जलवायु हॉटस्पॉट: गर्म होता अरब सागर, गुजरात के पश्चिमी तट के मछुआरों की आजीविका पर संकट

समुद्र के तापमान में बदलाव की वजह से परंपरागत रूप से तटों के पास पाई जाने वाली मछलियां अब गहरे पानी में जा रही हैं। ऐसे में अब मछुआरों को गहरे पानी में जाना पड़ रहा जिसकी वजह से उनका अधिक समय और पैसा खर्च हो रहा।

Update: 2023-06-21 07:00 GMT

मछुआरे गुजरात के पोरबंदर के तट पर समुद्र में जाने की तैयारी कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन तटों से मछल‍ियों को दूर कर रहा। अरब सागर में चक्रवाती तूफानों की संख्‍या बढ़ रही है ज‍िससे मछुआरों की आय प्रभाव‍ित हो रही। फोटो क्रेडिट: मिथिलेश धर दुबे/इंडियास्पेंड

पोरबंदर/द्वारका/वेरावल: पोरबंदर के राकेश कुमार, वेरावल के धर्मेश गोयल और द्वारका के इस्‍माइल भाई, एक ही राज्‍य के अलग-अलग ज‍िलों के इन तीनों के बीच कई समानताएं हैं। मसलन कि ये समुद्री मछुआरे हैं, हाल के वर्षों में बदले मौसम के म‍िजाज से परेशान हैं और कई पीढ़‍ियों से चली आ रही मछली पकड़ने की परंपरा को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं।

“आज से पांच साल पहले तक कि बात करूं तो मई महीने तक हम बड़े आराम से सुबह के समय समुद्र में नाव लेकर चले जाते थे और शाम तक लौट आते थे। द‍िनभर में इतनी मछल‍ियां म‍िल जातीं थी क‍ि हमारा जीवन बड़े आराम से चल रहा था। 1,500, 2,000 रुपए की कमाई रोज ही हो जाती थी। अब लागत निकालकर 400-500 बचता है। क‍िनारे की सारी मछल‍ियां गायब हो गईं।” नाव से जाल न‍िकालते हुए पोरबंदर के राकेश कुमार, 29, कहते हैं।

लगभग 1,600 किमी की तटरेखा वाले राज्य गुजरात में लगभग 336,181 मछुआरे हैं। इनमें से 9% (30,937) पोरबंदर में, 7% (24,583) वेरावल तालुका (उप-जिला) और 4% (14,589) द्वारका तालुका में हैं। इन जिलों में मछुआरे जिस तरह की स्थिति का सामना करते हैं, वह गुजरात के पश्चिमी तट पर सभी तटीय जिलों के समान है।

[अगस्त 2013 में द्वारका और गिर सोमनाथ अलग-अलग जिले बने। समुद्री मत्स्य जनगणना 2010 में इसलिए वेरावल तालुका के आंकड़े जूनागढ़ और द्वारका तालुका के आंकड़े जामनगर जिले का हिस्सा हैं।]

हमारी जलवायु हॉटस्पॉट सीरीज में हम जमीनी स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगा रहे हैं और उन पर नजर रख रहे हैं। इस चौथे भाग में हमारी रिपोर्ट गुजरात के तटीय जिलों के मछुआरों पर समुद्र के गर्म होने के प्रभावों पर है।

मछली उत्‍पादन में ग‍िरावट

बाएं से- द्वारका के इस्माइल भाई, वेरावल के धर्मेश गोयल और पोरबंदर के राकेश कुमार।

वर्ष 2021-22 में गुजरात में भारत में सबसे अधिक समुद्री मछली का उत्पादन 688,000 टन था। लेकिन उत्पादन में साल-दर-साल ग‍िरावट आ रही है। मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की र‍िपोर्ट हैंडबुक ऑन इंडियन फिशरीज के अनुसार यह पांच वर्षों में 2021-22 में अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर था। 2020-21 में समुद्री मछलियों के उत्‍पादन 683,000 टन तक की गिरावट आ गई।

राष्ट्रीय स्तर के नमूना सर्वेक्षण के आधार पर समुद्री मछली उत्‍पादन का अनुमान लगाने वाली एक दूसरी र‍िपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में गुजरात समुद्री मछली उत्‍पादन के मामले में चाथे नंबर पर पहुंच गया। इस रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में 2022 में (503,000 टन मछली) 2021 की तुलना में13% की गिरावट आई है। 2018 के बाद से राज्य का मछली उत्पादन 35.5% गिर गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, "गिरावट मुख्य रूप से कम मछली पकड़ने के प्रयासों (2021 की तुलना में ~ 16,000 यूनिट ट्रिप में कमी) और व्यापार से संबंधित मुद्दों के कारण थी।"

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गुजरात के मत्स्य आयुक्त से इंडियास्पेंड को मिले आंकड़ों के अनुसार, 2017 और 2021 के बीच द्वारका में मछली उत्पादन में 16% और पोरबंदर में 32% की गिरावट आई है। जबकि गिर सोमनाथ में 3% की बढ़ोतरी हुई है।

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इस्माइल भाई (74) द्वारका में रहते हैं और 10 साल की उम्र से मछली पकड़ रहे हैं। उनके पास एक बड़ी नाव है जिसमें 8-10 लोग सवार होते हैं। उनका कहना है कि कुछ मछलियों की कीमत बढ़ गई है। लेकिन बढ़ी हुई कीमत से लाभ उठाना मुश्किल है क्योंकि मछली पकड़ना अब बहुत मुश्किल काम हो गया है। तूफान और चक्रवातों की वजह से अक्‍सर मौसम व‍िभाग की चेतावनी आ जाती है ज‍िसकी वजह से मछली पकड़ने के दिन कम होते जा रहे हैं और मछुआरों को अब गहरे समुद्र में जाना पड़ रहा है। जबकि वही मछलियां पहले किनारों पर मिल जाया करती थीं।

“चार-पांच साल पहले तक पॉम्फ्रेट और लॉबस्टर की कीमत 100-150 रुपये प्रति किलो थी। अब इनकी कीमत 1,500 रुपये प्रति किलो से भी ज्यादा है। लेकिन पोम्फ्रेट्स और लॉबस्टर्स को जाल में फंसाना आसान नहीं है।

फोटो पोरबंदर की है। एक छोटे मछुआरे ने नुकसान के चलते मछली पकड़ने का काम बंद कर द‍िया। फोटो- म‍िथ‍िलेश, इंड‍ियास्‍पेंड

"पिछले 4-5 वर्षों से चक्रवातों और तूफानों की संख्‍या में वृद्धि हुई है जिसके कारण [मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाने में] कई बार लंबा गैप हो जाता है," इस्माइल ने कहा। "यह हमारी आय को प्रभावित करता है ... हमें होने वाले नुकसान को देखते हुए हमारी युवा पीढ़ी और अन्य लोग इस पेशे में नहीं आना चाहते हैं।" वे आगे कहते हैं।

हाल ही में चक्रवात बिपरजोय ने गुजरात के कच्छ, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट, जूनागढ़ और मोरबी जिलों को प्रभावित किया। इस चक्रवात ने 15 जून को भारी तबाही मचाई और इसकी वजह से समुद्री मछुआरे कई द‍िनों तक समुद्र में नहीं जा सके।

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं कि समुद्र के तेजी से गर्म होने और चक्रवाती तूफानों ने मछली पकड़ने के दिनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि 2017 में चक्रवात ओखी के बाद चक्रवातों की संख्या के साथ-साथ हीट वेव अलर्ट में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिससे मछली पकड़ने के दिनों की संख्या में भारी कमी आई है जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है।

वर्ष 2019 में चक्रवात वायु और महा, 2020 में निसर्ग, और 2021 में तौकते और गुलाब कुछ गंभीर चक्रवात थे जिन्होंने गुजरात तट को प्रभावित किया।

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वर्ष 1969 से 2019 के बीच द्वारका और गिर सोमनाथ (जहां वेरावल पड़ता है) में 111 दिन हीट वेव के चपेट में रहे जबकि पोरबंदर में से संख्या 95 रही। क्लाइमेट हॉटस्पॉट सीरीज की एक स्‍टोरी में भी हमने इसका ज‍िक्र किया था और बताया कि कैसे कैसे कच्छ जिले में लगातार गर्म हवाएं चलती हैं जिसका असर किसानों और मछुआरों पर भी पड़ा है।

समुद्री हीट वेव और चक्रवातों की बढ़ती संख्‍या

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार गुजरात का तट अरब सागर के ऊपर विकसित होने वाले चक्रवातों के लिए सबसे संभावित जगहों में से है। अरब सागर पर विकसित होने वाले सभी चक्रवातों का लगभग 23% गुजरात तट को पार करता है, जबकि 11% प्रत्येक पाकिस्तान और ओमान को पार करता है। आईएमडी का कहना है कि अरब सागर के ऊपर विकसित होने वाले चक्रवातों में से लगभग आधे जमीन पर आने से पहले विलुप्त हो जाते हैं।

लेकिन हो सकता है क‍ि इसमें बदलाव हो रहा हो। क्लाइमेट डायनेमिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित 'उत्तर हिंद महासागर के ऊपर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बदलती स्थिति' शीर्षक वाले एक शोध पत्र में वैज्ञानिकों के एक समूह ने बताया है कि वर्ष 2001 और 2019 के बीच अरब सागर में चक्रवातों की संख्या में 52% की वृद्धि हुई है। वर्ष 1982-2000 की तुलना में चक्रवाती तूफानों की अवधि में 80% की वृद्धि और बहुत गंभीर चक्रवाती तूफानों की संख्या में तीन गुना वृद्धि।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंशिक रूप से समुद्र के तापमान में बदलाव के कारण है।

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इन्फॉर्मेशन सर्विसेज, कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज के शोधकर्ताओं के 2022 के इस अध्ययन के अनुसार 1982 और 2019 के बीच भारत के पश्चिमी तट के पास उत्तरी और दक्षिणपूर्वी अरब सागर में लंबे समय तक गर्म समुद्र की स्थिति वाले समुद्री हीटवेव (एमएचडब्ल्यू) की संख्‍या में वृद्धि हुई है।

"सैटेलाइट रिकॉर्ड की शुरुआत के बाद से वर्ष 2010 और 2016 ने हीटवेव दिनों की अधिकतम संख्या देखी जब प्री-मानसून और ग्रीष्मकालीन मानसून के मौसम के 75% से अधिक दिनों में हीटवेव का अनुभव हुआ," शोधकर्ता अपने शोध में हीटवेव हाल के दशक में अरब सागर के औसत समुद्री सतह के तापमान (SST) में तेजी से हुई वृद्धि को कारण बताते हैं।

दुनिया भर के अन्य शोधों का हवाला देते हुए अध्ययन में कहा गया है कि अत्यधिक गर्म घटनाएं, जैसे समुद्री हीट वेव की लहरें हानिकारक शैवाल को फैलाती हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के तट से केल्प वन का नुकसान हुआ है और उत्तर पश्चिमी अटलांटिक, पूर्वोत्तर प्रशांत और तटीय ऑस्ट्रेलिया में मत्स्य उद्योग का आर्थिक रूप से नुकसान हुआ है।

पोरबंदर स्‍थ‍ित एक स्‍टोर रूम। फोटो- म‍िथ‍िलेश, इंड‍ियास्‍पेंड

लेखक भारतीय तट के लिए हीटवेव के प्रभाव की भी भविष्यवाणी करते हैं और कहते हैं, "वैश्विक महासागर के अन्य हिस्सों की तरह इस क्षेत्र में एमएचडब्ल्यू [अरब सागर, और इस प्रकार पश्चिमी भारतीय तट] स्थानीय समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी प्रभावित कर रहे हैं ज‍िनमें प्रजातियों का दूर जाना और संबंधित मत्स्य-निर्भर अर्थव्यवस्था शामिल हैं"।

"समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) पिछली शताब्दी में 1.2 डिग्री सेल्सियस से 1.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। अरब सागर में सतह का तापमान कभी-कभी सामान्य 28˚C-29˚C के मुकाबले 31˚C-32˚C तक पहुंच जाता है," कोल बताते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से संबद्ध नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज के प्रमुख वैज्ञानिक सुधीर रैजादा कहते हैं, "अगर समुद्र का तापमान लंबे समय तक सामान्य से ऊपर रहता है तो प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं।" "हमने इसे पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में देखा है जहां कई हफ्तों तक 2,000 किमी की तटरेखा सामान्य से 5.5 डिग्री सेल्सियस अधिक थी, जिससे वहां मछली की प्रजातियों में बदलाव आया।"

“बढ़ा हुआ तापमान तटों को सबसे अधिक प्रभावित करता है क्योंकि पानी उथला होता है। इस स्थिति में पानी गर्म हो जाता है और ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। यह एक बड़ा कारण है कि मछलियां गहरे पानी में जा रही हैं,” गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेजर्ट इकोलॉजी, कोस्टल एंड मरीन इकोलॉजी के मुख्य वैज्ञानिक एम. जयकुमार ने विशेष रूप से वेरावल, द्वारका और पोरबंदर का उल्लेख करते हुए कहा। "आने वाले वर्षों में, जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, यह समस्या और बढ़ेगी और छोटे मछुआरों को सबसे अधिक प्रभावित करेंगे।" वे आगे कहते हैं।

इंडिया स्‍पेंड ने गुजरात सरकार में जलवायु परिवर्तन विभाग के राज्‍य मंत्री मुकेशभाई पटेल, गुजरात राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी ए जे असारी और मत्स्य पालन विभाग के निदेशक नितनि सांगवान से मछलियों के कम उत्‍पादन, जलवायु पर‍िवर्तन से मछुआरों को बचाने और इससे उबरने की सरकारी कवायदों आद‍ि जैसे कई मुद्दों पर सवाल पूछे हैं। जवाब मिलते ही खबर अपडेट कर दी जायेगी।

गहरे समुद्र में उतरना

गुजरात के समुद्री मछुआरे तटों से परंपरागत मछल‍ियों के दूर जाने से चिंतित हैं। श्री पोरबंदर मच्छीमार बोट ऐसोसिऐशन के अध्यक्ष मुकेश पांजरी बताते हैं, “झींगा, सफेद पॉम्फ्रेट, दारा, सुरमई, छपरी, ईल, पलवा और वरारा, बॉम्बे डक, मछली की किस्में कभी पोरबंदर और कच्छ के बीच समुद्र तट पर बहुतायत से उपलब्ध थीं। ये किस्में 300 रुपये से 1,500 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बिकती हैं। लेक‍िन हाल के वर्षों में इन किस्में की आवक कम हुई है। पहले ये तटों पर 3 से 5 नॉटिकल मिल के अंदर मिल जाती थीं, अब 15 से 20 नॉटिकल मिल दूर जाना पड़ता है। फिर भी गारंटी नहीं है। इससे हमारी लागत तो बढ़ी ही है, मुनाफा भी कम होता जा रहा।”

“अच्‍छी कीमत पर ब‍िकने वाली क्रोकर मछली की आवक हाल के द‍िनों एक दम कम हो गई है। ये मछल‍ियों की उन क‍िस्‍मों में से है ज‍िससे मछवारों को अच्‍छा मुनाफा होता था।”

बॉम्‍बे डक (Harpadon nehereus) गुजरात और महाराष्‍ट्र के तटों पर पाई जाने वाली प्रमुख मछल‍ियों में से एक है। लेकिन आंकड़े बता रहे हैं क‍ि प‍िछले कुछ वर्षों के दौरान इसकी उपलब्‍धता में कमी आई है। वर्ष 2019- 20 में इसका उत्‍पादन 0.89 लाख टन हुआ था, वहीं वर्ष 2020-21 में इसका उत्‍पादन घटकर 0.73 लाख टन पर पहुंच गया।

इसी तरह क्रोकर मछली (Sciaenidae) की आवक में भी काफी ग‍िरावट देखी गई है। वर्ष 2019-20 के दौरान गुजरात में इसका उत्‍पादन 1.33 लाख टन था जो 2020-21 में घटकर 0.6 लाख टन रह गया।

इस्‍माइल भाई बताते हैं क‍ि वे पहले 10 से 15 क‍िलोमीटर दूर मछली पकड़ने जाया करते थे। लेकिन तो उन्‍हें हर बार गहरे पानी में उतरना पड़ता है। मतलब 50 से 100 क‍िलोमीटर दूर। वे बताते हैं क‍ि अब उनकी नाव में तीन मशीनें लगी हैं जो 40, 15 और 8 हॉर्स पावर की हैं। ये पांच साल पहले ही बदली हैं। पहले इससे आधे के कम की क्षमता वाली मशीने लगी थीं। वजह पूछने पर वे बताते हैं, "पहले एक, दो द‍िन में लौट आते थे। अब 15 से 20 द‍िन लग जाते हैं। ऐसे में ज्‍यादा पावर वाली मशीनें होंगी तभी हमारी यात्रा सुरक्षित रहेगी।"

वे यह भी बताते हैं क‍ि उनकी नाव में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) लगा होता है ताक‍ि उनकी सही लोकेशन पता रहे। "इन सबकी वजह से लागत बहुत बढ़ गई है। कई बात तो हमें कर्ज लेना पड़ रहा है। उम्‍मीद रहती है क‍ि र‍िस्‍क के बाद ज्‍यादा मछ़ल‍ियां म‍िल जाएंगी तो उसे बेचकर राहत मिलेगी। लेकिन इधर के वर्षों में मौसम की मार ने हमें तोड़ दिया है।"

नॉटिकल मील या समुद्री मील लम्बाई की इकाई है। नाव चालक इसी के ह‍िसाब से अपनी दूरी का अनुमान लगाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 1 समुद्री मील = 1,852 मीटर होता है।

जून 2023 में चक्रवात ब‍िपरजॉय की वजह से गुजरात में मछुआरे कई द‍िनों तक समुद्र में नहीं जा सके। फोटो- श्री पोरबंदर मच्छीमार बोट ऐसोसिऐशन

पांजरी कहते हैं क‍ि ऐसे छोटे मछुआरे ज‍िनके पास छोटी ब‍िना मशीन वाली नांवें हैं, वे इन सबसे ज्‍यादा प्रभावित हो रहे हैं। उनके पास महंगी नाव खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं। "ऐसे छोटे मछुआरे मछली पकड़ना छोड़ रहे हैं और दूसरे क्षेत्रों में अवसरों की तलाश कर रहे हैं।"

गुजरात सरकार के मत्स्य, कृषि, किसान कल्याण और सहकारिता विभाग के अनुसार बिना मशीन वाली नावों की संख्या साल-दर-साल कम होती जा रही है। 2017-18 की तुलना में, 2021-22 में मशीनीकृत मछली पकड़ने के जहाजों में 10% की वृद्धि हुई है, जबकि गैर-मशीनीकृत जहाजों में 13% की कमी आई है।

“आज (16 जून 2023) 6 दिन हो गये हैं समुद्र में गये हुए। मतलब 6 दिन से मेरे पास कोई काम नहीं है।” पोरबंदर के राकेश कुमार पे 16 जून को बताया। चक्रवात ब‍िपरजॉय पर मौसम व‍िभाग की चेतावनी के बाद समुद्र में नहीं जा सके, उनके पास ब‍िना मशीन वाली छोटी नाव है।

“हमें यह भी पता है कि अभी तो पूरा साल बाकी है, ऐसे न जाने और कितने तूफान आएंगे और हमारी छोटी-मोटी कमाई को ठप कर देंगे। कभी तूफान तो कभी बहुत ज्‍यादा बार‍िश की घटनाएं इतनी ज्‍यादा होने लगी हैं कि अब इस पेशे को छोड़ देने का मन करता है।”


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