नई दिल्ली: बिहार में भुखमरी, ग़रीबी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे अहम मसलों पर विकास न के बराबर हो रहा है, नीति आयोग की हाल ही में आई सालाना रिपोर्ट में यह सामने आया है। बिहार में विकास की धीमी गति के आंकड़े देश भर के आंकड़ों पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं और देश के औसत को नीचे ला रहे हैं। बिहार का ख़राब प्रदर्शन एक बड़ी वजह है कि भारत साल 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्य यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) पूरा करता नज़र नहीं आ रहा है।

जून 2021 में आई नीति आयोग की सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स इंडेक्स 2020-21 के अनुसार भारत को इन लक्ष्यों पर अपने प्रदर्शन के लिए 100 में से 66 अंक दिए गए हैं। भारत ने 2019-20 के मुक़ाबले 6 अंक की बढ़त हासिल की है, मगर कई अहम लक्ष्य जैसे भुखमरी और लैंगिक समानता में भारत को सबसे कम 47 और 48 अंक मिले हैं।

वहीं बिहार, जिसे 2019 में 50 अंक मिले थे, इस बार सिर्फ 2 अंकों का सुधार कर पाया और पूरे देश में 52 अंकों के साथ सबसे आखिरी स्थान पर रहा ।

संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स हर देश को अधिक सम्पन्न, समतावादी और संरक्षित बनाने के मक़सद से जारी किए गए हैं। यह लक्ष्य स्वास्थ्य, पर्यावरण, ग़रीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वच्छता, ऊर्जा आदि जैसे 16 अहम बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। देश के समग्र, चौमुखी विकास के लिए इन सभी 16 गोल्स पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है।

एसडीजी के मामले में बिहार का प्रदर्शन इस बार की रिपोर्ट में सबसे ख़राब रहा है। देश में सबसे खराब प्रदर्शन वाले पांच राज्य बिहार (52), झारखण्ड (56), असम (57), उत्तर प्रदेश (60) और राजस्थान (60) हैं। बिहार में देश की 8% से ज़्यादा आबादी रहती है, यानी भारत के अपने एसडीजी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बिहार का बेहतर प्रदर्शन बहुत आवश्यक है। भारत के लिए क्यों ज़रूरी हैं सतत विकास लक्ष्य और बिहार का प्रदर्शन कितना अहम है, हम आगे विस्तार से बताते हैं।

क्या हैं सतत विकास लक्ष्य और इनका महत्व

17 एसडीजी और 169 उद्देश्य 2030 एजेंडा का हिस्सा हैं जिसे सितंबर, 2015 में संयुक्त‍ राष्ट्र महासभा की शिखर बैठक में भारत समेत 193 सदस्य देशों ने अनुमोदित किया था। यह एजेंडा 1 जनवरी 2016 से प्रभावी हुआ और दुनिया भर के देशों की सरकारों और लाखों नागरिकों ने मिलकर अगले 15 साल के लिए सतत विकास हासिल करने का वैश्विक मार्ग अपनाया। भारत भी इन देशों में एक है।

भारत में इन लक्ष्यों के विकास के तालमेल का काम नीति आयोग को सौंपा गया है। हर साल नीति आयोग एक इंडेक्स जारी करता है जिसमें इन लक्ष्यों पर देश और राज्यों के विकास को उनके प्रदर्शन के आधार पर 100 में से अंक दिए जाते हैं। रिपोर्ट में अंकों के अनुसार राज्यों को श्रेणियों में बाँटा जाता है अगर अंक 100 हैं तो अचीवर या लक्ष्य-प्राप्तिकर्ता, 65 से 99 अंक के बीच फ़्रंट रनर या प्रबल दावेदार, 50 से 64 के बीच पर्फ़ॉर्मर या प्रदर्शक और 50 से नीचे ऐस्पिरंट या आकांक्षी।

इसमें इस साल भारत को 66 अंक मिले हैं और सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले राज्य, बिहार को 52 अंक दिए गए हैं। साल 2030 के लिए वैश्विक एजेंडे का मूल मंत्र है: 'कोई पीछे न छूटे', और साल 2020-21 के लिए भारत का मुख्य विषय है साझेदारी-- विहार और अभ्यास दोनों के रूप में।

दुनिया के सभी देश एसडीजी हासिल करने की दिशा में काम करें यह ज़रूरी है ताकि पूरा विश्व इन लक्ष्यों को हासिल कर सके। दुनिया भर की आबादी का 17.7% हिस्सा भारत में रहता है, यानी अगर भारत और भारतीयों के जीवन का सतत विकास नहीं होता है तब तक दुनिया भर में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा, और भारत के अच्छे प्रदर्शन के लिए बिहार का अच्छा प्रदर्शन ज़रूरी है।

बिहार में विकास के आंकड़े

पिछले साल 50 और इस साल 52 अंको के साथ बिहार अभी भी सतत विकास लक्ष्यों में देश में सबसे पीछे हैं। लगभग हर मामले में राज्य का प्रदर्शन सबसे ख़राब है। बिहार के कम आँकड़े देश भर के औसत आँकड़े को नीचे ला रहे है।

रिपोर्ट में 16 में से 7 लक्ष्यों में बिहार ऐस्पिरंट यानी आकांक्षी श्रेणी में हैं यानी अंक 49 से भी कम है, बाक़ी तीन लक्ष्यों में आँकड़े 50 से 64 यानी पर्फ़ॉर्मर या प्रदर्शक की श्रेणी में है। सबसे ख़राब प्रदर्शन वाले लक्ष्यों में शामिल हैं लक्ष्य 13 (जलवायु परिवर्तन), 9 (उद्योग), 4 (शिक्षा), 2 (भुखमरी), 1 (ग़रीबी), 5 (लैंगिक असमानता) और 10 (असमानता)।

पहला लक्ष्य ग़रीबी में बिहार को 32 अंक मिले, भारत के औसत से 28 अंक कम, भारत का औसत 60 था। राज्य के 34% लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं। सिर्फ़ 12% घरों/परिवारों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा है। 2% लोगों को मनरेगा के तहत कोई रोज़गार नहीं मिलता है। प्रधान मंत्री वय वंदना योजना जो भारत सरकार की जीवन बीमा योजना है इसके तहत 12% परिवार अभी भी पंजीकृत नहीं है। और 8% लोग अभी भी कच्चे मकानों में रहते हैं। साथ ही वित्तीय विकास के आठवें लक्ष्य के तहत राज्य में बेरोज़गारी दर 2019 में 7% से 2020 में 11% पर आ गयी।

दूसरा लक्ष्य, भुखमरी, में बिहार को 31 अंक मिले हैं, भारत के औसत से 16 अंक कम, भारत को इसमें 47 अंक मिले। सरकार के अनुसार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून से राज्य के 99.8% लोग लाभान्वित हैं, इसके बावजूद राज्य के पाँच साल से कम उम्र के 39% बच्चे अंडरवेट हैं यानी उम्र के अनुसार इनके वज़न औसत से कम है। इसी उम्र के 42% बच्चे स्टंटेड हैं यानी इनकी लम्बाई उम्र के अनुसार कम है। 15 से 49 साल की 58% गर्भवती महिलाएँ एनिमिक हैं और 10 से 19 वर्ष के सभी किशोर एनिमिक हैं।

चौथा लक्ष्य, शिक्षा में बिहार को 29 अंक मिले हैं, राष्ट्रीय औसत से 28 अंक कम, भारत का औसत 57 है। राज्य में प्राथमिक शिक्षा में दाख़िला लेने वाले छात्रों में 14% की कमी आयी है। औसत 29% छात्र 9वीं या 10वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। सिर्फ़ 26% छात्र 11वीं या 12वीं कक्षा में दाख़िला ले रहे हैं और 14% से भी कम छात्र उच्च शिक्षा में दाख़िला ले रहे हैं। 15 साल से ऊपर के 35% लोग अशिक्षित हैं।

पाँचवा लक्ष्य, लैंगिक असमानता, में बिहार को 48 अंक मिले हैं, इस लक्ष्य में भारत का औसत भी 48 है। हर 1000 महिलाओं में से 32 के ख़िलाफ़ अपराध होता है और दर्ज किया जाता है, ये आँकड़ा पिछले साल 29 था। जन्म के समय पर लिंग अनुपात भी पिछले साल हर हज़ार लड़कों पर 900 लड़कियों से घटकर 895 पर आ गया है। साथ ही पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की आय का औसत भी कम हुआ है। हज़ार में से सिर्फ़ 214 महिलाएँ प्रबंधकीय पदों पर हैं। क़रीब 49% महिलाओं की परिवार नियोजन के तरीक़ों की ज़रूरत पूरी नहीं हो रही है। साथ ही सिर्फ़ 14% महिलाओं का भूमि पर मालिकाना हक़ है।

नौवाँ लक्ष्य उद्योग, नवीनीकरण और आधारभूत संरचना जिसमें बिहार को 24 अंक मिले हैं, राष्ट्रीय औसत से 31 अंक कम, भारत को इसमें 55 अंक दिए गए।इस लक्ष्य के तहत 100 में से सिर्फ़ 31 लोगों के पास इंटरनेट सेवा है और मोबाइल सिर्फ़ 51 लोगों के पास, ये आँकड़ा 2019 में 60 था।

दसवाँ लक्ष्य, असमानता कम करना, इसके तहत बिहार को 48 अंक मिले हैं, राष्ट्रीय औसत से 19 अंक कम, भारत को इसमें 67 अंक दिए गए। बिहार की 75% सबसे नीचले धन पंचकों या वेल्थ क्विनटाइल में आती है। अनुसूचित जाती के हर एक लाख में से 40 लोगों के ख़िलाफ़ अपराध किए जाते हैं, ये आँकड़ा अनुसूचित जनजातियों के लिए 7 है। लोक सभा चुनाव में सिर्फ़ 7.5% महिलाओं को चुना गया है। पंचायतों में 52% महिलाएँ चुनी गयीं हैं पर हमने अक्टूबर 2020 में रिपोर्ट किया कि किस तरह इनमें से ज़्यादातर सिर्फ़ नाम के लिए चुनी गयीं हैं।

अन्य लक्ष्यों के तहत अलग-अलग मानकों को देखें तो बिहार को आपदाओं से लड़ने की तैयारी की इंडेक्स में 19.5 हासिल हैं। राज्य में कुल फ़ॉरेस्ट कवर या वन क्षेत्र सिर्फ़ 8% है और वृष क्षेत्र 7.9% है जो 2019 में 8.6% था। वृक्षारोपण योजनाओं के तहत सिर्फ़ 0.3% भूमि आती है जबकि पूरी भूमि में से 13% परती भूमि है और बंजर भूमि में 5% की बढ़त हुई है।

सबसे बेहतर प्रदर्शन है लक्ष्य 6 में-- साफ़ पानी और स्वच्छता जो सिर्फ़ एक ही लक्ष्य है जहाँ बिहार को 80 से ऊपर--91 अंक मिले हैं। इस लक्ष्य में देश के लगभग सभी प्रदेशों का प्रदर्शन अच्छा है, जिसका एक कारण स्वच्छ भारत अभियान पर दिया गया ज़ोर भी है। हालाँकि बिहार में ग्रामीण आबादी की पीने के पानी के बेहतर स्रोतों तक पहुँच 2019 में 99.9% से घट कर 96% पर आ गयी है।

भारत को 100 में से कुल 66 अंक हासिल हुए, पिछले साल ये आँकड़ा 60 था और 2018-19 में 57। देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे केरल और हिमाचल प्रदेश, केरल पिछले साल की तरह अब भी सबसे ऊपर है।

सभी राज्यों के अंकों में बढ़त हुई है सबसे कम बढ़त, सिर्फ़ दो अंकों की, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पुदुच्चेरी में हुई है।

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