बच्चों और युवाओं में कुपोषण, भारत के आर्थिक विकास में सबसे बड़ी अड़चन
नई दिल्ली: कुपोषण, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सबसे बड़ी रुकावट है। कुपोषण ही है जो आने वाले वक़्त में भारत को सुपर पावर बनने से रोक सकता है। दुनिया में नौजवानों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है। भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों मौतों में 68.2% मौतें कुपोषण की वजह से होती है। दुनिया भर में, पांच साल से कम उम्र के लगभग आधे बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हो जाती है।
पिछले कुछ दशकों में भारत ने बहुत तरक़्क़ी की, मगर 1992 से 2016 तक पांच साल तक के बच्चों में फैले कुपोषण में एक-तिहाई की कमी आयी। आज भी भारत के 38.4% बच्चे स्टंटेड हैं यानी ऐसे बच्चे जिनका कद उनकी उम्र के हिसाब से कम है। ये कुपोषण का सबसे बड़ा पैमाना है।
क्या है कुपोषण
कुपोषण का मतलब है शरीर में पोषक तत्वों की कमी, उनका ज़्यादा होना या फिर उनका संतुलित मात्रा में ना होना। कुपोषण, एक स्वस्थ शरीर और जीवन से व्यक्ति को वंचित रखते हैं। कुपोषण के पीछे सबसे बड़ी वजह होती है बच्चों का ग़लत खान-पान, जो अक्सर ग़रीबी या फिर माता-पिता में जानकारी की कमी से होता है।
कुपोषण के कई मुख्य मानक हैं जिनमे, स्टंटिंग; वेस्टिंग, यानी लम्बाई के अनुपात में कम वज़न; अंडरवेट, यानी उम्र के हिसाब से कम वज़न और ओवरवेट या मोटापा यानी लम्बाई के अनुपात में ज़्यादा वज़न। आमतौर पर लोग मोटापे को कुपोषण का हिस्सा नहीं मानते हैं जबकि मोटापा भी कुपोषण का एक मानक है।
हाल ही में आए स्वास्थ और परिवार कल्याण मंत्रालय के कॉम्प्रेहेन्सिव नेशनल नूट्रिशन सर्वे (सीएनएनएस) 2016-18, के मुताबिक़, 0 से 59 महीने (4 साल 9 महीने) तक के बच्चों में से 35% बच्चे स्टंटेड हैं, 17% वेस्टेड, 33% अंडरवेट और 2% ओवरवेट हैं। 6 से 59 महीने के 16% बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं।
5 से 9 साल उम्र तक के बच्चों में, 22% स्टंटेड, 10% अंडरवेट, 23% पतले और 4% ओवरवेट हैं। 10 से 19 साल की उम्र तक के बच्चों और किशोरों में 26.4% स्टंटेड, 24% उम्र के अनुसार पतले हैं और 5% ओवरवेट हैं।
सीएनएनएस सर्वे, दुनिया का पहला ऐसा सर्वे है जिसमें देश के बच्चों की पोषण स्थिति और उनमें माइक्रोन्यूटरीएंट्स यानी सूक्ष्म पोषकों की कमी के आँकड़े सामने आए हैं। इस सर्वे में भारत के 30 राज्यों के 0 से 19 साल उम्र तक के लगभग एक लाख बच्चों और किशोरों को शामिल किया गया है।
निजी और देश के विकास पर कुपोषण का असर
कुपोषित बच्चों की लम्बाई और वज़न, सिर्फ़ उनके स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि उनकी आमदनी और आर्थिक क्षमता पर भी सीधा असर डालते हैं। उम्र के पहले दो साल में हुआ कुपोषण बच्चों की पढ़ाई पर भी असर डालता है। एक ग्लोबल रिसर्च में बताया गया है कि एक सेंटीमीटर ज़्यादा लम्बे पुरुषों की आमदनी 4% और महिलाओं की आमदनी 6% ज़्यादा पाई गई। जो लोग बचपन में कुपोषित होते हैं, उनकी आमदनी सामान्य बच्चों के मुक़ाबले 20% कम होती है।
बच्चों का पोषण ना सिर्फ़ उनके भविष्य के लिए बल्कि देश के लिए भी अहम है। दुनिया भर में कुपोषण की वजह से सालाना 2.1 ट्रिलियन डॉलर यानी क़रीब 150 लाख करोड़ रुपए का नुक़सान होता है।
ओवरवेट यानी मोटापे के इलाज का ख़र्च, ज़्यादातर देशों की जीडीपी के 4 से 9% तक है। इनसे होने वाली बीमारियों की वजह से 2010 में 1.4 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 100 लाख करोड़ रुपये के नुक़सान का अनुमान लगाया गया था, जो हर साल बढ़ रहा है।
उम्र के हिसाब से कम क़द- कुपोषण का मुख्य मानक
कुपोषण का सबसे बड़ा मानक होता है स्टंटिंग, यानी जिनका क़द उनकी उम्र के हिसाब से कम है। भारत में 0 से 4 साल की उम्र तक के 35% बच्चे स्टंटेड हैं। सबसे ख़राब हालात, बिहार, मेघालय, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश के हैं, जबकि इस मामले में जम्मू कश्मीर के हालात सबसे बेहतर हैं जहां सिर्फ़ 15% बच्चे स्टंटेड हैं। इसके बाद गोवा है जहां 19.5% बच्चे स्टंटेड हैं।
Stunting among children (0-4 years)- Worst 5 states | |
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Bihar | 42.0% |
Meghalaya | 40.4% |
Madhya Pradesh | 39.5% |
Gujarat | 39.1% |
Uttar Pradesh | 38.8% |
कुपोषण से निपटने की सरकारी योजनाएं
देश में कुपोषण से लड़ने के लिए सरकार ने कई नीतियां और योजनाएं लागू कीं, जिनमें राष्ट्रीय पोषण मिशन या पोषण अभियान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मुख्य हैं। पोषण अभियान के तहत बच्चों, महिलाओं और किशोरियों में 2022 तक कुपोषण कम करने के लक्ष्य तय किए गए हैं।
2017 से 2022 के दौरान स्टंटिंग, लो बर्थ वेट यानी कम वज़न के साथ पैदा हुए शिशु और बच्चों में उम्र के हिसाब से कम वज़न को सालाना 2% कम करने का लक्ष्य है। साथ ही पांच साल तक की उम्र के बच्चों और महिलाओं में अनीमिया को भी सलाना 3% कम करने का लक्ष्य है।
सितंबर 2019 में द लेंसेट पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत अगर इसी रफ़्तार से काम करता रहा तो ये लक्ष्य 2022 तक पूरे नहीं हो पाएंगे। जिस रफ़्तार से सुधार हो रहा है, उसके अनुसार देश में 2022 तक लो बर्थ वेट अपने निर्धारित लक्ष्य से 8.9% ज़्यादा होगा, स्टंटिंग के मामले लक्ष्य से 9.6% ज़्यादा होंगे, अंडरवेट बच्चों की संख्या लक्ष्य से 4.8% ज़्यादा होगी। अनीमिया के मामले भी लक्ष्य से ज़्यादा होंगे। अनीमिक बच्चों के मामले 8.9% और महिलाओं के मामले 13.8% ज़्यादा होंगें।
इंडियास्पेंड की दिसम्बर 2018 की रिपोर्ट की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत, भुखमरी के ख़ात्मे के अपने 2025 के पोषण लक्ष्य को 2025 तक भी नहीं पूरा कर पाएगा।
(साधिका इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट हैं।)
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