कुपोषण से बचने के लिए देश को चाहिए ‘जादू की छड़ी’
केंद्रीय स्वास्थ और परिवार कल्याण मंत्रालय के कॉम्प्रेहेन्सिव नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे (सीएनएनएस) 2016-18 की हाल ही में आई रिपोर्ट में सामने आया है कि देश की एक बड़ी आबादी माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी का शिकार है। एक से 4 साल की उम्र तक के हर तीन में से एक बच्चे में आयरन की कमी पाई गई। देश की हर तीन में से एक किशोरी भी आयरन की कमी का शिकार पाई गई। किशोरियों में माहवारी शुरू होने के बाद हालात और बिगड़ जाते हैं।
आयरन, ज़िंक, फोलेट, आयोडीन, विटामिन-ए, विटामिन-बी12 और विटामिन-डी माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की श्रेणी में आते हैं। इनकी थोड़ी सी मात्रा शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद अहम होती है। शरीर में जितना फ़ायदा इनकी मौजूदगी का होता है, उतना ही नुक़सान इनकी कमी से हो सकता है। विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़ माइक्रोन्यूट्रीएंट्स को ‘जादू की छड़ी’ भी कहा जा सकता है।
सीएनएनएस के ज़रिये पहली बार बच्चों की पोषण स्थिति और उनमें माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी के आंकड़े सामने आए हैं। ये सर्वे देश के 30 राज्यों (तब जम्मू-कश्मीर एक राज्य था) के 0 से 19 साल तक की उम्र के लगभग एक लाख बच्चों और किशोरों पर किया गया।
आयोडीन दिमाग़ तेज़ रखने में मदद करता है और स्टिल बर्थ (20 हफ़्ते के बाद गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाना) और गर्भपात रोकता है। ज़िंक हड्डियों के विकास और इम्यूनिटी के लिए बेहद ज़रूरी होता है। फ़ोलेट अनीमिया को रोकता है। आयरन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है।
विटामिन बी-12, ख़ून और नर्वस सिस्टम के लिए ज़रूरी होता है, विटामिन-ए इम्यूनिटी बढ़ाता है और विटामिन-डी शरीर के स्वस्थ विकास में मदद करता है और रिकेट्स (हड्डियों की एक बीमारी) होने से रोकता है।
दुनियाभर के 200 करोड़ लोग माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी से होने वाले कुपोषण का शिकार हैं। इसका असर लोगों की सेहत, उनके सीखने और बड़े होने पर उनके कामकाज पर भी पड़ता है। माइक्रोन्यूट्रीएंट्स कुपोषण से लोगों में ज़्यादा बीमारियां और विकलांगता की वजह से उनके कामकाज की क्षमता कम हो जाती है। व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय विकास के लिए ज़रूरी है कि माइक्रोन्यूट्रीएंट कुपोषण से निपटा जाए।
भारतीय बच्चों, किशोरों, महिलाओं और वयस्कों में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी आम हैं। ये शरीर में अपने आप पैदा नहीं होते, इन्हें छोटी मात्रा में खाने के ज़रिये शरीर में पहुंचाना होता है। इनकी थोड़ी कमी से भी बच्चे अपाहिज तक हो सकते हैं, उनका विकास रुक सकता है और बड़े होकर इसका असर उनके काम पर भी पड़ सकता है। कुल मिलाकर माइक्रोन्यूट्रीएंट्स की कमी शरीर को बीमारियों का घर बना सकती है, यहां तक कि ये मौत का कारण भी बन सकती है।
बच्चों और किशोरों में उनके विकास के दिनों में विटामिन-ए इम्यूनिटी के लिए ज़रूरी होता है। विटामिन-ए की कमी से रतौंधी (रात में दिखाई ना देना) हो जाती है।
भारत में एक से चार साल तक की उम्र के 18% बच्चों में विटामिन-ए की कमी पाई गई है, 5 से 9 साल तक की उम्र के बच्चों में ये बढ़ कर 22% हो जाती है। 10 से 19 साल तक की उम्र के 16% किशोरों में भी विटामिन-ए की कमी पाई गई। 10 से 14 साल तक के बच्चों में 15 से 19 साल तक के किशोरों के मुक़ाबले इसकी ज़्यादा कमी पाई गई। इस मामले में झारखंड, मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना सबसे ख़राब पांच राज्यों में शामिल हैं ।
Jharkhand | 43.2% |
Mizoram | 39.2% |
Madhya Pradesh | 27.1% |
chhattisgarh | 26.6% |
Telangana | 26.5% |
Source: Comprehensive National Nutrition Survey 2016-2018
विटामिन-डी हड्डियों के लिए बेहद ज़रूरी होता है और इसका सबसे अच्छा ज़रिया सूरज से मिलने वाली अल्ट्रावायलेट-बी किरणें होती हैं।
भारत में एक से चार साल तक की उम्र के 14%, 5 से 9 साल तक की उम्र के 18% और 10 से 19 साल तक की उम्र के 24% बच्चों और किशोरों में विटामिन-डी की कमी पाई गई। शहरों में एक से चार साल तक की उम्र के शाकाहारी और ग़रीब बच्चों में विटामिन-डी की ज़्यादा कमी पाई गई। सभी उम्र के सिख और अनुसूचित जनजातियों के बच्चों में विटामिन-डी की कमी बाक़ी धर्म और जातियों के बच्चों के मुक़ाबले, ज़्यादा पाई गई।
एक से चार साल तक की उम्र के बच्चों में विटामिन-डी की कमी के मामले में पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, दिल्ली और हरियाणा का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा ।
Punjab | 52.1% |
Uttarakhand | 46.4% |
Manipur | 41.2% |
Delhi | 32.5% |
Haryana | 27.6% |
Source: Comprehensive National Nutrition Survey 2016-2018
भारत के एक से चार साल तक की उम्र के हर पांचवे बच्चे (19%) के शरीर में ज़िंक की कमी पाई गई। 5 से 9 साल की उम्र तक के 17% और 10 से 19 साल की उम्र तक के 32% बच्चों और किशोरों में ज़िंक की कमी पाई गई।
नागालैंड में सबसे कम 1% (1-4 साल), 2% (5-9 साल) और 4% (10-19 साल) ज़िंक की कमी पाई गई। एक से चार साल की उम्र तक के बच्चों में ज़िंक की कमी के मामले में हिमाचल प्रदेश, झारखंड, असम, मणिपुर और गोवा का प्रदर्शन सबसे ख़राब है ।
ज़िंक शरीर के लिए कितना ज़रूरी है, इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी कमी से शारीरिक विकास में रुकावट पैदा हो जाती है, भूख लगनी बंद हो जाती है और इम्यूनिटी सिस्टम ख़राब हो जाता है। ज़िंक की ज़्यादा कमी हो जाए तो बाल झड़ने लगते हैं, डायरिया हो जाता है, पुरुषों में नपुंसकता, हायपोगोनैडिज़्म या सेक्स से जुड़े हार्मोंस की कमी, यौन विकास में देरी, आंखों और त्वचा में घाव आदि हो सकते हैं।
Himachal Pradesh | 41.1% |
Jharkhand | 28.4% |
Assam | 27.1% |
Manipur | 26.6% |
Goa | 25.6% |
Source: Comprehensive National Nutrition Survey 2016-2018
भारत में 1 से 4 साल की उम्र के 14%, 5-9 साल के 17% और 10 से 19 साल की उम्र के 13% बच्चों और किशोरों में विटामिन बी-12 की कमी पाई गई। एक से चार साल के बच्चों में विटामिन बी-12 की सबसे ज़्यादा कमी गुजरात (29%) में पाई गई, और सबसे कम (2%) पश्चिम बंगाल में।
एक से 4 साल की उम्र के 23%, 5 से 9 साल के 28% और 10 से 19 साल के 37% बच्चों और किशोरों में फ़ोलेट की कमी पाई गई। फ़ोलेट की कमी 1 से 4 साल तक की उम्र के बच्चों में सबसे ज़्यादा, नागालैंड में 74.1% और सबसे कम सिक्किम में 0.1% पाई गई।
विटामिन बी-12 और फ़ोलेट की कमी से मैक्रोसाइटिक अनीमिया होता है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं बड़ी हो जाती हैं। विटामिन बी-12 ज़्यादातर मांसाहार से मिलता है और बी-12 की कमी अक्सर शाकाहारी लोगों में पाई जाती है।
देश के 12% किशोरों और 31% किशोरियों में आयरन की कमी पाई गई। ग्रामीण इलाक़ों के मुक़ाबले शहरी इलाक़ों में ज़्यादा बच्चे अनीमिक पाए गए।
एक से 4 साल की उम्र तक के 32%, 5 से 9 साल की उम्र तक के 17% और 10 से 19 साल की उम्र तक के 22% बच्चों और किशोरों में आयरन की कमी पाई गई। दो साल से कम उम्र के बच्चों में सबसे ज़्यादा आयरन की कमी पाई गई।
दस साल की उम्र तक के लड़के और लड़कियों में आयरन की कमी और अनीमिया, दोनो घटते हुए नज़र आए। लड़कों में उम्र के साथ दोनो ही घटते रहे मगर लड़कियों में माहवारी शुरू होते ही आयरन की कमी और अनीमिया, दोनो बढ़ते हुए पाए गए। 31% किशोरियों में आयरन की कमी पाई गई जो लड़कों (12%) के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा है।
एक से चार साल की उम्र तक के बच्चों में आयरन की कमी सबसे ज़्यादा जिन पांच राज्यों में पाई गई वो हैं, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड और कर्नाटक।
अनीमिया होने से किशोरियों में गर्भवस्था के दौरान ख़तरे बढ़ जाते हैं, बच्चों का विकास रुक जाता है और वो ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाते और इनकी कमाई की क्षमता भी कम हो जाती है। कुछ मामलों में मृत्यु तक हो जाती है।
वीकली आयरन एंड फ़ोलिक ऐसिड सप्लीमेंटेशन प्रोग्राम और नेशनल न्यूट्रीशनल अनीमिया कंट्रोल प्रोग्राम के तहत बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को आयरन और फ़ोलिक एसिड की गोलियां बांटी जाती हैं।
साथ ही सरकार पीडीएस स्कीम के तहत चावल का फ़ॉर्टिफ़िकेशन करती है, यानी कि उसमें ऊपर से आयरन, फ़ोलिक एसिड और विटामिन बी-12 मिलाती है। फ़िलहाल नौ राज्यों में ऐसा एक पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। ये नौ राज्य हैं आंध्रप्रदेश, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, असम और तमिलनाडु।
Punjab | 67.2% |
Haryana | 58.9% |
Gujarat | 55.7% |
Uttarakhand | 51.2% |
karnataka | 50.1% |
Source: Comprehensive National Nutrition Survey 2016-2018
(
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण की शुद्धता के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।