नई दिल्ली: हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य विधि आयोग (स्टेट ला कमिशन) ने जनसंख्या नियंत्रण नीति (पापुलेशन कंट्रोल पॉलिसी) जारी की है, लेकिन इसके साथ ही सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का प्रारूप (पापुलेशन कंट्रोल ड्राफ्ट बिल) भी पेश किया।

यह मसौदा 2 बच्चों की नीति को बढ़ावा देता है यानि जिन घरों में दो से अधिक बच्चे हैं उन घरों के सदस्यों को सरकारी नीतियों और लाभों के अभाव में रखा जाएगा। साथ ही जिन घरों में दो या दो से कम बच्चे हैं उन घरों को सरकार अलग-अलग तरह के सरकारी फायदे दिए जाएँगे। इस विधेयक और नीति को समझने के लिए हमने दो विशेशज्ञों-- पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफ़आई) की इग्ज़ेक्यटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा और स्वास्थ्य विशेषज्ञ आलोक वाजपेयी से बात की।

इसके पहले पूनम भारत में मैक आर्थर फ़ाउंडेशन की राष्ट्रीय डिरेक्टर थी। ये पिछले 35 वर्षों से महिला अधिकार से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहीं हैं और कई एनजीओ के बोर्ड की सदस्य रह चुकी हैं। ये दस्तकार, विश फ़ाउंडेशन और अशोका फ़ाउंडेशन, नाम के संस्थानो की सह संस्थापक हैं और हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के जॉन एफ केनेडी स्कूल ओफ़ गवर्न्मेंट से पढ़ी हुई हैं। आलोक वाजपेयी रिसर्चर हैं और पीएफ़आई के साथ काम करते हैं, परिवार नियोजन और जनसंख्या पर इन्होंने काम किया है।

हमने बातचीत के दौरान यह जानने का प्रयास भी किया कि भारत में या उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ऐसा क़ानून जो जनसंख्या को ज़ोर-ज़बरदस्ती के साथ नियंत्रित करने की कोशिश करे, कितना ज़रूरी है और इसके लागू होने से क्या प्रभाव होंगे, ख़ासकर ऐसे समय में जब यूपी और देश भर के ज़्यादातर राज्यों में प्रजनन दर नीचे जा रही है।


उत्तर प्रदेश सरकार ने जब से जनसंख्या नियंत्रण के विधेयक और नीति की बात की है तब से जनसंख्या नियंत्रण को लेकर हर तरफ बातचीत बढ़ चुकी है। साथ ही जनसंख्या विधेयक और नीति इन दोनों शब्दों को आपस में बदलकर इस्तेमाल किया जा रहा है। दो बच्चों की नीति, जनसंख्या विधेयक और जनसंख्या नीति, इन सब में क्या अंतर है?

पूनम: भारत में जनसंख्या नीति सरकार बनाती है और वह उसमे अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों का उल्लेख करती है और बताती है की इन्हें हासिल करने के लिए क्या क़दम उठाने हैं। इनमें सरकार यह भी बताती है कि वह कहाँ क्या सुविधाएँ पहुंचाना चाहती है और इसके पीछे उसकी मंशा क्या है। परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की नहीं है उसमें पुरुष भी शामिल है। महिलाएँ बच्चे भी पैदा करें, परिवार नियोजन भी करें, गर्भपात भी कराएँ, बच्चों का ख्याल रखें और परिवार निजयोजन के बारे में भी केवल वही सोचें ।

उत्तर प्रदेश की सरकार यह विधेयक महिलाओं को सशक्त करने के लिए लाना चाहती है पर यह बिल महिलाओं को और भी ज्यादा दुर्बल बनाएगा और उनके हालात और ख़राब करेगा। इस बिल से न सिर्फ उनके खिलाफ भेदभाव बढ़ेगा बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ पर भी इसका गहरा असर होगा।

उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा बनाई जा रही जनसंख्या नीति स्वस्थ विभाग के साथ मिलकर बनाई है लेकिन यह विधेयक राज्य विधि आयोग बना रहा है और यह दोनों बिलकुल अलग-अलग चीजें हैं ।

जनसंख्या नीति एक बड़ी नीति है जिसमे परिवार नियोजन जैसे मुद्दों से जुड़ी योजनाएँ आती हैं, इस नीति की कुछ ख़ास आलोचना भी नहीं की जा रही है, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण विधेयक की काफी आलोचनाएँ हो रही हैं। इस विधेयक में क्या मुख्य समस्याएँ हैं?

पूनम: बिल लाने से पहले, रविवार को जनसंख्या नीति लायी गयी, ये काफ़ी अच्छी है और मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं दिखती सिवाय एक चीज़ के, कि इसमें एक तरह की धमकी है की अगर जनसंख्या स्थिर नहीं होगी तो हमें एक कड़ा क़ानून लाना होगा।

इसी के बाद राज्य विधि आयोग ने इस बिल का मौसदा जारी किया गया और इसे देख के ऐसा लगता है कि आयोग ने ये बनाने से पहले किसी जनसंख्या विशेषज्ञ से बात भी नहीं की है इसे जुड़े कोई आँकड़े भी नहीं देखें होंगे। नीति से हम संतुष्ट है पर ये बिल और नीति में कोई मेल नहीं है, दोनो एक दूसरे से विपरीत हैं।

मेरा ये कहना है की ये बिल काम नहीं करेगा, ऐसी नीतियाँ दुनिया या भारत में कहीं भी सफल नहीं हुई हैं और इसके सौ उदाहरण दे सकती हूँ की ये भारत में काम नहीं कर सका है और अगर ये लागू हो जाता है तो परिवार नियोजन को नुकसान ही पहुंचाएगा। साथ ही अगर इस बिल के कुछ प्रावधान भी कहीं लागू हुए तो यह न सिर्फ महिलाओं बल्कि गरीब बच्चों के लिए और सरकार के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा, सिर्फ़ पैसे की बर्बादी होगी।

इस बिल में क्या मुख्य समस्याएँ हैं जो उत्तरप्रदेश के लिए काम नहीं करेंगी?

आलोक: मैं कहूँगा कि ये पूरा बिल ही काम नहीं करेगा उत्तर प्रदेश के लिए क्योंकि इसमे कई ऐसे प्रावधान हैं जिनकी कोई आवश्यकता नहीं है ये बिना किसी तथ्य के मौजूद हैं। साथ की इस बिल में जो बात सरकारी लाभों को लेकर हुई है वह काम नहीं करेगी क्योंकि ये भेद-भाव पैदा करेगा और इसके दुष्प्रभाव ज़्यादा होंगे।

इसकी वजह से, पहले भी ऐसा देखा जा चुका है, लिंग भेद की प्रथाएँ जैसे लिंग चयनात्मक गर्भपात, अनचाहा गर्प्भ्पात आदि। लोगों ने चुनाव में लड़ने ले लिए अपनी पत्नियों को तलाक दिया (क्योंकि दो से अधिक बच्चों वाले लोग चुनाव नहीं लड़ सकते थे) और बच्चों को गोद लेने के लिए छोड दिया।

अगर हम बात करें गर्भवती अवस्था के दौरान माता पिता को छुट्टी मिलने की तो आज भी ज्यादातर महिलाएँ अनौपचारिक श्रम कर रही हैं जहां 'मटर्निटी लीव' या गर्भ के दौरान मिलने वाली छुट्टियों की सुविधा मौजूद नहीं है तो उन तक ये लाभ पहुँचेगा ही नहीं।

साथ ही उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं और बच्चों अनिमिया की काफ़ी समस्या है, मान लीजिए अगर एक परिवार में 6 सदस्य हैं तो इस नीति के तहत राशन सिर्फ 4 लोगों को मिलने की बात कही गयी है, तो दो लोगों का राशन नहीं मिलेगा, इसकी वजह से बच्चों, महिलाओं और किशोरियों के पोषण पर प्रभाव पड़ेगा।

बिल के आने के बाद इससे जुड़ी सामुदायिक बातें भी शुरू हो गयी है। क्या कोई भी तथ्य या आँकड़े मौजूद हैं जो ये साबित करते हों भारत में मुसलमानों की संख्या हिंदुओं को पार कर सकती है, आने वाले समय में?

आलोक: नहीं, ऐसे कोई तथ्य मौजूद नहीं हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सके की ऐसा अगले कुछ दशक में हो सकता है। देश भर में जनसख्या कम तेज़ी से बढ़ रही है और ये बात हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब के लिए सही है। इसी तरह से कुल प्रजनन दर भी सभी धार्मिक समुदायों में कम हो रही है। बल्कि जनसंख्या की कमी की दर मुस्लिम समुदाय में ज़्यादा है।

पूनम: कोई ऐसे आँकड़े नहीं हैं, सिर्फ़ धारणाएँ और अवधारणाएँ हैं।आज के जमाने का सबसे बड़ा झूठ है की भारत में मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है और हिंदुओं से अधिक हो जाएगी, जबकि असल में इसका विपरीत है।

इस बिल से जुड़ी सभी बात-चीत हिंदू मुसलमान और जनसंख्या के बारे में हो रही है, पर काफ़ी अहम बात जिसपर ध्यान नहीं दिया गया है वो है इस बिल का महिलाओं पर असर। पहले ही देश में परिवार नियोजन का भार महिलाओं पर है, पर इनके पास फ़ैसले लेने की ताक़त नहीं है, इंडियास्पेंड इस पर खबरें करता रहता है। तीन मुख्य बिंदु बताएँ कि ऐसी स्थिति में इस बिल का महिलाओं पर क्या असर पड़ेगा?

पूनम: पहला, महिलाओं पर लिंग चयनात्मक गर्भपात करवाने का दबाव बढ़ जाएगा। दूसरा, सभी समुदायों की सबसे अनपढ़ और ग़रीब महिलाओं को तलाक़ का भी ज़्यादा ख़तरा होगा, और तीसरा देश की वृद्ध अवस्था में महिलाओं को सबसे पहले घर से निकाला जाएगा।

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