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कोलकाता के बाहरी इलाके के एक औद्योगिक क्षेत्र के विनिर्माण इकाई में पुलों के लिए लोहे के विभिन्न हिस्से बनाते कामगार। वर्ष 2015-16 के दौरान, सात वर्षों में पहली बार विनिर्मित वस्तुओं की बिक्री में 3.7 फीसदी की गिरावट हुई है। आने वाले समय में कामगारों की छंटनी और ऋण के मामले में डिफॉल्टर होने की ज्यादा संभावना है।

मेक इन इंडिया अभियान के तहत सरकार द्वारा निवेश में लोगों को आकर्षित करने की तमाम कोशिशों के बावजूद वर्ष 2015-16 के दौरान तैयार वस्तुओं की बिक्री में 3.7 फीसदी की गिरावट हुई है। आने वाले समय में इस क्षेत्र में और छंटनी और ऋण के मामले में डिफॉल्टर होने की संभावना देखी जा रही है।

वैश्विक मंदी और मांग की कमी के कारण, नोटबंदी के पहले ही विनिर्मित वस्तुओं की बिक्री में गिरावट हो रही थी, जिसका असर वस्त्रों से लेकर चमड़े और स्टील के क्षेत्रों पर हुआ है।

परिणामस्वरुप, सितंबर 2016 तक छह महीने में इंजीनियरिंग कंपनी ‘लार्सन एंड टुब्रो’ ने करीब 14,000 कर्मचारियों की छंटनी की है। वर्ष 2016 में ‘माइक्रोसॉफ्ट’, ‘आईबीएम’ और ‘नोकिया’ जैसी बड़ी कंपनियों के द्वारा भी श्रमशक्ति में कटौती करने की सूचना मिली है। हालांकि कटौती छोटे स्तर पर की गई है, और इसका कारण मांग में आई सुस्ती बताया गया है।

नवंबर 2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मेक-इन-इंडिया अभियान शुरु करने के कुछ ही हफ्तों के बाद ही नोकिया ने चेन्नई में अपना कारखाना बंद कर दिया और इसका असर 6,600 पूर्णकालिक कर्मचारियों के रोजगार पर पड़ा।

अर्थशास्त्रियों का कहना है सरकार को विनिर्माण क्षेत्र की मदद के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 15-16 फीसदी का योगदान करता है और 12 फीसदी श्रम शक्ति को रोजगार देता है।

कम बिक्री के कारण-निवेश में कमी, लागत और आयात शुल्क में वृद्धि, मांग में गिरावटs

निवेश में कमी, लागत में वृद्धि और उच्च आयात शुल्क सहित कई कारण है जो विनिर्मित वस्तुओं के लिए मांग में गिरावट का कारण है। यह प्रवृत्ति नोटबंदी के पहले भी दिखाई दे रही थी और नोटबंदी के बाद और से और मजबूत हुई है।

वर्ष 2015-16 में सेवा क्षेत्र में 4.9 फीसदी की वृद्धि होने के साथ, पिछले सात वर्षों में पहली बार विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट देखी गई है। वर्ष 2009-10 में 12.9 फीसदी की वृद्धि दर थी और वर्ष 2015-16 में -3.7 फीसदी हुआ है, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चलता है।

क्षेत्र के अनुसार कंपनियों की बिक्री में वृद्धि

Source: Reserve Bank of India

100 करोड़ रुपए से कम की वार्षिक बिक्री वाली छोटी निजी कंपनियों पर गंभीर रुप से असर पड़ा है, क्योंकि उनकी बिक्री पिछले सात सालों से लगातार कम हो रही है। वर्ष 2009-10 में 8.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी और साल-दर-साल घटते-घटते वर्ष 2015-16 तक उनकी बिक्री 19.2 फीसदी तक कम हो गई है।

मुंबई के 32 किमी उत्तर पूर्व में बसे भिवंडी शहर में एक छोटे पैमाने पर कपड़ा उद्योग के मालिक शान अलि ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि, “हमारे क्षेत्र में काफी नुकसान हो रहा है, क्योंकि बिजली और कच्चे माल की कीमत में वृद्धि हुई है। इसलिए उत्पाद की लागत भी बढ़ जाती है, और हम सस्ता आयातित चीनी उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं। ”

आकार के अनुसार कंपनियों की बिक्री में वृद्धि

Source: Reserve Bank of India

मुंबई में छोटे पैमाने पर सोने के आभूषण निर्माता मनोज किशनचंद आहूजा कहते हैं, “नोटबंदी से पहले ही उच्च निर्यात शुल्क से हम परेशान थे। मांग में गिरावट से बिक्री में जबरदस्त कमी हुई है। हम उत्पादन कम करने के लिए मजबूर हैं। इसलिए कॉन्ट्रॉक्ट पर काम करने वाले श्रमिकों को रखने में भी कमी हुई है। ” आहूजा ने बताया कि उनका अधिकाश व्यवसयाय नकद में होता है और नोटबंदी के बाद स्थिति और बद्तर हुई है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर ऑर इकोनोमिक्स स्टडीज एंड प्लानिंग के प्रोफेसर जयती घोष ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “पिछले कुछ वर्षों में निवेश में हुई गिरावट का भी निर्मित वस्तुओं की मांग पर असर पड़ा है।”

निवेश में गिरावट, मांग में कमी के कारण हुई है, जिससे बिक्री और मुनाफे दोनों में कमी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक अपनी ताजा रिपोर्ट में कहती है, “नए ऑर्डर में क्रमिक रूप (तिमाही-दर-तिमाही) के साथ ही साल-दर-साल आधार पर गिरावट दर्ज की गई है और विनिर्माण क्षेत्र नकारात्मकता में डूबा हुआ है। ”

उद्योग जगत ने चेतावनी दी है कि इस उदास निवेश दृष्टिकोण के साथ दिसंबर में लगातार चौथे महीने के लिए औद्योगिक उत्पादन में कटौती से और अधिक लोगों की छंटनी हो सकती है।

इसके अलावा, पिछले छह वर्षों में, विनिर्माण क्षेत्र के लिए शुद्ध ऋण, जिसकी कॉर्पोरेट ऋण में 65 फीसदी हिस्सेदारी है, उसमें 77 फीसदी की गिरावट हुई है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2017 में बताया है। बड़ी निर्माण इकाइयों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। यहां 69 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

नतीजा: नौकरियां और कंपनियां खतरे में

निर्माता और व्यापारी कहते हैं, अगर बिक्री में सुधार नहीं हुआ तो, कंपनियां लागत में कटौती करेगी। भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार के रूप में काम कर चुकी अर्थशास्त्री इला पटनायक कहती हैं, “भारत में लागत में कटौती का सबसे आम तरीका कर्मचारियों की संख्या कम करना है। यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था और घरेलू बाजार में सुधार नहीं होता है तो हमें इस क्षेत्र में और अधिक छंटनी का सामना करना होगा। ”

वित्तीय संकट के कारण कंपनियों को बंद होने के लिए मजबूर होना पड़ा है और श्रमिकों की छंटनी होने की संभावना भी है। पिछले चार वर्षों में 186 औद्योगिक इकाइयों के बंद होने से विनिर्माण क्षेत्र में 12,176 रोजगार का नुकसान हुआ है, जैसा कि श्रम मंत्रालय द्वारा इस दिसम्बर 2015 को लोकसभा में दिए जवाब में अनुमान लगाया गया है।

औद्योगिक इकाइयों के बंद होने के कारण रोजगार में नुकसान

Source: Ministry of Labour & Employment; For 2012 & 2013, figures for Andhra Pradesh indicate jobs lost/units closed in undivided Andhra Pradesh. For 2015, figures for January to October.

सैयद जैसे छोटे उत्पादक बिक्री में गिरावट के साथ ही शहरों से बड़े पैमाने पर पलायन के कारण श्रमिकों की कमी का दोष नोटबंदी के बाद हुए नकदी की कमी को देते हैं। वह कहते हैं, “श्रमिकों को नकद में भुगतान करना होता है, क्योंकि उनके पास बैंक खाते नहीं होते हैं। क्योंकि हम उन्हें नकद नहीं दे पा रहे हैं इसलिए वे अपने गांव वापस चले गए हैं। ”

नोटबंदी के पहले 34 दिनों में, सूक्ष्म और लघु उद्योगों को राजस्व में 35 फीसदी और 50 फीसदी के नुकसान का सामना करना पड़ा है, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने 7 जनवरी, 2017 को अपनी रिपोर्ट में बताया है।

बड़े पैमाने पर निर्माता और रेडीमेड कपड़ों के निर्यातक, जी.के जैन कहते हैं, “वैश्विक उथल-पुथल भी निर्माताओं के लिए समस्याओं का कारण है।” वह आगे कहते हैं, “"पिछले तीन सालों से वैश्विक बाजार में अनिश्चितता है। विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव रहा है और इससे बिक्री में कमी हुई है । लाभ मार्जिन पर प्रतिकूल असर पड़ा है। ”

जैन का मानना है कि सुस्त विकास और उच्च बेरोजगारी का अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ने के साथ, आयातक विदेशी निर्माताओं के लिए कम कीमतों का भुगतान करना चाहते हैं, इससे यहां के निर्यातकों का लाभ मार्जिन कम हो जाएगा।

आरबीआई की रिपोर्ट कहती है, स्टील सेक्टर में कमजोर कंपनियों द्वारा उधार लेने की गति तेज हुई है। हालांकि, स्टील सचिव अरुणा शर्मा कहते हैं, “पिछले वर्षों में सार्वजनिक और निजी स्टील क्षेत्र में भारी निवेश किया गया था और एक बार निवेश पर रिटर्न आना शुरु हो जाएगे तो वहां बड़े निवेश फिर होंगे। ”

भारतीय रिजर्व बैंक ने यह भी कहा कि भारतीय निर्माताओं पर सामूहिक 6.9 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। पिछले चार वर्षों में 1,707 विनिर्माण कंपनियों के वित्तीय बयान के अपने अध्ययन में, भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया कि कमजोर कंपनियों की संख्या जिनकी ऋण-इक्विटी अनुपात 200 फीसदी से अधिक है, 2012-13 में 215 से बढ़ कर 2015-16 में 284 हुआ है, यानी 32 फीसदी की वृद्धि हुई है। उच्च ऋण-इक्विटी अनुपात का मतलब विकास के लिए कंपनी का आक्रामक तरीके से उधार के पैसे का उपयोग करना होता है, जिसमें डिफॉल्ट का उच्च जोखिम भी बना रहता है।

आरबीआई के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि निजी विनिर्माण कंपनियों के बीच डिफॉल्ट के जोखिम वाले कर्ज लगभग चार गुना बढ़े हैं, पिछले चार वर्षों में 2016 तक, 58,800 करोड़ रुपए से 2.1 लाख करोड़ रुपए हुआ है।

क्या है उपाय: बुनियादी ढांचे में निवेश, दोबारा मुद्रीकरण और समग्र सार्वजनिक खर्च में वृद्धि?

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि, बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश, अर्थव्यवस्था का दोबारा मुद्रीकरण और सार्वजनिक खर्च कार्यक्रमों के लिए आवंटन में वृद्धि द्वारा नोटबंदी से हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

घोष कहते हैं कि, “सरकार को या तो इसकी खपत खर्च में वृद्धि या मजदूरी आय में वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकार को सार्वजनिक योजनाओं में अधिक निवेश करना चाहिए जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से क्षेत्र में नौकरियों के सृजन के लिए नेतृत्व कर सकते हैं।”

सरकार को जल्दी से जल्दी वित्तीय प्रणाली के मुद्रीकरण करने की जरूरत है, जिसमें विनिर्माण क्षेत्र के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। घोष कहते हैं, “इस जरुरत का कारण अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का उन पर निर्भर होना है।”

पटनायक के अनुसार, नोटबंदी के असर से मुक्त होने में दो से तीन तिमाही का समय लग सकता है।

अर्थशास्त्री अजित रानाडे कहते हैं, “विनिर्माण और रोजगार सृजन के लिए लंबी अवधि के समर्थन के लिए नए निवेश और उद्यम आवश्यक हैं। हमें अगर हर माह 20 लाख नौकरियों को जोड़ने की जरूरत है, तो हमें हर महीने 20,000 से 50,000 नए उद्यम बनाने की जरूरत होगी। हमें बुनियादी ढांचे में एक बड़ा निवेश करने की जरुरत है। ”

(मुले 101Reporters.com से जुड़े हैं, दिल्ली में रहते हैं। 101Reporters.com जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों का राष्ट्रीय नेटवर्क है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 फरवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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