बिहार में कोरोना वायरस की जांच करवाने में लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। प्राइवेट लैब पर जांच उपलब्ध ना होना, सरकारी जांच केंद्रों पर लम्बी कतारें, जांच रिपोर्ट का हफ्ते भर बाद आना और कई मामलों में लोगों को जांच के लिए सिफारिशें लगाने जैसे कारणो की वजह से प्रदेश में कोविड जांचों की एक समानांतर व्यवस्था विकसित होती जा रही है।

इंडियास्पेंड ने अपनी पड़ताल में पाया कि बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में रैपिड एंटीजन टेस्ट की किट बहुत ही आसानी से उपलब्ध है जिसका उपयोग राज्य के दूरदराज इलाकों में सक्रिय झोलाछाप चिकित्सक (क्वैक) से लेकर शहरों-महानगरों में सेवा दे रहे ज्यादातर अस्पताल, नर्सिंग होम अनाधिकृत रूप से कोविड जांच के लिए कर रहे हैं।

अनाधिकृत होने की वजह से ऐसी जांचों की सूचना सरकार और प्रशासन को नहीं दी जाती है और इनकी संख्या भी सरकारी आंकड़ों में शामिल नहीं है लेकिन जानकारों का मानना है कि इनकी संख्या राज्य में रोज होने वाली जांचों की करीब 30% है।

बिहार स्वस्थ्य विभाग द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 10 मई को 1,10,071 कोविड जांचें हुई थीं जिसमे 10,920 लोग पॉजिटिव पाए गए। राज्य में प्रतिदिन करीब 1 लाख कोविड जांचें होती है जिसमे करीब 10% लोग पॉजिटिव पाए जाते हैं अगर ऐसे में इन अनाधिकृत जांचों के आंकड़ों को भी शामिल किया जाये तो बिहार की पॉजिटिविटी दर बढ़ सकती है और संक्रमण के प्रसार की सही तस्वीर सामने आ सकती है।

स्वयं के बचाव के लिए करते हैं ऐसे टेस्ट

बेगूसराय शहर के एक निजी अस्पताल संचालक ने अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि पिछले डेढ़-दो महीने में वे 450 से अधिक टेस्ट कर चुके हैं। वे सरकार की तरफ से कोरोना जांच के लिए अधिकृत नहीं हैं, मगर इस तरह से जांच करना उनकी मजबूरी है क्योंकि वे अपने यहां आने वाले गंभीर मरीजों को मना नहीं कर सकते। सरकारी तरीके से जांच कराने पर रिपोर्ट आने में अच्छा खासा वक्त लग जाता है। ऐसे में मरीजों को समय से सेवा देने के लिए वे ऐसा करते हैं।

वे ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं, क्योंकि रैपिड एंटीजन टेस्ट करने की प्रक्रिया काफी आसान है। काफी हद तक होम प्रेगनेंसी टेस्ट किट जैसी। बस आपको सही तरीके से नाक और गले से स्वाब लेना और सुरक्षित तरीके से उसे घोल में मिलाकर टेस्टिंग किट पर रखना और रिजल्ट पढ़ना आता हो। थोड़े से प्रयास से कोई भी व्यक्ति यह सीख सकता है। उनके पास मेडिकल लैब टेक्नीशियन डिग्री वाले टेक्नीशियन भी हैं। इसके अलावा यूट्यूब में भी इससे संबंधित कई वीडियोज उपलब्ध हैं।

उन्हें टेस्टिंग किट कहां से मिलते हैं, इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि कई छोटी-बड़ी कंपनियों के टेस्ट किट खुले बाजार में उपलब्ध हैं। उनसे संपर्क करने पर उन्हें किट मिल जाते हैं। वे कहते हैं, वे ही नहीं शहर के कई निजी अस्पताल और नर्सिंग होम संचालक इस तरह से जांच कर रहे हैं। खास कर मैटरनिटी अस्पताल वाले तो बड़ी संख्या में कोविड जांच करते हैं। इसके बिना उनका गुजारा नहीं है।

वे कहते हैं कि वे अपने यहां हुए टेस्ट के आंकड़े सरकार को उपलब्ध कराना चाहते हैं, मगर इसकी क्या व्यवस्था है, वे समझ नहीं पा रहे। सरकारी पोर्टल पर भी इस संबंध में कोई सूचना नहीं है। फिलहाल वे बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में आये मरीजों को कोविड पॉजिटिव होने की स्थिति में दवा लिखकर आइसोलेट होने की सलाह देते हैं और अगर मरीज की स्थिति गंभीर है तो उसके लक्षण के आधार पर उसे सरकारी कोविड डेडिकेटेड अस्पताल में भर्ती होने के लिए रेफर कर देते हैं।

पूर्णिया के एक जनरल सर्जन डॉ ख्वाजा नसीम अहमद भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं कि उनके यहां ऐसी जांच नहीं हो रही, मगर उनके पास सर्जरी के लिए पहुंचने वाले कई मरीज इस सूचना के साथ आते हैं कि उन्होंने टेस्ट करा लिया है। जब वे उनसे टेस्ट रिपोर्ट मांगते हैं, तो रिपोर्ट उनके पास नहीं होती। वे कहते हैं, फलां डॉक्टर के यहां या फलां झोलाछाप डॉक्टर से उन्होंने टेस्ट कराया है। नसीम अहमद एक चौंकाने वाली सूचना देते हुए कहते हैं कि बिना लिखित रिपोर्ट के एडमिट करने से मना करने पर एक दफा तो एक मरीज उनके पास एक टेस्ट किट लेकर पहुंच गया, जो नेगेटिव रिपोर्ट बता रहा था। वे कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों के लिए इस तरह की जांच करना मजबूरी है।

डॉ नसीम कहते हैं कि वे उन्हीं मरीजों की सर्जरी करते हैं जो कोविड नेगेटिव पाए जाते हैं, कोविड पॉजिटिव मरीजों को वे सर्जरी के लिए कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों में भेज देते हैं। वे कहते हैं कि दूसरे मरीज जो इस तरह टेस्टिंग करते हैं, वे भी कभी कोविड पॉजिटिव मरीज को अपने यहां भर्ती करने का रिस्क नहीं लेते। डॉक्टरों द्वारा खुद से कोविड टेस्टिंग करने की एक बड़ी वजह यह भी है।

नसीम कहते हैं कि खास तौर पर प्रसूति रोग विशेषज्ञों के पास इस तरह से टेस्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं। वे अपनी तसल्ली के लिए भी खुद टेस्ट करती हैं।

पूर्णिया में निजी नर्सिंग होम की संचालिका एक महिला रोग विशेषज्ञ नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहती हैं कि दरअसल ज्यादातर प्रसूति रोग विशेषज्ञ सर्जरी से 72 घंटे पहले की कोविड रिपोर्ट की मांग करते हैं। मगर सरकारी तरीके से टेस्ट कराने पर इसकी कोई गारंटी नहीं रहती कि रिपोर्ट कब आएगी। कई दफा गर्भवती महिला की अचानक सर्जरी करनी पड़ती है, ऐसे में उसके पास दो विकल्प बचते हैं, या तो उस महिला को खतरे में छोड़ दें या अपने तरीके से उसकी जांच कर सर्जरी का रिस्क लें। ऐसे में अब कई प्रसूति रोग विशेषज्ञ दूसरे विकल्प को चुनने लगी हैं।

आईसीएमआर के अनुसार बिहार में फ़िलहाल 65 लैब कोविड जांच के लिए अधिकृत हैं जिसमे से आरटी-पीसीआर जांचों के लिए 24 लैब हैं। ऐसे में अभी भी कोविड टेस्ट कराना ज्यादातर लोगों के लिए मुश्किल भरा काम है। ज्यादातर हेल्थ इमरजेंसी के मामले में तत्काल कोविड टेस्ट कराने की जरूरत होती है। जो सरकारी जांच के भरोसे नहीं हो सकती है। ऐसे में ज्यादातर निजी लैब ने इस तरह की व्यवस्था विकसित कर ली है। मगर दिक्कत की बात यह है कि इन जांचों की रिपोर्ट न सरकारी आंकड़ों में शामिल होती है, न ऐसी जांच में पॉजिटिव पाए मरीजों को आइसोलेट किया जाता है।

कैसे और कहाँ मिल रही हैं टेस्टिंग किट

बिहार में रैपिड एंटीजन किट की आपूर्ति करने वाले पटना के एक सप्लायर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि वे लंबे समय से राज्य के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम को रैपिड एंटीजन किट सप्लाई कर रहे हैं। उन्हें कंपनी की तरफ से ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि वे सिर्फ अधीकृत टेस्टिंग लैब को ही किट बेचें। उन्हें कहा गया है कि वे किसी भी एमबीबीएस चिकित्सक को और उसके द्वारा संचालित अस्पताल, नर्सिंग होम, मेटरनिटी होम आदि को किट बेच सकते हैं। वे बेचते भी हैं और इसका बिल भी जनरेट होता है।

उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी के अलावा कई और कंपनियों के रैपिड एंटीजन किट खुले बाजार में उपलब्ध हैं और पटना की सबसे बड़ी दवा मंडी गोविंद मित्रा रोड से खरीदे जा सकते हैं।

किट की कीमत के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं कि हम जो रैपिड एंटीजन किट बेचते हैं उसका एमआरपी रुपये 225 है, हम इस पर 20-30% तक छूट दे देते हैं। हालांकि सुपौल जिले के नेपाल से सटे ग्रामीण इलाके राघोपुर के एक लैब संचालक कहते हैं, उन्हें 35 से 40 रुपये में ओपन मार्केट से ऐसे किट आसानी से मिल जाते हैं। वहां के लैब संचालक मरीजों से टेस्ट का रुपये 300 से रुपये 1,000 तक वसूलते हैं।

बिहार में ऐसी टेस्ट किट बहुत आसानी से खुले बाज़ार में उपलब्ध हैं।

ऐसा लगभग पूरे बिहार में हो रहा है। इस बारे में जानने के लिए जब इस संवाददाता ने नालंदा जिले के हिलसा रोड में ऐसे ही एक एजेंट ने फोन पर एक ग्राहक बनकर बात की तो एजेंट ने बताया कि वे घर पर आकर सैंपल लेते हैं और रैपिड टेस्ट का रिजल्ट रुपये 800 में हाथों-हाथ उपलब्ध कराते हैं। क्या वे लिखित में रिपोर्ट देंगे, इस सवाल पर वे कहते हैं, "किट का रिजल्ट दिखा सकते हैं, लिखित रिपोर्ट नहीं दे सकते।"

किशनगंज के शफाकत हुसैन (बदला नाम) ने बताया कि उनके बड़े भाई में कोविड के लक्षण नजर आने लगे थे, तो उन्होंने उनका टेस्ट कराने की कोशिश की। मगर सरकारी केंद्रों पर भीड़ देखकर वे लौट आये और अपने एक परिचित डॉक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने क्लीनिक पर बुलाकर ही उनके भाई का टेस्ट करा दिया और रुपये 1,000 लिए। लिखित रिपोर्ट तो नहीं मिली, मगर दवाएं सजेस्ट कर दीं और उसी हिसाब से उनके भाई का इलाज चल रहा है। बाद में उन्होंने इसी तरह अपने एक सहकर्मी के पूरे परिवार का टेस्ट उनसे कराया।

सहरसा जिले की एक महिला विमला देवी ने भी इसी तरह दो बार 24 अप्रैल और 29 अप्रैल को अपना टेस्ट कराया, एक लैब ने उन्हें रिपोर्ट भी उपलब्ध कराया। पहले में थ्रोट स्वाब एक्जाम पॉजिटिव और दूसरे में कोविड एंटीजन नेगेटिव दर्ज है।

65 वर्षीय विमला देवी ने जिस लैब से अपनी कोविड जांच करवाई थी उस लैब का आईसीएमआर अधिकृत लैब की लिस्ट में नाम नहीं है। इस लिस्ट के अनुसार सहरसा में कोविड जांच के लिए दो ही केंद्र निर्धारित किये गए हैं, एक लार्ड बुद्धा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल जहां पर आरटी-पीसीआर जांच होती है और दूसरा सहरसा का जिला अस्पताल जहां ट्रूनेट जांच की सुविधा उपलब्ध है।

इसके अलावा अररिया जिले के नेपाल से सटे इलाके के एक क्वैक ने बताया कि वे 15 रुपये में नेपाल से कोविड टेस्टिंग किट ले आते हैं। इसी से मरीजों की जांच करते हैं।

इनमें से कुछ लोग सिर्फ मरीज को किट दिखाकर संतुष्ट कर देते हैं कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव है या नेगेटिव वहीं कुछ लिखित रिपोर्ट भी उपलब्ध कराते हैं।

जाहिर है कि बात सिर्फ एमबीबीएस डॉक्टरों, उनके द्वारा संचालित निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की ही नहीं है, बिहार में ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर सक्रिय झोलाछाप चिकित्सकों तक ऐसे किट उपलब्ध हैं।

जहां बड़े शहरों के दवा बाज़ारों में ऐसे किट आसानी से उपलब्ध हैं वहीं अंदरूनी इलाकों में झोलाछाप चिकित्सकों के पास सरकारी जांच केंद्रों को आवंटित किट पाए जाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। इन मामलों में वहां के स्टाफ सरकारी कोटे में आने वाले जांच किट को चोरी-छिपे ऐसे क्वैक को बेच दिया करते हैं। फिर ये क्वैक गांव के लोगों की जांच इन किट से करते हैं।

पिछले रविवार, 9 मई, 2021 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सकरा में एक लैब टेक्नीशियन के ससुराल से चार हजार एंटीजन किट बरामद हुए। पुलिस ने आरोपी लैब टेक्नीशियन संजय ठाकुर को भी गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच राज्य के एक बड़े अखबार हिंदुस्तान ने रिपोर्ट प्रकाशित की कि उनके साथ बातचीत में दो झोलाछाप डॉक्टरों ने स्वीकार किया कि वे कोरोना की जांच करते हैं, उन्होंने एक टेस्ट की कीमत रुपये 500 से लेकर रुपये 1100 तक बतायी।

अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य के अलग अलग जिलों में इसी तरह सरकारी किट की कालाबाजारी हो रही है। उनका इस्तेमाल अप्रशिक्षित झोलाछाप डॉक्टर कर रहे हैं।

सरकारी किट की चोरी, फर्जी आंकड़े और बढ़ता खतरा

इस संबंध में जब हमने लोक स्वास्थ्य के कार्य में लगातार सक्रिय रहने वाले डॉक्टर निशींद्र किंजल्क से पूछा तो उन्होंने कहा, "जिस तरह राज्य में हाल के दिनों में टेस्टिंग की गति बहुत धीमी रही है, ऐसा होना स्वाभाविक है। फिर भी मैं इसे अच्छी बात मानता हूं कि भले जिस तरह हो राज्य में लोगों की कोरोना जांच तो हो रही है। बिहार जैसे राज्य में जहां कोरोना रोग गांव-गांव तक पसर गया है, हमें बहुत अधिक जांच करने की जरूरत है। जो मौजूदा सरकारी व्यवस्था के तहत मुमकिन नहीं है।"

"हालांकि अभी जो जांच हो रही है, उसमें दो गड़बड़ियां हैं। पहली यह कि सरकारी किट को चोरी छिपे बेचे जाने की प्रक्रिया आपराधिक तो है ही, साथ ही किट की संख्या को मैनेज करने के लिए निश्चित तौर पर सरकारी जांच केंद्रों से फॉल्स रिपोर्ट भेजी जा रही होगी। इसकी तत्काल गंभीरता से जांच किये जाने की जरूरत है। पिछले साल भी बिहार के जमुई जिले में कोरोना जांच में भारी गड़बड़ी की बात सामने आयी थी। दूसरी बात यह कि जो एमबीबीएस डॉक्टर खुद किट खरीद कर जांच कर रहे हैं, उनके आंकड़े सरकारी आंकड़ों में शामिल नहीं हो रहे," डॉ किंजल्क कहते हैं।

किंजल्क कहते हैं, "जिस तरह से कोरोना का प्रसार बढ़ रहा है, ऐसे में सभी अस्पतालों और नर्सिंग होम को जांच का अधिकार दे देना चाहिए। इस शर्त के साथ कि वे नियमित रूप से जांच रिपोर्ट की सूचना सरकार को उपलब्ध कराएं। तभी राज्य में कोरोना प्रसार की असली तस्वीर सामने आएगी और उसके अनुरूप हम उससे मुकाबले की सही नीति बना पाएंगे।"

आईजीआईएमएस, पटना में कार्यरत डॉ रत्नेश चौधरी कहते हैं कि अगर ऐसा हो रहा है तो उससे कई तरह के खतरे हैं। एक तो टेस्टिंग किट विश्वसनीय है या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। दूसरा अगर इस जांच से कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाया जा रहा है तो उसकी आईसीएमआर के पास रिपोर्टिंग नहीं हो रही। वह मरीज ढंग से आइसोलेट हो रहा, उसका ठीक से इलाज चल रहा, उसकी ट्रेसिंग हो रही है या नहीं, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। यह काफी खतरनाक चलन है।

हालांकि कोविड टेस्टिंग के बारे में अपने हालिया गाइडलाइन में आईसीएमआर ने बड़े पैमाने पर टेस्टिंग किये जाने की बात कही है। उसने गांव, शहर और महानगरों में रैपिड एंटीजन टेस्ट के बूथ खोलने का सुझाव दिया है। स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन आदि में टेस्टिंग की सुविधा शुरू करने की बात कही है। उसने कहा है कि ऐसे केंद्र उन जगहों पर हो जहां लोग आसानी से पहुंच सकें और उन्हें 24 घंटे, सातों दिन संचालित किया जा सके।

मगर उसने साफ-साफ कहा है कि ये केंद्र स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्धारित जगहों पर खोले जाएं और हर आरटी पीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट आईसीएमआर की साइट पर नियमित रूप से अपलोड की जाए। बिना अनुमति के टेस्टिंग करने वाले झोलाछाप चिकित्सक और निजी अस्पताल संचालक इन दोनों मानकों का पालन नहीं कर रहे।

इस संबंध में जब हमने बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से संपर्क करने की कोशिश की तो उनसे बात नहीं हो पायी। उन्हें उनके मेल पर हमने अपने सवाल भेज दिये हैं, वहां से जवाब मिलने पर उन्हें यहाँ अपडेट किया जाएगा।

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