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महिलाओं से संबंधित योजनाओं और परियोजनाओं पर खर्च किए जाने वाले जेंडर बजट में 18 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2016-17 में जेंडर बजट के हिस्से में 96,331 करोड़ रुपए की राशि आई थी।1 फरवरी, 2017 को जारी केंद्रीय बजट में 113,326 करोड़ रुपए दिए गए हैं। यहां यह जान लेना डरूरी है कि तमाम सभ्य देशों में महिलाओं को समान अवसर व सामाजिक सुरक्षा देने और यौनिक हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा-हर्जाना-परामर्श कवच के रूप में जेंडर बजटिंग की अवधारणा एक सफल रणनीति की तरह इस्तेमाल हो रही है।

कुल सरकारी खर्च में जेंडर उत्तरदायी बजट (लिंग आधारित बजट) की 5.2 फीसदी की हिस्सेदारी है। आंकड़ों में देखें तो वर्ष 2016-17 के 4.8 फीसदी से इस बार 0.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में बजट खर्च में इसकी हिस्सेदारी 4.5 फीसदी थी जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2016 में बताया है, लेकिन बजट के संशोधित अनुमान के बाद 4.8 फीसदी के ऊपर चला गया।

भारत का जेंडर बजट

Source: Union Budget 2017-18

जेंडर बजटिंग यानी लिंग पर आधारित बजट (जीबी) बजट वर्ष 2005-06 में शुरू किया गया था। जीबी में दो प्रकार की सरकारी योजनाओं को वित्तीय सहायता दी जाती है। पहली, ऐसी योजनाएं जिनमें 100 फीसदी प्रावधान महिलाओं के लिए है। दूसरी, ऐसी योजनाएं, जहां कम से कम 30 फीसदी महिलाओं के लिए आवंटन है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से एक बयान के अनुसार, “जेंडर बजटिंग की जरूरत इस बात से है कि राष्ट्रीय बजट से जो संसाधन पैदा होते हैं, उसका प्रभाव पुरुषों और महिलाओं पर अलग-अलग पड़ता है। भारत की आबादी में 48 फीसदी महिलाएं हैं लेकिन वे स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक मोर्चे पर पुरुषों से पीछे हैं। इसलिए उन पर बजट में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब केंद्रीय बजट में जेंडर उत्तरदायी बजट के लिए जगह हो। ”

हमारे यहां श्रम शक्ति में केवल 27 फीसदी महिलाओं की भागेदारी है। पाकिस्तान के बाद दक्षिण एशिया में महिला श्रम शक्ति की भागीदारी की यह दूसरी सबसे कम दर है। प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में 1,403 महिलाएं कभी किसी शिक्षण संस्थान नहीं गई हैं। 10 में से 8 अशिक्षित बच्चे, जिनकी 10 वर्ष की आयु से पहले विवाह हुई वे भी लड़कियां ही हैं। ( विस्तार से यहां, यहां और यहां देख सकते हैं। )

विश्व आर्थिक मंच के अनुसार ‘ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2016’ में भारत 87वें स्थान पर था। महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में भारत 142वें स्थान पर है, यानी नीचे से तीसरे स्थान पर है । ऐसे निराशाजनक माहौल को ठीक करने के लिए ही जेंडर बजट की जरूरत अर्से से महसूस की जा रही थी।

केंद्रीय सरकार के अलावा 17 राज्यों ने भी जेंडर बजटिंग को अपनाया है।

झारखंड ने अपने लिंग आधारित बजट में 30 फीसदी की वृद्धि की है। वर्ष 2016-17 में 5,909 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2017-18 में 7,684 करोड़ रुपए हुआ है। केरल ने घोषणा की है कि वह लिंग आधारित योजनाओं के लिए आवंटित किए जाने वाली राशि में 10 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ जेंडर बजटिंग का मार्ग प्रशस्त करेगा।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक स्कूल में नामांकन समानता के लिए जीबी सकारात्मक और महत्वपूर्ण है और इससे प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानताएं दूर हो सकती हैं।

हालांकि, अब पहले की तुलना में कहीं ज्यादा युवा महिलाएं उच्च शिक्षा में दाखिला ले रही हैं और और युवा पुरुषों की तुलना में 10 वीं बोर्ड की परीक्षा में अधिक सफल हो रही हैं। लेकिन या तो उनकी शादी जल्द हो रही है या फिर वे रोजगार की तलाश नहीं कर पा रही हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने ने अगस्त 2016 में विस्तार में बताया है। 22,095 करोड़ रुपए के साथ इस वर्ष महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बजट आवंटन में 20 फीसदी अधिक राशि प्राप्त हुई है। पिछले वर्ष यह राशि 17,640 करोड़ रुपए थी।

पोषण योजना, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ और मातृत्व योजनाओं के लिए अनुदान में वृद्धि

इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना के आवंटन में 326 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में 634 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2017-18 में 2,700 करोड़ रुपए इस मद में दिए गए हैं।

वर्ष 2011-12 में भारत की मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों 178 का था। यह श्रीलंका के 30, भूटान के148 और कंबोडिया के 161 से बद्तर है । ब्रिक्स देशों की तुलना में भी भारत की हालत खराब है। रूस में 25, चीन में 27, ब्राजील में 44 और दक्षिण अफ्रीका में 138 है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने सितंबर 2016 में बताया है।

‘सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउन्टबिलिटी’ (सीबीजीए) के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी कनिका कौल ने ‘द मिंट’ से बात करते हुए कहा कि, “ खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग की स्थायी समिति द्वारा सरकार की खुद की रिपोर्ट जनवरी 2013 में प्रस्तुत की गई थी, जो हर साल उपयुक्त महिलाओं की संख्या 2.25 करोड़ बताता है।” इसके लिए प्रति वर्ष 14,512 करोड़ रुपए लगते है।

31 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 6,000 रुपए सीधे उन गर्भवती महिलाओं के बैंक खातों में डाले जाएंगे जिनका प्रसव संस्थागत होगा और जिनके बच्चों का पूरा टीकाकरण होगा।

गर्भवती महिलाओं के लिए 6,000 रुपये देने का विकल्प पहले से ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम), 2013 में मौजूद है, लेकिन यह सरकार द्वारा लागू नहीं किया गया था, जैसा कि FactChecker ने 2 जनवरी, 2017 को विस्तार से बताया है।

राष्ट्रीय पोषण मिशन के लिए बजट में 28 गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में 19 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2017-18 में 550 करोड़ रुपए हुआ है। भारत में 45 फीसदी गर्भवती महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिक होने की रिपोर्ट हुई है। ये आंकड़े दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। हालांकि, पिछले 10 वर्ष में इन आंकड़ों में 12 फीसदी की गिरावट हुई है, जैसा कि सितंबर 2016 में इंडियास्पेंड ने विस्तार से बताया है।

मोदी की प्रिय परियोजना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को वर्ष 2017-18 के लिए चार गुना अधिक धनराशि आवंटित की गई है। पिछले 65 वर्षों में भारत में जन्म के समय लिंग अनुपात में गिरावट हुई है। यह आंकड़े 946 से 887 हुए हैं जबकि प्रति व्यक्ति आय में लगभग 10 गुना वृद्धि हुई है, जैसा इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

योजना अनुसार जेंडर बजट

Source: Union Budget 2017-18

‘द वायर’ द्वारा किए गए इस विश्लेषण के अनुसार, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए लिंग आधारित बजट में एक फीसदी से भी कम की हिस्सेदारी है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच दलित महिलाओं के बीच साक्षरता दर में 14.6 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाती अब भी भारतीय शैक्षिक संकेतक में पीछे हैं। 66 फीसदी अनुसूचित जाति और 59 फीसदी अनुसूचित जनजाति साक्षर हैं, आम जनता के बीच साक्षरता 74फीसदी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने यहां और यहां बताया है।

(साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ संकाय से वर्ष 2016-17 के लिए जेंडर एवं डिवलपमेंट के लिए एमए के अभ्यर्थी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 08 फरवरी 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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