स्वास्थ्य फंड खर्च नहीं और देश भर में 24 से 38 फीसदी तक मेडिकल स्टाफ की कमी
मुंबई: भारत के 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, उप केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 24 फीसदी से 38 फीसदी चिकित्सा कर्मियों की कमी है। यह जानकारी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा नवीनतम लेखापरीक्षा में सामने आई है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के कैग के आकलन पर आलेखों की इस श्रृंखला के पहले भाग में, हमने वित्तीय प्रबंधन के मुद्दों पर चर्चा की है। इस दूसरे और अंतिम भाग में हम सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर भौतिक आधारभूत संरचना और मानव संसाधनों की कमी पर चर्चा करेंगे।
सर्वेक्षण में पाया गया कि 73 फीसदी उप केंद्र, दूरस्थ गांव से 3 किमी से अधिक की दूरी पर थे। 28 फीसदी उप केंद्रों तक सार्वजनिक परिवहन की पहुंच नहीं थी ।17 फीसदी स्वच्छ नहीं थे। 24 राज्यों में, आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता पाई गई। इनमें से आठ राज्यों में आवश्यक दवाइयों / उपभोग्य सामग्रियों जैसे विटामिन-ए, गर्भनिरोधक गोलियां, मौखिक पुनर्निर्माण समाधान (ओआरएस) पैकेट और आवश्यक प्रसूति किट चुनिंदा स्वास्थ्य सुविधाओं पर उपलब्ध नहीं थे।
वर्ष 2005 में सामने आया एनएचएम, स्वास्थ्य देखभाल के लिए सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के उद्देश्य से भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम है। यह स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियों, संस्थानों और क्षमताओं को मजबूत करने के लिए राज्य स्वास्थ्य समितियों को धनराशि की सुविधा देता है।
लेकिन, जैसा कि हमने श्रृंखला के पहले भाग में बताया है, राज्य इन फंडों का बेहतर उपयोग नहीं कर रहे हैं और 2016 तक पांच वर्षों में राज्यों के साथ शेष राशि में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन में कमी दिखाई दे रही है।
77 फीसदी से 87 फीसदी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ नहीं
एनएचएम का उद्देश्य डॉक्टरों, विशेषज्ञों, पैरामेडिकल स्टाफ, सहायक नर्सिंग मिडवाइव (एएनएम) और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य सहयोगियों (आशा) की उपलब्धता में वृद्धि करके निर्बाध और गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करना है। राज्य सरकारों को मौजूदा रिक्तियों को नई संविदात्मक नियुक्तियों के साथ भरना है, जिसके लिए केंद्र धन प्रदान करता है।
हालांकि, कैग ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि पांच राज्यों-बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल-में स्वास्थ्य केंद्रों में करीब 50 फीसदी कर्मचारियों की कमी थी। बिहार के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की सबसे ज्यादा कमी देखी गई, लगभग 92 फीसदी।
सर्वेक्षित राज्यों में, यह पाया गया कि 77 फीसदी से 87 फीसदी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र विशेषज्ञ डॉक्टरों जैसे प्रसूतिविदों / स्त्री रोग विशेषज्ञों और बाल रोग विशेषज्ञों के बिना ही काम कर रहे थे। मंत्रालय की प्रतिक्रिया यह थी कि यह कमी कर्मियों की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण है। लेकिन राज्य सरकारों द्वारा डॉक्टरों और विशेषज्ञों की अतार्किक तैनाती भी कारण है।
मेडिकल कर्मियों की कमी, 2011-2016
Source: Comptroller and Auditor report
13 राज्यों-आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड-में सर्वेक्षण किए गए 305 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 67 यानी करीब 22 फीसदी, बिना किसी डॉक्टर के काम कर रहे थे।
13 राज्यों में, 10 फीसदी उप केंद्र में एएनएम / स्वास्थ्य कार्यकर्ता (महिला) की तैनाती नहीं की गई है। 22 राज्यों में से 65 फीसदी में पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तैनात नहीं किया गया था। महिला स्वास्थ्य कर्मचारी मातृ स्वास्थ्य पहलों की प्राथमिक संचालक हैं, लेकिन पुरुष स्वास्थ्य कर्मचारी सेवाओं को काफी हद तक पूरा कर सकते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
24 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में चयनित 236 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में, आवश्यक 2,360 नर्सों के मुकाबले केवल 1,303 नर्स काम कर रहे हैं।
प्रशिक्षित स्टाफ की कमी से संकट
17 राज्यों में, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे, ईसीजी, कार्डियक मॉनिटरिंग, दाहेक्रया, ऑपरेशन थियेटर के 428 उपकरण और 30 करोड़ रुपये लागत वाला रक्त भंडारण केंद्र डॉक्टरों और प्रशिक्षित स्टाफ की अनुपलब्धता के कारण निष्क्रिय / अप्रयुक्त थे।
मंत्रालय ने 12 वीं पंचवर्षीय योजना में धन की कमी को स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया है। 1,93,405 करोड़ रुपये की आवश्यकता के मुकाबले केवल 90,022 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए थे। हालांकि, कैग ने इस प्रतिक्रिया को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि हकीकत में राज्यों के पास पर्याप्त अव्ययित धन थे।
स्वास्थ्य केंद्र साफ नहीं, बिजली नहीं और पानी खराब
दवाओं की आपूर्ति सहित स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्यों को एनआरएचएम के तहत अपने कुल परिव्यय का 5 फीसदी तक प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिससे वे नीति तैयार कर सकें और आवश्यक दवाओं आदि के मुक्त वितरण के लिए सिस्टम बना सकें।
कैग द्वारा 1,443 उप केंद्रों, 514 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, 300 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और 134 जिला अस्पतालों के सर्वेक्षण से पता चला कि राज्य अपने एनएचएम उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं। कुछ स्वास्थ्य सुविधाएं अस्वास्थ्यकर वातावरण में काम कर रही थीं या सार्वजनिक परिवहन द्वारा पहुंच योग्य नहीं थीं।
अन्य बुनियादी ढांचे में इमारतों की खराब स्थिति, बिजली की अनउपलब्धता और पानी की खराब आपूर्ति, पुरुष और महिला लाभार्थियों के लिए अलग-अलग वार्डों की अनुपलब्धता आदि शामिल हैं।
राज्य अनुसार स्वास्थ्य सुविधाएं, 2011-2016
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Health Facilities, By State, 2011-2016 | ||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Sub Centres | Primary Health Centres | Community Health Centres | District Hospitals | |||||||||
Factors found deficient | No. | % | States /UT | No. | % | States /UT | No. | % | States /UT | No. | % | States /UT |
Distance of more than 3 km | 1031 | 73 | 29 | NA | NA | NA | NA | NA | NA | NA | NA | NA |
Not accessible by public transport | 404 | 28 | 28 | 104 | 20 | 24 | NA | NA | NA | NA | NA | NA |
Unhygienic surroundings | 236 | 17 | 27 | 96 | 19 | 27 | 78 | 26 | 19 | 40 | 30 | 24 |
Source: Comptroller and Auditor report
छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम और उत्तर प्रदेश में मोबाइल मेडिकल इकाइयां परिचालित नहीं थीं, जबकि 10 राज्यों में ये आंशिक रूप से परिचालित थीं।
17 राज्यों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और 25 राज्यों में, उप केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण में कमी 32 फीसदी से 44 फीसदी के बीच था। चार राज्यों-केरल, मणिपुर, मिजोरम और उत्तर प्रदेश- में, 2,208 करोड़ रुपये की लागत वाले 400 कामों को नामांकन आधार पर सम्मानित किया गया था।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में चिकित्सा उपकरणों की कमी
Source: Comptroller and Auditor report
आठ राज्यों में, एम्बुलेंस खरीदने के लिए आवंटित 175 करोड़ रुपये में से 156 करोड़ रुपये (89 फीसदी) खर्च नहीं हुए। लेखापरीक्षा द्वारा देखी गई अनियमितताओं में से प्रशासनिक देरी, खरीद प्रक्रिया शुरू करने के लिए निविदा प्रक्रिया, अन्य उद्देश्यों के लिए धन की विविधता आदि शामिल थीं।
आशा कार्यकर्ताओं को मेडिकल किटों की पुन: आपूर्ति नहीं
24 राज्यों में, कैग ने आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता के उदाहरणों की सूचना दी। इनमें से आठ में, आवश्यक दवाओं / उपभोग्य सामग्रियों जैसे कि विटामिन-ए, गर्भनिरोधक गोलियां, मौखिक पुनरावृत्ति संधि, प्रजनन पथ संक्रमण और यौन संक्रमित संक्रमण से निपटने के लिए दवाएं, आवश्यक प्रसूति किट और आदि चयनित स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध नहीं थीं।
2014 के बाद से भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर आवश्यक दवाओं की मुफ्त आपूर्ति अनिवार्य कर दी गई है। लेकिन रायपुर में राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र द्वारा एक अध्ययन में दिखाया गया है कि छत्तीसगढ़ में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में केवल 58 फीसदी निर्धारित दवाएं उपलब्ध थीं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 13 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। इससे मरीज निजी फार्मेसियों से उच्च कीमतों पर दवाएं खरीदने के लिए मजबूर हुए।
प्रत्येक आशा को ड्रग किट प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें ड्रग्स, उपकरण और उत्पाद का एक सेट शामिल हैं। ये किट महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे स्वास्थ्य श्रमिकों को देखभाल में सुविधा होती है।
आवश्यक सामग्री /दवाएं आशा के अधिकार में नहीं
ASHAs Not In Possession Of Item/Medicine | ||
---|---|---|
Item | Number surveyed | Percent of total ASHAs |
Disposable delivery kit | 3,249 | 83 |
Blood pressure monitor | 3,170 | 81 |
Thermometer | 1,060 | 27 |
Pregnancy kit | 1,428 | 28 |
Weighing scale (for newborns) | 887 | 23 |
Deworming pills | 1,299 | 33 |
Paracetamol tablets | 1,006 | 26 |
Iron pills | 878 | 22 |
Source: Comptroller and Auditor report
आशा नेटवर्क द्वारा मूल प्रजनन और बाल स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए डिस्पोजेबल डिलिवरी किट, ब्लड प्रेशर मॉनिटर, थर्मामीटर, गर्भावस्था किट, स्केल वजन और दवाएं जैसे की पेरासिटामोल टैबलेट और आयरन गोलियां जैसी चीजें आवश्यक हैं। 10 राज्यों-बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान, सिक्किम और पश्चिम बंगाल- में मेडिसीन किट्स की पुन: पूर्ति और आशा किट की अनुपलब्धता देखी गई है।
सभी 28 राज्यों में लौह फोलिक एसिड गोलियों की कमी देखी गई। इसी प्रकार, चार राज्यों -अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और मेघालय- में, 50 फीसदी से कम गर्भवती महिलाओं को टेटनस टोक्सॉयड टीका (टीटी 1 और टीटी 2) की खुराक के साथ टीका दिया गया था।
मंत्रालय ने कहा है कि दवाइयों के भंडारण और आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
लेखापरीक्षा में यह भी पाया गया कि राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए संस्थागत ढांचा या तो नहीं था या किसी भी स्तर पर सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं था।
पूरे देश में जिला अस्पतालों, सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए 2013 में कार्यक्रम लॉन्च किया गया था।
19 राज्यों में 716 सुविधाओं में से एक आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन टीम का गठन केवल 308 सुविधाओं (43 फीसदी ) में किया गया था। 15 राज्यों की 541 स्वास्थ्य सुविधाओं में, आवधिक आंतरिक मूल्यांकन की प्रणाली केवल 114 (21 फीसदी) सुविधाओं के लिए थी।
दो आलेखों की श्रृखंला यहां समाप्त होती है। पहला भाग आप यहां पढ़ सकते हैं।
(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 21 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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