सर्दियों में, दिल्ली के फाइन-पार्टिक्यूलेट प्रदूषण का 64फीसदी शहर के बाहर से
दिल्ली: सर्दियों में प्रदूषण (पीएम 2.5 कण) में दिल्ली का 36 फीसदी से ज्यादा का योगदान नहीं होता है। जबकि 64 फीसदी प्रदूषण 56,800 वर्ग किलोमीटर में फैले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से दिल्ली में आते हैं। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है।
अध्ययन के बाद 16 अगस्त, 2018 को जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016-17 की सर्दियों के दौरान, दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 की औसत सांद्रता 168 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg / m3) थी। यह 40 μg / m3 के राष्ट्रीय मानक से लगभग तीन गुना अधिक है और 10 μg / m3 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कड़े मानक से 16 गुना अधिक है।
सर्दियों के दौरान पीएम 2.5 की औसत अधिकतम सांद्रता 254 μg / m3 थी, जबकि न्यूनतम औसत एकाग्रता 92 μg / m3 थी, जैसा कि एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) और ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है।
कोयले, केरोसिन, पेट्रोल, डीजल, बायोमास (लकड़ी और गोबर) जलाने के बाद पीएम 2.5 निकलता है, जो मानव बाल से 30 गुना ज्यादा महीन होता है।
ये कण सांस के जरिए हमारे फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं, जिससे दिल का दौरा, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और श्वसन रोग हो सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पीएम-2.5 के माप को वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य जोखिम के स्तर का सबसे अच्छा संकेतक माना जाता है।
2015 में, 1000 भारतीयों में से केवल एक ही ऐसे इलाकों में रहता था जहां प्रदूषण कण, जो पीएम 2.5 के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 10 µg/m3 के वार्षिक सुरक्षित स्तर से ज्यादा नहीं थे। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी 2018 को अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है। हमारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में, भारत में 1.09 मिलियन मौतें पीएम 2.5 प्रदूषण कणों के कारण हुई हैं।
देश के बाहर से भी दिल्ली में प्रदूषण
एनसीआर (दिल्ली को छोड़कर), 27 मिलियन लोगों का घर है, और दिल्ली के प्रदूषण में इसका 34 फीसदी का योगदान है। और एनसीआर से बाहर से 17 प्रतिशत का योगदान है, वहीं शेष भारत से 13 फीसदी प्रदूषण दिल्ली में आता है। कुल मिलकार बाहर के क्षेत्रों का सर्दियों के दौरान दिल्ली में प्रदूषण में 30 फीसदी का योगदान होता है, जैसा कि भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए टीईआरआई और एआरएआई अध्ययन में कहा गया है।
दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण के स्रोत, 2016-17
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Sources Of PM 2.5 Pollution In Delhi, 2016-17 | ||
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Sources Of Pollution | Winters | Summers |
Delhi Itself | 36% | 26% |
NCR Except Delhi | 34% | 24% |
Upwind Region Outside NCR | 17% | 17% |
Upwind Region Outside India | 13% | 33% |
Source: The Energy And Resource Institute
रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, गर्मियों के दौरान, दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण का 74 फीसदी दिल्ली से बाहर स्थित स्रोतों के कारण होता है। खुद दिल्ली का प्रदूषण में केवल 26 फीसदी योगदान देता है। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण भारत के बाहर से आता है।
गर्मियों में, दिल्ली-एनसीआर में सभी निगरानी स्थलों पर पीएम 2.5 की औसत सांद्रता 90 μg / m3 थी, जो पीएम 2.5 के 65 से 130 μg/m3 भिन्न होने के साथ राष्ट्रीय सुरक्षित स्तर से दो गुना अधिक या डब्ल्यूएचओ स्तर से आठ गुना अधिक है।
टीईआरआई के डॉयरेक्टर जेनरल, अजय माथुर ने कहा, "यह चौंकाने वाला है कि प्रदूषण में दिल्ली का योगदान कितना कम है," जैसा कि 17 अगस्त, 2018 की रिपोर्ट में टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है। उन्होंने आगे कहा, "इससे पता चलता है कि न सिर्फ दिल्ली में बल्कि पूरे एनसीआर क्षेत्र में और इससे भी परे, खासकर एनसीआर से ऊपर के इलाकों में कार्रवाई की आवश्यकता है।"
अध्ययन के लिए डेटा सर्दियों में हवा की गुणवत्ता निगरानी के 10 दिनों और 2016-17 की गर्मियों में दिल्ली में नौ स्टेशनों, उत्तर प्रदेश में चार और हरियाणा में सात से लिया गया था।
दिल्ली में पीएम 2.5 कण 58 फीसदी तक हो सकते हैं कम
सामान्य परिदृश्य में, सभी मौजूदा नीतियों-जैसे कि अधिक कुशल वाहन- और औद्योगिक उत्सर्जन मानदंड, कुकस्टॉव के बजाय गैस का अधिक उपयोग, क्लीनर ईंट भट्टियां-सख्ती से लागू नहीं होते हैं।
आशंका है कि 2030 तक सर्दियों और गर्मी के मौसम में औसत पीएम 2.5 एकाग्रता 8.25 फीसदी तक बढ़ जाएगी। यानी आंकड़े 109 μg / m3 से 118 μg / m3 तक पहुंचेगें, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।
वर्ष 2030 तक दिल्ली अपने पीएम 2.5 प्रदूषण का 58 फीसदी कम कर सकती है, अगर सरकार एनसीआर में बायोमास के उपयोग को रोकती है, और उद्योगों में उच्च राख कोयले की जगह कृषि उत्पादों का इस्तेमाल किया जाए।
इन उपायों का मतलब ग्रामीण परिवारों में गैस के अधिक उपयोग से एनसीआर में बायोमास उपयोग का अंत करना, उच्च-राख के उपयोग को बदले बिजली संयंत्रों और अन्य उद्योगों में कृषि अवशेषों का उपयोग करना है। साथ ही,कोयला प्रदूषण और उद्योगों के लिए नए और कड़े पीएम 2.5 मानकों की स्थापना, ठोस ईंधन का इस्तेमाल और बिजली से चलने वाली और हाइब्रिड वाहनों का उपयोग करना भी जरूरी है।
विभिन्न परिदृश्यों के तहत दिल्ली-एनसीआर में औसत पीएम 2.5 एकाग्रता
(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 3 सितंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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