesh | 1,175 | 1,175 |
13 | Jammu And Kashmir | 16,172 | 16,172 |
14 | Jharkhand | 15,795 | 15,795 |
15 | Karnataka | 649 | 649 |
16 | Kerala | 535 | 535 |
17 | Madhya Pradesh | 33,201 | 33,201 |
18 | Maharashtra | 5,586 | 5,586 |
19 | Manipur | 1,296 | 1,296 |
20 | Meghalaya | 8,944 | 8,944 |
21 | Mizoram | 1,261 | 1,261 |
22 | Nagaland | 666 | 666 |
23 | Odisha | 43,501 | 43,501 |
24 | Pondicherry | 2 | 2 |
25 | Punjab | 1,807 | 1,807 |
26 | Rajasthan | 12,083 | 12,083 |
27 | Sikkim | 88 | 88 |
28 | Tamil Nadu | 7,926 | 7,926 |
29 | Telangana | 36,159 | 36,159 |
30 | Tripura | 607 | 607 |
31 | Uttar Pradesh | 19,626 | 19,626 |
32 | Uttarakhand | 2,971 | 2,971 |
33 | West Bengal | 42,054 | 42,054 |
Total | 4,17,796 | 4,17,796 |
Source: Swachh Vidyalaya Abhiyan
शौचालय मिशन विफल होने के 5 कारण
FactChecker ने अपनी जांच में पाया कि सरकार द्वारा 100 फीसदी लक्ष्य प्राप्ति के दावे में कई संदेह हैं। यदि यादृच्छिक जाँच की जाए तो पता चलता है कि ऐसे कई विद्यालय अब भी हैं जहां शौचालय की सुविधा नहीं है।
हमारी जांच में मुख्य रुप से पांच बिंदु सामने आए हैं -
- सरकार का यह दावा कि हरेक स्कूल में लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय हैं सही नहीं है। हमनें शहरी दिल्ली से लेकर देश के पिछड़े इलाकों जैसे झारखंड का चतरा ज़िला, कर्नाटक का सेडन तालुका एवं गुलबर्गा ज़िला के जांच में पाया कि ऐसे कई सक्ल हैं जहां अब तक शौचालयों की सुविधा नहीं है।
- विदिशा (मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के निर्वाचन क्षेत्र ) , चतरा (झारखंड) और बारामूला (जम्मू और कश्मीर ) में नव निर्मित शौचालय इस्तेमाल करने योग्य नहीं हैं क्योंकि बनाने की जल्दी में जल निकासी पर ध्यान नहीं दिया गया है। बारामुला में ऐसी जगह पर एक शौचालय का निर्माण किया गया है जहां स्कूल ही नहीं है। एक वर्ष पहले की स्कूल का स्थान किसी दूसरे स्थान पर बदल दिया गया है लेकिन सिर्फ कागज पर काम दिखाने के लिए पहले वाले स्थान पर शौचालय का निर्माण कर दिया गया है।
- अभियान का उदेश्य 262,000 स्कूलों में 417,000 शौचालय या प्रति स्कूल 1.5 शौचालय का निर्माण करना है। इसका मतलब हुआ कि कुछ स्कूल में अधिक से अधिक दो और कुछ में एक शौचालय का निर्माण होना चाहिए। एक या दो शौचालय पर्याप्त नहीं हैं ( उदहारण के तौर पर पिलांगकट्टा, री भोई जिले , मेघालय में दो सरकारी स्कूलों के 250 से अधिक छात्रों हैं जहां केवल एक- एक शौचालय बनाए गए हैं , न हीं लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय की सुविधआ है एवं न ही पानी की पूरी व्यवस्था है। )
- बच्चों को शौचालय के इस्तेमाल करने की शिक्षा देने के बाद शौचालयों का निर्माण करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। अभियान के लक्ष्य को पूरा करने एवं शौचालयों के निर्माण में इतनी जल्दबाज़ी बर्ती गई है कि विभिन्न हितधारक मिशन के महत्व को पूरी तरह नज़रअंदाज करते पाए गए हैं।
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता, नलिन कोहली के मुताबिक, “यह एक राजनीतिक मामला नहीं है इसलिए मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। लेकिन यदि आपके पास कुछ निष्कर्ष है तो यह हमारे लिए अच्छी प्रतिक्रिया है। इसकी एक कॉपी मेरे साथ भी साझा करें। ”
मंत्री ईरानी, मानव संसाधन विकास सचिव सुभाष चंद्र खुंटिया और अतिरिक्त सचिव रीना रे से संपर्क करने की हमने तमाम कोशिश की लेकिन इनमें से किसी से भी हम बात करने में सफल नहीं हुए। हमारे निष्कर्ष की एक प्रति उन सभी को ईमेल के ज़रिए भेज दिया गया है ।
मंत्री जी के कार्यालय में संपर्क करने पर उनके निजी सहायक ने निष्कर्ष की एक प्रति ईमेल करने को कहा। प्रति ईमेल करने के कुछ घंटे बाद मंत्री कार्यालय से प्रतिक्रिया आई “मानव संसाधन विकास माननीय केन्द्रीय मंत्री को अपने ई-मेल के लिए धन्यवाद। आपका ईमेल प्राप्त किया गया है और उचित कार्रवाई के लिए संबंधित विभाग को भेजा जाएगा । " ( प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बादइस पोस्ट में अद्यतन किया जाएगा। )
कई निर्मित शौचालय योजना का उल्लंघन करते हैं
स्वच्छ विद्यालय अभियान के तहत हर स्कूल में लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग शौचालय को निर्माण किया जाना चाहिए, आमतौर पर एक इकाई पर एक शौचालय (पश्चिमी कमोड या WC) इसके अलावा तीन मूत्रालयों का निर्माण होना चाहिए। अधिमानतः हर 40 छात्रों के लिए एक शौचालय होना चाहिए।
दिशा-निर्देशों के अनुसार विकलांग बच्चों एवं लड़कियों के मासिक धर्म के लिए भी साबुल, बदलने के लिए निजी स्थान, कपड़े धोने के लिए पर्याप्त पानी, कचरे का डब्बा सहित पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिए।
यह स्पष्ट है कि मौजूदा शौचालय इन दिशानिर्देशों को पूरा नहीं करते है। स्थानीय प्रशासन की दक्षता इसमें एक बड़ी भूमिका निभाता है। पुणे जिले के भोर तालुका में सरकारी स्कूलों में बने शौचालयों की स्थिति बेहतर देखी गई है क्योंकि वहां पानी के साथ सरकारी अधिकारियों द्वारा ठीक प्रकार से जांच एवं संधृत किया गया है।
स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति होने में शौचालय की स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अंग्रेज़ी अखबार – द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सरकार की शौचालय निर्माण की 100 फीसदी लक्ष्य प्राप्ति के दावे के मात्र छह दिनों के बाद कस्तूरबा गांधी अवासिय सरायकेला -खारसवन जिले , झारखंड से 200 लड़कियों ने स्कूलों में शौचालय न होने के कारण स्कूल जाना बंद कर दिया है। इस स्कूल में 220 छात्रों के लिए केवल पांच ही शौचालय बनाए गए थे। इस कारण लड़कियों को शौच के लिए पास के खेतों में जाना पड़ता था जहां उन्हें स्थानिय लड़कों की छेड़खानी का शिकार होना पड़ता है।
यहां तक कि अधिक भीड़भाड़ वाले इलाके जैसे कि झाड़खंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में जुगसलाई एवं मानगो में दो प्राथमिक स्कूलों में बनाए गए नए पोर्टेबल शौचालय ( 40 और 56 छात्रों के साथ ) पानी के श्रोत एवं निपटान गड्ढे की कमी के कारण इस्तेमाल के योग्य नहीं हैं। अंग्रेज़ी अखबार, टेलीग्राफ के अनुसार, मानगो के छात्रों को नदी के किनारे शौच जाना पड़ता है एवं जुसलाइ के छात्र शौच के लिए अपनी बाल्टी एवं मग अपने साथ ही लाते हैं।
शौचालय निर्माण योजना का कुछ हिस्सा कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी ( सीएसआर) के दायित्वों के तहत कंपनियों द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। लेकिन यह योजनाएं किस प्रकार काम कर रही हैं यह स्पष्ट नहीं है।
इस वर्ष के शुरुआत में सुनहरा के दिल्ली संगम विहार के ऑल गर्ल्स स्कूल को एमएईआरएसके , एक शिपिंग बहुराष्ट्रीय द्वारा कुछ जैव शौचालय प्रदान की गई थी। लेकिन जैव शौचालय बैकार हैं। स्कूल के दूसरे शिफ्ट में लड़कों द्वारा इस्तेमाल के बाद शौचालय से इतनी बदबू आती है कि उसे साफ नहीं किया जा सकता है।
FactChecker के जांच के दौरान दो सवाल सामने आते हैं:
- क्या 100 फीसदी दावे की घोषणा करने के लिए आंकड़ों में हेरफेर की गई है?
- क्या शौचलायों के क्रियात्मक प्रक्रिया को सुनिश्चित किए बिना निर्माण कार्य में जल्दबाज़ी करना ठक है?
45 शौचालय प्रतिदिन – क्या आंकड़ों में की गई गड़बड़ी
राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्मृति इरानी ने कहा कि “3 अगस्त 2015 तक 3.64 लाख शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है। राज्यों और संघ शासित प्रदेशों, के 15 केंद्रीय मंत्रालयों और 10 से अधिक निजी क्षेत्र की संस्थाएं शौचालय निर्माण कार्य में शामिल हैं।”
इससे स्पष्ट है कि प्रति दिन 45,000 शौचालय की दर पर 12 दिनों में 56,000 शौचालयों का निर्माण किया गया है। इससे शौचालयों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाज़मी है। सात महीने के भीतर, अगस्त 2014 से मार्च 2015 के बीच 22,838 शौचालयों ( 109 प्रतिदिन ) का निर्माण किया गया है। जबकि 15 दिनों, जुलाई 27 से अगस्त 11, 2015 के भीतर 89,000 (प्रतिदिन 5933 शौचालयों ) का निर्माण किया गया है। डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वरा स्वच्छ विद्यालयों के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार शौचालय निर्माण कार्य में 5343 फीसदी वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार जून 2015 के अंत तक मंत्रालय ने उल्लेख किया कि सार्वजनिक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम धीमी गति से काम कर रहे हैं एवं शायद निर्धारित समय सीमा तक लक्ष्य पूरा न कर पाएं। इसके बाद शौचालय निर्माण के लक्ष्य को समय से पूरा करने के उदेश्य से निर्माण परियोजनाओं का प्रभार राज्य सरकार को लेने कहा गया जिसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां पूरा नहीं कर पाई।
एक और सवाल यह उठता है कि सरकार 417,000 की संख्या तक कैसे पहुंच पाई जिसे एक साल के भीतर बनाना था ?
नित्या जैकब , गैर सरकारी संगठन वाटरएड भारत में नीति के प्रमुख, के अनुसार “मुझे संदेह होता है कि कैसे जो इतने सालों से नहीं हुआ वो इतने कम समय में 600 फीसदी वितरित कैसे हो सकता है।” हफिंगटन पोस्ट के लिए लिखे एक कॉलम में उन्होंने सरकारी आंकड़ों के स्रोतों के साथ विसंगतियों के विषय पर चर्चा की थी।
स्कूलों के लिए जिला सूचना प्रणाली ( डीआईएसई ) के अनुसार वर्ष 2014 में 302,781 स्कूलों में शौचालयों की कमी दर्ज की गई थी। जैकब के अनुसार यदि निष्क्रिय शौचालयों को शामिल की जाए तो 31,320 स्कूलों में शौचालय नहीं है जोकि स्वच्छ विद्यालय के कुल आंकड़ों को पार कर जाता है।
जैकब आगे कहते हैं कि डीआईएसई के अनुसार 94.24 फीसदी प्रथमिक स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय बने हैं जबकि 2014 की एएसईआर के आंकड़े 93.7 फीसदी कहते हैं। हालाकिं एएसईआर 28.5 फीसदी स्कूलों से शौचालयों को अयोग्य बताता है। केवल 62.5 फीसदी शौचालय ही इस्तेमाल करने योग्य हैं। इनके विषय में डीआईएसई में उल्लेख नहीं किया गया है।
डीआईएसई के मुताबिक 84.12 फीसदी लड़कियों के बने शौचालय इस्तेमाल करने योग्य है जबकि एएसईआर के अनुसार यही आंकड़े 55.7 फीसदी हैं। डीआईएस के आंकड़ों पर नज़र डाले तो पता चलता है कि वरिष 2013-14 में लड़कों के लिए इस्तेमाल करने योग्य 944,560 एवं लड़कियों के लिए इस्तेमाल करने योग्य 806,932 शौचालय थे। इससे साफ है कि 100 फीसदी का लक्ष्य पूरा करने के लिए लड़कों के लिए 504,152 एवं लड़कियों के लिए 641,970 शौचालयों का निर्माण होना चाहिए था। जैकब के अनुसार लक्ष्य पूरा करने के लिए कुल मिला कर 1.14 मिलियन शौचायों का निर्माण किया जाना था। स्वच्छ विद्यालय का 417,796 शौचालयों का आकलन न्यूनानुमान प्रतीत होता है।
शौचालयों का काम सुनिश्चित किए बगैर शौचालय निर्माण करना पर्याप्त है ?
स्वच्छता शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि शौचालयों का निर्माण पर्याप्त नहीं है। व्यवहार में बदलाव भी महत्वपूर्ण है।
पिछली सरकारों द्वारा शुरु की गई स्वच्छता अभियान, केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (1986-1999) एवं वर्ष 1999 में संपूर्ण स्वच्छता अभियान ( 2012 में नाम बदल कर निर्मल भारत अभियान रखा गया ) खुले में शौच पर रोक लगाने में असफल रही है क्योंकि इन अभियान द्वारा व्यवहार में बदलाव करने पर जोर नहीं दिया गया है।
पुनीत श्रीवास्तव, प्रबंधक ( नीति ), जल एड इंडिया , एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार पिछली योजनाओं, पानी, सफाई और स्वच्छता ( डब्लूएएसएच ) की तुलना में इस बार केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएं प्रगतिशील हैं। श्रीवास्तव ने भी शौचालय निर्माण के अलावा व्यवहार बदलाव पर ज़ोर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के सरकारी स्कूल शिक्षकों की अनुपस्थित एवं भ्रष्टाचार सहित कई बड़े मुद्दों के साथ संघर्ष कर रही है। शौचालय निर्माण करना एवं उन्हें तुरंत इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद करना अवास्तविक है।
प्रधानमंत्री के हर स्कूल में शौचालय बनाने का वादा छात्रों के स्कूली जीवन एवं भविष्य शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन केवल शौचालय निर्माण ही पर्याप्त नहीं है।
नोट : 16 अगस्त से 28 अगस्त के बीच हमारी टीम के दौरे के दौरान सामने आई शौचालयों की स्थिति का ब्योरा दिया गया है।
(साहा नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। )
बारामूला में सोफी अहसान ( जम्मू-कश्मीर ), तुमकुर और गुलबर्गा में अर्पिता राव और ( कर्नाटक ), चतरा (झारखंड) से अतिरिक्त रिपोर्टिंग, विदिशा (मध्य प्रदेश ); वनापार्थी (तेलंगाना ); दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़ ); री भोई (मेघालय ); और पुणे (महाराष्ट्र) के सहयोग के साथ यह लेख प्रस्तुत की गई है।
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 12 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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