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कुडनकुलम, तमिलनाडू में निर्माणाधीन न्यूक्लीय पावरप्लांट, जनवरी 2013

हाल की प्रधान मंत्री मोदी की तीन विदेशी देशों की यात्रा( जर्मनी.फ्रांस कनाडा ) की कई उपलब्धियों में से एक विश्व की युरेनियम निर्माण करने वाली सबसे बड़ी कम्पनीयों में से एक – केमको –के साथ समझौता होना है |

अगले 6 वर्षो तक केमको भारत को 3000 टन युरेनियम की आपूर्ति करेगा – जो की भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स की वर्तमान बिजली उत्पादन 5,780 मेगावाट में से 1700 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए काफी है |

उपरोक्त की तरह ही वर्ष 2013 में उज्बेकिस्तान के साथ समझौता हुआ था और विश्व में सबसे बड़ा यूरेनियम का भंडार ऑस्ट्रेलिया में है – जिसके साथ यूरेनियम आपूर्ति का समझौता भारत समाप्त करने की प्रक्रिया में है | रूस और कज़ाकिस्तान के साथ भारत को आपूर्ति इस वर्ष जारी रहने को है|

Table 1: India’s Nuclear Fuel Supply Agreements
Firm/CountryAgreements for supply of nuclear fuel (year of signing)
Areva, France300 tonne uranium ore concentrate (2008)
TVEL Corporation, Russia

  • 2,000 tonne uranium dioxide pellets over 5 years (2009)
  • 58 tonne enriched uranium dioxide pellets (2009)
  • 42 tonne enriched uranium dioxide pellets (2015)

NAC Kazatomprom, Kazakhstan2,100 tonne uranium ore concentrate over 6 years (2009)
NMMC, Uzbekistan2,000 tonne uranium ore concentrate of 5 years (2013)
CAMECO, Canada3,000 tonne uranium ore concentrate over 6 years (2015)

Source: Press Information Bureau

उक्त न्यूक्लियर समझौते भारत की वायु प्रदूषण समस्याओं को हल करने में बहुत से उपायों में से एक हो सकते हैं | भारत तापीय बिजली के विकल्पों में प्रयासरत लेकिन चूँकि परम्परागत रूप से कोयला आधारित तापीय बिजली कुल उत्पादन का 80% होती है जिसके कारण कोयला दहन से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता तो है लेकिन विकल्प इतने आसान नहीं |

भारत में बिजली उत्पादन का 3.5% न्यूक्लियर बिजली उत्पादन होता है, जो की भारत की कुल बिजली खपत का 1.3% है, लेकिन सरकार ने काफी विशाल न्यूक्लियर परियोजनाएं प्रस्तावित कर रखी हैं |

भारत में वर्ष 2024 तक अपना न्यूक्लियर बिजली उत्पादन का लक्ष्य, जो कि वर्ष 2014 में 4780 मेगवॉट था, वह 2015 में 5780 मेगावॉट हो गया है- को तिगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है | सरकार की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार न्यूक्लियर बिजली उत्पादन का नवीनतम लक्ष्य वर्ष 2031-32 तक 63,000 मेगावाट प्रस्तावित किया गया है |

हालांकि न्यूक्लियर बिजली के समर्थकों का यह कहना कि इस तरह की बिजली कार्बन डाइ ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों से वायुमंडल को प्रदूषित नहीं करती – इस बात को ध्यान मे रखते हुए भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता और प्रदूषण के कारण स्थानीय और वैश्विक स्तर पर आर्थिक और क्लाइमेट पर असर डालने वाले तत्वों पर कुछ तो इस स्वच्छ न्यूक्लियर बिजली का सकारात्मक प्रभाव पड़ ही सकता है |

लेकिन न्यूक्लियर साधनों द्वारा उत्पादित बिजली हमको काफी भयानक परिणामों और सुरक्षा में खतरे की चेतावनियों के बीच उपलब्ध होती है और अन्य देश भी इसके लाभ-नुकसान के प्रति काफी गंभीर हो रहें हैं और भारतीय न्यूक्लियर वैज्ञानिक भी इन खतरों के प्रति काफी सचेत है, लेकिन दूसरी ओर जर्मनी जो की विज्ञान के शिखर पर है, उसने अपने न्यूक्लियर बिजली घरों को वर्ष 2022 तक बंद करने का निर्णय ले लिया है|

Table 2: Share Of Coal, Nuclear power, Oil and Gas In Energy Mix Of Major Economies (%)
CountryCoalNuclearOilGas
US20.18.336.729.6
Germany25.06.834.523.2
France4.938.632.315.5
Russia13.45.621.953.2
UK18.38.034.932.9
India54.51.329.57.8
China67.50.917.85.1
World30.14.432.923.7

Source: BP Statistical Review of World Energy 2014

विश्व में कोयला आधारित तापीय बिजली उत्पादन में सर्वोच्च तदनुरूप कोयला आधारित प्रदूषण मे सबसे आगे चीन है जो कि अब तेजी से न्यूक्लियर बिजली सयंत्रों को बनाने में जुटा है| चीन वर्ष 2020 तक अपने न्यूक्लियर बिजली उत्पादन को बढ़ा कर 58000 मेगावाट और वर्ष 2030 तक 150000 मेगावाट तक उत्पादन करने की योजना में लगा है| उक्त चीन की योजना अपने यहाँ नॉन फासिल ईंधन (कोयला, गैस और तैल को छोड़कर ) के क्षेत्र में वर्तमान क्षमता के 10% भाग से भी कम हिस्से को वर्ष 2020 तक 15% और वर्ष 2030 तक 20% बढ़ाने की सोच रहा है|

न्यूक्लियर विद्युत् के उत्पादन में प्रमुख समस्याएँ

शुरू से ही भारत को अपने न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के लिए यूरेनियम को बाहर से आयात करना एक गंभीर चुनौती भरी समस्या रही है |

भारत के पास इस समय 23,000 गैस आधारित बिजली लगभग बंद पड़े हैं, कारण उनके लिए जरूरी ईंधन उपलब्ध नहीं है| गैस आधारित बिजली सयंत्रों से बिजली उत्पादन प्रति यूनिट न्यूक्लियर स्रोत से दुगना-तिगुना पड़ती है, कारण अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतों में लगातार उतार- चढ़ाव बना रहता है और एक विकासशील अर्थ व्यवस्था में तेल नियामत होता है|

लेकिन न्यूक्लियर साधनों से बिजली उत्पादन जोखिम और समस्या से भरा होता है| भारत के न्यूक्लियर बिजली सयंत्रों की स्थापित वर्तमान क्षमता लगभग 5780 मेगावाट है , जिसमे से भारत 3380 मेगावाट उत्पादन आयातित न्यूक्लियर ईंधन पर निर्भर करता है| भारत में स्थानीय स्तर पर न्यूक्लियर ईंधन केवल बाकी बचे 2400 मेगावाट के लिए ही पर्याप्त होता है|

ऐतिहासिक रूप से भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम हमेशा यूरेनियम के कमी से ग्रस्त रहा है| भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम को वर्ष 2008 में ही गति मिली –जब इस विषय पर भारत अमेरिकी सहयोग पर हस्ताक्षर हुआ और विभिन्न यूरेनियम ईंधन सप्लाइ करने वाले देशों से समझौते हुए| देखें निम्न चार्ट :-

भारत में इस समय निर्माणाधीन न्यूक्लीय बिजलीघर 3800 मेगावाट बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता के हैं और 43,100 मेगावाट के न्यूक्लीय बिजली घर प्रस्तावित हैं| उनमें से 1000 मेगावाट के निर्माणाधीन और 31900 मेगावाट के प्रस्तावित बिजलीघर अमेरिका फ्रांस और रूस की कंपनियों के साथ सहयोग कर निर्मित किये जाएँगे| इन सब न्यक्लियर बिजलीघरों के लिए ईंधन इन देशों की कंपनियाँ अगले 50 वर्षों तक आपूर्ति करेंगी|

शेष बचे 14,000 मेगावाट के स्वदेशी तकनीकों से निर्मित होने वाले न्यूक्लीय बिजलीघरों के लिए भारत को ईंधन का इंतेजाम करना पड़ेगा| जैसा कि हमे मालूम ही है - भारत के पास स्थानीय स्तर पर न्यूक्लीय इंधन की उपयुक्त आपूर्ति नही है|

यूरेनियम ईंधन के विषय में जो इतनी परेशानी आती है उसका कारण है कि इसी ईंधन – यूरेनियम से परमाणु बम भी बन सकते हैं – और यह गौरतलब है कि भारत सिर्फ न्यूक्लीय बिजली ही बनाने में क्यों इस ईंधन का इस्तेमाल करे?

(भण्डारी एक पत्रकारिता, रिसर्च और वित्त क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं| आप आईआईटी-बीएचयू से बी०टेक० और आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए हैं|)

इमेज क्रेडिट : आईएईए/पीटर पावलिकेक

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