सरकारी सेवा के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों की चौखट पर
मुंबई: वर्ग और जाति में विभाजित, शिक्षा से वंचित और सार्वजनिक सेवाओं या सरकारी निकायों तक पहुंच के बिना, भारतीय अक्सर अपने काम करने के लिए राजनीतिक संस्थानों और सामाजिक नेटवर्क का उपयोग करते हैं और अपनी समस्या का समाधान करते हैं। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है।
‘अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय’ (एपीयू) और ‘लोकनीति’ (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के अध्ययन के अनुसार सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंचने या काम के लिए जैस कि सुरक्षित जल कनेक्शन के लिए, गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड प्राप्त करने या अस्पताल या स्कूल में दाखिले के लिए, आठ राज्यों में 22 विधानसभा क्षेत्रों में 16,680 उत्तरदाताओं में से लगभग 50 फीसदी ने औपचारिक रूप से पंचायतों या नगरपालिका वार्डों में निर्वाचित प्रतिनिधियों से मदद ली है।
इस मामले में अगला सबसे पसंदीदा मध्यस्थ परिवार के बाहर का एक रसूखदार व्यक्ति (10 फीसदी) था, इसके बाद सरकारी अधिकारी (8.5 फीसदी) का स्थान रहा है।
ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे इंगित करते हैं कि अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक समूहों, समुदायों और शैक्षिक स्तर के लोग आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं तक कैसे पहुंचते हैं।
अध्ययन के अनुसार, किस पर निर्भर रहने का निर्णय जाति, वर्ग और शिक्षा सहित 10 सामाजिक-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। उत्तरदाताओं को मध्यस्थों के लिए कुछ इस तरह के विकल्प दिए गए- संसद सदस्य (एमपी), विधानसभा सदस्य(विधायक), सरकारी अधिकारी, स्थानीय राजनीतिक नेता, काउंसिलर या सरपंच (गांव संवैधानिक निकाय के निर्वाचित प्रमुख), जाति के नेता और परिवार के बाहर का कोई बड़ा आदमी।
अध्ययन के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में, पांच में से चार उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सरपंच या काउंसिलर से संपर्क करेंगे, जबकि बिहार में 23 फीसदी ने कहा कि वे सरकारी अधिकारियों से संपर्क करेंगे।
अध्ययन के लेखकों में से एक सिद्धार्थ स्वामीनाथन ने कहा, " अपने क्षेत्र के शोध में हमने पाया कि सरपंच या काउंसिलर जैसे स्थानीय निर्वाचित सदस्य तेजी से राज्यों में सेवाओं से संबंधित मुद्दों को हल करने में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन रहे हैं।"
सरकारी अधिकारियों (कलेक्टर और तहसीलदार को छोड़कर) ने समान अध्ययन के सर्वेक्षण में केवल 4.8 फीसदी अंक अर्जित किए, जिसमें संस्थानों को भरोसे के अनुसार स्थान दिया, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 13 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
राजनीतिक दलों को सबसे अंत (-1.75 फीसदी) में स्थान मिला और सरकारी अधिकारी उनसे केवल एक स्तर ऊपर थे। लेकिन लोगों ने निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों में मजबूत वरीयता दिखाई, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
स्वामीनाथन कहते हैं “ आम तौर पर, राज्य सेवा तक पहुंच के लिए अक्सर भारत में मध्यस्थों की आवश्यकता होती है। अधिक शिक्षित भारतीयों के पास प्रशासन के उच्च स्तर पर व्यक्तियों की बेहतर पहुंच है।”
उदाहरण के लिए, ऊपरी जाति और कॉलेज तक शिक्षित भारतीयों ने सांसदों को दूसरों के मुकाबले ज्यादा पसंद किया है, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है। वे अन्य श्रेणियों की तुलना में विधायकों से संपर्क करने की भी अधिक संभावना रखते थे।
विवाद सुलझाने के लिए परिवार पहली पसंद
विवाह, हिंसा और संपत्ति से संबंधित घरेलू विवादों का पसंदीदा मध्यस्थ परिवार का कोई व्यक्ति था। लगभग 37 फीसदी भारतीय वैवाहिक विवादों को सुलझाने के लिए अपने परिवार से संपर्क करना पसंद करते थे। केवल 5 फीसदी ने कहा कि वे अदालत में जाएंगे। घरेलू हिंसा के मामले में, लगभग 44 फीसदी ने कहा कि वे पारिवारिक मध्यस्थता के लिए राजी होंगे।
विवादों को सुलझाने के लिए व्यक्ति की मानसिक सोच अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र (56 फीसदी) और मध्य प्रदेश (51 फीसदी) ने शादी से जुड़े विवादों के लिए सबसे ज्यादा पारिवारिक हस्तक्षेप पसंद किया, जबकि झारखंड में केवल 26 फीसदी ने यह विकल्प चुना।
24 जनवरी, 2018 को Scroll.in द्वारा इसी तरह के एक समान अध्ययन पर किए गए एक रिपोर्ट में पाया गया कि 74 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे विवादों को सुलझाने के लिए मित्रों और परिवार को चुनेंगे और 49 फीसदी ने कहा कि वे गांव के बुजुर्गों या अन्य सामाजिक / राजनीतिक नेताओं का चयन करेंगे।
गैर-राजनीतिक संस्थान वाले विवादों को हल करने के लिए दृष्टिकोण
Source:Politics And Society Between Elections, 2018 [Azim Premji University and Lokniti (CSDS)]
Note: Figures are average of responses from eight states
मध्यप्रदेश, बिहार और राजस्थान में 50 फीसदी से अधिक उत्तरदाताओं ने घरेलू हिंसा के मामले में परिवार से मदद मांगने की बात कही। केवल 15 फीसदी ने कहा कि वे पुलिस से संपर्क करेंगे, जो पड़ोस के बाद प्राथमिकता में तीसरे स्थान पर है।
पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता पर व्यापक रूप से रिपोर्ट करने के साथ पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी बढ़ा है। इस संबंध में इंडियास्पेन्ड ने 6 सितंबर, 2016 की रिपोर्ट में बताया है।
तेलंगाना में लगभग 30 फीसदी उत्तरदाताओं और आंध्र प्रदेश में 25 फीसदी (एपी) ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलें में पुलिस से संपर्क करना पसंद किया। एमपी, राजस्थान और बिहार में, पुलिस के पास आने-वाले लोगों की संख्या नगण्य थी। न्यायालय सबसे कम पसंदीदा विकल्प थे।
एक संस्थान के रूप में पुलिस ने 5.7 फीसदी औसत ‘प्रभावी विश्वास’ प्राप्त किया, जो कि 16 निर्वाचित और गैर निर्वाचित संस्थानों की सूची में नीचे से तीसरा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 13 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
रिपोर्ट में उत्तरदाताओं के लिंग के संदर्भ में बहुत अंतर नहीं दिखा, लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं में परिवार से संपर्क करने की अधिक संभावना दिखी। पुरुषों ने अन्य सामाजिक नेटवर्क या पुलिस से संपर्क करने का विकल्प ज्यादा चुना ।
जाति और वर्ग का महत्व
अध्ययन में सूचीबद्ध सात जाति समुदायों में से लगभग 50 फीसदी ने कहा कि वे वर्ग और जाति से संबंधित कारकों के आधार पर अलग-अलग काम के लिए सरपंच या काउंसिलर से संपर्क करेंगे।
हालांकि, ऊपरी जाति हिंदू (40 फीसदी) और मुस्लिम (37 फीसदी) उत्तरदाताओं ने इस विकल्प को कम से कम पसंद किया। लेकिन मुसलमानों और आदिवासियों ने धार्मिक या जाति के नेताओं को प्राथमिकता दी, जबकि ऊपरी जाति के हिंदुओं ने कहा कि वे सीधे सरकारी अधिकारियों से संपर्क करेंगे।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर महत्वपूर्ण सेवा प्राप्त करने की प्राथमिकता
Source:Politics And Society Between Elections, 2018 [Azim Premji University and Lokniti (CSDS)]
ऊपरी जाति के हिंदुओं को कम से कम पुलिस से डर है, क्योंकि पुलिस के पास पास अनुकूल राय होने की संभावना ज्यादा है और उनसे संपर्क करने की संभावना कम है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 11 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
इसी प्रकार, ऊपरी वर्ग और शहरी क्षेत्रों से प्रत्येक से 38 फीसदी उत्तरदाताओं ने सरपंच या काउंसिलर के पास जाना पंसद किया है। उन्होंने आर्थिक वर्ग और क्षेत्र (शहरी और ग्रामीण) श्रेणी में इस विकल्प के लिए कम से कम प्राथमिकता दर्ज कराई।
जाति, समुदायों के आधार पर महत्वपूर्ण सेवा प्राप्त करने की प्राथमिकता
Source:Politics And Society Between Elections, 2018 [Azim Premji University and Lokniti (CSDS)]
(पालियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 6 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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