सरकार द्वारा बनाए जा रहे घर नहीं आ रहे गरीबों को रास
सूरत शहर में राज्य वित्त पोषित फ्लैट के एक ब्लॉक के सामने चलते झुग्गी निवासी। हाल ही में सरकार ने स्वीकार किया हा कि उचित बुनियादी ढांचे और आजीविका के साधन की कमी के कारण झुग्गियों में रहने वाले लोग सरकार द्वारा निर्मित घरों में स्थानांतरित करने के लिए अनिच्छुक हैं।
10 वर्षों के दौरान, केंद्र सरकार ने 21,482 करोड़ रुपए शहरी गरीबों के लिए घर बनाने पर खर्च किया हैं लेकिन इनमें से 23 फीसदी घर खाली हैं। यह जानकारी मई 2016 में लोकसभा में दिए गए एक जवाब में सामने आई है।
बनाए गए 1,032,433 मकानों में से 238,448 मकान खाली हैं, यह जानकारी तब मिली है जब पांच साल के दौरान, मलिन बस्तियों में रहने वाले भारतीयों के अनुपात शहरी आबादी का 17 फीसदी से बढ़ कर 19 फीसदी हुआ है (आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार) और 33,000 में से 19,000 मलिन बस्तियां सरकार (2012 डेटा) द्वारा स्वीकार नहीं किए हैं।
आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के अनुसार, खाली मकानों में 224,000 घर जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत बनाए गए हैं और 14,448 घरों का निर्माण राजीव आवास योजना (आरएवाई) के तहत किया गया है – जिसे अब बंद कर दिया गया है और जून 2015 में शुभारंभ किए गए प्रधानमंत्री आवास योजना में सम्मिलित किया गया है।
संसद में एक बयान में कहा गया है, “सरकार द्वारा सतत प्रयासों के बावजूद, झुग्गी में रहने वाले लोग, उचित बुनियादी ढांचे और आजीविका के साधन की कमी के कारण सरकार द्वारा निर्मित घरों में स्थानांतरित करने के लिए अनिच्छुक हैं।” आगे विस्तार से बताया गया है कि नए मकान अक्सर बिजली और पानी की कमी होती है, जो बस्तियों में सस्ती - अक्सर अवैध कनेक्शन – उपलब्ध होती है। मंत्रालय ने स्वीकार किया कि नए मकान आम तौर पर, कार्यस्थलों के पास नहीं हैं।
कुलवंत सिंह, भारत सलाहकार, शहरी बुनियादी सेवाओं, संयुक्त राष्ट्र पर्यावास, मानव बस्तियों और टिकाऊ शहरी विकास के लिए एक एजेंसी, जनवरी 2016 में हिंदू बिजनेस लाइन के कॉलम में लिखते हैं, “मकान कार्यस्थलों से बहुत दूर है जिससे आने-जाने पर अतिरिक्त खर्च बढ़ता है। झुग्गियों में बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं अक्सर बहुत ही सस्ते दामों पर अधिग्रहण होती हैं। वहां एक तरह की सहानुभूति और दृढ़ता होती है जो यहां नहीं है जिसकी इन परियोजनाओं में कमी है जिसके फलस्वरूप प्रभावशीलता दूर होती है।”
महाराष्ट्र में खाली घरों की संख्या (54,282) सबसे ज्यादा है, 24,611 के आंकड़ों के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर है। इन दोनों राज्यों में शहरी आबादी के 24 फीसदी और 35 फीसदी लोग झुग्गी में रहते हैं।
महाराष्ट्र में सबसे अधिक खाली घरों की संख्या
पिछले 10 वर्षों में, झुग्गियों में रहने वाले लोगों के लिए आवास निर्माण करने के लिए सबसे अधिक राशि महाराष्ट्र को मिली है। महाराष्ट्र को 3246 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं एवं इसी संबंध में 2,384 करोड़ रुपए के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है।
बस्तियों में रहने वालो के आवास निर्माण के लिए जारी राशि
राज्य अनुसार झुग्गी पुनर्वास के लिए राशि, 2005-15
Source: Lok Sabha; Figures in Rs croreJNNURM: Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission; RAY: Rajiv Awas Yojana; PMAY: Pradhan Mantri Awas Yojna
इस साल मई 2016 में लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मंजूर किए गए 683724 मकानों में से 0.1 फीसदी या 710 मकानों का निर्माण अब तक किया जा रहा है। 2022 तक सरकार ने, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 20 मिलियन मकान निर्माण करने की योजना बना रही है।
2005 और 2015 के बीच, जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के तहत महाराष्ट्र में स्वीकृत और निर्मित मकानों की संख्या सबसे ज्यादा थी (175,032 मंजूर किए गए; 128,386 निर्माण किए गए)। इस संबंध में दूसरा स्थान पश्चिम बंगाल का है (171861 स्वीकृत और 158,667 निर्माण)। मूल रुप से जेएनएनयूआरएम 2012 तक समाप्त किया जाना था, जिसे अब मार्च 2017 तक बढ़ा दिया गया है, इसलिए मंजूर किए गए मकानों का निर्माण किया जा सकता है।
मंजूर एवं निर्मित मकान
Source: Lok SabhaJNNURM: Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission; RAY: Rajiv Awas Yojana; PMAY: Pradhan Mantri Awas Yojna
भारत की जनगणना, झुग्गी बस्ती को आवासीय क्षेत्र के रूप में परिभाषित करती है जहां "आवास मानव निवास के लिए क्षय अयोग्य हैं, भीड़भाड़ है, दोषपूर्ण व्यवस्था है और इमारतों के डिजाइन इस तरह हैं कि संकीर्णता या सड़क की दोषपूर्ण व्यवस्था, वेंटिलेशन, प्रकाश, या स्वच्छता सुविधाओं या इन सबका संयोजन है”।
भारत में झुग्गी, टॉप पांच राज्य
Source: 69th round of NSSO reports
किसी भी राज्य की तुलना में महाराष्ट्र में सबसे अधिक झुग्गी-बस्तियां (7723) हैं। इस संबंध में महाराष्ट्र के बाद आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और तमिलनाडु का स्थान है।
(भट्टाचार्य इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 24 जून 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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