सतत विकास लक्ष्यों में देश को पीछे खींच रहे हैं बिहार और उत्तर प्रदेश
नई दिल्ली: बिहार और उत्तर प्रदेश में भुखमरी, ग़रीबी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे अहम मसलों पर पर विकास नहीं हो रहा है, नीति आयोग की हाल ही में आई सालाना रिपोर्ट में यह सामने आया है। इन दो राज्यों में विकास के आंकड़े देश भर के आंकड़ों पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं। यही वजह है कि भारत साल 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्य यानी सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स (एसडीजी) पूरा करता नज़र नहीं आ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य यानी सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स हर देश को अधिक सम्पन्न, समतावादी और संरक्षित बनाने के मक़सद से जारी किए गए हैं। यह लक्ष्य स्वास्थ्य, पर्यावरण, ग़रीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वच्छता, ऊर्जा आदि जैसे 17 अहम बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। देश के समग्र, चौमुखी विकास के लिए इन सभी 17 गोल्स पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है।
जनवरी 2020 में आई नीति आयोग की सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स इंडेक्स 2019-20 के अनुसार भारत को इन 17 लक्ष्यों पर अपने प्रदर्शन के लिए 100 में 60 अंक दिए गए हैं। भारत ने 2018 के मुक़ाबले तीन अंक की बढ़त हासिल की है, मगर कई अहम लक्ष्य जैसे भुखमरी और कुपोषण कम करने में भारत को 12 अंक कम मिले हैं।
एसडीजी के मामले में बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन देश के सबसे ख़राब 6 राज्यों में शामिल है। इन दोनों राज्यों में देश की 24% आबादी रहती है, यानी जब तक एसडीजी में इन राज्यों की तरफ़ से बेहतर प्रदर्शन नहीं होता तब तक भारत के लिए यह लक्ष्य पूरा कर पाना बेहद मुश्किल होगा।
बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों ही साल 2018 में 50 से भी कम अंकों के साथ ऐस्पिरेंट यानी आकांक्षी की श्रेणी में थे और 2019 में दोनों राज्य 50 अंकों से ऊपर पहुंच कर परफ़ॉर्मर की श्रेणी में आ चुके हैं। हालांकि बिहार सिर्फ़ 50 अंक ही ले पाया पर उत्तर प्रदेश ने देशभर में सबसे ज़्यादा बढ़त हासिल की और 2018 में 42 के मुक़ाबले 2019 में 55 अंकों पर आ गया।
बिहार और उत्तर प्रदेश के साथ सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले दूसरे राज्य हैं अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय और असम। पहले पांच लक्ष्यों-- ग़रीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता पर बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन ख़राब रहा।
क्या हैं सतत विकास लक्ष्य और इनका महत्व
17 एसडीजी और 169 उद्देश्य 2030 एजेंडा का हिस्सा हैं जिसे सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की शिखर बैठक में 193 सदस्य देशों ने अनुमोदित किया था। यह एजेंडा 1 जनवरी 2016 से प्रभावी हुआ और दुनियाभर के देशों की सरकारों और लाखों नागरिकों ने मिलकर अगले 15 साल के लिए सतत विकास हासिल करने का वैश्विक मार्ग अपनाया। भारत भी इन देशों में एक है।
भारत में इन लक्ष्यों के विकास के तालमेल का काम नीति आयोग को सौंपा गया है। हर साल नीति आयोग एक इंडेक्स जारी करता है जिसमें इन लक्ष्यों पर देश और राज्यों के विकास को उनके प्रदर्शन के आधार पर 100 में से अंक दिए जाते हैं। इसमें इस साल भारत को 60 अंक मिले हैं और सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले राज्य, बिहार को 50 अंक दिए गए हैं।
2030 के लिए वैश्विक एजेंडे का मूल मंत्र है: ‘कोई पीछे न छूटे’
Source: United Nations
दुनिया के सभी देश एसडीजी हासिल करने की दिशा में काम करें यह ज़रूरी है ताकि पूरा विश्व इन लक्ष्यों को हासिल कर सके। दुनिया भर की आबादी का 17% हिस्सा भारत में रहता है, यानी अगर भारत और भारतीयों के जीवन का सतत विकास नहीं होता है तब तक दुनियाभर में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए क्या क़दम उठा रहा है यह आपको विस्तार से आगे बताएंगे।
इन लक्ष्यों को हासिल करने में भारत को सबसे बड़ी रुकावट बिहार से आ रही है।
बिहार में विकास के आंकड़े
बिहार को 100 में 50 अंक दिए गए और पहले 5 एसडीजी यानी ग़रीबी, भुखमरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और लैंगिक समानता में राज्य ने सबसे ख़राब प्रदर्शन किया।
17 में से 8 लक्ष्यों पर बिहार को 50 से कम अंक मिले, 6 लक्ष्यों में 50 से 60 के बीच अंक मिले और सिर्फ़ दो लक्ष्यों में बिहार का प्रदर्शन बेहतर रहा। यह दो लक्ष्य थे एसडीजी 6 यानी स्वच्छता और साफ़ पानी सुनिश्चित करना जिसमें बिहार को 81 अंक मिले और एसडीजी 10 यानी राज्य में असमानताओं को कम करना जिसमें बिहार को 74 अंक दिए गए।
बिहार का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा शिक्षा के मामले में और इस लक्ष्य में बिहार को सिर्फ़ 19 अंक दिए गए। राज्य के 6 से 13 साल के 5% बच्चे स्कूल नहीं जाते, औसतन 40% बच्चे माध्यमिक शिक्षा बीच में ही छोड़ देते हैं जो देश में सबसे ज़्यादा है और 5 से 19 साल के 41.6% विकलांग बच्चे स्कूल नहीं जाते। सिर्फ़ 21.7% स्कूलों में अध्यापक और छात्रों का अनुपात 30 या उससे कम है। 18 से 23 साल की उम्र के सिर्फ़ 13.6% बच्चे उच्च शिक्षा में दाख़िला लेते है। उच्च शिक्षा में लैंगिक अनुपात 0.79 है, और यह दोनो आंकड़े बिहार में देश के सबसे ख़राब है। तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं कक्षा के 27.5% बच्चों की कुशलता उनकी पढ़ाई के अनुपात में कम है।
भुखमरी मिटाने के मामले में भी बिहार का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा। इस मामले में राज्य को सिर्फ़ 26 अंक मिले। बिहार में पांच साल की उम्र तक के 42% बच्चे स्टंटेड हैं यानी उम्र के हिसाब से इनका क़द कम है, यह आंकड़ा देशभर में सबसे ख़राब है। चार साल की उम्र तक के 38.7% बच्चे अंडरवेट हैं यानी इनका वज़न इनकी उम्र के अनुपात में काफ़ी कम है। अंडरवेट और स्टंटिंग कुपोषण की सबसे बड़ी पहचान है। 15 से 49 साल की 58.3% गर्भवती महिलाओं को अनीमिया है, साथ ही 6 महीने से पांच साल की उम्र तक के बच्चों में 43.7% भी अनीमिक हैं। भुखमरी का कारण अनाज की कमी भी है, बिहार में चावल, गेहूं और मोटे अनाज का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 2,748.3 किलो ही था जबकि लक्ष्य 5,033.3 किलो का था।
बिहार में ग़रीबी की हालत काफ़ी ख़राब है और राज्य को इसके लिए 33 अंक मिले। बिहार की 33.7% आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है, और 8.2% लोग आज भी कच्चे मकानों में रहते हैं, 23% लोग ऐसे हैं जिन्होंने मनरेगा के तहत रोज़गार मांगा और उन्हें नहीं मिला। 88% परिवार किसी भी स्वास्थ्य बीमा या योजना के लाभार्थी नहीं है, 47% गर्भवती महिलाओं या नई माओं को मातृत्व सुविधाओं के तहत कोई सुरक्षा, सुविधा या लाभ नहीं मिला।
पांचवे एसडीजी यानी लैंगिक समानता में बिहार को 40 अंक दिए गए, यहां लड़का-लड़की में असमानताएं मौजूद हैं। बिहार में जन्म के समय पर लिंग अनुपात 900 है यानी हर 1000 लड़कों के जन्म पर सिर्फ़ 900 लड़कियां पैदा होती हैं, जिसका लक्ष्य 954 है। महिलाएं पुरुषों के मुक़ाबले 18% कम कमाती हैं, राज्य के लेबर फ़ोर्स या श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 3% है, और सिर्फ़ 1.5% महिलाओं के पास खेती की ज़मीन का मालिक़ाना हक़ है। एक लाख महिलाओं की आबादी पर 28 महिलाएं हिंसा का सामना करती हैं और 15 से 49 साल की 45% शादीशुदा महिलाएं अपने पति से हिंसा का सामना करती है। जिन बच्चों के साथ यौन हिंसा हुई उनमें से 47.8% लड़कियां हैं। राज्य की विधान सभा में महिलाओं की भागीदारी 12% है।
स्वास्थ्य के मामले में भी बिहार काफ़ी पीछे रहा और इसे 44 अंक मिले। राज्य का मेटर्नल मॉर्टैलिटी रेशो यानी मातृ मृत्यु दर 165 है और राज्य में 42.5% गर्भवती महिलाओं का संस्थागत प्रसव होता है। पैदा होने से लेकर पांच साल तक की उम्र के बीच हर हज़ार में से 58 बच्चों की मौत हो जाती है और पांच साल तक की उम्र के 52% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ है। 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से सिर्फ़ 23% परिवार नियोजन के तरीक़ों का इस्तेमाल करती हैं। हर एक लाख की आबादी पर टीबी के 87 केस रिपोर्ट किए गए। हर 1,000 लोगों पर सिर्फ़ 19 फ़िज़िशियन, नर्स, या दाई मौजूद हैं।
उत्तर प्रदेश में विकास के आंकड़े
उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन देश में पांचवां सबसे ख़राब रहा, और राज्य को कुल 55 अंक दिए गए, और पहले 5 एसडीजी यानी ग़रीबी, भुखमरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और लैंगिक समानता में राज्य ने सबसे ख़राब प्रदर्शन किया।
17 में से 7 लक्ष्यों में उत्तर प्रदेश को 50 से कम अंक दिए गए, 7 लक्ष्यों में 50 से 60 के बीच अंक मिले और सिर्फ़ दो लक्ष्यों में उत्तर प्रदेश ने अच्छा काम किया। यह दो लक्ष्य थे एसडीजी 6 यानी स्वच्छता और साफ़ पानी सुनिश्चित करना जिसमें उत्तर प्रदेश को 94 अंक मिले और और एसडीजी 16 यानी शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान जिसमें उत्तर प्रदेश को 69 अंक दिए गए।
उत्तर प्रदेश ने देशभर में 2018 के मुक़ाबले, 2019 में सबसे ज़्यादा बढ़त गोल 7 में हासिल की यानी सस्ती और साफ़ ऊर्जा जिसमें 40 अंको की बढ़त देखी गई। गोल 6 यानी साफ़ जल और स्वच्छता में 39 अंक की बढ़त हुई और गोल 9 यानी उद्योग, नव रचना और इन्फ़्रास्ट्रक्चर में 34 अंको की बढ़त हुई।
स्वास्थ्य के मामले में उत्तर प्रदेश देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल है। नीति आयोग की जून 2019 में आयी स्टेट हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट 2019 के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश 28.6 अंकों के साथ देश का सबसे ख़राब राज्य पाया गया।
Source: Niti Aayog
एसडीजी 3 यानी स्वास्थ्य के मामले में मिले 34 अंक भी ऐसी ही तस्वीर दिखाते हैं। राज्य का मेटर्नल मॉर्टेलिटी रेशो यानी मातृ मृत्यु दर 216 है यानी 1,000 गर्भवती महिलाओं में से 216 की प्रसव के दौरान या इसके पहले मौत हो जाती है। राज्य में सिर्फ़ 41.3% गर्भवती महिलाओं का संस्थागत प्रसव होता है।
पैदा होने से लेकर पांच साल तक की उम्र के बीच हर हज़ार में से 78 बच्चों की मौत हो जाती है, यह आंकड़ा देश भर के सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा है। पांच साल तक की उम्र के 45.4% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ है। 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से सिर्फ़ 32% परिवार नियोजन के तरीक़ों का इस्तेमाल करती हैं। हर एक लाख की आबादी पर टीबी के 187 केस रिपोर्ट किए गए। हर 1,000 लोगों पर सिर्फ़ 13 फ़िज़िशियन, नर्स, या दाई मौजूद हैं।
उत्तर प्रदेश को भुखमरी कम करने के मामले में 36 अंक मिले। राज्य में पांच साल की उम्र तक के 39% बच्चे स्टंटेड हैं यानी उम्र के हिसाब से इनका क़द छोटा है और चार साल की उम्र तक के 36.8% बच्चे अंडरवेट हैं यानी इनका वज़न इनकी उम्र के अनुसार काफ़ी कम है। अंडरवेट और स्टंटिंग कुपोषण की मुख्य पहचान है । 15 से 49 साल की 51% गर्भवती महिलाएं अनीमिक हैं, साथ ही 6 महीने से पांच साल तक के बच्चों में 43% अनीमिक हैं। भुखमरी का कारण अनाज की कमी भी है, उत्तर प्रदेश में चावल, गेहूं और मोटे अनाज का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 2,430.3 किलो ही था जबकि लक्ष्य 5033.3 किलो का है।
उत्तर प्रदेश को ग़रीबी मिटाने के लिए 40 अंक मिले। राज्य की 29.43% आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है, और 6.4% लोग आज भी कच्चे मकानों में रहते हैं, 16% लोग ऐसे हैं जिन्होंने मनरेगा के तहत रोज़गार मांगा और उन्हें नहीं मिला। 94% परिवारों के पास कोई भी स्वास्थ्य बीमा योजना नहीं है, 51% गर्भवती महिलाओं या नई माओं को मातृत्व सुविधाओं के तहत कोई सुरक्षा, सुविधा या लाभ नहीं मिला।
लैंगिक समानता यानी महिलाओं और पुरुषों में बराबरी के मामले में उत्तर प्रदेश को 41 अंक दिए गए। उत्तर प्रदेश में जन्म के समय पर लिंग अनुपात 878 है यानी हर 1000 लड़कों के जन्म पर सिर्फ़ 878 लड़कियां पैदा होती है, जिसका लक्ष्य है 954। राज्य के लेबर फ़ोर्स यानी श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी 9.4% हैं, और सिर्फ़ 1.25% महिलाएं ही खेती की ज़मीन की मालिक हैं। हर एक लाख महिलाओं की आबादी पर 53 महिलाएं हिंसा का सामना करती हैं और 15 से 49 साल की 38.3% शादीशुदा महिलाएं अपने पति से हिंसा का सामना करती हैं। बच्चों के साथ हुई यौन हिंसा में से 72% पीड़ित लड़कियां हैं। राज्य की विधानसभा में महिला विधायक सिर्फ़ 11% हैं।
सभी तक अच्छी शिक्षा पहुंचाने के मामले में उत्तर प्रदेश को 48 अंक दिए गए। राज्य के 6 से 13 साल के 4% बच्चे स्कूल नहीं जाते, औसतन 13% बच्चे माध्यमिक शिक्षा बीच में ही छोड़ देते हैं और 5 से 19 साल के 59.2% विकलांग बच्चे स्कूल नहीं जाते। 44% स्कूलों में अध्यापक और छात्रों का अनुपात 30 से ज़्यादा है। 18 से 23 साल के उम्र के सिर्फ़ 26% बच्चे उच्च शिक्षा में दाख़िला लेते है। उच्च शिक्षा में लैंगिक अनुपात 1.14 है,। तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं कक्षा के 55% बच्चों की कुशलता उनकी पढ़ाई के स्तर से कम है।
भारत और सतत विकास लक्ष्य
भारत को 100 में से कुल 60 अंक हासिल हुए, और देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे केरल और चंडीगढ़। भारत ने साल 2018 में 57 अंक के मुक़ाबले इस साल तीन अंक ज़्यादा हासिल किए, यह बढ़त साफ़ जल और स्वच्छता, सस्ती और साफ़ ऊर्जा; और उद्योग, नव रचना और इन्फ़्रस्ट्रक्चर के विकास में हुए सुधार से आयी है।
Source: Niti Aayog
ग़रीबी मिटाने, भुखमरी कम करने, आर्थिक विकास और रोज़गार बढ़ाने, असमानता कम करने, ज़मीन पर जीवन को बचाने और शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान बनाने के मामले में भारत के अंक कम हुए हैं। लैंगिक समानता और भुखमरी मिटाने के मामले में देश सबसे पीछे रहा और इन दोनो मामलों में भारत के अंक 50 के नीचे रहे।
देश का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा भुखमरी कम करने में जहां भारत को 2018 में 48 के मुक़ाबले 2019 में सिर्फ़ 35 अंक मिले। देश का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा एसडीजी 6 यानी साफ़ जल और स्वच्छता में जहां भारत को 88 अंक मिले, नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण देशभर में चला स्वच्छ भारत अभियान है।
(साधिका, इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट हैं।)
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