वाराणसी: गंगा के पानी से पट गई 12 करोड़ की कैनाल, अब काम बंद
बरसात से पहले कैनाल बनकर तैयार हो गई, लेकिन गंगा नदी में पानी बढ़ते ही कैनाल पट गई और अब दोबारा खुदाई पर रोक लगा दी गई है।
वाराणसी: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी के किनारे कैनाल बनाने का काम चल रहा था, अब इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया है। करीब 11.92 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट के तहत गंगा नदी के बालू क्षेत्र में ड्रेजिंग करके एक कैनाल बनाई जा रही थी।
प्रोजेक्ट को लेकर दावा था कि गंगा किनारे बालू का ढेर लगता जा रहा है और इससे घाटों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में कैनाल बनाकर गंगा की धार को मोड़ा जाएगा, जिससे घाटों पर पानी का दबाव कम हो सके। इस साल बरसात से पहले अच्छी खासी कैनाल बनकर तैयार भी हो गई, लेकिन गंगा नदी में पानी बढ़ते ही कैनाल पट गई और अब दोबारा खुदाई पर रोक लगा दी गई है।
इस प्रोजेक्ट के मैनेजर, सिंचाई विभाग के पंकज वर्मा ने इंडियास्पेंड से कहा, "प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य घाटों के नीचे की मिट्टी हटाने का था। यह ड्रेजिंग का काम इसलिए ही किया गया था। ये नहर नहीं थी, सिर्फ डाइवर्जन चैनल बनाया गया था। हमने इस प्रोजेक्ट के पहले सर्वे कराया था तो परिणाम आया कि गंगा में लंबे समय से ड्रेजिंग नहीं हो रही थी जिसके कारण घाट के दूसरी तरफ रेत जम गई थी। इससे नदी की धार से घाट नीचे-नीचे खोखले और कमजोर हो रहे थे। ऐसे में चैनल बनाकर गंगा के तेज बहाव से खराब हो रहे घाट को ठीक किया गया। अब यह काम पूरा हो चुका है।"
वक्त के साथ बदलते गए दावे
वाराणसी में रामनगर से राजघाट तक बने रहे 5 किलोमीटर लंबे कैनाल की चौड़ाई करीब 45 मीटर थी। इस साल मार्च में कैनाल बनाने की शुरुआत हुई और बरसात से पहले करीब-करीब काम पूरा हो चुका था। इस कैनाल को लेकर वक्त वक्त पर कई दावे किए गए, जैसे - खबरों में इसे 'दूसरी गंगा' कहा गया। वहीं, टूरिस्ट प्लेस बनाने जैसी बातें भी होती रहीं।
इसके बाद जुलाई में ऐसी खबरें आने लगीं कि कैनाल बाढ़ के पानी में समा गई है। हालांकि तब दावा किया गया कि इसे कोई नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को ही बंद कर दिया गया और यह दावा किया जा रहा कि जिस वजह से प्रोजेक्ट शुरू किया गया था वह काम पूरा हो गया है।
पंकज वर्मा कहते हैं, "कैनाल बनाने से पहले घाट के किनारे 20-22 मीटर सिल्ट जमी हुई थी। कैनाल बनाने के बाद अक्टूबर में हमने सर्वे किया तो इन घाट के किनारे सिल्ट 10-12 मीटर रह गई है। हमने यह सर्वे अक्टूबर के पहले सप्ताह में कराया था।" इस सर्वे की रिपोर्ट मांगने पर पंकज वर्मा ने उपलब्ध कराने की बात कही। हालांकि फोन पर बातचीत के बाद से रिपोर्ट लिखे जाने तक सर्वे रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हो सकी है। रिपोर्ट मिलने पर उसे खबर में जोड़ा जाएगा।
नदी वैज्ञानिकों ने जताई थी चिंता
ऐसा नहीं कि कैनाल को लेकर आपत्तियां नहीं थीं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के नदी विशेषज्ञ प्रो. यूके चौधरी ने तो इस प्रोजेक्ट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खत भी लिखा था। प्रो. चौधरी ने सवाल किया था कि रेत पर नहर में डिस्चार्ज की गणना कैसे की गई? क्रॉस सेक्शन और ढलान कैसे तय किया गया? रेत में रिसाव की दर की गणना कैसे की गई? उन्होंने दावा किया था कि कैनाल बनाने के कारण गंगा घाटों से भी दूर हो जाएगी।
प्रो. चौधरी इंडियास्पेंड से कहते हैं, ''इस कैनाल की डिजाइन भी मानक के मुताबिक नहीं थी। बालू क्षेत्र में नहर का डिस्चार्ज और स्लोप कितना है इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। ना ही कोई विशेषज्ञों की टीम बनाई गई। गंगा के सात किलोमीटर के दायरे में तीन तरह का बालू मिलता है आप उसका क्या करेंगे कोई जवाब नहीं है। यह निर्माण बिना वैज्ञानिक सिद्धांतों के हो रहा था।"
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के एसोसिएट कॉर्डिनेटर भीम सिंह रावत भी कैनाल प्रोजेक्ट पर आपत्ति जाहिर करते रहे हैं। रावत ने इंडियास्पेंड से कहा, "यह योजना जबसे शुरू हुई तबसे हमको विश्वास था कि यह संभव नहीं है, क्योंकि रेत के अंदर कैनाल बनाने का प्रयास विफल होगा। मैं नमामि गंगे के डायरेक्टर जनरल को सूचित करता रहा कि यह काम हो रहा है जिसे वक्त रहते रुकवाया जाए नहीं तो लोगों का पैसा बेकार हो जाएगा। फिर बाढ़ आ गई और पूरा नुकसान हो गया। योजना शुरू होने के साथ ही विशेषज्ञों ने सुझाव दिए, इसका विरोध किया। इन सब सुझाव को दरकिनार करते हुए कैनाल बनाने का काम किया गया और अब नतीजा सबके सामने है। उम्मीद है सरकार इससे सबक लेगी और उन दोषियों पर कार्यवाही होगी जिनकी वजह से 12 करोड़ रुपए व्यर्थ हुए हैं।"
कैनाल बनाने का काम जिस जगह हो रहा था वहां कभी कछुआ सेंचुरी हुआ करती थी। बाद में इसे डिनोटिफाई करके दूसरी जगह भेज दिया गया। यह तर्क भी दिए गए कि कछुओं की वजह से घाट को नुकसान हो रहा है, गंगा में बालू का क्षेत्र बढ़ रहा है। ऐसे ही तर्कों के साथ कैनाल बनाने का काम भी शुरू हुआ था, जो कि अब बंद कर दिया गया।
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