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उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में जेलों में गौशाला बनाने का प्रस्ताव रखा है। लेकिन यहां यह जान लेना भी बेहद दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में पहले से ही ज्यादा कैदी बंद हैं । साथ ही जेल में काम करने वाले कर्मचारियों की भी बेहद कमी है।

भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य की जेलों में क्षमता से 69 फीसदी अधिक कैदी हैं। कैदी की अधिकता का राष्ट्रीय औसत 14 फीसदी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी वर्ष 2015 में जेल आंकड़ों के मुताबिक जेल में आवश्यकता की तुलना में केवल दो-तिहाई स्टाफ मौजूद हैं।

आंकड़ों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की जेलों में 49,434 कैदियों की क्षमता है, लेकिन बंद कैदियों की संख्या 88,747 है। राष्ट्रीय स्तर पर यह क्षमता 366,781 है और कैदियों की संख्या 419 663 है।

कैदियों को रखने की सबसे ज्यादा क्षमता दादरा एवं नगर हवेली के पास है। 277 फीसदी , जो कि किसी भी अन्य राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से ज्यादा है। 234 फीसदी के साथ छत्तीसगढ़ दूसरे और 227 फीसदी के साथ दिल्ली तीसरे स्थान पर है।

कैदियों को रखने की अधिक क्षमता वाले टॉप पांच राज्य/केंद्र शासित प्रदेश

Source: Prison Statistics 2015, National Crime Records Bureau

क्या जेल, कैदियों और गायों का प्रबंधन करने के लिए है पर्याप्त स्टाफ?

जेल राज्य मंत्री जय कुमार सिंह ने जेल गौशाला के लिए सरकार की योजना बताते हुए कहा है, “हमारे पास जनशक्ति है और अधिकांश जेलों में गौशाला स्थापित करने के लिए पर्याप्त जमीन है। इलाहाबाद के नैनी जेल में पहले से ही एक गोशाला है। हम अन्य जेलों में गौशाला शुरू करने की संभावना देख रहे हैं। हमारी योजना उन्हें सरकार से थोड़ा अनुदान लेकर, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों की सहायता के साथ चलाने की है।”

उत्तर प्रदेश में 33 फीसदी जेल के कर्मचारियों की कमी है। 10,407 की स्वीकृत पदों में से 6, 972 (67 फीसदी) पद भरे हुए हैं। वर्ष 2015 के एनसीआरबी डेटा के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर यह कमी 34 फीसदी है।

कर्मचारियों की कमी के संबंध में बिहार के जेलों की स्थिति भी बद्तर है। बिहार के जेलों में 2,654 कर्मचारी हैं, जबकि वहां 7,860 लोगों की जरूरत है। यानी 66 फीसदी कर्मचारियों की कमी है। दिल्ली में 47 फीसदी कर्मचारियों की कमी है और पश्चिम बंगाल के लिए ये आंकड़े 41 फीसदी हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 11 नवंबर 2016 को अपनी रिपोर्ट में बताया है।

अन्य राज्य की तुलना में उत्तर प्रदेश में ‘अंडरट्रायल’ मामले ज्यादा

एनसीआरबी की ओर से वर्ष 2015 के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अंडरट्रायल कैदियों संख्या है। यानी ऐसे कैदी, जिनके मुकदमे चल रहे हैं।फैसला नहीं हुआ है।

राज्य के लिए ये आंकड़े 62,669 दर्ज हैं, जबकि बिहार के लिए 23,424 और महाराष्ट्र के लिए 21, 667 हैं। बिहार में, 82 फीसदी कैदियों पर मुकदमा चल रहे थे। किसी भी अन्य राज्य की तुलना में ये आंकड़े सबसे ज्यादा हैं।

वर्ष 2014 में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 में, 25 फीसदी से ज्यादा मुकदमा चलाए जा रहे कैदियों को एक वर्ष से अधिक के लिए हिरासत में रखा गया है। 54 फीसदी के आंकड़े के साथ जम्मू और कश्मीर इस सूची में सबसे आगे है। 50 फीसदी के साथ गोवा दूसरे और 42 फीसदी के साथ गुजरात तीसरे स्थान पर है। और पूर्ण संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश (18,214) आगे है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 अक्टूबर 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

इसके अलावा, मानव अधिकार कार्यकर्ता अक्सर जेलों में कैदियों की रहने की स्थिति का विषय उठाते हैं। वर्ष 2013 के बाद से, सुप्रीम कोर्ट भारत में 1,382 जेलों में अमानवीय परिस्थितियों से जुड़े एक सुओ मोटो मामले की सुनवाई कर रहा है। इस मामले में, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और आरके अग्रवाल के बेंच ने फरवरी में सभी राज्यों के निर्देश जारी किए, जैसा कि वायर ने 11 अप्रैल 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

(साहा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ से जेंडर एवं डिवलपमेंट में एमए हैं।))

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 जून 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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