हिमाचल प्रदेश की महिलाएं क्यों करती हैं काम: एक जैम फैक्टरी के पास है इसका जवाब
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में भुईरा जाम फैक्टरी की महिला टीम। महिलाओं के एक नौकरी का मतलब है, नारी शक्ति का स्वाभिमान का साथ। यहां हर किसी के पास, यहां तक कि अस्थायी कर्मचारी के पास भी एक बैंक खाता और डाकघर बचत योजनाएं हैं।
भुईरा, हिमाचल प्रदेश: उस सुबह हिमाचल प्रदेश के इस दूर दराज के गांव भुइरा में चल रही जैम फैक्ट्री में जैम नहीं बन रहे थे। वहां किसी भी फल का वजन नहीं लिया जा रहा था और न ही उन्हें काट कर उबाला जा रहा था। तराजू के पास पके हुए सतालू की टोकरी यूं ही पड़ी हुई थी।
भुईरा में जैम बनाने वाली महिला टीम का एक नया काम उस दिन शुरु हुआ था। काम था फैक्ट्री के कार्यालय को खाली करना, जिससे रंग-रोगन किया जा सके। शायद आदत अनुसार, महिलाओं ने सर पर टोपियां सुव्यवस्थित ढगं से पहन रखी थीं, जिसके नीचे से सिंदूर का टीका झलक रहा था।
एक कंप्यूटर के सामने बैठी उपासना कुमारी जैम बनाने का काम नहीं करती है। वह फैक्ट्री में प्रशासन का काम देखती है। सूचना प्रौद्योगिकी में बीएससी की डिग्री के साथ, किसान की इस बेटी ने बताया कि उसकी सभी सात बहनें और एक भाई, या तो शिक्षित हैं या शिक्षा पा रहे हैं। सबसे छोटी डॉक्टर बनना चाहती है और वह स्कूल के अंतिम वर्ष में है। सबसे बड़ी विवाहित है और अपने पति के मिलकर एक फल के बगीचे की देख-रेख करती हैं। उपासना ने बताया कि केवल उसी के पास ही वैतनिक नैकरी है।
उपासना का विवाह एक पुलिसकर्मी के साथ हुआ है। यानी पति के पास भी एक सुरक्षित नौकरी और स्थिर वेतन है। उपासना कहती हैं, “मैंने काम करने के बारे में तभी सोचा, जब मेरा बेटा तीन साल का हो गया है। पहले मैंने पार्ट टाइम नौकरी से शुरु किया और अब फुल टाइम काम करने लगी हूं। इसके लिए मैं इस कारखाने की आभारी हूं, क्योंकि इस दूरस्थ क्षेत्र में मेरी तरह की योग्यता रखने वाली किसी महिला के लिए रोजगार के कोई अवसर नहीं हैं।”
उपासना आगे कहती हैं, "अगर यह कारखाने नहीं होता तो मैं बिल्कुल भी काम नहीं कर पाती। इतनी पढ़ाई मैंने घर पर बैठने के लिए नहीं की है। "
सूचना प्रौद्योगिकी में बीएससी की डिग्री वाली उपसाना भूईरा जैम फैक्ट्री में एक प्रशासक हैं। कहती हैं, "मैंने इतनी पढ़ाई घर में बैठने के लिए नहीं की है।"
अपने पड़ोसी राज्यों, विशेषकर पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के विपरीत, सामाजिक विकास के संदर्भ में हिमाचल प्रदेश सकारात्मक रूप से खड़ा है।
जन्म के समय उच्चतर लिंग अनुपात, अधिक साक्षर और शिक्षित महिलाएं
वर्ष 2011 में भारतीय मानव विकास रिपोर्ट ने हिमाचल प्रदेश को केरल और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर रखा था। 1993-94 और 2011 के बीच ग्रामीण इलाकों में, जहां 90 फीसदी आबादी रहती है, गरीबी में काफी गिरावट हुई है। गरीबी के आंकड़े 36.8 फीसदी से गिरकर 8.5 फीसदी हुए हैं।
80 फीसदी भूमि सुधार, असाधारण संरचना; प्रबुद्ध नीति और कानून और एक निष्ठावान नागरिक, ये कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो इस राज्य को दूसरे से अलग बनाता है। आपको बता दें कि हिमालय प्रदेश प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य था।वर्ष 2015 में विश्व बैंक समूह का एक अध्ययन, ‘स्केलिंग द हाइट्स: सोशल इनक्लुशन एंड ससट्न्बल डेवल्पमेंट इन हिमाचल प्रदेश’ में भी इस राज्य को अधिकतर मामलों में दूसरे राज्यों से आगे बताया गया है।
मुख्य सूचकांक: हिमाचल प्रदेश बनाम भारत
Source: India and Himachal Pradesh factsheets, National Family Health Survey, 2015-16
इस राज्य की विशेषताएं काफी प्रभावशाली हैं, लेकिन एक विशेषता जिस पर पर्याप्त रूप से टिप्पणी नहीं की जाती है, वह है राज्य की महिलाओं की, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, नौकरियों में सक्रिय भागीदारी।
कुछ सालों से, अर्थशास्त्री और नीति निर्माताओं को वैतनिक नौकरियों में महिला श्रम शक्ति भागीदारी (एफएलएफपी) में महिलाओं की घटती संख्या परेशान कर रहा है।
वर्ष 2017 की विश्व बैंक की रिपोर्ट, ‘प्रेरकियस ड्राप: रिएसेसिंग पैटर्न ऑफ फीमेल लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन इन इंडिया’, के अनुसार, 2004-05 और 2011-12 के बीच, 19.6 मिलियन महिलाएं श्रम बल से बाहर हुई हैं।
वर्ष 1993-94 से 2011-12 के दौरान, भागीदारी 42.6 फीसदी से घटकर 31.2 फीसदी हुई है। लेकिन सबसे तेज गिरावट, 2004-05 और 2011-12 के दौरान ग्रामीण भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु वर्ग के युवा लड़कियों और महिलाओं के बीच हुई है।
इस प्रवृत्ति में अपवाद है हिमाचल प्रदेश।
महिला श्रमशक्ति भागिदारी: हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी राज्य
Source: Census 2011, Ministry of Statistics & Programme Implementation
हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण इलाकों के श्रम-शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी 47.4 फीसदी है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, इस संबंध में पहला स्थान सिक्किम का है। जून 2017 में विश्व बैंक द्वारा हालिया निष्कर्षों ने हिमचल को भी सिक्किम के बराबर स्थान दिया है।
ग्रामीण हिमाचल में महिलाएं करती हैं अधिक काम
देश के रुझानों को ध्यान में रखते हुए, हिमाचल प्रदेश में एफएलएफपी भी घट रहा है। वर्ष 2004-05 और वर्ष 2011-12 के बीच ग्रामीण भागीदारी 71 फीसदी से 67 फीसदी पर पहुंच कर चार प्रतिशत अंक कम हुई है जबकि शहरी भागीदारी भी 36 फीसदी से 30 फीसदी तक गिर गई, जैसा कि इस 2015 विश्व बैंक समूह की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
राज्य की महिला कार्यबल की भागीदारी का अधिकांश हिस्सा कृषि द्वारा संचालित होता है, फिर भी यह राज्य में बड़े पैमाने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। शहरी इलाकों में, यह चित्र 19.9 फीसदी की एफएलएफपी (जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक) के साथ बहुत उज्ज्वल नहीं है। जब आप ग्रामीण आबादी के साथ इसकी तुलना करते हैं तो यह काफी नहीं है, लेकिन फिर भी 15.4 फीसदी के आंकड़ों के साथ सभी भारतीय शहरी एफएलएफपी की तुलना में अधिक है।
श्रम शक्ति भागिदारी दर
Source: Census 2011 Data, Office of the Registrar General, India, Ministry of Statistics & Programme Implementation
विश्व बैंक समूह के 2015 के अध्ययन के प्रमुख लेखक मैत्रेयी बोर्डिया दास कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में पुरुष समकक्षों की तुलना में महिलाओं की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा है, जिनका कृषि के क्षेत्र में स्वयं का रोजगार है।"
‘इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के इंडिया सेंट्रल डिविजन में कंट्री डाइरेक्टर प्रणव सेन कहते हैं, “ पहाड़ी राज्यों में महिलाओं ने हमेशा काम किया है। नौकरी के लिए पलायन करने वाले पुरुषों और गांवों में आर्थिक गतिविधियों को हाथों में लेने वाली महिलाओं का लंबा इतिहास है। वे निर्णय लेती हैं। यह इन राज्यों में सांस्कृतिक रूप से अंतर्निहित है। ”
दास कहती हैं, “राज्य में कृषि में महिलाओं की भागीदारी संभवतः अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में से बहुत भिन्न है। उदाहरण के लिए बागवानी और फूलों की खेती, पारंपरिक फसलों की तुलना में ज्यादा मूल्य देते हैं।”
लेकिन, दास चेतावनी देते हुए कहती हैं कि भारत के अन्य क्षेत्रों में महिलाएं कृषि से वापस आ रही हैं। यदि हिमाचल को इस प्रवृत्ति से बचना है, तो "यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कृषि व्यवसाय में नए अवसरों के रूप में महिलाओं को भी लाभ हो।"
दास यह भी कहती हैं कि कृषि कठिन काम है। "हिमाचली महिलाएं खुद के रोजगार के रूप में कृषि में काम करती हैं। यह एक तरह से अच्छा है। इसका मतलब है कि वे खुद को मात्र सहायकों के रूप में नहीं मानती हैं बल्कि सक्रिय सदस्य हैं। लेकिन वह इस क्षेत्र में टिकी रहें, इसके लिए जरूरी है कि उनको काम का उचित मूल्य मिले।"
" मैं रोटी बना देती हूं, वह सब्जियां बना लेते हैं "-दसवीं पास नीलम देवी
‘खुशमिजाज पहाड़ी महिलाओं द्वारा निर्मित’, भूईरा लेबल वाले सभी जार में यही लिखा होता है। पिछले साल, इन खुशहाल महिलाओं ने 65,458 किलोग्राम जाम, जेली और चटनी की बिक्री 108,000 बड़ी और 54,955 छोटी बोतलों में की है, जो कारखाने के दो इकाइयों में बने थे। एक भूईरा में और एक नया जो कि वर्ष 2011 में पास के हैलोनीपुल गांव में स्थापित किया गया था।
इसे सबसे पहले भारत में अपना घर बनाने वाली एक अंग्रेज लिन्नेट मुशरान द्वारा शुरु किया गया था। शुरुआत में उन्होंने केवल मित्रों और परिवार के लिए उद्यम शुरु किया था। हिमाचल प्रदेश में घने जंगलों में सिरगौर जिले के राजगढ़ तहसील के भुइरा में आकर्षक पत्थर और स्लेट से बना कुटीर अब भी मुशरान का घर है। और वह कारखाना भी है जहां आठ पूर्णकालिक कर्मचारी काम करते हैं। जिनमें सभी महिलाएं हैं। मौसम में, 18 से 19 महिलाएं जैम बनाने का और करीब 12 से 15 पैक करने का काम करती हैं। मुशरान की बहू, रेबेका वाज, व्यापार का बढ़ाने में मदद कर रही हैं।
जिस सुबह मैं वहां पहुंची थी, मेरे साथ एक बाग की मालकिन 50 वर्षीय पूनम कंवर भी थी। पूनम को कारखाने से यह पता करना कि क्या आज वहां खुबानी और आड़ू की आवश्यकता है ?
कारखाने ने इस साल के ऑडर को पूरा कर लिया है। पूनम कंवर ने बताया कि उनके सबसे अच्छे अत्पादन मंडियों में बेचा जाता है और फिर दिल्ली में फलों के बाजारों में भेजा जाता है। वहां अन्य लोग भी ऐसी बिक्री करते हैं, लेकिन पूनम पिछले 10 सालों से जैम कारखाने में फलों की आपूर्ति कर रही हैं। जैम फैक्ट्री में फल बेचना उसके आय का एक अतिरिक्त स्रोत है।
पूनम कंवर के पास ज्यादा बात करने का समय नहीं था। कंवर के पास 150 फल के पेड़ हैं, जिनमें नींबू और सतालू के साथ-साथ खुबानी और नाशपाती भी शामिल हैं। वह खुद के लिए सब्जियां भी उगाती हैं। साथ ही उनके पास चार गायें भी हैं, जिनकी वो देखभाल करती हैं।
इस तरह के मेहनत वाले काम में उसके पति भी बराबरी से साथ देते हैं। उसके बेटे ने टेक्नोलॉजी में एम.ए पूरा कर लिया है और नौकरी कर रहा है, और उसकी 28 वर्षीय बेटी, जो अभी तक अविवाहित है, कंप्यूटर में पीएचडी है। वह बताती हैं, "शादी के पहले दिन से मैं जमीन के साथ उपजाने का काम करती आ रही हूं। लेकिन आजकल लड़कियों को शिक्षित किया जाता है और जब ऐसा होता है, तो उनके लिए खेती करने का सवाल नहीं उठता है।" पूनम कंवर की बेटी चंडीगढ़ में पढ़ाई कर रही है, जहां वह अकेली रहती है।
अन्य कई घरेलू स्त्रियां भी पति के साथ घर का काम साझा रुप से करती हैं। नीलम देवी दसवीं पास हैं और फैक्ट्री में काम करती हैं। नीलम बताती हैं, "शादी से पहले मैं भी काम करती थी। लेकिन तब यह मजे के लिए था। अब मैं कमाऊंगी ताकि मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर उन्हें अच्छे स्कूलों में भेज सकूं। पति भी साथ देते हैं। अगर उन्होंनेन घर पर मेरी मदद नहीं की, तो मैं बाहर कैसे काम कर सकती हूं? मैं रोटी बना लेती हूं, वह सब्जी बना लेते हैं। "
हिमाचल प्रदेश में महिला समुदाय की सक्रियता का लंबा और शायद अनूठा इतिहास है जैसा कि दास की विश्व बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है। हिमाचल प्रदेश में विवाहित शहरी महिलाओं की कम से कम 90.4 फीसदी और विवाहित ग्रामीण महिलाओं की 90 फीसदी महिलाओं ने ( 85.8 फीसदी और 83 फीसदी की अखिल भारतीय औसत से ऊपर है ) घरेलू निर्णय में भाग लेने की सूचना दी है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 में बताया गया है।
58 वर्षीय कमला देवी भूईरा गांव (जनसंख्या 685) की प्रधान हैं। यह भारत के लिए असामान्य है, जहां सिर्फ बेटा अपने पिता की भूमि का एकमात्र उत्तराधिकारी है। वह कहती हैं, "मैं यहां बड़ी हुई हूं और मैं इस गांव की बेटी हूं। "
एक सिपाही की विधवा, कमला देवी केरल और सिक्किम सहित पूरे भारत में रह चुकी हैं। वह कहती हैं, "जिस समय मैं उनके साथ गई, मैंने खेतों और फलों के पेड़ों की देखभाल के लिए आकस्मिक श्रमिक रखा।" उनके दो बेटों में से, बड़े की कैंसर से मृत्यु हो गई और छोटे का एक टेंट का व्यवसाय है। अब, वह खेतों में अकेले जाती है, और गांव परिषद का काम देखती है। यहां दसवीं तक एक सरकारी स्कूल और दो आंगनवाड़ी हैं। वह कहती हैं, “यहां की हर लड़की स्कूल जाती है। ”
महिलाएं कहां करती हैं काम
Source: National Sample Survey Office, 68th Round, Ministry of Statistics & Programme Implementation
मुझे उनकी बड़ी बहू रंजिता ने अपनी सास कमला देवी से परिचय कराया था, जिन्होंने 1999 में व्यावसायिक लाइसेंस प्राप्त होने वाले दिन से भूईरा जैम के साथ काम किया था। तब कमला देवी एक युवा महिला थी । अब जब उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और उनके खेतों पर काम में सहायता करने के लिए कोई नहीं है। हमने रंजिता से पूछा कि क्या कभी उसे मदद करने के लिए कहा गया तो उसने बताया, "नहीं। कभी नहीँ। मैंने हमेशा नौकरी की है। मेरी नौकरी छोड़ने का सवाल ही नहीं था।"
रंजिता देवी, जिसने 1999 में व्यावसायिक लाइसेंस प्राप्त होने वाले दिन से भूईरा जैम के साथ काम किया है।
भूईरा जैम की भव्य पर्यवेक्षक चार फुट की राम काली हैं जो हमेशा हंसती रहती हैं और कहती हैं उनकी उम्र 50 और 65 वर्ष के बीच है।
काली के माता-पिता हिमाचल प्रदेश में प्रवासी श्रमिक के रूप में आए थे। उसे पता ही नहीं चला है कि जब वे वापस चले गए और क्यों उसे एक हिमाचल परिवार के साथ छोड़ दिया गया। लेकिन यह राज्य तब से उसका घर रहा है। वह पहली बार अपने पति के साथ भूईरा आई थी। उसका पति एक दैनिक मजदूर था और कुछ साल पहले ही उसकी मृत्यु हो गई है। वह बताती हैं, "यह एक जंगल था। हमने भूमि को समतल किया, सेब के पेड़ और आलू को लगाया और देख रेख करते हुए यहां मुफ्त में रहते थे। "
काली कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन जैम कारखाने में दिन-प्रतिदिन के कार्यों का प्रबंधन पूरे आत्म-विश्वास के साथ करती है जैसे कितने फलों की आवश्यकता है, वहां पर्याप्त स्टॉक है या नहीं और दोपहर के भोजन के लिए कभी-कभी आगंतुक के लिए क्या पकाया जाना चाहिए आदि।
राम काली के माता-पिता हिमाचल प्रदेश में प्रवासी श्रमिक के रूप में आए थे। काली, भूईरा जैम में दिन-प्रतिदिन के कार्यों का प्रबंधन करती है.. जैसे कितने फलों की आवश्यकता है, वहां पर्याप्त स्टॉक है या नहीं और दोपहर के भोजन के लिए कभी-कभी आने वाले आगंतुकों के लिए क्या पकाया जाना चाहिए आदि।
वह कहती हैं, “इस कारखाने ने कई लोगों के जीवन को बदल दिया है।” नौकरी, सशक्तता को एक ठोस अर्थ देती है। हर कोई, यहां तक कि अस्थायी कर्मचारी, के पास एक बैंक खाता और डाकघर बचत योजनाएं हैं।यहां तक कि जो लोग यहां काम नहीं करते हैं, जैसे फल-सप्लायर पूनम कंवर के लिए भी यह अतिरिक्त आय का स्रोत है।
काली कहती हैं, "हिमाचल में, कोई भी कभी भी भूखा नहीं गया। लेकिन किसी के पास भी नकद नहीं था अब, हर महिला के पास पैसा है। "
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(भंडारे पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं। वे अक्सर भारत के उन लैंगिक के मुद्दों पर लिखती हैं, जिनका सामना समाज कर रहा होता है।)
लेख मूलत: अंग्रेजी में 23 सितंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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