Copy Image

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि स्वाइन फ्लू वायरस के एक संभावित विषमय और विशिष्ट स्ट्रेन ने जो लोगों में मृत्यु और भय का कारण बन गया है, भारत में अपनी जड़ें जमा ली हैं ।

यह हाल ही में किए गए एक भारतीय दावे के विपरीत है जिसमे कहा गया था कि भारत में फैल रहे H1N1 वायरस के संस्करणमें कोई उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) (ए / कैलिफोर्निया / 04/ 2009 -इसके आधिकारिक नाम का उपयोग करें तो ) नहीं पाया गया है , वह स्ट्रेन जो सबसे पहले 2009 में अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में एक महामारी के दौरान पहचाना गया था।

आधिकारिक भारतीय पक्ष, जो यहां स्पष्ट किया जा रहा है, कहता है कि भारतीय स्ट्रेन "प्रतिजनक रूप से स्थिर" है अर्थात इसका उत्परिवर्तन नहीं हुआ है।

लेकिन इंटरनेशनल जर्नल सेल होस्ट और सूक्ष्म जीव में आज जारी किए गए एक एमआईटी अखबार के अनुसार, भारतीय H1N1 के स्ट्रेन की अनुवांशिक कड़ियों- या वर्णमाला - के परीक्षण से उन महत्वपूर्ण परिवर्तनों का पता चलता है जो इसे अत्यंत विषैला बनाते हैं।

वायरस की आनुवंशिक वर्णमाला में ये परिवर्तन, इसे मानव कोशिकाओं में सरलता से प्रवेश और आबद्ध होने में सक्षम करते हैं और इसके अधिक कुशलता पूर्वक संचरण में मदद करते हैं।

H1N1 वायरस किस प्रकार आनुवंशिक रूप से विकसित हो रहा है इसका एक सुराग फ्लोरिडा से मिलता है जहाँ एक और अध्ययन में ऐसा ही एक उत्परिवर्तन पाया गया । "इस वायरस में होने वाले आनुवंशिक परिवर्तन की जांच की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस वायरस के प्रभाव से होने वाली महामारी की पूर्व सूचना की जा सके," इस अध्ययन में कहा गया।

इस अध्ययन के सह लेखक, राम शशिशेखरण ने, एक ई-मेल साक्षात्कार में इंडिया स्पेंड को बताया की ये उत्परिवर्तन ही एक कारण हैं जो वर्तमान प्रकोप अभी तक जारी है जबकि इसे गर्म मौसम की शुरुआत के साथ कमज़ोर हो जाना चाहिए था। इसके अतिरिक्त अन्य लेखक कन्नन थरक्कारमन, एक शोध वैज्ञानिक है।

9 मार्च तक , स्वाइन फ्लू ने भारत भर में 1,482 लोगों की जान ली है और 26,000 इससे संक्रमित थे । जैसा की नीचे ग्राफ के रूप मेंदिखाया गया है , H1N1 हाल के वर्षों में भारत की सबसे विनाशकारी महामारी है।

स्वाइन फ्लू के कारण भारत में होने वाली मृत्य , 2009-15 *

deskgraphic

Source: Ministry of Health & Family Welfare; *Figures as on March 9, 2015

" अमेरिका में एमआईटी में जैव इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर,शशिशेखरन, कहते हैं " मानवों में इस वायरस के प्रति आबद्धता और विषात्मकता बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार उत्परिवर्तन के साथ कुछ अन्य कारक जैसे भारत में उच्च जनसंख्या घनत्व, व्यक्ति-से-व्यक्ति संचरण में आसानी, अंतर-प्रजाति पारेषण की संभावना और परिष्कृत खेती के तरीकों की कमी, भी संभवतः इस वायरस के संचलन के लिए ज़्ज़िम्मेदार हो सकते हैं।

2014-15 के दौरान भारत ने केवल दो ही आनुवंशिक अनुक्रमों को जमा किया, जिनका विश्व स्तर पर सार्वजनिक आनुवंशिक डेटाबेस (कुछ उदाहरण यहाँ और यहाँ हैं ) में अध्ययन किया जा सकता है जिससे स्पष्ट हो गया है कि भारत में इसकी निगरानी कितनी कमज़ोर है।

इन डेटाबेस में H1N1 वायरस के 4213 पूर्ण आनुवंशिक अनुक्रम हैं । सबसे अधिक अमेरिका (38.4%) से हैं बाकि चीन (7.2%), ब्रिटेन (6.5%) और सिंगापुर (6%)। अपने पेपर में शशिशेखरन और थरक्कारमन लिखते है "दुर्भाग्य से, भारत इस सूची में नीचे स्थान (14) पर है ,1.5% से कम अनुक्रम योगदान के साथ । "

शशिशेखरन भारतीय वैज्ञानिकों को वर्तमान फ्लू महामारी का अधिक परीक्षण और उसके बारे में आनुवंशिक जानकारी देने पर अधिक ध्यान देने ले लिए कहते हैं ।

"परीक्षण के लिए कुछ सरल, मानकीकृत प्रोटोकॉल होने चाहिए ," शशिशेखरन कहते हैं। "इनमे सतत निगरानी और संक्रमण फैलने की समय पर रिपोर्टिंग, मानव और जानवर में वायरस अनुक्रमण, विशेष रूप से उपप्रकार का अनुक्रमण जो मनुष्य में संक्रमण के लिए जाना जाता है और सार्वजनिक डेटाबेस में पूरे वायरल जीनोम अनुक्रम का तेजी से प्रचार-प्रसार भी शामिल है।"

यह वायरस स्ट्रेन, जो भारत सरकार मानती है, भारत में फ़ैल रहा है, ए / कैलिफोर्निया /04 / 2009, कम से कम एक वर्ष में 74 देशों में फ़ैल चुका है । वह जेनेटिक संरचना में, शशिशेखरन कहते हैं, उस 1918 के स्पेनिश फ्लू वायरस के समान है जिसके कारण40 लाख से अधिक लोग मारे गए और आधी दुनिया की आबादी संक्रमित हो गई।

हालांकि, मानव कोशिकाओं पर एक विशेष रिसेप्टर से आबद्ध होने की अपनी क्षमता में, स्पेनिश फ्लू वायरस का कैलिफोर्निया संस्करण बहुत कम कुशल था। इसलिए फ्लू वायरस की आनुवंशिक संरचना का परीक्षण प्रकोप की भविष्यवाणी करने में अति महत्वपूर्ण है।

शशिशेखरन और वैज्ञानिकों के एक समूह ने यह प्रदर्शित किया कि H1N1 के कैलिफोर्निया स्ट्रेन को पहले से अधिक घातक होने में ज्यादा कुछ नही लगता।

2011 में शशिशेखरन और उनके सहयोगियों ने प्रयोगशाला प्रयोगों में यह प्रदर्शित किया कि H1N1 के आनुवंशिक कोड में केवल अपेक्षाकृत सरल दो अक्षर परिवर्तन द्वारा प्रोत्साहित उत्परिवर्तन(म्युटेशन) इस वायरस को अधिक विषम बना सकता है।

अधिक अध्ययन और भारत से अधिक से अधिक वैज्ञानिक खुलेपन से यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या प्रयोगशाला की चेतावनी वास्तविकता बन सकती थी।

(समर हलर्नकर IndiaSpend.com के संपादक हैं )

__________________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.org एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :