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करीब 77 फीसदी भारतीय माता-पिता वृद्धावस्था में अपने बेटे के साथ रहने की उम्मीद करते हैं जबकि बेटियों के साथ रहने के मामले में यही आंकड़े केवल 7 फीसदी है। यह आंकड़े भारत मानव विकास सर्वेक्षण (IHDS) में सामने आए हैं जो मैरीलैंड विश्वविद्यालय और नेश्नल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर), नई दिल्ली, के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रुप से आयोजित किया गया है।

ये IHDS -2 (2011-12) डाटा-सेट के निष्कर्ष हैं जिसमें 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से 41,554 परिवारों का प्रतिनिधि नमूना शामिल किया गया है।

हरियाणा में, जहां देश का सबसे कम बाल लिंग अनुपात है (प्रति 1,000 लड़कों पर 834 लड़कियां) 99 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वृद्धावस्था में वे अपनी बेटियों की बजाए अपने बेटों के साथ रहना चाहेंगे।

इस संबंध में हरियाणा के बाद दूसरा स्थान महाराष्ट्र का रहा है। महाराष्ट्र में 85 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि अपने वृद्धावस्था में वे अपने बेटों से समर्थन की उम्मीद करते हैं।

बेटे बनाम बेटियां : कई भारतीय चाहते हैं कम से कम एक बेटी

सर्वेक्षण में लिए गए 73 फीसदी उत्तरदाताओं का कहना है कि आदर्शत: उन्हें एक बेटी होनी चाहिए जबकि 11 फीसदी का मानना है कि आदर्शत: उन्हें दो बेटियां होनी चाहिए।

जबकि 60 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना है कि आदर्शत: उन्हें एक बेटा होना चाहिए जबकि 26 फीसदी का मानना है कि उन्हें दो बेटे होने चाहिए।

11% भारतीय आदर्शत: चाहते हैं 2 बेटियां, 26% चाहते हैं 2 बेटे

Source: India Human Development Survey

एक अतिरिक्त बच्चे के लिए प्राथमिकताएं पूछने पर अधिक लोगों (73 फीसदी) ने कहा कि वे कम से कम एक बेटी चाहते हैं जबकि केवल 6 फीसदी लोगों ने कहा कि वे बेटी ही चाहते हैं।

यह सर्वेक्षण लोगों के व्यवहार का परीक्षण करने के लिए अप्रत्यक्ष सवालों पर आधारित था। पूछे गए कुछ सवाल थे: आदर्शत: आप कितने बेटे एवं बेटियां चाहते हैं? यदि आपका एक अतिरिक्त बच्चा हो तो आप बेटे या बेटी में से क्या पसंद करेंगे?

इंडियास्पेंड ने भारतीय राज्यों में लिंग अनुपात के साथ अतिरिक्त बच्चे के रूप में बेटों के लिए वरीयता आयोजित की है।

महाराष्ट्र में शिशु लिंग अनुपात कम है (प्रति 1,000 लड़कों पर 894 लड़कियां) एवं अतिरिक्त बच्चे के लिए बेटे की वरीयता अधिक (39 फीसदी) है।

केवल 6% भारतीय अतिरिक्त बच्चे के रुप में बेटी चाहते हैं

Source: India Human Development Survey

उम्र की ढलान पर समर्थन के रुप में बेटे

भारतीय अभिभावकों में बेटे की वरीयता का मुख्य कारण वृद्धवस्था में बेटे पर निर्भर होने की उम्मीद होना है।

¾ से अधिक उत्तरदाताओं (77 फीसदी) का कहना है कि उम्र की ढलान पर यानि वृद्धावस्था के दौरान वे अपने बेटे पर निर्भर होने की उम्मीद करते हैं। केवल 16 फीसदी लोगों का कहना है कि वे वृद्धावस्था के दौरान अपनी बेटी के साथ रहने के संबंध में सोच सकते हैं।

हरियाणा में 90% लोगो वृद्धावस्था में अपने बेटे के साथ रहना चाहते हैं।

Source: India Human Development Survey

राष्ट्रीय औसत की तुलना में दक्षिण राज्यों का प्रतिशत अधिक है।

त्रिपुरा में ऐसे अभिभावकों की प्रतिशत सबसे अधिक (72 फीसदी) है जो वृद्धावस्था में अपनी बेटियों के साथ रहने चाहते हैं। इस संबंध में त्रिपुरा में 17 फीसदी के आंकड़े के साथ दूसरा स्थान तमिलनाडु का है।

वृद्धावस्था में केवल 7 फीसदी भारतीय अभिभावक रहना चाहते हैं बेटियों के साथ

Source: India Human Development Survey

पिछले सात वर्षों में यह धारणा कि अभिभावक बेटियों के साथ रह सकते हैं, इसमें सुधार हुआ है: यह पूछने पर कि क्या वे बेटियों के साथ रहने के संबंध में सोच सकते हैं, 2004-04 में हुए पिछले सर्वेक्षण में 14 फीसदी लोगों ने इसका उत्तर हां में दिया जबकि 2011-12 में हुए सर्वेक्षण में 16 फीसदी लोगों ने इसका जवाब हां में दिया है।

पैसों के लिए बेटियों पर नहीं रह सकते निर्भर

वृद्धावस्था के दौरान कम से कम 74 फीसदी भारतीय अपने बेटे से आर्थिक समर्थन मिलने की उम्मीद करते हैं। केवल 18 फीसदी लोगों का कहना है कि वे वृद्धावस्था के दौरान बेटियों से आर्थिक समर्थन के संबंध में सोच सकते हैं।

वृद्धावस्था के दौरान 74% भारतीय अभिभावक बेटे से आर्थिक सहायता की उम्मीद करते हैं।

Source: India Human Development Survey

वृद्धावस्था के दौरना केवल 18% भारतीय अभिभावक बेटियों से आर्थिक समर्थन के संबंध में सोच सकते हैं।

Source: India Human Development Survey

(सालवे एवं तिवारी इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 17 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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