उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में पिछले महीने संपन्न हुए पंचायत चुनाव के दौरान कोविड19 से संक्रमित हुए अध्यापकों की मृत्यु को लेकर राज्य सरकार एक ओर अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रही है वहीं दूसरी ओर अध्यापकों को एक बार फिर से अतिरिक्त ड्यूटी पर बुलाने के लिए फरमान भेजे जा रहे हैं। गौरतलब ये है कि इस बार की यह 'अनिवार्य' ड्यूटी कोविड से सम्बंधित है जिसके लिए अध्यापकों को संक्रमण से बचने के लिए पीपीई किट, ट्रेनिंग, आवागमन की व्यवस्था या इनके इंतेज़ाम के लिए अतिरिक्त धनराशि कुछ भी उपलब्ध नहीं करवाया गया है।

उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में 12वीं कक्षा के अध्यापक, रमेश कुमार, 56, (नाम बदला हुआ) को 16 मई को व्हाट्सएप ग्रुप पर एक चिट्ठी मिली। इस चिट्ठी पर ज़िला मजिस्ट्रेट के दस्तख़त थे और इसमें रमेश को 'निगरानी समिति' का अध्यक्ष बनने का आदेश दिया गया था।

इसी दिन उत्तर प्रदेश के कई जिलो में अध्यापकों को ये चिट्ठी भेजी गयी जिसमें एक 'निगरानी समिति' का ज़िक्र किया गया, इस समिति का काम है गांव में जा कर सर्वे करना और कोविड से हो रही मौतों के आंकड़े इकट्ठा कर ज़िला मजिस्ट्रेट को सौंपना। इस समिति में आशा कार्यकर्ता, ग्राम प्रधान, पुलिस अधिकारी आदि समेत अध्यापकों को भी शामिल किया गया है।

क्या है निगरानी समिति?

अध्यापकों को मिले पत्र के अनुसार, मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा 'ग्राम स्तरीय निगरानी एवं अनुश्रवण समिति' 14 मई को गठित की गयी। हर समिति का गठन थोड़ा अलग है, ज्यादातर समितियों में 10 से 15 सदस्य हैं। हर समिति में अध्यापक शामिल नहीं है, पर ज्यादातर समितियों में अध्यापक, सरपंच, पंचायत वार्ड सदस्य, लेखपाल अधिकारी और आशा या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मौजूद हैं।

एक समिति के अध्यक्ष ने बताया कि इनका काम है गाँव के लोगों, जैसे आशा, पुलिस कर्मचारी आदि के साथ गाँव में भ्रमण करना और कोविड की मौतों के आँकड़े लेना, इन्हें एक रजिस्टर में नोट करना जिस पर प्रधान समेत समिति के सभी ज़रूरी सदस्यों के हस्ताक्षर होना और इसकी एक रिपोर्ट बना कर रोज़ एक व्हाट्सएप्प ग्रुप पर डालना अनिवार्य है।

सभी समितियों के कार्य निर्देश भी अलग-अलग है, कुछ समितियों को आदेश है कि 45 वर्ष के ऊपर के जिन लोगों को कोविड का टीका नहीं लगा है उनके नाम लिखे जाएँ और उनका आधार नंबर नोट किया जाए। कुछ समितियों में आशा वर्कर को बुखार के आंकड़े इकट्ठा करने को भी कहा गया है।

एक ही काम दो बार किया जा रहा है

जब हमने इस काम में लगे कुछ शिक्षकों से बात की तो पता चला कि इस निगरानी समिति द्वारा इकट्ठे किये जा रहे आंकड़े पहले से ही आशा और दुसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों के द्वारा इकट्ठे किये जा रहे हैं।

आशा और एएनएम वर्कर, यानी सहायक नर्स मिडवाइफ़ या दाई मिलकर पहले से ही ये आंकड़े तैयार कर रहे थे जो हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) के चिकित्सा अधिकारी को दिए जा रहे थे। सभी पीएचसी ज़िला अस्पताल में इसकी रिपोर्ट एमओआईसी या मेडिकल ऑफिसर इन चार्ज को दे रहे थे।

फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि ये निगरानी समिति स्वास्थ्य विभाग की बजाय सीधा जिलाधिकारी को रिपोर्ट कर रही है।

"जो आंकड़े हमें इकट्ठे करने हैं, वही आँकड़े आशा वर्कर और आंगनवाड़ी पहले ही ले रही हैं। एक ही काम अलग-अलग तरीके से बार बार किया जा रहा है," सहायक अध्यापिका, प्रीति कुमारी, 29, (नाम बदला हुआ) ने बताया। "क्योंकि आशा के पास आँकड़े पहले से हैं हम उन्ही से लेकर आँकड़े भेज रहे हैं, वही काम दो बार करने का क्या फ़ायदा?"

निगरानी समिति के सर्वे फॉर्म का प्रारूप

ड्यूटी के लिए कोई ट्रेनिंग, पीपीई किट या संसाधन नहीं

"संक्रमण काल में शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी में लगाने का दुष्परिणाम सभी के सामने है, अब शिक्षकों को बिना वैक्सीनेशन और सुरक्षा उपकरण दिए, बिना फ्रंटलाइन वॉरियर माने, कोविड कंट्रोल रूम में लगाया गया है, जबकि इस महामारी में ड्यूटी प्रशिक्षित कर्मचारियों की होनी चाहिए," उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक, मोहिनी शुक्ला, 32, ने बताया।

इस ड्यूटी पर भेजने के लिए अध्यापकों को सिर्फ़ ये मैसेज दिया गया। यहां क्या करना है, कैसे करना है, कोविड के दौरान सुरक्षा का ख्याल कैसे रखना है, इस पर कोई ट्रेनिंग नहीं दी गयी।

"हम गाँवों में घर घर जा कर लोगों से बात करें, या नियमित रूप से समिति की बैठक करें ये बता दिया गया, पर बैठक में सुरक्षा के लिए मास्क, सैनिटाइजर, दस्ताने आदि का सब खर्च हमारा," समिति के सदस्य और प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य, मुकेश सिंह, 45, (नाम बदला हुआ) ने बताया, "हमें तो रिपोर्ट बनाने के लिए रजिस्टर, पेन आदि भी अपनी तरफ से ही लगाना पड़ा।"

कई अध्यापकों की ड्यूटी उनके गृह जिलों के पास वाले जिलों में लगायी गयी। रमेश कुमार अपने स्कूल से लगभग 20 किलोमीटर दूर शहर में अपने परिवार के पास रहते हैं, जहाँ बेहतर स्कूल, अस्पताल आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनकी ड्यूटी इनके घर से लगभग 70 किलोमीटर दूर किसी दूसरे ज़िले में लगायी गयी।

"पूरे राज्य में लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक परिवहन बंद है, कोई बस टैक्सी नहीं चल रही है, मुझे गाड़ी या मोटरसाइकिल भी चलानी नहीं आती है, ऐसे में मै रोज़ इतनी दूर कैसे जाऊं," रमेश ने बताया। "जाना ज़रूरी था तो मैंने रुपये 1,700 में एक टैक्सी बुक की और गया, मै इतने पैसे ख़र्च कर के बार बार कैसे जा सकता हूँ," रमेश ने कहा। "बाक़ी अध्यापक भी यही कर रहे हैं, जिन्हें पास के गाँव मिले हैं वो एक टैक्सी शेयर कर रहे हैं," रमेश ने बताया।

"सबकी पोस्टिंग अपने गाँव में तो होती नहीं है, लॉकडाउन की वजह से लोग अपने घर वापस चले गए हैं, कई अध्यापकों ने अपने किराए के मकान ख़ाली कर दिए हैं, ऐसे में अगर वापस ड्यूटी पर आना होगा तो रहने, खाने का इंतजाम कौन करेगा," प्रीति ने बताया।

"सरकार बिना कुछ सोचे समझे पूरी ज़िम्मेदारी हम पर थोप देती है कि हमने कह दिया है ये करो, अब कैसे करोगे ये खुद देखो, हम कोई मदद नहीं करेंगे," 11वीं कक्षा की अध्यापिका अनिता रानी, 54, (नाम बदला हुआ) ने बताया।

"उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों के अलग अलग शिक्षक संघ ने मांग भी आगे रखी है कि बिना किसी सुरक्षा के हमारी फिर ड्यूटी लगायी गयी है, और लोग मरेंगे तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा," प्रीति ने बताया, "21 मई से गर्मी की छुट्टी शुरू है, ड्यूटी करने का ना तो कोई अलग से पैसा दिया गया है और ना ही कोई सुरक्षा की गारंटी, सैनिटाइजर वगैरह के पैसे भी अपनी जेब से देने हैं।"

बहराइच जिले के उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने भी सरकार को इस सिलसिले में अपने एक पत्र में कहा कि, "शिक्षकों की ड्यूटी बिना किसी सुरक्षा अथवा कोविड बचाव से संबंधित प्रशिक्षण दिए बिना तथा शासनादेश के विपरीत कोविड कंट्रोल रूम और निगरानी समिति में लगाकर उन्हें कोरोना संक्रमण के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। कतिपय जनपदों में कोविड कंट्रोल रूम और निगरानी समितियों में लगे शिक्षकों की मृत्यु भी हो चुकी है। अतः आपसे सादर अनुरोध है कि ग्रीष्मावकाश में शासनादेश के विपरीत कोविड कंट्रोल रूम और निगरानी समिति की ड्यूटी में लगे शिक्षकों को कार्यमुक्त करने का कष्ट करें।"

कोविड की ड्यूटी भी, चुनाव की ड्यूटी की तरह अनिवार्य

महामारी के इस दौर में जहां हर घर में कोई न कोई कोविड संक्रमित है ऐसे में इन शिक्षकों के खुद या फिर परिवार के किसी सदस्य के संक्रमित या गंभीर रूप से बीमार होने की स्थिति में भी इनका ड्यूटी पर जाना अनिवार्य है। चुनाव कि ड्यूटी के दौरान पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर ड्यूटी से नाम काटे जाने का प्रावधान था लेकिन निगरानी समिति की ड्यूटी में ऐसा कुछ नहीं है ।

रमेश को जिस दिन मतगणना ड्यूटी का आदेश आया था, उसी दिन उनकी कोविड पॉजिटिव की रिपोर्ट भी आयी थी, "मुझे तेज़ बुखार था, ऑक्सीजन लेवल भी नीचे चला गया था पर अगर टेस्ट नेगेटिव नहीं आता तो इन सब लक्षणों के साथ भी ड्यूटी पर जाना पड़ता," रमेश अपनी पंचायत चुनाव की ड्यूटी की घटना बताते हैं।

लेकिन उसके ठीक विपरीत निगरानी समिति की ड्यूटी के बारे में बताते हुए प्रीति कहती हैं, "कोविड ड्यूटी से तो नाम कटवाने का कोई प्रावधान भी नहीं है।"

"प्रखंड विकास कार्यालय में लोग अपने मेडिकल रिपोर्ट लिए बुखार में घंटो खड़े रहे, एक अधिकारी से दूसरे के पास जाते रहे, ये बोल कर की अभी टेस्ट रिपोर्ट आनी बाक़ी है पर लक्षण पूरे हैं, इसके बावजूद किसी की ड्यूटी नहीं काटी गई," प्रीति ने बताया।

प्राथमिक स्कूल टीचर, फ़ातिमा शेख़, 32, (नाम बदला हुआ) अकेली माँ हैं और अपने पाँच साल के बच्चे के साथ रहती हैं। इस स्थिति में फ़ातिमा के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं या तो अपने बच्चे को किसी और के पास छोड़ कर इस ड्यूटी के लिए जाएँ या फिर अपने ऊपर होने वाली आधिकारिक कार्यवाही का सामना करें।

"या तो नौकरी छोड़ दो और अपनी और अपने परिवार की जान बचा लो, या फिर जो जैसा बोले करते रहो। एक ड्यूटी कोई कटवा लेगा कोई, दो कटवा लेगा, पर ये तो हर दिन किसी चीज़ की ड्यूटी लगा देते हैं, कभी ना कभी तो जान ख़तरे में डाल कर जाना पड़ेगा," फ़ातिमा ने बताया।

'पढ़ाने के सिवा बाक़ी सब काम करवाया जाता है'

शिक्षक, जिनकी गिनती किसी फ्रंटलाइन कर्मचारियों की तरह नहीं की जाती है, जिन्हें न ही कोई बीमा मिलता है, न ही टीकाकरण या सरकार की अन्य किन्हीं योजनाओं में कोई प्राथमिकता। इन्हें फ्रंटलाइन कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं के अभाव में तो रखा जाता है लेकिन सरकार हर ज़रूरी मौके पर इनसे फ्रंटलाइन वर्कर्स के बराबर जोखिम का काम करवा रही है।

"डीएम को अधिकार प्राप्त है कि किसी भी आपदा में सभी सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। और हम सरकारी संसाधन हैं तो अब हमसे कौन पूछेगा कि जी रहे हो या मर रहे हो, जो काम है बस करे जाओ," मुकेश सिंह ने कहा।

"कोई भी पल्स पोलिओ हो, चुनाव हो, मतगणना हो, टीचर की ड्यूटी लग जाती है, अब यहाँ मार-पिटाई हो जाए किसी की जान को ख़तरा हो, टीचर को कोई सुरक्षा नहीं मिलती। हमारे ज़िले में फ़रवरी में मुख्यमंत्री आए तो ज़िले के सभी टीचरों की ड्यूटी रंगोली बनाने और दिया जलाने में लगा दी, सबसे ज़्यादा प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक की ड्यूटी लगायी जाती है," प्रीति ने कहा।

"टीचर का काम पढ़ाने का होता है, और उन्हें सिर्फ़ यही काम देना चाहिए, इतनी ड्यूटी के बीच ना टीचर के पास समय होता है ना ऊर्जा की वो 100-200 से ज़्यादा बच्चों की क्लास पर ध्यान दे पाए, ऐसे में टीचर क्या पढ़ाएगा और ये बच्चे क्या सीखेंगे," रमेश ने कहा, "सरकार विवेकहीन तरीके से ड्यूटी लगाती है, ऐसे में अध्यापक शोषित महसूस करते हैं, कोई पढ़ाना चाहे तो भी नहीं पढ़ा सकता," रमेश ने बताया।

"अभी तक बच्चों की पढ़ाई लगभग 20 अप्रैल से बंद थी, अभी 24 मई को आदेश आया है की फिर से ऑनलाइन क्लैसेज़ शुरू करनी हैं। हम या तो घर घर जा के ये काम करें कोविड ड्यूटी का, या ऑनलाइन क्लैसेज़ लें, ये सब कौन सोच रहा है," रमेश ने कहा।

"ज्यादातर टीचर इस ड्यूटी में नहीं जा रहे हैं, कोई व्हाट्सएप पर आंकड़े मंगवा पा रहे हैं, जिन गाँवों में रैंडम जाँच हो रही है वहाँ पता चला है कि टीचर नहीं है उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही भी की जा रही है पर डीम हो या एसडीएम सबको पता है कि कोई नहीं जाएगा सिर्फ़ परेशान करने के लिए चेक करते हैं कि टीचर गाँव में नहीं मिला तो उस से पैसा लेंगे," प्रीति ने कहा,

(इस खबर में शिक्षकों के नाम उनकी पहचान को गुप्त रखने के लिए उनके आग्रह पर बदले गए हैं और उनके जिलों का उल्लेख भी इस ही कारण से नहीं किया गया है।)

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