सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में सूरत से सीख सकते हैं अन्य राज्य
महाराष्ट्र के धुले से छाया जाधव ( बीच में ) सूरत के पंडसेरा शहरी केंद्र में आई हैं। जाधव अपने दूसरे बच्चे के प्रसव के लिए केंद्र में दुबारा आई हैं, क्योंकि वे अस्पताल की सेवाओं से संतुष्ट रही हैं। जैसा कि गुजरात में चुनावी नतीजे की सरगर्मियां तेज हैं, हम यह बताना चाहते हैं कि किस प्रकार सूरत शहर ने अपने आप को बदला है। कभी सूरत प्लेग के लिए कुख्यात था और अब सार्वजनिक स्वास्थ्य में बहुत आगे है।
सूरत, गुजरात: सूरत नगर निगम के साथ काम करने वाली प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ममता पटेल, सूरत में पंडसेरा की कम आय वाले इलाके में 250 घरों का दौरा करती हैं। गर्मी हो, ठंड हो या हो बरसात, ममता की दिनचर्या नहीं बदलती। सूरत दक्षिणी गुजरात का शहर है, जो हीरा उद्योग के लिए भी जाना जाता है। प्रत्येक घर में ममता जाकर पूछती हैं, "क्या आपके घर में कोई है जिसे बुखार है?"
यदि जवाब हां है, तो वह 'बुखार किट' का उपयोग करके रक्त का नमूना लेती हैं, और उसे मलेरिया परीक्षण के लिए भेजती है।
यदि परीक्षण सकारात्मक है, ममता मरीज को मलेरिया से निपटने के पूरे कोर्स के लिए गोलियां देती है। अगर परीक्षण में कुछ और आता है तो वह मरीजों को अन्य डॉक्टर के पास भेजती हैं। लोगों से बुखार के लिए पूछने के अलावा ममता घर में मच्छर पनपने के स्थानों का भी निरीक्षण करती हैं।
ममता सूरत की सदिश जनित रोग निगरानी का हिस्सा हैं। यह देश में अपनी तरह का पहला ‘रिअल टाइम मस्कीटो सर्वैलन्स प्रोग्राम ’ है, जिसका उद्देश्य बीमारी फैलने से पहले ट्रैक करना और रोकना है। यह, कई अन्य नवीन संसाधनों के साथ, सूरत नगर निगम को देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में अग्रणी बनाता है।
अपने रिअल टाइम मस्कीटो सर्वैलन्स प्रोग्राम ’ के अलावा सूरत में अपनी तरह का पहला शहरी स्वास्थ्य और जलवायु केन्द्र है, जो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए रणनीतियां तैयार करता है, और एक शहरी सेवा निगरानी प्रणाली भी है, जो स्वास्थ्य, पानी और ठोस अपशिष्ट से संबंधित शिकायतों पर नजर रखता है। इन संसाधनों के बूते शहर ने सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने में सफलता पाई है। 1994 में सूरत गंदगी और प्लेग फैलने के लिए कुख्यात था। लेकिन अब स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ा है।
शहरी क्षेत्रों में ऐसा सकारात्मक परिवर्तन एक कारण हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने ग्रामीण इलाकों की तुलना में गुजरात की ज्यादातर शहरी इलाकों में अधिक सीटें जीती हैं, जैसा कि 2015 से वोटिंग पैटर्न और पोलिंग डेटा बताती है। इस संबंध में ‘द हिंदू’ अखबार ने दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
हाल ही में हुए चुनाव के दौरान इंडियास्पेंड ने गुजरात के सूरत का दौरा किया है, जो राज्य की राजधानी, गांधीनगर से 288 किमी दूर है। हमने इस परिवर्तन और बढ़ते शहरों और कस्बों को इससे सीखने वाले पाठ को समझने की कोशिश की है।
1994 में प्लेग ने शहर के अधिकारियों को कार्रवाई के लिए प्रेरित किया
1980 के दशक में मुंबई के कपड़ा उद्योग की गिरावट के बाद, सूरत पश्चिमी भारत में सबसे महत्वपूर्ण कपड़ा केंद्र बन गया। और बाद में एक प्रमुख हीरा काटने और पॉलिशिंग केंद्र के रूप में सामने आया।
उद्योगों में वृद्धि के साथ, यह देश भर के लोगों को आकर्षित करता है। शहर की आबादी 1981 में 0.77 मिलियन से दोगुनी होकर 1991 में 1.4 मिलियन हो गई है। शहर के 35 फीसदी से कम के पास पाइप की पानी तक पहुंच थी और इसका जल निकासी प्रणाली केवल 33 फीसदी निवासियों तक ही सीमित था।
कम से कम 40 फीसदी लोग झुग्गी-बस्तियों में रहते थे, जो अक्सर जलभराव का सामना करते थे। शहर को ‘फ्लोटिंग सीवेज वॉटर’ कहा जाता था, और यह पानी मलेरिया, गैस्ट्रोएन्टेरिटिस, हैजा, डेंगू और हेपेटाइटिस सहित वेक्टर से संबंधित बीमारियों के लिए संवेदनशील था, जैसा कि सूरत में हुए परिवर्तन के लिए ‘ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट फॉर लोकल सेल्फ गवर्नरन्मेंट’ की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
हालात और बद्तर होने तब शुरु हुए जब सूरत के बाहरी इलाकों में प्लेग फैला। यह एक संक्रामक बीमारी है, जो लसीका प्रणाली को प्रभावित करती है। इस बीमारी से दुनिया भर में हलचल मच गई, शहर में भारी आर्थिक हानि हुई और शहर की करीब 60 फीसदी आबादी शहर से पलायन कर गई थी। उस साल प्लेग के करीब 693 संदिग्ध मामले और 56 मौतें हुईं।
यही वह वक्त था जब तत्कालीन नागरिक प्रमुख सूर्यदेवारा रामचंद्र राव के नेतृत्व में, शहर के अधिकारियों ने शहर और व्यवस्था की भारी सफाई की।
शहर को छह क्षेत्रों में विभाजित किया गया था और प्रत्येक क्षेत्रीय प्रधान के पास नगरपालिका आयुक्त के बराबर प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां दी गई थीं। इसके अलावा, इसे 52 सैनिटरी जिलों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक के पास अपने सैनिटरी इंस्पेक्टर थे। निगरानी की एक प्रणाली 'दैनिक गतिविधि रिपोर्ट' के माध्यम से स्थापित की गई थी। कचरे के लिए जुर्माना लगाया गया था और झुग्गी बस्तियों की स्थिति में सुधार हुआ था।
1995 में सबसे गंदे शहरों में से एक था, लेकिन सूरत 1997 में दूसरा सबसे स्वच्छ शहर बन गया।
2011 में 4.8 मिलियन की आबादी के साथ, सूरत राज्य में दूसरा सबसे आबादी वाला शहर है और देश में आठवां सबसे ज्यादा आबादी है। फिर भी, यह देश का चौथा सबसे साफ शहर है, जैसा कि वार्षिक ‘स्वच्छता सर्वेक्षण-2017’ में कहा गया है। यह स्मार्ट शहर मिशन के तहत चयनित 20 शहरों में से एक है।
सूरत कैसे रखता है बाहर से आने वालों का ख्याल
पांडेसारा शहरी स्वास्थ्य केंद्र में सुबह 9.30 बजे का वक्त था और चिकित्सा अधिकारी सरिता राजगिरा परेशान थीं। जिस दिन हमने केंद्र का दौरा किया, वह आउटपैंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) में एकमात्र डॉक्टर थीं। उन्होंने बताया, "हम आउट पेशेंट विभाग में 100-150 रोगियों को देखते हैं। उनमें से ज्यादातर को मौसमी बीमारियां हैं। बरसात के मौसम में यह संख्या सबसे ज्यादा होती है। "पंडसेरा शहरी स्वास्थ्य केंद्र ( एक स्वच्छ और अच्छी तरह से बना इमारत, जहां जब इंडियास्पेंड ने दौरा किया तो अधिकांश स्टाफ मौजूद थे ) शहर के 44 शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में से एक है।
प्रत्येक केंद्र एक पैथोलॉजी प्रयोगशाला और एक फार्मेसी से लैस है, और दो मेडिकल अफसरों और प्रत्येक के में साप्ताहिक सलाह लेने वाले विशेषज्ञ कार्यरत है। पंडसेरा शहरी केंद्र में सामान्य प्रसव के लिए एक मातृत्व इकाई है और यह आंत्र रोगी सुविधा वाले सात केन्द्रों में से एक है ।
पंडसेरा शहरी स्वास्थ्य केंद्र, सूरत में बाह्य रोगी विभाग
यहां यौन संचारित रोग (एसटीडी) और मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (एचआईवी) केंद्र में परामर्शदाता हिरेन पटेल ने, देश भर से आने वाले प्रवासियों जो शहर की 58 फीसदी हिस्सेदारी बनाते हैं, उनकी बात करते हुए इंडियास्पेंड को केंद्र में मौजूद सारी सुविधाएं दिखाईं । पटेल कहते हैं, "सूरत को मिनी भारत कहा जाता है।"
पंडसेरा शहरी स्वास्थ्य केंद्र के यौन संचारित रोग (एसटीडी) और मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (एचआईवी) यूनिट में परामर्शदाता हिरेन पटेल ने इंडियास्पेंड को केंद्र की सुविधाएं दिखाते हुए कहा कि सूरत को ‘मिनी इंडिया’ कहा जाता है।
महाराष्ट्र के धूले से आई छाया यादव अपनी मां के साथ ओपीडी के बाहर बैठी हैं। वह बताती हैं, "मैंने अपने पहले बच्चे का जन्म यहीं कराया था।" वह अपनी दूसरी गर्भावस्था के लिए वापस आई क्योंकि वह अस्पताल की सेवाओं से संतुष्ट थी।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी की लक्ष्मीकांत जाधव (37) ने कहा कि उन्होंने निजी डॉक्टर से उपचार के बजाय सरकारी केंद्र में आना पसंद किया है।
राष्ट्रीय सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष के पोस्टर से घिरे इसके प्रतिरक्षण केंद्र में, सहायक नर्स और दाई (एएनएम) की एक टीम अपने रजिस्टरों के साथ बैठी हुई थी। 23 वर्षीय पूजा पटेल पिछले साल से एएनएम हैं। वह बताती हैं कि, "आज हम अपने क्षेत्रीय काम का दस्तावेजीकरण करते हैं।" वह बताती हैं कि कि गर्भधारण जन्मपूर्व और जन्मजात जांच दर्ज करने के लिए वे अपने फोन पर राज्य सरकार के ममता ऐप का इस्तेमाल करते हैं। यहां 22 एएनएम हैं, 55 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 32 मान्यता प्राप्त सोशल हेल्थ कार्यकर्ता हैं जो पांडेसरा शहरी स्वास्थ्य केंद्र से जुड़ी हैं, जो 28,301 जनसंख्या की देखभाल करती हैं।
23 वर्षीय पूजा पटेल पिछले साल से एएनएम हैं। वह बताती हैं कि, "आज हम अपने क्षेत्रीय काम का दस्तावेजीकरण करते हैं।"
वह कहती हैं, "प्रत्येक एएनएम एक वर्ष में 200 गर्भवती महिलाओं को देखती है। चूंकि कई महिलाएं प्रवासी हैं और वे गर्भवती होने के दौरान अपने गृहनगर में वापस जाती हैं, इसलिए ट्रैक रखना मुश्किल हो सकता है। वे कई बार घर बदलती हैं। लेकिन हम उन्हें ट्रैक करने के लिए अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। "
केंद्र के एसटीडी और एचआईवी केंद्र के परामर्शदाता पटेल कहते हैं, “सूरत नगर निगम का दृष्टिकोण बीमारियों को फैलाने और रोकने पर नजर रखना है। प्रत्येक शाम 4 बजे से पहले, बुखार या बीमारी के प्रत्येक मामले शहरी स्वास्थ्य केंद्र का निदान किया जाता है। एक डिप्टी मेडिकल अधिकारी, जो शहर में छह क्षेत्रों में से एक का ज़िम्मेदार है, हर दिन रोगों पर नजर रखता है।”
पटेल जैसी स्वास्थ्य कर्मी, जिनसे हमने पहले मुलाकात की थी, सूरत की प्रभावी निगरानी और रिकॉर्डिंग प्रणाली की रीढ़ की हड्डी बनती हैं, जिन्होंने सूरत में मलेरिया के सकारात्मक मामलों को कम किया है, 1988-1994 के दौरान 20,000 से 54,000 मामलों से 2003 से 2016 तक 6000 से 12,000 मलेरिया मामलों तक।
सूरत में मलेरिया के मामले, 2001-16
Source: Annual Report 2016, Vector Borne Disease Control Department, Surat Municipal Corporation
ममता पटेल वेक्टर बोर्न डिसीज विभाग के 600 प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मचारियों में से एक हैं, जो सहायक किटकनाशक अधिकारी के अधीन काम करती हैं, मच्छर पनपने वाले साइटों की निगरानी करती हैं, और बुखार के मामलों और मच्छर फॉगिंग प्रबंधन का रिकॉर्ड रखती हैं। यह पटेल की पहली नौकरी है, और उन्होंने कहा कि उसे स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करना पसंद है। उन्होंने 2015 में 5000 रुपए प्रति माह पर नौकरी शुरु किया था और तीन साल की सेवा के बाद, वह स्थायी कर्मचारी बन जाएंगी और प्रति माह 10,000 रुपये कमा पाएंगी।
ममता पटेल वेक्टर बोर्न डिसीज विभाग के 600 प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मचारियों में से एक हैं, जो सहायक किटकनाशक अधिकारी के अधीन काम करती हैं, मच्छर पनपने वाले साइटों की निगरानी करती हैं, और बुखार के मामलों और मच्छर फॉगिंग प्रबंधन का रिकॉर्ड रखती हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने की तैयारी
शहरी स्वास्थ्य और जलवायु रेजिलाइंस सेंटर (यूएचसीआरसी) के तकनीकी निदेशक और गुजरात सरकार के लिए प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के पूर्व निदेशक विकास देसाई कहती हैं, " प्लेग हो, एचआईवी हो, मलेरिया या फिलारासीस हो, सूरत हमेशा तूफान के केंद्र में रहा है।" समुद्र तट पर और तापी नदी के तट पर होने के कारण बाढ़ और मच्छर से पैदा होने वाले रोगों के लिए शहर बदनाम रहा है और बढ़ते प्रवासियों की संख्या से साफ-सफाई के मामले में दवाब बढ़ता है।
शहरी स्वास्थ्य और जलवायु रेजिलाइंस सेंटर (यूएचसीआरसी) के तकनीकी निदेशक और गुजरात सरकार के लिए प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के पूर्व निदेशक विकास देसाई कहती हैं, " प्लेग हो, एचआईवी हो, मलेरिया या फिलारासीस हो, सूरत हमेशा तूफान के केंद्र में रहा है।"
यूएचसीआरसी के माध्यम से, सूरत अब उन समस्याओं से उबरने की तैयारी कर रहा है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण हो सकते हैं। 'एशियन सिटिज क्लाइमेट चेंज रिजिल्यन्स नेटवर्क' द्वारा 2013 में स्थापित इस केंद्र का मुख्य कार्य यह अध्ययन करना था कि जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है । इसके अलावा शहरी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने के लिए अनुसंधान की जिम्मेदारी भी इस केंद्र की थी। परियोजना ‘रॉकफेलर फाउंडेशन’ द्वारा ‘सूरत सिटी क्लायमेट ट्रस्ट’ के माध्यम से समर्थित है, जिसमें सूरत नगर निगम मुख्य हितधारक है।
केंद्र ने 'शहरी सेवा निगरानी प्रणाली' बनाने में मदद की है । यह वेब और मोबाइल आधारित निगरानी उपकरण है, जिससे नगर निगम को तपेदिक, मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों की दैनिक निगरानी में सहयोग मिलता है। देसाई कहती हैं, "महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे पास 400 निजी प्रैक्टिशनर्स भी हैं, जो इस निगरानी प्रणाली से जुड़े हैं। वे रोजाना सिस्टम में फीड करते हैं और इससे इलाज के लिए सरकारी केंद्रों में नहीं आने वाले मरीजों तक हमें पहुंचने में सहायता मिलती है।
(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 14 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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