Bhopal: A hoarding of `World Hindi Conference` in Bhopal on Sep 6, 2015. (Photo: IANS)

सितंबर, 2015 के विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए भारत सरकार की ओर से जारी एक पोस्टर और वाहनों के साथ सड़क पर गुजरते लोग। सत्ता के पहले 52 महीनों में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने सरकारी विज्ञापन पर 4880 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

मुंबई: एक साल के लिए 45.7 मिलियन बच्चों के लिए दोपहर का भोजन। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) के तहत 200 मिलियन श्रमिकों के लिए एक दिन की मजदूरी। लगभग 6 मिलियन नया शौचालय। और कम से कम 10 और मंगल मिशन।

ये कुछ कार्यक्रमों में से एक हैं, जिन्हें बड़ी आसानी से उन राशियों से पूरा किया जा सकता है,जो राशि वर्तमान राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने अपने कुछ कार्यक्रमों को लिए चार वर्षों में प्रचार पर खर्च किए हैं।

भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली सरकार ने अप्रैल 2014 और जुलाई 2018 के बीच 52 महीनों में अपनी प्रमुख योजनाओं के विज्ञापन पर 4,880 करोड़ रुपये (753.99 मिलियन) खर्च किए हैं, जैसा कि सूचना और प्रसारण के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राज्यवर्धन राठौर द्वारा राज्यसभा को उपलब्ध कराई गई जानकारी से पता चलता है।

यह राशि 37 महीने में सरकार के पूर्ववर्ती द्वारा खर्च की गई राशि का दोगुना है। कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत 2014 में पूछे गए प्रश्न पर इस प्रतिक्रिया के अनुसार, कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने मार्च 2011 और मार्च 2014 के बीच 2,048 करोड़ रुपये (377.32 मिलियन) खर्च किए थे।

एनडीए द्वारा प्रचार पर खर्च किए गए 4,880 करोड़ रुपये में से, 292.17 करोड़ रुपये (7.81 फीसदी) तीन साल में चार सार्वजनिक योजनाओं के विज्ञापन पर खर्च हुए हैं। यह चार योजनाएं हैं -फसल बीमा के लिए प्रधान मंत्री फासल बीमा योजना, शहरी और ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान, शहरी और ग्रामीण विकास के लिए स्मार्ट सिटी मिशन और संसद आदर्श ग्राम योजना।

वर्ष अनुसार प्रचार पर खर्च की गई राशि

जुलाई 2018 में जब ये आंकड़े प्रकाश में आए, तो सरकार की सार्वजनिक उपयोगिता में पैसा निवेश न करने की आलोचना भी हुई।

इंडियास्पेंड की गणना से पता चला है कि बाल पोषण से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता तक की महत्वपूर्ण सरकारी परियोजनाओं के लिए एनडीए द्वारा प्रचार पर खर्च किए।

चार साल में सरकारी विज्ञापन खर्च में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है।

2014-15 में विज्ञापनों पर सरकारी व्यय 980 करोड़ रुपये से 34 फीसदी बढ़कर 2017-18 में 1,314 करोड़ रुपये (203.89 मिलियन डॉलर) हुआ है।

2016-17 में, सरकार ने प्रिंट विज्ञापनों पर कटौती की और बदले में ऑडियो-विजुअल प्रचार में पैसा लगाया।

लेकिन 2017-18 में, यह विपरीत था- ऑडियो-विज़ुअल अभियानों की तुलना में प्रिंट विज्ञापनों पर अधिक खर्च किया गया था।

ऐसा लगता है कि 2017-18 की प्रवृत्ति इस वित्तीय वर्ष में भी जारी रही है। जुलाई 2018 से चार महीने में सरकार की बुकिंग से पता चलता है कि उसने ऑडियो-विज़ुअल प्रचार की तुलना में प्रिंट विज्ञापन पर पैसे दोगुना खर्च किए हैं।

(श्रेया रमन डेटा विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 10 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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