सीतापुर की बालिका वधू सरला देवी और पढ़ाई का अंत
सीतापुर, उत्तर प्रदेश: सरला देवी के मिट्टी के घर में उसकी शादी की तैयारियां चल रही हैं। शादी में शामिल होने के लिए 200 लोगों को आमंत्रित किया गया है। सफेद रंग में रंगे मिट्टी के बर्तनों के पास ( देवताओं को भोजन अर्पित करने के लिए एक स्थानीय अनुष्ठान ) बैठी सरला शायद 16 साल की भी नहीं है और पांचवी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया है । यानी वह सीतापुर की एक तिहाई उन लड़कियों की लिस्ट में शामिल होने की तैयारी कर रही थी, जो बाल वधू हैं।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में सरला देवी के घर के बाहर (जहां 20-24 वर्ष की 35.5 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल की होने से पहले कर दी गई थी ) उसकी शादी की तैयारियां चल रही हैं।
यहां राज्य की राजधानी लखनऊ से 90 किलोमीटर उत्तर, देवकली गांव में, सरला देवी को पता नहीं है कि वह कानून का उल्लंघन कर रही है। शायद वो नहीं कर रही है। उसने कहा कि उसकी उम्र 17 या 18 हो सकती है, लेकिन उनके पास अपनी उम्र या पहचान साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है।
2016 में, 18 साल की उम्र से पहले 20-24 वर्ष की आयु की सीतापुर महिलाएं, जिनकी शादी18 वर्ष से पहले की उम्र में हुई है, उनका अनुपात 35.5 फीसदी था। यह आंकड़ा भारत के 26.8 फीसदी और उत्तर प्रदेश के 21.2 फीसदी के औसत से ज्यादा है, जो इस विषय पर राज्य रैंकिंग में नीचे से छठे स्थान पर है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 700 मिलियन बाल वधुओं में से लगभग आधे (42 फीसदी) दक्षिण एशिया में रहते हैं, और इनमें से तीन में से एक भारत में हैं। उत्तर प्रदेश (यूपी) में 19 में से एक और पूरे भारत में 184 में से सीतापुर को ‘उच्च प्राथमिकता वाले जिले’ के रुप में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी पहचान बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था को कम करने के लिए विशेष ध्यान देने के लिए की गई है।
अगर सरला देवी सैकेंड्री स्कूल तक गई होती तो उसकी इस उम्र में शादी करने की संभावना छह गुना कम हो गई होती। स्कूल में लड़कियों को बनाए रखना बाल विवाह को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, जिसे हमने पहले भी उद्धृत किया था, बाल वधुओं में जल्दी गर्भधारण, अधिक वजन वाले और कम वजन के बच्चों के जन्म, बच्चों में जल्दी मृत्यु की आशंका और समग्र आर्थिक प्रगति के धीमे हो जाने का खतरा अधिक होता है।
सरला देवी पड़ोस के गांव तालगांव के 20 वर्षीय दीपू कुमार से शादी करने के लिए तैयार है। सरला देवी ने कहा कि उसे अपनी मां की हल्की सी याद है, जिनकी मृत्यु कैंसर से हुई , तब वह केवल छह या सात साल की थी। चूंकि उसकी मां अपने छह लोगों के परिवार की देखभाल नहीं कर सकती थीं, इसलिए मदद करने के लिए सरला देवी ने स्कूल छोड़ दिया। सीतापुर के 800,000 घरों में, केवल 2.9 फीसदी परिवारों में कम से कम एक सदस्य स्वास्थ्य कार्यक्रम से कवर है।
यह कहना मुश्किल है कि सरला देवी की किस्मत कैसी होती, अगर उसकी मां जिंदा होती।
उसकी मां ने 13 साल की उम्र में शादी कर ली थी। और अब सरला देवी भी जल्दी शादी के उस चक्र में शामिल होने जा रही है और शायद जल्द ही उसकी छोटी बहन भी शामिल होगी।
उसने कहा, "जब मैं शादी करूंगी और चली जाऊंगी, तो मेरी छोटी बहन वो सारे काम करेगी, जे मैं करती थी।" शादी करने के लिए सहमत होने का एक कारण यह था कि उसे उम्मीद थी कि उसे जिंदगी में कुछ राहत मिलेगी।
सरला देवी की स्थिति में उसके अपने जीवन के लिए, उसके जैसी महिलाओं के जीवन के लिए और आज की 2.61 ट्रिलियन डॉलर से 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्वाकांक्षा के लिए निहितार्थ हैं।
भारतीय महिलाएं और भारत पीछे की ओर
ऐसे समय में, जब भारत के कार्यबल में महिलाओं की संख्या छह साल पहले की तुलना में कम है, ग्रामीण क्षेत्रों में 18 फीसदी से अधिक कार्यरत नहीं हैं, जबकि 2011-12 में ये आंकड़े 25 फीसदी थे और शहरी क्षेत्रों के लिए यह आंकड़ा 14 फीसदी से 15 फीसदी हुआ है - विशेषज्ञों ने बताया कि कैसे बाल विवाह महिलाओं और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।
यूके में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में डेवलप्मेंट इकोनोमिक्स की प्रोफेसर और भारत के चौथे सबसे बड़े राष्ट्रीय पुरस्कार पद्म श्री के विजेता, बीना अग्रवाल कहती हैं, “बाल विवाह दोनों लिंगों को, लेकिन विशेष रूप से लड़की को परेशान करता है।”
अग्रवाल ने कहा कि एक बाल वधू शादी में असुरक्षित है, साथी के बारे में सूचित विकल्प नहीं बना सकती, स्कूल खत्म कर सकती है, पैतृक संपत्ति के अधिकार या "पूर्ण नागरिक के रूप में कार्य" नहीं कर सकती है।
अग्रवाल ने कहा, "प्रारंभिक गर्भावस्था मां के स्वास्थ्य और बच्चे को नुकसान पहुंचाएगी और एक मां के रूप में उसकी क्षमताओं को कम करेगी। उचित शिक्षा के बिना, वह संभवतः अकुशल काम ही कर पाएगी या बेरोजगार रहेगी और फिर उन महिलाओं के बढ़ते अनुपात में जुड़ेगी, जो काम करना चाहती हैं लेकिन काम मिल नहीं पाता है।"
देश के लिए, इसका मतलब प्रतिभा और उत्पादक श्रमिकों की गंभीर बर्बादी है। बाल विवाह की विशाल संख्या को देखते हुए, भारत को होने वाली संभावित आर्थिक हानि बहुत अधिक है। ”
सरला देवी अपनी शादी में अपने दोस्तों के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने इंडियास्पेंड को बताया कि उनमें से कोई भी स्कूल में नहीं था, जैसा कि सीतापुर की 83.6 फीसदी लड़कियों के साथ होता है, जो सेकेंड्री स्कूल नहीं जाती हैं।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ओर से 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना शिक्षा प्राप्त लड़कियों की तुलना में सेकेंड्री स्कूल शिक्षा प्राप्त लड़कियों में जल्द शादी करने की संभावना छह गुना कम होती है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक निरंतर पहुंच बालिकाओं को बाल विवाह के परिणामों से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
ये निष्कर्ष सीतापुर में युवा महिलाओं के जीवन के माध्यम से सामने आते हैं।
क्यों अधिक है सीतापुर में बाल विवाह?
सीतापुर जिला यूपी में आठवां सबसे अधिक आबादी वाला जिला है और साक्षरता के अनुसार 75 जिलों में से 59 वें स्थान पर है। यह जिला 61 फीसदी साक्षरों के साथ, राज्य के 67.7 फीसदी के औसत से कम है, जैसा कि जनगणना 2011 के आंकड़ों से पता चलता है।
बाल विवाह उन समुदायों में व्याप्त है, जहां जन्म और मृत्यु दर उच्च है और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच कम है, जैसा कि निरंतर ट्रस्ट की 2015 की एक रिपोर्ट से पता चलता है। इस संस्था की रिपोर्ट से यह भी सामने आया था कि समृद्ध महिलाओं की अपने गरीब समकक्षों की तुलना में शादी चार साल बाद करने की संभावना होती है।
वैश्विक अनुसंधान संगठन ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन’ के अनुसार, बाल विवाह को समाप्त करने से राष्ट्रीय प्रजनन दर में औसतन 11 फीसदी की कमी आ सकती है, जिसमें कहा गया है कि 18 से पहले शादी करने वाली लड़कियों में प्रजनन काल का विस्तार होता है,जो समय से पहले और कई गर्भधारण, उच्च मातृ मृत्यु दर और उच्च शिशु मृत्यु दर की ओर जाता है।
एक गैर-लाभकारी संस्था, ‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए सीतापुर ब्लॉक समन्वयक, कोमल भट्टू कहती हैं, "12-14 वर्ष की उम्र में लड़कियों की शादी यहां एक आम घटना है। स्थितियां ऐसी हैं कि एक लड़की को तभी सुरक्षित माना जाता है, जब वह शादीशुदा हो। एक बालिका परिवार में गरीबी या मृत्यु से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है, क्योंकि उसे जिम्मेदारियों से तौला जाता है और उसे अपनी शिक्षा से समझौता करना पड़ता है।”
भट्टू कहती हैं, “जल्दी शादी का मतलब कम दहेज भी है। लोगों को अब पता है कि 18 से पहले शादी कानूनन अपराध है, लेकिन यह चलन में है (और) लोग अभी भी इस तरह का काम कर रहे हैं।"
विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि बाल विवाह की दर में गिरावट आई है लेकिन ये दृष्टिकोण अभी भी भारत के बड़े हिस्से में व्याप्त है, इसलिए जितनी तेजी से यह होना चाहिए, उतनी तेजी से नहीं हुआ है।
भारत में 644 जिलों में से 330 जिलों में राष्ट्रीय औसत से अधिक बाल विवाह की घटनाएं होती हैं। उच्च घटनाओं वाले टॉप 10 जिलों में से सात राजस्थान में, एक यूपी में हैं।
Source: National Commission for the Protection of Child Rights, 2017, Statistical Analysis of Child Marriage in India
बाल विवाह रोकने के लिए भारत की लड़ाई
भारत की बाल-विवाह दर गिनी और इथियोपिया की तरह खराब है और बुर्किना फासो से भी बदतर ( सभी तीन अफ्रीकी देश भारत की तुलना में गरीब हैं ) और बाल विवाह की उच्चतम दर वाले 10 देशों में छठे स्थान पर है।
भारत में बाल विवाह में गिरावट आई है, जैसा कि ये दुनिया भर में हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे।
भारत में महिलाओं के लिए विवाह की औसत आयु 2001 में 18.2 से बढ़कर 2011 में 19.2 वर्ष हो गई; यह लड़कों के लिए यह 2001 में 22.6 से बढ़कर 2011 में 23.5 हो गया है, जैसा कि नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCACR) की 2017 की इस रिपोर्ट से पता चलता है।
भारत के भीतर, यूपी के छह जिलों में बाल विवाह की घटना राष्ट्रीय औसत 26.8 फीसदी से दोगुनी है। उन जिलों में से एक सीतापुर है।
बाल विवाह की रिकॉर्डिंग करना और कानूनी कार्रवाई करना मुश्किल है। देश में बाल विवाह ज्यादातर अपंजीकृत होते हैं और वह किसी भी मानक डेटा संग्रह प्रणाली का हिस्सा नहीं हो पाता है।
बाल विवाह पर 2001 यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है, "10-14 आयु वर्ग में विवाह के लिए नगण्य डेटा मौजूद है।" उस स्थिति में आज भी बहुत बदलाव नहीं आया है।
यूपी में अधिकांश बाल विवाह दर्ज नहीं किए जाते हैं, जैसा कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), सरकारी लेखा परीक्षक, ने 2016 की एक रिपोर्ट में कहा है। रिपोर्ट से पता चलता है कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1976 के तहत वर्ष 2010-2011, 2011-12 और 2014-15 में उत्तर प्रदेश में बाल विवाह का कोई मामला दर्ज नहीं था।
2012-14 में बाल विवाह के दो मामले दर्ज किए गए।
2016 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार( नवीनतम उपलब्ध आंकड़ा, जो 15 मार्च 2018 को राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया) 2016 में, भारत में बाल विवाह के 326 मामले सामने आए।उन मामलों में से 236 में चार्जशीट प्रस्तुत की गई थी, और 956 मामलों को अभी भी पिछले वर्षों से लंबित है।
केवल 35 दोषी और 115 बरी होने के साथ, सजा की दर 14.7 फीसदी है और 93.4 फीसदी ऐसे मामलों में न्यायिक निर्णय का इंतजार है।
सीतापुर की बात करें। सरला देवी और उनके परिवार और दोस्तों ने उत्साहपूर्वक उसकी शादी की तैयारियां जारी रखीं। ऐसा लगता है कि उसके जीवन का चक्र अपने आप ही खत्म हो जाएगा। यह पूछने पर कि क्या वह अपने बच्चों को शिक्षित करेगी, इस सवाल पर सरला देवी असंतुष्ट दिखाई दी। उसने कहा, "जब मैंने पढ़ाई नहीं की, तो मैं अपने बच्चों को क्या सिखाऊंगी?"
(अली रिपोर्टर हैं और इंडिया्स्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 31 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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