हरियाणा का हाई-रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल, प्रसव के दौरान होने वाली मौतों को कम करने की कोशिश
वज़ीराबाद, हरियाणा: 38 वर्षीय, राजवंती देवी, हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले के वज़ीराबाद ब्लॉक में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में, तपती दोपहरी में, गर्भवती महिलाओं की लंबी लाइन में खड़ी थी। ये लाइन आमतौर पर हर महीने की नौवीं तारीख को होती है, जब स्वास्थ्य केंद्र गर्भवती महिलाओं, ख़ासतौर पर उन महिलाओं को सेवाएं प्रदान करता है, जिनकी पहचान प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान कार्यक्रम (पीएमएसएमए), के तहत ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के रूप में की गई है ।
दो लड़कियों की मां राजवंती देवी तीसरी बार गर्भवती थीं, लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसे गर्भवती हुए कितना वक्त हो गया है। वो पहली बार इस स्वास्थ्य केंद्र पर आई थी और जब उसे ये पता चला कि वो छह महीने से गर्भवती है, तो उसे बड़ी हैरानी हुई। इसके अलावा, स्वास्थ्य केंद्र पर आकर उसे पता चला कि उसकी गर्भावस्था जोखिम भरी थी। उसका हीमोग्लोबिन स्तर 8.8 ग्राम / डीएल था और वो हल्की सी एनिमिक थी (महिलाओं के लिए ये सीमा 12 से 16 ग्राम /डीएल है)। राजवंती के लिए ये ज़्यादा जोखिम था क्योंकि उसके एक बच्चे का जन्म सीज़ेरियन से हुआ था।
राजवंती की गर्भावस्था को हरियाणा के हाई-रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जाएगा (ये पोर्टल राज्य सरकार संचालित करती है और इसकी शुरुआत नवंबर 2017 में की गई थी), ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि गर्भवती महिला को प्रसव पूर्व सभी चेक अप, सप्लीमेंट्स मिलें और ज़रूरत पड़ने पर सामुदायिक या ज़िला चिकित्सा केंद्र में विशेषज्ञों की सुविधा आसानी से मिल सके। इस व्यवस्था के तहत, गुरुग्राम में 2,750 और झज्जर ज़िले में 3,526, ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के मामले सामने आए हैं।
ये व्यवस्था, हरियाणा के मेटरनल मोर्टालिटी रेश्यो यानी मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) को कम करने के लिए चल रही कोशिशों का एक हिस्सा है (पिछली कोशिशों की वजह से राज्य का एमएमआर देश में 12वां सबसे कम है)। सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में हर एक लाख प्रसव के दौरान मौत का आंकड़ा 2014-16 के 101 के मुकाबले, 2015-17 में सुधर कर 98 हो गया जबकि 2015-17 में देशभर का औसत 122 था।
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2030 तक राज्य में मातृ मृत्यु अनुपात को प्रति एक लाख प्रसव पर 70 तक करने का लक्ष्य रखा है। हाई रिस्क प्रेगेंसी पोर्टल, ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था के मामलों को रजिस्टर करने और बेहतर तरीके से ट्रैक करने में मदद करता है। इस पोर्टल के ज़रिये इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि उन महिलाओं का चेक-अप छूट ना जाए और उनकी गर्भावस्था की भी बारीकी से निगरानी की जाती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), हरियाणा में मातृत्व स्वास्थ्य की उप निदेशक अलका गर्ग ने कहा, "इसका लक्ष्य मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और भ्रूण मृत्यु दर को कम करना है। ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के मामलों में मातृत्व अस्वस्थता और मातृ मृत्यु दर विशेष रूप से अधिक है।"
इस पोर्टल के मामले में हरियाणा का अनुभव बाकी राज्यों के लिए शिक्षाप्रद होगा। इन राज्यों ने 2016 और 2018 के बीच PMSMA के तहत ज़्यादा जोखिम के गर्भ वाली लगभग पांच लाख महिलाओं का पता लगाया। ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ में प्रसव पूर्व पीड़ा और प्रसव के दौरान जटिलताओं की अधिक संभावना, जन्म दोष, समय से पहले प्रसव, भ्रूण मृत्यु और ज़्यादा बिगड़े हुए मामलों में, शिशु और मां की मृत्यु हो जाती है। पीएमएसएमए के दिशा-निर्देशों में कहा गया है, "गर्भावस्था के दौरान जोखिम की वजहों का समय पर पता लगने से प्रसव के दौरान जटिलताओं के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।"
इंडियास्पेंड की टीम ने गुरुग्राम ज़िले में जाकर पाया कि इस कार्यक्रम के नतीजे पहले से ही दिखने शुरु हो गए हैं। एनएचएम हरियाणा के आंकड़ों के मुताबिक, प्रसव पूर्व चेक-अप के दौरान ज़्यादा जोखिम वाले मामलों का अनुपात 2013-14 के 6.91% से बढ़कर 2017-18 में 14.35% हो गया है।
वज़ीराबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सुपरवाइज़र, 57 वर्षीय शीला देवी ने बताया कि पहले, फ़ील्ड स्वास्थ्य कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं की जांच करते थे, लेकिन इस प्रक्रिया में ज़्यादा जोखिम वाले मामलों पर कोई ध्यान नहीं था। अब, अगर हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी वाली महिला से उसका मासिक चेक-अप छूट जाता है तो सिस्टम में तुरंत हर तरफ़ ये संदेश चला जाता है, और फिर स्वास्थ्य कार्यकर्ता उसके घर जाते हैं और उसे स्वास्थ्य केंद्र में लेकर आते हैं।
नीति अयोग ने जनवरी 2018 में ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के मामलों पर इस पोर्टल की व्यवस्था समेत हरियाणा के प्रबंधन को सराहा और प्रसव पूर्व देखभाल में 'सबसे अच्छी कार्यप्रणाली' बताया था।
हालांकि, फ्रंटलाइन वर्कर्स, लाभार्थियों और डॉक्टरों का कहना है कि देखभाल की क्वालिटी में सुधार किया जाना चाहिए। न केवल महीने की नौ तारीख़ को बल्कि पूरे महीने ये सेवाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
ज़्यादा जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं पर नज़र रखना
ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था के मामले उन महिलाओं में सामने आते हैं, जो 7 ग्राम/डीएल से कम हीमोग्लोबिन स्तर के साथ गंभीर एनिमिक हैं, जिन्हें गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर रहता है (140/90 mmHg से ज़्यादा), जिन्हें एचआईवी या यौन रोगों की समस्या है, गर्भावस्था के दौरान जिनका ब्लड शुगर बढ़ जाता है, जिनका पहले सिज़ेरियन हो चुका है या फिर भ्रूण मृत्यु, गर्भपात, समय से पहले जन्म, प्रसव के दौरान बच्चे के जन्म में रुकावट आना और जुड़वा बच्चे होने जैसी समस्याओं का सामना कर चुकी हों।
जोखिम में पाए जाने पर, राजवंती देवी को ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था का सांकेतिक लाल कार्ड दिया गया, और अब फ़ील्ड स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा और एएनएम) के साथ मिलकर काउंसलिंग और उसके बच्चे के जन्म तक उसकी निगरानी की जाएगी।
ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान होने पर एक महिला को प्रसव पूर्व जांच के लिए 'हाई रिस्क' स्टैम्प के साथ लाल रंग का कार्ड दिया गया। अब हरियाणा के हाई-रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल के माध्यम से उसके स्वास्थ्य की निगरानी की जा रही है।
पीएमएसएमए, वंदे मातरम कार्यक्रम का विस्तार है, जिसे सबसे पहले 2000 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया था। पीपुल्स हैल्थ मूवमेंट (पीएचएम) की भारतीय शाखा, जन स्वास्थ्य अभियान की संयुक्त संयोजक सुलक्षणा नंदी ने बताया, “पिछले कुछ साल में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ है और एएनएम की अधिक भर्ती हुई है, इसलिए स्थिति वास्तव में बेहतर हुई है।”
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक जुलाई 2016 से जनवरी 2018 के बीच पीएमएसएमए के तहत एक करोड़ से ज़्यादा महिलाओं की प्रसव पूर्व देखभाल हुई।
हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले के इस्लामपुर स्वास्थ्य केंद्र की एएनएम, नीलम चौधरी ने बताया, "ज़िले के सभी सरकारी अस्पताल ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के मामलों की संख्या पर आंकड़े इकट्ठा करते हैं और हर महीने सभी मामलों की जानकारी पोर्टल पर अपडेट की जाती है।"
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, हरियाणा की अलका गर्ग ने कहा, "पोर्टल, ज़्यादा जोखिम वाले गर्भावस्था के मामलों की पहचान करने के लिए राज्य की एक अनोखी शुरुआत थी। हमारे पास 100% नाम-आधारित पोर्टल है, जहां प्रत्येक महिला की गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म तक बारीकी से निगरानी की जाती है।"
पोर्टल के मुताबिक, गुरुग्राम में दर्ज किए गए ज़्यादा जोखिम वाले गर्भावस्था के मामलों में से 647 पिछली सीज़ेरियन डिलीवरी के कारण, 179 गंभीर एनिमिया के कारण, 187 हाई ब्लड प्रेशर के कारण और 211 कई बार गर्भ धारण के कारण थे।
इंडियास्पेंड ने हाई रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल से गुरुग्राम और झज्जर ज़िलों के आंकड़े निकाले। अक्टूबर के महीने में बार-बार ई-मेल और फ़ोन कॉल करने के बावजूद, हरियाणा के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने पूरे राज्य के आंकड़े साझा नहीं किए। अगर हमें ये आंकड़े मिले तो हम इस रिपोर्ट को अपडेट करेंगे।
काउंसिलिंग
पीएमएसएमए का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गर्भवती महिलाओं की काउंसलिंग करना है। शीला देवी ने कहा, "हम उन्हें दो बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने के लिए कहते हैं। अगर मामला जोखिम वाला या सीज़़ेरियन है, तो हम अगले बच्चे के लिए कम से कम तीन साल का अंतर रखने की सलाह देते हैं।"
शीला देवी ने आगे बताया, "अगर किसी भी वक्त कोई महिला अपने मासिक चेक-अप के लिए नहीं आती है, तो आशा वर्कर को उनके घर भेजा जाता है या हम फ़ोन करके ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि वो क्यों नहीं आईं। हाई रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल, हर महिला का ट्रैक रिकॉर्ड रखने में बेहद मददगार है।"
प्रसव या मेडिकल इमरजेंसी में, ज़्यादा जोखिम वाले गर्भावस्था के मामलों को ज़िला अस्पतालों या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेजा जाता है जहां विशेषज्ञ सेवाएं उपलब्ध होती हैं। नीलम चौधरी ने बताया, " पिछले महीने पीएमएसएमए के दिन हमें हाई ब्लड प्रेशर (बीपी) का मामला मिला। एक महिला का बीपी 220/190 mmHg था, उसे तुरंत एक आशा कार्यकर्ता के साथ सिविल अस्पताल भेजा गया।"
प्रसव पूर्व देखभाल
राजवंती देवी की तरह, ज़्यादातर महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उचित प्रसव पूर्व देखभाल नहीं मिलती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस- 4) के मुताबिक, 2015-16 में सर्वेक्षण से पहले पिछले प्रसव के दौरान 15-49 साल की केवल 51% महिलाएं ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक चार बार प्रसव पूर्व जांच के लिए गईं थीं। लगभग 17% महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कोई प्रसव पूर्व जांच की सुविधा नहीं मिली।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर कोई इस बात से सहमत हो कि पीएमएसएमए प्रसव पूर्व देखभाल का आदर्श तरीका है। जन स्वास्थ्य अभियान की सुलक्षणा नंदी ने कहा कि महिलाओं को लाइनों में लग कर इंतेज़ार करना पड़ता है, उनमें से कुछ तो डॉक्टर से मिल भी नहीं पाती हैं। देखभाल का स्तर अच्छा नहीं है क्योंकि एक ही दिन में बहुत सारी महिलाएं अपनी बारी का इंतेज़ार करती हैं।
सुलक्षणा ने कहा, "यह कार्यक्रम सिर्फ एक और अभियान है, सही मायने में ज़्यादा जोखिम वाले मामलों को प्राथमिकता नहीं दी जाती है, संख्या बढ़ाने के लिए महीने के एक दिन सभी गर्भवती महिलाओं को बुला लिया जाता है… मैंने ऐसे मामले देखे हैं जिनमें हर रोज़़ दी जाने वाली सेवाएं नहीं मिलती हैं और प्राथमिकता इस बात को दी जाती है कि हर महीने की 9 तारीख़ को जितनी ज़्यादा हो सके उतनी महिलाओं को इकट्ठा करना है। ”
आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का कम सेवन
जब राजवंती देवी के ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ का पता चला, तो उन्हें अल्ट्रासाउंड करवाने, और आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों की नियमित खुराक लेने की सलाह दी गई। गर्भावस्था के दौरान, एनिमिया की वजह से मातृ मृत्यु, समय से पहले बच्चे का जन्म और शिशु मृत्यु दर के ख़तरे बढ़ जाते हैं। इंडियास्पेंड ने इस बारे में सितंबर 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
राजवंती देवी ने कहा, "मेरे पास आयरन की गोलियां हैं, लेकिन मैं उन्हें नहीं खाती। इससे मुझे उल्टी जैसा लगता है और उसके बाद मैं अपने घर का कोई काम नहीं कर पाती।"
गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ, 58 वर्षीय चंदन खाचड़ू ने बताया, "महिलाएं आयरन की गोलियां नहीं खाती हैं।" खाचड़ू महीने में एक बार स्वेच्छा से, पीएमएसएमए के तहत मरीज़ों को देखने जाती हैं। उन्होंने कहा, “मैंने ज़्यादातर सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों में यही चलन देखा है। निजी अस्पताल में मरीज़ नियमित रूप से आयरन की गोलियां खाते हैं।”
2015-16 के एनएफ़एचएस-4 के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे ग़रीब महिलाओं में केवल 14.4% ने ही 100 से ज़्यादा दिन तक आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां खाईं, जबकि सबसे अमीरों के मामलों में ये आंकड़ा 48.2% था ।
चंदन खाचड़ू (58), एक निजी स्त्री रोग विशेषज्ञ और सरकार के सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के तहत स्वयंसेवक, राजवंती देवी (38) के साथ। उसकी गर्भावस्था ज़्यादा जोखिम वाली है, क्योंकि वो हल्की एनिमिक है और उसका पहले सीज़ेरियन हो चुका है। हरियाणा एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से ज़्यादा जोखिम वाले गर्भावस्था मामलों को ट्रैक करता है। ऐसा करने वाला वो देश का एकमात्र राज्य है।
सिज़ेरियन सेक्शन
पहले हो चुके सीज़ेरियन की वजह से ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था के मामले बढ़ जाते हैं। हाई रिस्क प्रेगनेंसी पोर्टल के मुताबिक, ऐसे मामले गुरुग्राम में 24% और झज्जर में 13% हैं।
सीज़़ेरियन सेक्शन की दर 2005-06 में 9% से बढ़कर 2015-16 में 17% हो गई है। ख़ासतौर पर प्राइवेट अस्पतालों में सीज़ेरियन के मामले (कुल डिलीवरी के 41%) आम बात हैं। एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक, 2005-06 के मुकाबले ये बढ़ोत्तरी 28% है ।
निजी क्षेत्र की भागीदारी
निजी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों को पीएमएसएमए के तहत हर महीने की नौ तारीख को नज़दीकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में स्वयं सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। लोकसभा में दिये गए एक जवाब के मुताबिक, जुलाई 2016 के बाद से लगभग 5,799 प्राइवेट डॉक्टरों ने कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है ।
खाचड़ू ने बताया, "फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनाकोलोजिकल सोसायटी ऑफ़ इंडिया (एफ़ओजीएसआई) ने सभी स्त्री रोग विशेषज्ञों से PMSMA में शामिल होने के लिए एक अपील की थी, मैंने इस योजना में हिस्सा लेकर समाज के लिए कुछ करने का काम किया है।"
खाचड़ू ने वज़़ीराबाद के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बिताए चार घंटे में कुल 50 रोगियों की जांच की। उन्होंने कहा कि उन्हें ज़्यादा जोखिम वाले गर्भ के 12 मामले मिले।
जन स्वास्थ्य अभियान की सुलक्षणा नंदी ने कहा, "हर महिला को मिलने वाली मातृ स्वास्थ्य सेवाएं, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का एक हिस्सा है ना कि कोई परोपकार, जैसा कि पीएमएसएमए के ज़रिये जताया जाता है। दूरदराज़ के क्षेत्रों में उतने निजी स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। लेकिन स्वयं सेवा करने वाले अधिकांश निजी स्त्री रोग विशेषज्ञ बड़े शहरों में हैं जहां पहले से ही पर्याप्त चिकित्सक मौजूद हैं।"
(सना इंडियास्पेंड के साथ रिपोर्टिंग फ़ेलो हैं।)
(ये रिपोर्ट मूलत: अंग्रेज़ी में 12 नवंबर 2019 को Health-check.in/ पर प्रकाशित हुई है।)
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